जीवन का वास्तविक आनन्द वही मनुष्य उठा सकते हैं जो कठोर परिश्रम करते हैं। आलस्य करने वाले, हाथ पर हाथ रखकर निठ्ठले बैठने वाले, इधर-उधर बैठकबाजी करने वाले अथवा सुविधाभोगी लोग उसका आनन्द नहीं ले पाते। ऐसे लोग जीवन की उन सच्चाइयों से या तो अनभिज्ञ रहते हैं या फिर उनसे मुँह मोड़ लेना चाहते हैं।
जिन लोगों को घर में पकी-पकाई खीर मिल जाती है, वे स्वादिष्ट खीर बनाने के रहस्य को कभी नहीं जान सकते। उसके लिए खीर बनाने वाले को कितना परिश्रम करना पड़ता है? कितनी प्रकार की सामग्रियाँ उसके लिए जुटाई जाती हैं? उसे बनाने में कितना समय लगता है? उसे बनाने वाले की भावना अथवा उसके प्यार के मूल्य को वे लोग न तो जान सकते हैं और न ही समझ सकते हैं।
ठण्डी हवा का सुख उसी व्यक्ति को समझ में आ सकता है जो बाहर की गरमी में तपकर आया है, अपना बहुमूल्य पसीना बहाकर आया है या दिन भर परिश्रम करके थका हुआ है। जो मनुष्य दिन भर कूलर या एसी में बैठा हुआ गरमी में खूब ठंडक का आनन्द ले रहा है वह हवा की शीतलता के वास्तविक सुख का अहसास नहीं कर सकता। गर्मी में तपकर आए मनुष्य को पंखे की हवा में भी ठंडक का अहसास हो जाता है।
बगीचे में खिले हुए फूलों की खूशबू उसी व्यक्ति को मोहित कर सकती है जो फूलों का आनन्द लेना जानता है, जो प्रकृति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करता है। सारा दिन इत्र, डियो या सुगन्धित साबुनों आदि में नहाया रहने वाला मनुष्य प्राकृतिक सुगन्ध से नित्य दूर होता जाता है। उस व्यक्ति को फूलों से आती हुई सुगन्ध के स्थान पर दुर्गन्ध का ही आभास होने लगता है।
दिनभर शीतल पेय पीने वाले, फ्रिज और वाटर कूलर के ठण्डे जल पीने वाले मनुष्य वास्तव में जल की शीतलता के वास्तविक सुख से वञ्चित रह जाते हैं। गरमी में तपकर आए हुए व्यक्ति को यदि मटके या नल का सदा जल मिल जाए तो वह भी उसके लिए अमृत तुल्य होता है।
माता-पिता के मेहनत से कमाए हुए धन पर ऐश करने वाले पैसे की कीमत नहीं जानते। उस धन का दुरुपयोग करने में भी उन्हें परहेज नहीं होता। यदि दुर्भाग्यवश उन्हें कभी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर पापड़ बेलते हुए, बहुत कठिनाई से धन कमाना पड़ जाता है तब उन्हें उसकी कीमत पता चलती है। फिर वे उस धन को दाँतों से पकड़कर रखते हैं। उसे व्यय करते समय दस बार सोचते हैं।
कहने का तात्पर्य यही है कि जब मनुष्य सुविधाभोगी होता जाता है तो वह वास्तविकता से बहुत दूर चला जाता हैं। जमीनी हकीकत से वह मुँह मोड़ने लगता है।
ईश्वर न करे यदि अस्वस्थ होने की स्थिति में या दुर्भाग्यवश कभी किसी भी कारण से मनुष्य को उन सुख-सुविधाओं से वञ्चित होना पड़े अथवा कभी जीवन की सच्चाइयों से दो-चार होना पड़े या उनका सामना करना पड़े तो हालात बड़े कठिन हो जाते हैं। उस समय वह अपने हाथ-पैर छोड़ देता है। रोने-चिल्लाने लगता है। परिस्थितियों से भागने की उसकी प्रवृत्ति उसे बेचैन कर देती है।
एक ओर वे लोग हैं जो नरम-मुलायम गद्दों पर रातभर करवटें बदलते रहते हैं, उन्हें नींद नहीं आती। नींद के आगोश में जाने के लिए उन्हें गोली खानी पड़ती है। उधर दूसरी ओर कठोर शारीरिक श्रम करने वाले पत्थर को अपना तकिया बनाकर नंगी जमीन पर चैन से सो जाते हैं। सुविधाभोगी लोगों के पास बीमारियाँ बिन बुलाए मेहमान की तरह आती हैं। सब कुछ होते हुए भी वे मनपसन्द खाना खा नहीं सकते।
इन्हीं स्थितियों से जीव जगत को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गीता में द्वन्द्व सहन करने का सदुपदेश दिया था। हमें सभी सुविधाओं को भोगते हुए विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए सन्नद्घ रहना चाहिए और प्रतिदिन ईश्वर द्वारा दी गई अमूल्य नेमतों के लिए उसका धन्यवाद करते रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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