महिलाएँ चाहे वह कामकाजी हो अथवा घर में रहने वाली प्रायः सभी अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान नहीं देतीं यानी अनदेखा करती रहती हैं। एक महिला जो एक पत्नी है, एक बहु है, एक माँ है वह ही अपने प्रति सदा लापरवाही बरतती है। घर-परिवार के सारे सदस्यों के सुख-दुःख का ध्यान रखने के लिए दिन-रात चक्करघिन्नी की तरह घूमने वाली वह अपने विषय में तो मौन हो जाती है।
उसके अपने खाने-पीने, सोने-जागने का कोई भी समय नहीं होता। उसे बस अपने परिवार के सदस्यों की चिंता ही सताती रहती है, इसलिए वह सदा बेचैन बनी रहती है। कामकाजी महिलाओं को सवेरे बच्चों को स्कूल भेजना, पति को ऑफिस समय पर भेजना, घर में यदि बड़े-बुजुर्ग हों तो उनके लिए व्यवस्था करना आदि सभी कार्यों को निपटाकर स्वयं भी अपने कार्य के लिए जाना होता है।
दफ्तर के कार्यों को करना, वहाँ के तनावों को झेलना, देर-सवेर घर आना, सब दैनिक कार्यों को उसी दिन समाप्त करना होता है। इस तरह उसे घर और कार्यक्षेत्र दोनों का दोहरा तनाव झेलना पड़ता है। तबियत ठीक न होने पर बस गोली खाकर काम चला लेती है। जब बिस्तर पर पड़ जाने की स्थिति होती है, तभी वह डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाती है।
हर घर की अपनी आर्थिक स्थिति होती है। वहाँ चौबीस घण्टे कार्य करने के लिए नौकर या आया नहीं रखे जा सकते। वे पार्ट टाइमर से ही अपना काम चलते हैं। शेष कार्य उन्हें स्वयं ही करने होते हैं। इस तरह दोनों पाटों में महिलाएँ पिसती रहती हैं। कहने को तो कह सकते हैं कि महिला को काम करने की क्या आवश्यकता है? वह आराम से घर क्यों नही रहती?
आज महँगाई के इस समय यदि पति-पत्नी दोनों ही काम न करें तो घर की सुरुचिपूर्ण व्यवस्था करने में असुविधा होती है। बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए, समाज में अपना स्टेट्स बनाए रखने के लिए पति-पत्नी दोनों को कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चलना ही पड़ता है। यह आवश्यक भी है और समय की माँग भी है।
इसी प्रकार घरेलु महिलाओं की भी स्थिति होती है। वे भी अपने घर के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में इतना व्यस्त रहती हैं कि चाहकर भी अपने लिए न तो समय निकाल पाती हैं और न ही सोच पाती है। बच्चों को स्कूल भेजने और पति को ऑफिस भेजने के पश्चात अव्यवस्थित घर को व्यवस्थित करने के बाद स्वयं देर-सवेर नाश्ता करती है। इसी तरह उसके दोपहर और रात के भोजन का समय भी निश्चित नहीं हो पाता।
दोपहर को बच्चों को स्कूल बस से लेने जाना, उन्हें खिलाना-पिलाना, उनके गृहकार्य को करवाने में ही उनका अधिकांश समय बीत जाता है। अपने लिए तो उन्हें समय ही नहीं मिल पाता। घर में सबकी सुविधाओं का ध्यान रखते हुए उसे अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं मिल पाता।
अन्य सदस्यों की हर आवश्यकता को पूरा करना, उनके खानपान पर नजर रखने वाली महिलाएँ भूल जाती हैं कि उन्हें स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक भोजन, दूध, फल आदि की आवश्यकता होती है। इमके आभाव में शरीर को बिमारियाँ घेरने लगती हैं। सारी कटौती या बचत वे अपने ऊपर करती हैं। आयु बढ़ने के साथ यह बचत उन पर भारी पड़ने लगती है।
अपने स्वस्थ की अनदेखी उन्हें बहुत महँगी पड़ती है। थोड़ी अस्वस्थता में कोई भी दवा लेकर काम में लगे रहने से रोग धीरे-धीरे बढ़ता रहता है। पता नहीँ चलता पर शरीर को हानि पहुँचती रहती है। आयु बढ़ने पर शरीर जब कमजोर पड़ने लगता है, उसकी क्षमता कम होने लगती है, तब वे रोगी होकर कष्ट पाने लगती हैं।
अपनी सभी बहनों से अनुरोध है कि आपका परिवार आपसे है। उसकी ख़ुशी आपसे है। आपके स्वस्थ रहने पर ही घर में खुशहाली आती है। इसलिए अपने स्वस्थ और अपने आहार-विहार का पूरा ध्यान रखें। तबियत यदि जरा सी भी ख़राब हो तो स्वयं दवा न लेकर तुरन्त योग्य डॉक्टर से सम्पर्क करें और स्वस्थ रहने का यथासम्भव प्रयास करें।
चन्द्र प्रभा सूद
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