समय पल-पल करके बीतता जा रहा है, इसे मनुष्य एक चेतावनी समझ सकता है। जो भी उसने योजना बनाई हुई है, उसे साकार कर लेना चाहिए। ताकि बाद में पश्चाताप करने की उसे कभी आवश्यकता न पड़े। यदि मनुष्य कोई षडयन्त्र करने का विचार कर रहा है तो समय रहते चेत जाना चाहिए। उसे उस नकारात्मक कार्य को करने से यथासम्भव बचना चाहिए। उसका दुष्परिणाम तब भुगतना पड़ता है तो बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है।
एक बोध कथा की चर्चा करना चाहती हूँ जिसे बहुत से लोगों ने पढ़ा होगा। एक दोहा सबके उत्थान का कारक बना। बहुत समय से राज्य का भोग करते हुए एक राजा के बाल सफेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखने का विचार किया। अतः अपने गुरु तथा मित्र देश के राजाओं को भी आमन्त्रित किया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए अपने राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को बुला भेजा। राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्राएँ अपने गुरु को दीं ताकि नर्तकी के अच्छे नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात उसका नृत्य चलता रहा। सुबह होने वाली थी, नर्तकी ने देखा कि उसका तबले वाला ऊँघने लगा है तो उसे जगाने के लिए नर्तकी ने निम्न दोहा पढ़ा -
बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिहाई।
एक पलक के कारने, न कलंक लग जाए॥
अब इस दोहे का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियों ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुरूप अर्थ किया। वह तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा। जब ये बात गुरु ने सुनी तो उसने सारी मोहरे उस नर्तकी को दे दीं। उसी दोहे को सुनकर राजकुमारी ने अपना नौलखा हार दे दिया और राजकुमार ने अपना मुकट उतारकर दे दिया। राजा ने कहा - 'नर्तकी, तुमने बस एक दोहा सुनाकर सबको लूट लिया है।'
जब ये बात राजा के गुरु ने सुनी तो उनके नेत्रो में आँसू आ गए और कहने लगे - 'राजा, इसे नर्तकी न कह यह अब मेरी गुरु है। इसने मेरी आँखे खोल दी हैं। मै सारी उम्र जंगलो में तपस्या करता रहा और आखरी समय मुजरा देखकर अपनी साधना नष्ट करने आ गया। भाई मै तो चला।'
राजकुमारी ने कहा - आप मेरी शादी नहीं करवा रहे थे, आज मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था। इसने मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी। क्यों अपने पिता को इस आयु में कलंकित करती है?'
राजकुमार ने कहा - 'आप मुझे राज्य नहीं दे रहे थे। मैं सिपाहियों के साथ मिलकर आपका कत्ल करवाने का घृणित कार्य करने वाला था। इसने समझाया - 'आखिर राज्य तो तुम्हेँ ही मिलना है। क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेते हो?'
जब राजा ने ये सारी बातें सुनी तो उसे भी आत्मज्ञान हुआ - ' गुरु मौजूद हैं, क्यों न मै अभी राजकुमार का राजतिलक कर दूँ।'
उसी समय राजा ने अपने बेटे का राजतिलक कर दिया और बेटी से कहा - 'बेटी! मैं जल्दी ही योग्य वर देखकर तुम्हारा विवाह कर दूँगा।'
यह सब देखकर नर्तकी ने कहा - 'मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए पर मैं आज तक नहीं सुधरी। आज से मैं भी अपना धन्धा बन्द करती हूँ। हे प्रभु! आज से मै भी तेरे नाम का सुमिरन करूँगी।'
समझने की बात है कि दुनिया को बदलते देर नहीं लगती। दोहे की दो पंक्तियाँ से भी ह्रदय परिवर्तन हो सकता है। केवल थोड़ा धैर्य रख कर चिन्तन और मनन करने की आवश्यकता होती है। इस धरती पर विद्यमान सब पदार्थ यहीं धरे रह जाते हैं। मनुष्य अपने साथ न कुछ भी लेकर आता है और न ही कुछ लेकर जा सकता है। वह मुट्ठी बाँधे खाली हाथ इस संसार में आता है और उसी प्रकार अपनी सारी धन-दौलत छोड़कर विदा लेनी होती है। यही सृष्टि का अटल नियम है जो किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए भी नहीं बदला जा सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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