समय की माँग है कि बेटी हो या बेटा दोनों को ही गृहकार्य में दक्ष होना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि बेटी है तो वही घर के काम करे और बेटा है तो वह मौज-मस्ती करे। युवा होकर जब उन्हें गृहस्थी बसानी पड़ती है तब इस गुण की आवश्यकता पड़ती है। नौकरी-व्यावसाय के कारण घर से दूर किसी नए स्थान पर रहना पड़ता है या विदेश में सेटल होना होता है, जहाँ सेवक सरलता से नहीं मिलते अथवा होते ही नहीं हैं।
बेटी को शिक्षित करते समय माता को ध्यान रखना चाहिए कि उसे दुनियादारी की शिक्षा दे। साथ ही खाने-पकाने में भी उसे दक्ष बनाए। यदि वह इन सारे कामों को कर सकेगी तो अपनी गृहस्थी अच्छे से चला सकेगी। अन्यथा वह किसका मुँह देखेगी। यह सत्य है कि नौकरों-चाकरों के सहारे घर नहीं चला करते। स्वयं को चौकस रहना पड़ता है। बाद में रोते-झींकते जो कार्य करना पड़ेगा, उसे पहले ही सीख लिया जाए तो बेहतर होता है। तब जरा भी कठिनाई का अनुभव नहीं होता।
एक दृष्टान्त देखते हैं जहाँ माता-पिता के लाड-प्यार के कारण बेटियों को कुछ भी समझ नहीं थी। आप भी इस पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा देंगे कि ऐसा भी हो सकता है। एक महानगर के किसी पति-पत्नी में इस विषय पर बहस हो गई कि उनके एकमात्र लड़के के विवाह के लिए गाँव से बहू लाई जाए या शहर की। पत्नी कहती- " मैं गाँव की रहने वाली हूँ। गाँव से ही लड़की लाएँगे क्योंकि वह घर का काम-काज अच्छी तरह से सम्भाल सकती है। वहाँ की लड़कियाँ प्रायः समझदार, संस्कारी और घरेलू होती हैं।"
पति कहता, "गाँव की लड़कियाँ गँवार होती हैं, ज्यादा पढ़ी-लिखी और प्रोफेशनल नहीं होतीं। फिर उन्हें शहर के तौर-तरीके भी तो ज्ञात नहीं होते। वे घर-गृहस्थी सम्हालना क्या जानें?"
पत्नी का कहना था, "शहर की लड़कियाँ बहुत ही चुस्त होती हैं, वे कभी घर-परिवार में सामञ्जस्य नहीं बिठा सकतीं। इसलिए घर में तनाव का माहौल बना रहता है।"
आखिरकर पत्नी की जिद के आगे पति ने हथियार डाल दिए। वे दोनों अपने गाँव में एक लड़की को देखने के लिए पहुँचे। पति ने उस लड़की से कहा, "बेटी जरा मैंगो शेक बनाकर ले आओ।"
उस बेचारी लड़की को शेक का अर्थ ही समझ में नहीं। उसने सोचा कि अंकल ने आम को सेक करके लाने के लिए कहा है। इसका कारण था कि उसने कभी इसके बारे में न सुना था और न ही उसे कभी पिया था। रसोईघर में जाकर उसने आम उठा लिया और उसे तवे पर सेककर, उसका गुदा निकालकर, उस पर नमक और मसाला डाल दिया। फिर वह उसे प्लेट में सजाकर उनके समक्ष ले गयी। यह अनुभव बटोरकर वे पति-पत्नी दोनों अपने शहर वापिस लौट आए।
अब पति के कहने पर अपने ही शहर में एक प्रोफेशनल लड़की को देखने गये। पत्नी ने सोचा होने वाली बहू की परीक्षा आम सिकवा कर ली जाए। उसने उस लड़की से कहा, "बेटी जरा आम सेककर ले लाओl"
लड़की अपनी मॉड्यूलर किचन में गई। उसने सोचा शेक बनाकर ले जाना है। उसने आम छीलकर उसका पल्प फ़ूडप्रोसेसर में डाल दिया। फिर उसमें दूध, चीनी, बर्फ और पानी मिलाकर उसका शेक बना डाला। उसके बाद उस शेक को दो गिलासों में भरकर उनके समक्ष ले गई।
प्रोफेशनल लड़की का खाना बनाने का यह अन्दाज देखकर उन लोगों ने माथा पीट लिया।
कहने का अर्थ है कि सभी लड़कियाँ ऐसी नहीं होतीं। पर जिन्होंने कभी रसोईघर की शक्ल ही न देखी हो तो वे ऐसी भूल कर सकती हैं। बच्चों की जगहँसाई न हो, इसके लिए माता को सावधान रहने की बहुत आवश्यकता होती है। खाना पकाना सीखना कोई मुश्किल काम नहीं है और न ही इसमें अपनी हेठी माननी चाहिए। आजकल बच्चों के खाना पकाने वाले शो टी.वी. पर आते रहते हैं। जब बच्चे उनमें भाग लेकर अपना हुनर दिखा सकते हैं तो बड़ों को सीखने से परहेज नहीं करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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