जिस घर-परिवार के सदस्यों में सदा प्रेम, सौहार्द और अपनापन बसता है वहाँ पर धन और सफलता का वास स्वतः हो जाता है। इसका कारण है कि प्रेम कभी अकेला नहीं रहता। जहाँ-जहाँ प्रेम जाता है, वहाँ-वहाँ उसके पीछे धन और सफलता भी बिन बुलाए आ जाते हैं। यदि मानो तो इन तीनों का जमावड़ा मनुष्य की सबसे बड़ी दौलत होता है। इसे सम्हालकर रखना सभी का प्रमुख कर्त्तव्य होता है।
जिस घर में प्रेम के लिए स्थान नहीं होता वहाँ यदि दुनिया की सारी दौलत का भण्डार लगा दिया जाए तो भी वह व्यर्थ हो जाता है। उसका सबसे बड़ा कारण आपसी सौहार्द का अभाव होता है। जब वहाँ हर सदस्य दूसरे की विपरीत दिशा में चलेगा और अपनी मनमानी करेगा तब घर-परिवार को देखने वाला कोई नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में इन भौतिक वस्तुओं के लिए तब आपस में छीना-झपटी होने लगती है। इस तरह बहुत कुछ टूटकर या बिखरकर रह जाता है, जिसका अहसास समय बीतते होता है।
आज हमारी संकीर्ण प्रवृत्ति के चलते प्रेम, प्यार, सौहार्द और अपनापन जैसे शब्द मानो शब्दकोश की शोभा बनने लगे हैं। हमसे दूर होकर ये शब्द मानो अपने मायने खोने लगे हैं। इसीलिए घृणा, स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष आदि का साम्राज्य चारों ओर प्रसारित होने लगा है। प्रेम का प्रदर्शन कुछ लोग इतनी सफाई से करते रहतै हैं कि सामने वाला इन्सान बस मूक दर्शक बन, ठगा-सा देखता ही रह जाता है।
सत्य तो कभी छिप ही नहीं सकता। अतः जब यह मुखौटा चेहरे से उतर जाता है तब मनुष्य का एक अलग-सा ही घिनौना रूप सबके समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय आपसी रिश्तों में सड़ान्ध होने लगती है और फिर उनमें दुर्गन्ध आने लगती है। तब वे रिश्ते नासूर की तरह कष्टदायी बन जाते हैं, उनका उपचार करना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक हो जाता है।
कुछ लोग उन सम्बन्धों से मुक्त होने का भरसक प्रयास करने लगते हैं। उस समय बिना कुछ कहे घर-परिवार टूटने की कगार पर आ जाता है और इस तरह सभी बन्धु-बान्धव भी बिखरने लगते हैं यानी वे एक-दूसरे से किनारा करने के बहाने तलाशने में जुट जाते हैं। यह स्थिति किसी भी सहृदय सज्जन के लिए बहुत ही असहनीय बन जाती हैं। वह इन परिस्थितियों को देखकर बहुत व्यथित होता है।
यदि घर-परिवार तथा बन्धु-बान्धवों में प्रेम और विश्वास बना रहता है तो उनके समान भाग्यशाली इस असार संसार में कोई और नहीं हो सकता। उन सब लोगों में यह आत्मविश्वास बना रहता है कि किसी भी प्रकार की हर परिस्थिति में वे अपनों का सहयोग मिलने से सुरक्षित रहेंगे। यह आशा मनुष्य को किसी भी विपरीत स्थिति से टकरा जाने का साहस देती है। इसलिए उसे सफल होने से दुनिया की कोई ताकत भी रोक नहीं सकता।
इस प्रकार सफलता मिलती रहती है। यदि कभी कोई असफल हो भी जाता है, उसे अपनों का इतना प्रोत्साहन मिलता है कि अन्ततः उसे सफलता का स्वाद चखने के लिए अवश्य मिलता है। जब सबके समर्थन से सफलता मिलती है तो फिर धन को आने का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाता है। वह स्वाभाविक रूप से मनुष्य के पास आने लगता है। प्रेम, सौहार्द एवं एकता के बल पर मनुष्य को हर प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
बड़े बुजुर्ग कहा करते हैं कि यदि घर-परिवार में मेल-मिलाप बना रहता है त़ो उस घर में कोई सेंध नहीं लगा सकता। उन्हें फलने-फूलने से संसार में कोई शक्ति रोक नहीं सकती। उनका उन्नति करना हर प्रकार से आवश्यक होता है। इसीलिए कहा है कि प्रेम को छोड़कर यदि अकेली सफलता अथवा अकेला धन मनुष्य के पास आ जाए तो उसे उतना मानसिक सन्तोष नहीं मिल पाता। परन्तु अकेला प्रेम ही मनुष्य को सब कुछ प्रदान कर सकता है। अतः इस पूँजी को यत्नपूर्वक सहेजकर रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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