हर व्यक्ति का अथवा हर स्थान विशेष का अपना एक महत्त्व होता है। उनकी पहचान उनके द्वारा किए गए कार्यों से ही बनती है। यदि वहाँ से उन विशेषताओ को हटा दिया जाए तो एक शून्य-सा हो जाता है। इसलिए उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
एक श्लोक का उदाहरण देते हुए इसे जानने का प्रयास करते हैं -
नागो भाति मदेन कं जलरुहै:
पूर्णेन्दुना विभाति शर्वरी
शीलेन प्रमदा जवेन तुरगो
नित्योत्सवैर्मन्दिरम्॥
अर्थात् हाथी अपने पसीने से, जल कमल के फूल से, रात्रि पूर्ण चन्द्रमा से, स्त्री चरित्र से, घोड़ा गति से और मन्दिर नित्य उत्सवों से सुशोभित होते हैं।
हाथी के शरीर से पसीने के रूप में एक सुगन्धित द्रव्य निकलता है। उसी से हाथी की सुन्दरता होती है। हालाँकि स्नान के पश्चात वह मिट्टी में लोटता है। शरीर से मोटे व्यक्ति को वैसे हाथी पुकार करके चिढ़ाया जाता है। गजगामिनी कहकर स्त्री की चाल की तुलना हाथी की चाल से की जाती है।
तालाब में कितना भी स्वच्छ जल हो अथवा उसमें बहुत से सुगन्धित द्रव्य डाल दिए जाएँ परन्तु वह आकर्षण का केन्द्र नहीं बन पाता। जहाँ उस तालाब में कमल के फूल दिखाई देंगे, वहीं उसका सौन्दर्य कई गुणा बढ़ जाता है। उसे निहारने के लिए लोग वहाँ पर रुकते हैं। कमल के फूल की शोभा को देखते हैं जो पानी में रहते हुए भी उससे निर्लिप्त रहता है। बच्चे, बड़े सभी उसके सौन्दर्य को देखकर प्रसन्नता से विभोर होते हैं।
रात्रि का सौन्दर्य पूर्ण चन्द्रमा से होता है। उस समय चारों ओर अंधकार का साम्राज्य होता है। रात कितनी भी घनी काली हो, वह मनमोहक नहीं होती। उसे हम दुखों और परेशानियों के रूप में मानते हैं। उससे बचने के लिए उपाय करते रहते हैं शायद इसीलिए बिजली का अविष्कार हो सका। जहाँ पूर्ण चन्द्र का उदय हुआ वहीं वह सब लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाती है। जन साधारण के लिए तो वह सुन्दरता है ही, कवियों और लेखकों का भी प्रेरणा स्त्रोत है। कितनी ही रचनाएँ इसे लक्ष्य बनाकर लिखी गई हैं। पूर्ण चन्द्रमा के उदित होते ही चारों ओर प्रकाश फैल जाता है और सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
पुरुष प्रधान समाज में सदैव स्त्री के सच्चरित्र होने पर बल दिया जाता है। उनका अपना चरित्र कैसा ही हो, स्त्री चरित्र की कसौटी पर परखी जाती है। इसीलिए चरित्र उसका आभूषण माना जाता है और उसे महत्त्व दिया जाता है।
घोड़ा अपनी गति से मूल्यवान होता है। घोड़े की गति जितनी अधिक होती है, उतना ही उसका मूल्य होता है। जिस घोड़े की चाल सुस्त होगी या मरियल होगी, उतना ही उसका मूल्य कम होता है।
मन्दिर या धार्मिक स्थानों पर नित्य उत्सव होते रहें तभी उनकी पहचान होती है। लोग भी तभी वहाँ आते हैं और रौनक रहती है। धार्मिक स्थलों की जीवन्तता बनाए रखने के लिए वहाँ धार्मिक अनुष्ठान अथवा कथा-वार्ता होते रहने चाहिए। तभी लोग उनसे जुड़ते हैं।
आने वाली नई पीढ़ी को संस्कारित करने और अपने धर्म से जोड़ने का यह सशक्त माध्यम होता है। उन्हें तभी अपने धर्म से जोड़ा जा सकता है, जब वे वहाँ श्रद्धा से जाते रहें और वहाँ से उन्हें सदा कुछ-न-कुछ नया मिलता रहे।
सभी वस्तुओं की उपादेयता उनके गुण और कर्म से होती है। कवि ने हाथी, जल, रात्रि, स्त्री, घोड़े और मन्दिर इन सबके बारे में बहुत ही सुन्दर और मौलिक विचार प्रकट किए हैं। इन सबके बारे में कवि का बहुत समय पहले का यह कथन आज भी उतना ही सत्य है।
चन्द्र प्रभा सूद
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