
*मानव जीवन में भौतिक शक्ति का जितना महत्व है उससे कहीं अधिक आध्यात्मिक शक्ति का महत्व है | सनातन के विभिन्न धर्मग्रंथों में साधकों की धार्मिक , आध्यात्मिक साधना से प्राप्त होने वाली आध्यात्मिक शक्तियों का वर्णन पढ़ने को मिलता है | हमारे देश भारत के महान संतों , साधकों , योगियों ऋषियों ने अपनी आध्यात्मिक योगिक साधनाओं के द्वारा ही अनंत शक्तियां , सिद्धियां , विभूतियां प्राप्त की थी व उन आध्यात्मिक शक्तियों से ही लोगों का आध्यात्मिक मार्गदर्शन व उनकी पीड़ा का निवारण किया करते थे | हमारे महान साधु संत और ऋषियों व योगियों के अनेक चमत्कारों की कहानियां आज भी सुनने और पढ़ने को मिलती है | जैसे उनके द्वारा किसी रोगी को स्पर्श करके रोग मुक्त कर देना तथा किसी मृत देह को छूकर उसमें प्राणों का संचार कर देने जैसी अद्भुत घटनाएं हमें पढ़ने और सुनने को मिलती है | यह सुनने और पढ़ने में आश्चर्यजनक तो लगता है परंतु यह सत्य भी है ! इस सत्यता के पीछे हमारे महापुरुषों की आध्यात्मिक साधनाएं मुख्य थीं क्योंकि निरंतर साधना से तन मन की शुद्धि होती है , हृदय में पवित्रता आती है ऐसा होने पर साधकों में ऐसी चुंबकीय शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके कारण वे किसी को केवल आशीर्वाद देकर या छूकर ही रोग मुक्त कर सकते हैं , जो हमारे महापुरुष आदिकाल से करते चले आए हैं | वह आज हम भी कर सकते हैं परंतु उसके लिए अपने आध्यात्मिक शक्तियों का संचय करना होगा | आध्यात्मिक शक्ति के चमत्कार अद्भुत होते हैं आध्यात्मिक ऊर्जा जब मनुष्य में प्रस्फुटित होती है तो उसका तेज साधक के मुख मंडल एवं नेत्रों में स्पष्ट दिखाई पड़ता है | आध्यात्मिक ऊर्जा के बल पर ही हमारे महापुरुष हजारों वर्ष तक इस जीवन को बचाए रखने में सफल हुए थे |*
*आज अनेक लोग अध्यात्म पथ के पथिक तो बनना चाहते हैं , साधना भी करना चाहते हैं परंतु वे सफल नहीं हो पा रहे हैं | सफल ना होने का मुख्य कारण यह है कि उनका अपने मन पर नियंत्रण नहीं है | जब तक मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण करके जितेंद्रिय नहीं बनेगा तब तक उसके भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार नहीं हो सकता | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है की सूरदास , तुलसीदास , संत रैदास , गुरु नानक देव , कबीरदास , मीरा आदि अनेक संतों का जीवन आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़े चमत्कारों से भरा पड़ा है तो इसका एक ही कारण था कि इन महापुरुषों ने अपने मन पर नियंत्रण कर लिया था | वास्तविकता तो यह है कि आज आध्यात्म की पाठशाला ही लगभग बंद हो गई हैं | लोग आध्यात्मिक बनने का दिखावा तो करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक कहा भी जाता है परंतु आध्यात्मिक ऊर्जा के दर्शन उनमें नहीं हो पाते हैं | हमें यह समझना चाहिए कि मनुष्य के भीतर असीमित शक्तियां छिपी पड़ी है | हमारी पिण्ड रूपी काया में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है | यदि हम विविध योग साधनाओं व गुरुकृपा से अपनी वासनाओं व इच्छाओं को रूपांतरित कर ले तो हम न केवल अपनी आत्मा में ही परमात्मा के दर्शन करके निहाल हो सकते हैं बल्कि स्वयं में ही आध्यात्मिक शक्तियों की दिव्य अनुभूति भी कर सकते हैं |*
*आध्यात्मिक शक्तियों का संचार मनुष्य में तभी हो सकता है जब उसका मन नियंत्रित होकर कुचेष्टाओं एवं विषय वासनाओं से विमुख हो जाय अन्यथा आध्यात्मिकता इतनी सरल नहीं है |*