*सृष्टि का संचालन परब्रह्म की कृपा से होता है इसमें उनका सहयोग उनकी सहचरी माया करती है | यह सकल संसार माया का ही प्रसार है | यह माया जीव को ब्रह्म की ओर उन्मुख नहीं होने देती है | यद्यपि जीव का उद्देश्य होता है भगवत्प्राप्ति परंतु माया के प्रपञ्चों में उलझकर जीव अपने उद्देश्य से भटक जाता है | काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार आदि माया के प्रपंच में मनुष्य इस प्रकार फंस जाता है कि वह ब्रह्म को ही भूल जाता है | जब तक माया के प्रपंच से मनुष्य दूर नहीं होता तब तक उसे ब्रह्म की याद भी नहीं आती | यद्यपि माया के प्रपंच से बचना बहुत ही कठिन है परंतु असंभव नहीं है | माया के प्रपंच से बचते हुए अनेकों महापुरुषों ने भगवत्प्राप्ति की है | यद्यपि यह सकल संसार की मायामय है परंतु इसी मायामय संसार में रहते हुए माया से कैसे बचा जाय इसका उपाय हमारे सदग्रंथों में देखने को मिलता है | माया के प्रपंच से वही बच सकता है जिसने स्वयं को जान लिया ! आत्मबोध एवं आत्मज्ञान हो जाने के बाद ही माया के इन प्रपंचों से बचा जा सकता है | आत्मज्ञान प्राप्त करना भी इतना सरल नहीं है | सद्गुरु की शरण एवं भगवान की कृपा के बिना मनुष्य को आत्मज्ञान भी नहीं हो पाता | जिसके ऊपर भगवान की कृपा हो जाती है वही माया के इन प्रपंचों से बचने में सफल हो पाता है और भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम सद्गुरु की कृपा प्राप्त करना परम आवश्यक है | सद्गुरु के दिशा निर्देश से ही भगवान को प्राप्त करने का उपाय मिल सकता है और जिस दिन भगवान को प्राप्त करने की दिशा में जीव बढ़ जाता है उसी दिन में माया के द्वंद - फंद उससे दूर होने लगते हैं | कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि माया से बचना है तो मायापति को पकड़ना पड़ेगा | जब मनुष्य मायापति की शरण में चला जाता है तो माया के प्रपंच उसका कुछ नहीं कर पाते परंतु मायापति अर्थात् परमात्मा की शरण में वही जा पाता है जिसने स्वयं को जान लिया अन्यथा जीवन भर अनेकानेक उपाय करने के बाद भी मनुष्य माया के प्रपंच से बच नहीं पाता |*
*आज समाज में अनेक सिद्ध महात्मा महापुरुष कहे जाने वाले लोग माया के प्रपंचों से बचने का उपदेश तो करते परंतु स्वयं इन्हीं प्रपंचों में फंसे हुए दिखाई पड़ते हैं | कोई पद के लिए लड़ रहा है , कोई सम्मान के लिए संघर्ष कर रहा है तो कोई धन के लिए कृत्य कुकृत्य सब कर रहा है ! इतना सब करने के बाद भी वह माया के प्रपंच से बचने का उपदेश करता रहता है | माया के प्रपंच से वही बच सकता है जिस पर भगवान की कृपा हो गई हो | भगवान की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है भगवन्नामस्मरण करते रहना | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूंगा कि एक तरफ माया है दूसरी ओर ब्रह्म है | माया को पकड़ने दौड़ने पर माया दूर भागती चली आती है और मनुष्य माया के चक्रव्यूह में जीवन भर फंसा रहता है वहीं दूसरी ओर यदि मनुष्य ब्रह्म को पकड़ने का प्रयास करें तो माया उसकी अनुचरी हो जाती है , परंतु आज के समाज में योगी , सन्यासी , मठाधीश , संत - विद्वान आदि भी माया के चक्रव्यूह में फंसे दिखाई पड़ रहे हैं तो साधारण मनुष्यों की बात कौन करे | ऐसा नहीं है कि आज संसार में सिद्ध महात्मा नहीं बचे हैं आज भी माया के प्रपंचों से दूर भगवत्प्राप्ति का साधन करते हुए महापुरुष देखने को मिलते हैं परंतु उनको देखने के लिए हमारी दृष्टि निर्मल होनी चाहिए , हमारा मन निर्मल होना चाहिए | माया के प्रपंच से बचने के लिए सर्वप्रथम भगवन्नाम का उच्चारण करते रहना चाहिए | मनुष्य किसी भी स्थिति में हो यदि भगवन्नाम उच्चारण करता रहता है तो उसे माया के प्रपंच नहीं घेर सकते क्योंकि माया भगवान श्री राम की दासी है यदि वास्तव में माया के प्रपंचों से बचना है तो भगवान की शरण में जाना ही पड़ेगा इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है | भगवान की शरण में जाने के मार्ग में भी माया अनेकानेक बाधाएं डालती है इन बाधाओं को पार करके जो अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है वही इस में सफल हो पाता है और यह तभी संभव है जब मनुष्य को स्वयं का ज्ञान हो जाता है क्योंकि स्वयं का ज्ञान हो जाने के बाद मैं और मेरा , तुम और तेरा का भाव मनुष्य के हृदय से समाप्त हो जाता है | माया के प्रपंच से बचने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य को यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि मैं कौन हूं ? और इस संसार में आने का मेरा उद्देश्य क्या है ? जिस दिन मनुष्य यह सत्य जान जाता है उसी दिन उसका जीवन सार्थक हो जाता है |*
*जहां तक दृष्टि जाती है माया का ही प्रसार है | इस संसार को माया ही कहा गया है माया में रहते हुए माया से वही बच सकता है जिसने स्वयं को जान लिया अन्यथा अनेकों साधन करने के बाद भी इस माया के प्रपंच से नहीं बचा जा सकता |*