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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - नवाँ* 🌹
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*वलीभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरङ्कितं शिरः !*
*गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते !! १४ !!*
*अर्थात् :- चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी, सर के बाल पककर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए - पर तृष्णा तो तरुण होती जाती है |*
तृष्णा के विषय में *महात्मा सुन्दरदास* जी ने बहुत सुन्दर भाव दिया है :--
*नैनन की पल ही में पल के ,*
*क्षण आधि घरी घटिका जो गई है !*
*जाम गयो जुग जाम गयो ,*
*पुनि सांझ गयी तब रात भई है !!*
*आज गयी अरु काल गई ,*
*परसों तरसों कुछ और ठई है !*
*सुन्दर ऐसे ही आयु गई ,*
*तृष्णा दिन ही दिन होत नई है !!*
*अपना भाव:--*
आज सारा संसार तृष्णा के फेरे में पड़ा हुआ है | धनी हो या निर्धन सभी इसके बन्धन में बन्धे हैं | निर्धन की अपेक्षा धनियों को तृष्णा बहुत है | धनी हमेशा निन्यानवे के फेरे में लगे रहते हैं | ९९ होने पर १०० पूरा करने की चिन्ता लगी रहती है | १००० होने पर १०,००० की , १० हज़ार होने पर लाख की , लाख होने पर करोड़ की और करोड़ होने पर अरब-ख़रब की तृष्णा लगी रहती है | इसी फेर में मनुष्य रोगी और बूढा हो जाता है पर तृष्णा न रोगिणी होती है और न बूढी |
*जैसा कि सुभाषित में लिखा है :--*
*यौवनं जरया ग्रस्तमारोग्यं व्याधिभिर्हतं !*
*जीवितं मृत्युरभ्येति तृष्णैका निरुपद्रवा !"*
*अर्थात् :-* जवानी बुढ़ापे से , आरोग्यता व्याधियों से और जीवन मृत्यु से ग्रसित है ; पर तृष्णा को किसी उपद्रव का डर नहीं |
*शंकराचार्य जी ने अपनी प्रश्नोत्तरमाला में लिखा है -*
*बद्धो हि को यो विषयानुरागी !*
*का वा विमुक्तिर्विषयेनुरक्तिः !"*
*को वास्ति घोरो नरकस्स्वदेहस्तृष्णाक्षयस्स्वर्गपदं किमस्ति ?*
*अर्थात्:-*
*बन्धन में कौन है ? -- विषयानुरागी*
*विमुक्ति क्या है ? -- विषयों का त्याग*
*घोर नरक क्या है ? -- अपना शरीर*
*स्वर्ग क्या है ? -- तृष्णा का नाश*
*तृष्णा एवं कामना के विषय में कहा गया है कि :-*
*कामानां हृदये वासः संसार इति कीर्तितः !*
*तेषां सर्वात्मना नाशो मोक्ष उक्तो मनीषिभिः !"*
*अर्थात्:-* हृदय में कामनाओं का निवास है उसी को 'संसार' कहते हैं और उनके सब तरह से नाश हो जाने को ही *संसार से निकलना अर्थात् 'मोक्ष' कहते हैं*
*किसी ने यह भी लिखा है :-*
*सेत चिकुर तन दशन बिन बदन भयो ज्यों कूप !*
*गात सबै शिथिलित भये , तृष्णा तरुण स्वरुप !!*
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*येनैवाम्बरखण्डेन संवीतो निशि चन्द्रमाः !*
*तेनैव च दिवा भानु्रहो दौर्गत्यमेतयो:!! १५ !!*
*अर्थात् :-* आकाश के जिस टुकड़े को ओढ़कर चन्द्रमा रात बिताता है उसी को ओढ़कर सूर्य दिन बिताता है ! इन दोनों की कैसी दुर्गति होती है |
*अपना भाव:-*
आकाश के जिस हिस्से (दूरी) को रात के समय चन्द्रमा तय करता है उसी को दिन में सूर्य तय करता है | सूरज और चाँद, ज्योतिष में सबसे बड़े हैं | जब ऐसे ऐसों की ऐसी दुर्गति होती है कि बेचारों को रात दिन इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर लगाने पड़ते हैं और परिणाम में कोई फल भी नहीं मिलता तब हमारी आपकी कौन गिनती है ? जब ये पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं इन्हें ज़रा सी भी स्वतंत्रता नहीं है, एक दिन क्या - एक क्षण भी ये अपनी इच्छानुसार आराम नहीं कर सकते तब इतर छोटे प्राणियों की क्या बात हैं ?
*शिक्षा:-* बड़ों की दुर्दशा देखकर छोटो को अपनी विपत्ति पर रोना-कलपना नहीं बल्कि सन्तोष करना चाहिए | *संसार में कोई भी सुखी नहीं है !*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" नवम् भाग: !!*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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