कई साल पहले की बात है ,मेरे ग्यारह वर्षीय पुत्र ने गिटार सीखने की इच्छा जाहिर की थी। मेरे घर के पास ही एक संस्थान था जहाँ बच्चों को गिटार सीखने का प्रशिक्षण दिया जाता था, अत: मैंने अपने बेटे का दाखिला वहां करा दिया। वहां दो तीन महीने की शिक्षा के बाद मेरा तबादला दूसरे शहर में हो गया । नए शहर में जाकर एक और संस्थान ढूंढ कर मैं अपने बेटे को वहां लेकर गया।
उसने अब तक क्या सीखा है यह देखने के लिए वहां के नए शिक्षक ने मेरे बेटे से गिटार बजाकर दिखाने को कहा। उस समय मैं भी वहां उपस्थित था। उसकी गिटार को पकड़ने की मुद्रा को असहज और अस्वाभाविक देख कर शिक्षक ने उसे टोका तो मेरा भी ध्यान उस और गया। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि मेरा बेटा जो एक लेफ्टी (बाएं हाथ का अधिक प्रयोग करने वाला) था ,उसने गिटार को अपनी स्वाभाविक मुद्रा के उलट पकड़ा था यानी बाएं की बजाय वह दाएं हाथ का प्रयोग करके गिटार बजने का प्रयास कर रहा था और इस प्रक्रिया में असहज हो रहा था।
पूंछने पर पता लगा कि पहले वाले संस्थान में गिटार सीखने वाले गुरूजी दृष्टिहीन थे। उन्होंने सब बच्चों के साथ प्रारंभिक सत्र से ही मौखिक निर्देश देकर दाएं हाथ से से गिटार पकड़ना /बजाना सिखाया ।अब गुरूजी तो मेरे पुत्र की असहजता देख नहीं सकते थे और मेरा ग्यारह वर्षीय पुत्र में इतनी समझ और साहस नहीं था कि वह गुरूजी के आदेशों को चुनौती देता और उनकी कमी निकलता। अत: उसे इस असहजता की पीड़ा से गुजरना पड़ा।
इस समस्या से निबटने के लिए नए गुरूजी को कई दिनों तक मेरे पुत्र के विशेष सत्र लेने पड़े जिसमें उन्होंने उसे फिर अपनी स्वाभाविक मुद्रा में गिटार पकड़ना सिखाया।
पर आज मैं कई ऐसे आँख वाले माँ - बाप को देखता हूँ जो अपने बच्चों की असहजता को या तो देख नहीं पाते या देखना नहीं चाहते और ऐसे कृत्य करने पर मजबूर करते हैं जो उनकी नैसर्गिक / स्वाभाविक स्वभाव के विरुद्ध है।
आँखें होते हुए भी वे दृष्टिहीन सा आचरण करते है। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे।