हमारे यूनिट में एक बार एक प्रख्यात कंपनी की दो दर्जन ट्रक ट्रायल की लिए आईं। ये उस समय की देश की आधुनिकतम ट्रक थीं जिसमे‘आटोमेटिकगियर’ लगे थे। इस ट्रायलके आधार पर ही उस कंपनी को फौज से एक बड़ा आर्डर मिलाना था। मैंने अपने दक्ष ड्राइवर उन पर लगाए और ट्रायल की दिशा निर्देशानुसार सब व्यवस्था की। पर पहले ही हफ्ते में दुर्घटनाओं की दस घटनाएं सामने आई। अच्छी बात ये थीं किइनमें किसी भी ड्राइवर को कोई गंभीर चोट नहीं आई और न ही किसी गाड़ी को कोई बड़ा नुकसान पहुंचा।
पर यह बड़े अचरच की बात थीं, क्योंकि सभी ड्राइवर अपने काम में निपुण थे और उन्हें अच्छा खासा अनुभव भी था और फिर वह इलाका भी उनका देखा भाला था जहाँ यह ट्रायल हो रहा था।
मैंने बहुत माथापच्ची की, पर इस बात का पता नहीं लगा सका कि इन दुर्घटनाओं की वजह क्या थीं। उधर ट्रक बनाने वाली कंपनी में भी ट्रायल की आरम्भिक दौर में इतनी दुर्घटनाएं होने पर हड़कंप मचा हुआ था। उनका एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल तुरंत हमारी यूनिट में आया जिसमे एक मनोवैज्ञानिक भी था। उन्होंने सभी ट्रकों और दुर्घटनाओं की जगह को परीक्षण किया और सभी ड्राइवर से लम्बी बातचीत की।
फिर सबका विश्लेषण करके जो नतीजा निकला वह बढ़ा अजीब था। दरसल इन नयी ट्रकों में कोई ‘क्लचपेडल’ नहीं था क्योंकि क्लच का इस्तेमाल गियर बदलने पर किया जाता है और इन ट्रकों में यह काम अपने आप होता था। अब हो यह रहा था कि ड्राइवर की सामने जब भी कोई विषम परिस्थिति आती थीं तो उसका पूरा ध्यान उसे सुलझाने में लगता था और उस समय बाकी की सब काम वह आदतन या यंत्रवत (चैतन्य स्तिथि में नहीं) करता था। ऐसी स्थिति में वह अपनी वर्षों की आदत की अनुरूप क्लच-पेडल दबा कर गियर बदलने की कोशिश करता था और जब उसे क्लच-पेडल नहीं मिलता था तो एक नयी समस्या पैदा हो जाती थीं और उसका ध्यान बट जाता था। घबराहट और असमंजस की उस स्थिति के कारण ही दुर्घटनाएं हो रही थीं।
समस्या मामूली और विचित्र थी और उसका सरल समाधान भी निकला गया। बस हर ट्रक में एक नकली क्लच-पेडल लगा दिया गया और फिर कोई दुर्घटना नहीं हुयी। आज भी जब किसी ट्रक दुर्घटना की बाद होती है तो मुझे यह किस्सा याद आता है।