सुदीप की डायरी (21 अगस्त 20**)
आज का दिन शुरू से ही मनहूस रहा है. सुबह देर से आँख खुली, रात भर मुन्ने ने सोने जो नहीं दिया था। ऑफिस के
लिए भी लेट हुआ. ब्रेकफ़ास्ट छोड़ कर भी समय से न पहुँच सका और बॉस का अच्छा खासा लेक्चर सुनने को दिया
मिल गया। फिर घंटों जिस जरूरी फ़ाइल को ढूँढने में बर्बाद कर दिए बाद में पता लगा वो कमीना गुप्ता बिना बताये ही मेरी अलमारी से लेकर घर चला गया था। और चार-चार क्लाइंट्स को अपना अपना दुखड़ा लेकर एक साथ भी आज के दिन ही आना था. उस पर कम्पुटर ने भी अचानक से काम करना बंद कर दिया था. शाम होते होते लगता था सर जैसे फट जायेगा। ऑफिस बंद होने का टाइम होते ही में भाग कर घर जाकर सकून की दो चार साँस लेना चाहता था।
पर मेरी यह हसरत भी अधूरी ही रही। घर पर आते ही मीना मुहं फुलाए बैठी मिली, वो भी बिना किसी वाजिब वजह के। मैं पीना चाहता था आज के दिन(हालाँकि मैं कभी-कभाद ही पीता हूँ ) रेडियो पर गाना चल रहा था , ‘मुझे पीने का शौक नहीं , पीता हूँ गम भुलाने को’।
उसकी बेतुकी और अनर्गल बातों से मुझे चिडचिडाहट शुरू हो गयी। इन सब से बचने के लिए मैंने टीवी पर फुटबाल
मैच लगाया तो श्रीमती जी ने चैनल बदलकर अपना पसंदीदा सास बहु का सीरियल लगा डाला। और फिर वही अंतहीन तकरार शुरू हो गया हम दोनो के बीच , हमेशा की तरह से।
इतनी पाबंदी , इतना अत्याचार।
अपनी मर्जी से मैं यहाँ एक सांस भी नहीं ले सकता ।
ये घर है या जेल ?
मीना की डायरी (21 अगस्त 20**)
सुबह-सुबह बड़ी मुश्किल से मुन्ने को सुलाया और ताबड़तोड़ ब्रेकफास्ट बनाया। मैं किचिन में चिल्लाती रही और सुदीप बिना ब्रेकफास्ट खाए ही चला गया। मुन्ने को डाक्टर के पास दिखा कर लाई तो काम वाली बाई इंतजार करके जा चुकी थी। सारा झाड़ू खटका खुद ही करना पड़ा।
हर रोज की तरह आज भी सांस भर लेने की फुर्सत नहीं थी.वाशिंग मशीन को भी आज ही खराब होना था। सारे
कपडे हाथ से धोने पड़े । कॉल सेंटर के पीछे पड़ कर मैकेनिक को बुलाया वो भी डेढ़ हजार का बिल पकड़ा गया और जरा सा फाल्ट पकड़ने में दो घंटे खराब किये सो अलग। सुदीप की क्या कहूं। आते ही पीने बैठ गया .मेरी बात सुनने की बजे टी वी देखने बैठ गया। मेरी फीलिंग्स का उसे जरा भी ख्याल नहीं।
दिन भर जानवरों की तरह काम में लगी हूँ। फिर भी मेरी तरफ कोई भी ध्यान नहीं देता। किसी से अपने मन की बात भी नहीं कर सकती. किसी को मेरी परवाह ही कहाँ है।
ये घर है या जेल ?
सुदीप की डायरी (12 जून 20**)
आज ऑफिस से जल्दी घर आने का मौका मिल गया। क्योंकि बॉस शहर से बाहर गया है और कोई ख़ास जरूरी काम भी नहीं था करने को। ये फुर्सत की घड़ी बड़े दिनों के बाद आई है।
मीना का चेहरा मुझे अचानक ऑफिस से जल्दी घर आने पर खिल उठा। मुन्ने को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं किसी शाम घर में भी बिता सकता हूँ। अक्सर जब में देर रात घर आता था तो वह मुझे बिस्तर पर ही सोया हुआ मिलता था। उसने घर पर खेल रहे अपने दोस्तों से कहा,मेरे पापा आ गए' हैं ,अब तुम लोग भी अपने घर जाओ' ।
मीना की भी कुछ पड़ोसिन उसके घर में महफ़िल ज़माने के इरादे से आई थीं पर उसने उन्हें टाल' दिया। मैं जब तक बाथरूम से फ्रेश होकर निकला मीना ने मेरा मनपसंद मूंग की दाल का हलुआ और लस्सी बना ली थी जिसके स्वाद का मैंने भरपूर आनंद लिया। इसी बीच मुन्ने ने शहर में लगी नुमाइश पर चलने की मांग कर दी। इसके लिए वह तो पिछले एक महीने से ज़िद का रहा था पर मैं ही समय नहीं निकाल पा रहा। आज मुझे उसकी ज़िद के आगे झुकना पड़ा। नुमाइश में हम सबने खून मस्ती की खास कर ट्रैम्पोलिन के एक स्टाल पर। मी- ना ने अपनी जरूरत की कुछ छोटीमोटी चीजें खरीद ली और इससे वह काफी खुश लग रही थी।
ये घर है या स्वर्ग!
मीना की डायरी(12 जून 20**)
आज दिन का काम जल्दी ख़त्म हो गया और बड़े दिनों बाद फुर्सत मिली पड़ोसियों के साथ गप्पे लड़ाने की। सबका अपना अपना वही घिसी पिटी बातों का रोना था पर फिर भी मजा आया। आज का टॉपिक अपने पतियों की बुराई था पर मुझे सुदीप के बारे में एकदम से कुछ भी न सूझा अत: मैंने चुप रहकर ही दूसरों की बातों का आनंद लिया।
मुन्ने के स्कूल से आने से पहले फिर थोड़ा समय मिल गया तो कई कपड़ों में छोटा मोटा सिलाई का काम पूरा किया जो बड़े दिनों से करने की सोच रही थी। थोड़ी देर कमर सीधी करके मैं सोच रही थी कि हमें घर से बाहर बाजार का पिक्चर के लिए हुए कितने दिन हो गए और कितनी ही छोटी मोटी चीजों की खरीदारी भी मैं महीनो से टाल रही हूँ पर
ये अब मुश्किल होता जा रहा था। तभी अचानक सुदीप ने घर जल्दी आकर सरप्राइज दिया। मुन्ना नुमाइश की ज़िद कर बैठा तो मुझे भी राहत मिली और मन की मुराद पूरी हुई। बाहर जाना भी हो खरीदारी का मौका भी मिला।
वहां से लोट कर मैंने सोचा कि सुबह अपने पति की बुराई न करके अच्छा ही किया। छोटी सी हमारी गृहस्थी में बुराई की जगह/फुर्सत है ही कहाँ ?
यही तो हमारा स्वर्ग है यहीं धरती पर।