सुल्तान और अंजलि दोनों भाई बहन की मंजिल एक थी - उनका घर।
जैसे ही उनके पापा यानी प्रमोद ने उनकी मम्मी यानी सलमा की मौत की खबर दी ,दोनों सकते में आ गए थे ।
अचानक हुए हार्ट अटैक को पहचानने और डाक्टर के पास लेकर जाने में प्रमोद से देर हो गयी और ये अनहोनी हो गयी।
सलमा एक प्रगति वादी महिला थी और एक कर्मठ समाज सुधारक तथा लेखिका । समाज के भोंडे रीतिरिवाज ,कुरीतियों के खिलाफ लड़ने में उसने अपनी जिंदगी खपा दी थी। और सब तरफ से विरोध के बाबजूद प्रमोद से अंतर्जातीय विवाह किया था। अलग- अलग धर्म को मानने से उनकी विवाहित जिंदगी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था ,वो अच्छी गुजर रही थी, क्योंकि संकीर्ण सोच वाले लोगों पर वो दोनों ही ध्यान नहीं देते थे। घर में दोनों अपने अपने धर्म के रीति रिवाज से पूजा अर्चना और अनुष्ठान आदि करते थे।
जब उनके पहली संतान एक बेटी हुई तो पापा ने अपनी लाडली का नाम रखा अंजलि । पापा की लाडली होने के कारण अंजलि अधिकतर उनके साथ रहती और धीरे धीरे उसका मन हिन्दू धर्म में रम गया। इसके उलट उनकी दूसरी संतान जो एक बेटा था वह माँ की आँखों का तारा बन गया। माँ ने उसे अपने मुस्लिम संस्कारों के साथ बड़ा किया और उसका नाम रखा -सुल्तान।
घर पहुँच कर दोनों बच्चे अपनी जन्मदात्री की मृत देह को देख कर बिलख बिलख कर रोने लगे।
भावनाओं का आवेश जब कम हुआ तो दिमाग ने अपना काम करना शुरू कर दिया ।
इस समय सुल्तान सोच रहा था कि शरीर को कब्रगाह तक ले जाने के लिए क्या क्या इंतज़ाम करना होगा। इसके लिए उसने एक मौलवी साहब से भी बात कर रखी थी। और अंजलि सोच रही थी कि शवयात्रा और शमशान में क्या क्या इंतजाम करना है। उसने एक पंडित जी का फ़ोन नंबर हासिल कर लिया था जो इस तरह के अनुष्ठान करते थे।
उन्होंने पिता से पूछा , ' अब आगे क्या करना है?'.
पिता ने कहा , ' मैंने अस्पताल में खबर कर दी है ,उनकी।गाड़ी अभी आती ही होगी।'।
बच्चों को असमंजस में पड़ा देख उन्होंने आगे बताया , 'तुम्हारी मां ने अपना देहदान किया हुआ था। उनका शरीर अब मरने के बाद भी जरूरतमंद लोगों के काम आएगा'।
थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस आयी और शरीर को ले गयी।
वहां दीवार पर रह गयी सलमा की एक मुस्कुराती हुयी तस्वीर जी पर फूलों की माला चढ़ी थी ।
सचमुच वह एक समाज सेविका थी ।