एक बार मेरा भतीजा अपने मित्र का फौज की वर्दी में एक फोटो लेकर आया और बोला कि चाचा यह भी फौज में
अफसर बन गया है। मैंने कुछ पल तक उस फोटो को देखा और कहा,"तुम्हारा दोस्त तुमसे कोई मज़ाक कर रहा है, यह आदमी फौजी अफसर हो ही नहीं सकता।" पहले तो उसे बुरा लगा पर फिर उसने पूछा,"क्या आप इसे जानते हैं?" इस पर मैंने कहा,"बिलकुल नहीं, मैं तो पहली बार इसका फोटो देख रहा हूँ।" तब उसने पूछा,"यह बात आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं?"
मैंने उसे समझते हुए बताया कि उसकी वर्दी ही उसकी पोल खोल रही है। इसने रैंक तो मेजर का पहना है पर साथ में कालर-डॉग्स लगाए हैं जो सिर्फ कर्नल या उसके ऊपर का अधिकारी ही पहन सकता है। इसने २० साल की सैन्य सेवा का तमगा पहना हुआ है जबकि इसकी उम्र ही बीस-बाइस साल की लगती है। फिर इसने गोरखा हैट पहना हुआ है पर इसके कंधे पर जो सितारे लगे हैं उनकी बनावट वह नहीं है जो गोरखा रेजिमेंट के अफसर पहनते हैं और न तो इसका लेनियार्ड और न ही हैट और बेल्ट के ऊपर लगा निशान ही उस रेजिमेंट से मेल खाते हैं।
उसने आश्चर्यचकित होते हुए कहा कि उसे मालूम नहीं था कि एक सिपाही की वर्दी उसकी पूरी दास्ताँ बयान कर देती है। फिर उसे मालूम पड़ा कि वास्तव में उसके मित्र ने उसके साथ मज़ाक ही किया था। दरअसल हुआ यूँ कि उसके
दोस्त को एक टीवी सीरियल में फौजी अफसर के पात्र का अभिनय करने का अवसर मिला था और उसने उसी हालत में अपना एक फोटो इसे भेज दिया था।बाद में मुझे बताया गया कि क्योंकि किसी और का फौजी अफसर की वर्दी पहनना एक अपराध की श्रेणी में आता है इसलिए टीवी और फिल्मों में किसी चरित्र को फौजी की वर्दी में दिखाना होता है तो जान बूझ कर बिलकुल ठीक तरह की वर्दी नहीं पहनाई जाती जिससे किसी भी किस्म के कानूनी विवाद से बचा जा सके।
आज भी जब किसी फिल्म या टीवी में किसी फौजी किरदार को देखता हूँ तो ये किस्सा याद आता है।