अपने कम्प्यूटर के लिए मैं एक नया रंगीन प्रिंटर लाया था। घर में सबको बुला कर शेखी बघारते हुए बताया," ये बहुत अच्छी तकनीक से बना है और किसी भी चीज को हू-बहू प्रिंट कर देता है।"
फिर मैंने सबको आदेश दिया,"चलो अब सब एक एक चीज़ लाएंगे जिसको वो प्रिंट करना चाहते हैं।"
मेरी सात साल की बेटी अपनी गुल्लक से इस उम्मीद में एक नोट उठा लाई कि और नोट प्रिंट हो सकें।
उसका भोलापन तो मुझे समझ में आता है पर आज भी अपने आसपास कई ऐसे लोगों को देखता हूँ जो
अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए अपने पास पड़े नोटों को झटपट दुगना-तिगना करने की फ़िराक में लगे रहते हैं तो समझ में नहीं आता कि वो लोग भोले हैं या मूर्ख?