अजय ने पान की गुमटी देख कर कार रोकी और अपनी मनपसंद सिगरेट खरीद कर उसके कश लगाने लगा। बेचारे को घर और ऑफिस में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है क्योंकि उसकी बीबी और बॉस दोनों ही उसका सिगरेट पीना पसंद नहीं करते। उसके साथ आज उसका मित्र विजय भी था जो एक व्यापारी है।
एक दुबले-पतले मजदूर को पानवाले से झगड़ता देख दोनों का ध्यान उधर गया। मजदूर पानवाले को सेठ जी कह रहा था और बिना पिछले उधार चुकाए आटे का एक किलो का पैकेट खरीदना चाहता था। अजय और विजय ने ध्यान से देखा तो उस गुमटी में सिर्फ पान और गुटका नहीं बल्कि दाल-चावल और मसाले आदि के सस्ते पैकेट भी रखे थे जिन्हें शायद पास की निर्माणाधीन इमारत में काम करने वाले मजदूर और उनके परिवार खरीदते होंगे। मजदूर गिड़गिड़ा रहा था पर सेठ जी को उस पर दया नहीं आ रही थी । आखिर काफी झिक-झिक के बाद सेठ जी ने सौ बातें सुना कर उस गरीब को वहां से भगा दिया।
उसके जाने के बाद अजय बोला,' इन बेचारे मजदूरों की भी कितनी दयनीय स्थिति है। रोज का खाना तक खाने का जुगाड़ नहीं कर पाते। और कोई उन्हें उधार भी नहीं देता।‘
इस पर विजय बोला , ' माफ़ करना दोस्त ,मुझे तो इसकी और तुम्हारी स्थिति में कोई ख़ास फर्क नहीं लगता। वो दिन भर काम करके अपनी दिहाड़ी इंतजार करता है और बनिए की उधार की शर्तों में उलझा रहता है और भरसक प्रयास करने पर भी इस चक्रव्यूह से निकल नहीं पाता। कुछ ऐसे ही तुम भी हो, महीने भर की मेहनत के बाद अपनी पगार का इंतज़ार करते हो और बैंक से उधर लेकर घर,गाड़ी वगेहरा लेते हो पर ई.ऍम.आई. के चक्रव्यूह में छटपटाते रहते हो। अगर ई.ऍम.आई. चुकाने में देर हो जाय तो बैंक भी तुमसे ऐसा ही व्यवहार करता है।’
अजय कुछ सोचते हुए बोला, ' व्यापारी की मौज़ है, वह इन झंझटों से आज़ाद है'। तो विजय कहने लगा, ' ऐसी बात नहीं है भाई। पैसे और उधार को लेकर हमारी हालत इससे भी बदतर है क्योंकि कर्मचारी या मज़दूर का तो दिन, हफ्ते या महीने में हिसाब हो जाता है और उन्हें कमाई हो ही जाती है पर हमें अपना पैसा फंसा कर महीनों और कभी-कभी तो सालों तक इंतज़ार करना होता है। फिर भी निश्चित नहीं होता की मुनाफा होगा ही, घाटा भी हो सकता है। और दांव पर रकम भी छोटी नहीं लगी होती। मेरे कई व्यापारी साथी कोई अपनी और कोई अपने कर्मचारी की गलती से दिवालिये हो गए हैं।'
पानवाला जो इनकी बातें बातें सुन रहा था, दार्शनिक अंदाज़ में बोला , ‘साहब, हम सब घड़ी की सुइयों की तरह से अलग-अलग गति से जीवन चक्र में घूम रहे हैं, पर सबको दिन में 24 घंटे ही मिलते हैं। कोई सेकंड की सुई की तरह से तेजी से छोटे कदम रख कर चलता है और कोई घंटे की सुई सा धीरे चलता दिखाई देता है पर मजे में यहाँ कोई भी नहीं। जरा सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी।’
अजय की सिगरेट अब तक समाप्त हो गयी थी। वह विजय के साथ गाड़ी में बैठ कर अपने रास्ते चल पड़ा। पान वाला अपनी गुमटी में फिर किसी ग्राहक के आने और ज्ञान की बातें सुनने-सुनाने के लिए इंतज़ार करने लगा।