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बस के इंतजार में

3 अक्टूबर 2023

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'उन्नीस नंबर की फ़्रीक़ुएन्सी क्या है?', उसी आवाज ने दूसरी बार ये सवाल किया था। शायद सवाल मुझसे ही पूंछा जा रहा था।  मैंने काले रंग की उस लम्बी सी कार को घूरना बंद किया जिसका ड्राईवर गुनगुनाते हुए उसे पोंछ रहा था।  गर्दन टेड़ी की तो देखा एक मोटा आदमी एक हाथ में सोफ्टी लिए आंखे फाड़े मेरी तरफ देख रहा था।  'दो सवारी वाली सीट पर भी बैठा तो कुछ हिस्सा छूट कार लटक जायेगा, इतना मोटू है' , मैंने सोचा (और ये भी कि 'सीट मिलाने का चांस कम किये दे रहा है') । 'बीस मिनट', मैंने लापरवाही से कहा।

सामने से लड़कियों का एक झुण्ड आ रहा था।  आंखे अपने आप ही उधर फोकस हो गयीं।  कुछ के कपड़े उलजलूल थे और मेरी समझ से बाहर।  'ये इस बस स्टैंड पर तो रुकने वाली नहीं दिखती', मैंने सोचा,' कुछ ही सेकंड्स मैं ओझल हो जायेंगी'। निगाहों के घुमाने का path और स्पीड क्या हो, ये mind के कंप्यूटर ने पहले ही कम्पयूट किया हुआ था जिससे maximum तृप्ति मिले।

तभी एक डबल देकर आकर आँखों के सामने आकर खड़ी हो गयी।  खाली सी थी।  आनन-फानन में भीड़ के झोंके आये और उसे भरने लगे। 'अशोक नगर तो ये भी जायेगी और वहां से १२० नंबर मिल जायेगी ,फिर १० मिनट ही तो पैदल चलना होगा।  क्यों न इसी से चला जाय,१९ नंबर का तो कोइ भरोसा नहीं', ये फैसला करने में मैंने गलती से ३-४ सेकंड ले लिए थे और इतने मैं डबलडेकर पूरी भर चुकी थी।  अब भी कोशिश करूँ तो अन्दर घुस सकता हूँ पर कसरत अच्छी हो जायेगी जिसका मूड नहीं था।

वो चश्मे वाली बुढ़िया जो छोटे बच्चे की उंगली पकडे काफी देर से हर बस में जाने की कोशिश कार रही थी, इस बार भी चढ़ने में कामयाब नहीं हुई।  इस तेज भीड़ के सैलाब को उसकी कमजोर हड्डी कैसे झेलेंगी?

डबलडेकर के जाते ही शांति सी हुई।  इसको शांति कहना ठीक है या नहीं, ये तो मुझे नहीं मालूम पर शोर के इस लेविल के कान आदी हो गए हैं इस महानगर में।

आते जाते ऑटो रिक्शा वाले बस स्टैंड के पास आकर धीरे हो जाते और हसरत भरी निगाहों से देखते कि किस सवारी के सब्र का प्याला छलक जाये और वो अपने पर्स से परमीशन लेकर बस का इंतजार छोड़ ऑटो लेने का इरादा कर बैठे।

काले रंग की लम्बी कार का ड्राईवर अब गुनगुना नहीं रहा था।  वो पीछे का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था।  शायद कार का मालिक आ गया था।  मालिक नहीं मालकिन थी।  छतरी की वजह से चेहरा पूरा नहीं दिखाई दे रहा था।  पर छतरी को बड़ी नफासत से पकड़ा था।  स्लीवलेस से जो गोरी बाहें झांक रही थी शायद उन्हें हमेशा गोरा रखने की चाह में इस मामूली धूप में भी छतरी के इस्तेमाल का फैसला किया होगा।  काले रंग की background
, सुनहरा बदन और गुलाबी कपड़े।  कैमरा होता तो फोटो लेता -exhibition में रखने लायक होता।  मैं सोचता ही रह गया और काली कार मैडम को लेकर चली भी गयी।

फिर वही चिर परिचित शोर, वही बोझिल इंतजार के पल जो रोज आफिस आने और जाने पर आते थे।  वही बस का इंतजार जो कभी कभी पलों से घंटों में बदल जाता था, जैसा आज होने जा रहा था।  लंच के बाद छुट्टी का क्या फायदा हुआ? घर पहुँचतेपहुँचते वही टाइम हो जायेगा।  लंच-टाइम  में बसें कितना कम चलती हैं, ये मुझे पहले सोचना चाहिए था और प्लाज़ा में 'आजा मेरे साथ' देख कार ही जाना चाहिए था।  टिकट भी मिल रहे थे और हरीश और अमिता जिद भी कर रहे थे।  पर मुझे तो नहा-धो कर ३/४ घंटे की नींद की तलब थी।  पिछले पूरे हफ्ते किसी न किसी वजह से नींद पूरी नहीं हुई थी।  आज के हाफडे को नींद के नाम रखा था पर हाय री किस्मत, बस का इंतजार क्या रंग दिखलायेगा।  इससे तो पिक्चर हाल में ही सो लेता , AC में रहता और पैसे भी ऑटो के किराये से आधे ही लगते।  पर आइडिये मुझे लेट ही आते थे।  शायद इस दुनिया में मैं लेट ही पैदा हुआ था।  पर इसमे मैं क्या कर सकता हूँ।  गलती जरूर
नर्स की रही होगी।

ये खरखराती सी आवाज क्या है? ओह, वो मरियल ठिगना देहाती उस पानी वाले से झगड़ रहा है पैसों को लेकर। रमेश ठीक ही कहता है,'पैसा और औरत अगर अपने पास हों तो सुख मिलता है और दूसरों के पास देख कर आँखों में चुभते हैं। '

ये दिमाग सोचना बंद क्यों नहीं कर देता थोड़ी देर के लिए। इस शहर में ,इस भागती सी दुनियां में मिनट भर में सेकड़ो चेहरे और कितने हादसे गुजर जाते हैं आँखों के सामने से। क्यों हर चीज  भेजे में भरी किसी याद को ठोकर मारती सी लगती है।  मैंने क्या ठेका ले रखा है सारी दुनियां के बारे में सोचने का।  मुझे बस नींद चाहिए अभी। लगता
है ऑटो ही कर लेना चाहिए।  नहीं, थोडा और इंतजार करता हूँ बस का।

'माचिस होगी क्या?', कोई मेरा कन्धा हिला कर पूंछ रहा था पीछे से।  हाँ ,क्यों न सिगरेट पी जाये।  नींद के झोंको पर भी काबू आ जायेगा।  जेबें टटोली तो मुड़ा तुड़ा पेकेट हाथ में आया।  और सिगरेट लेने के लिए उस नुक्कड़ की दुकान तक जाना होगा, पर सीट चली जायेगी या फिर बस ही मिस न हो जाये उसके चक्कर में।  पेकेट से निकाल कर देखा तो २ सिगरेट शहीद हो चुकीं थी और एक में कुछ जान बाकी थी।  थोड़ी मालिश से कामचलाऊ खड़ी हो जायेगी।  बस हो गया काम।  उसे जला कर lighter जेब में डाल ही रहा था कि पीछे से कोई कन्धा हिला रहा था इसे मांगने के लिए ।  मुंह में अधजली सिगरेट लगाये कोई अधेड़ था।  'मुंह से बोल कर भी तो मांग सकते थे', मैंने हाथ झटक दिया उसका।

५ या ६ कश ही लगा पाया था कि उन्नीस नंबर की झलक दिखाई दी।  अधजली सिगरेट को बुझा कर जेब में रख लूं या नहीं ये सोच ही रहा था कि बराबर से जाते हुए एक भीमकाय सज्जन की दुर्जन की कोहनी हाथ में लगी और सिगरेट पकड़ से निकल गयी।  अब बस न निकल जाये।  मैंने मन ही मन अंदाजा लगाया कि ड्राइवर बस को
कहाँ रोकेगा और भीड़ में शामिल हो गया लपक कर चड़ने के लिए।  पर नहीं।  खोटी किस्मत । ये तो लेडीज-स्पेशल निकली।  स्टैंड पर २/३ ही लेडीज थी।  चलो उस बुढ़िया को को जगह मिल गयी इस बस में।

पर शेड में मेरी सीट छीन चुकी थी। अब तो खड़े रह कर ही करना होगा बस का इंतजार। उफ़, ये मिश्रा कहाँ
से आ गया।  वही घिसा-पिटा रिकॉर्ड लेकर बैठ जायेगा अपने बॉस के बारे में।  मिश्रा कुछ कह रहा है पर मैं न कुछ सुन रहा हूँ न सुनना चाहता हूँ। नींद भी हावी हो रही है।  ये बस क्यों नहीं आ रही।  चलो आज ऑटो ही सही।  पर अब कोई ऑटो भी नहीं दिखाई देता।  कोई ऑटो आते ही लपक लूँगा,  भाड़ में जाय बस। हाँ ये आ गया एक। पर मेरी कालोनी में जाने से मना कर रहा है।  आखिर मैं उसे पैसे दे रहा हूँ- इंकार कैसे कर सकता है। मैं बहसियाना चाहता हूँ कि फिर एक उन्नीस नंबर दिखाई दी। छोडू इस ऑटो को , पैसे भी बचेंगे। पर इस बस को अब नहीं छोड़ना।

अच्छी हाथापाई के बाद,चलने से पहले पायदान पर लटकने वालों में से मैं भी एक था। क्या सुकून मिला।  चलो अब बस ३५ मिनट की तो बात है। हाँ अब धीरे धीरे जगह भी बनती जा रही थी अन्दर जाने की।  अन्दर कुछ बाबाल हो रहा था।  शायद किसी की जेब कट गयी थी और वो कंडक्टर से झगड़ रहा था।

मैं ये अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा हूँ कि कौन सी सीट पहले खाली हो सकती है।  पर face reading नहीं कर पा रहा हूँ।  लगता है आज ऐसे ही खड़े होकर जाना होगा।  'बेस्ट हॉस्पिटल कब आयेगा?'।  एक लड़का किसी से
पूंछ रहा है।  पर जिससे पूंछा जा रहा है वो शायद सो रहा है । मैं आस पास धकियाते हुए उधर पहुंचता हूँ और उस लडके से बोलता हूँ, 'बस अभी खड़े हो जाओ और जब तक तुम गेट तक पहुंचोगे तुम्हारा स्टॉप आ जायेगा। लड़का झिझकते हुए उठता है और उसके उठने से पहले ही मैं उसकी सीट
हथिया चुका होता हूँ। पास खड़े जो दो लोग भी इसी सीट पर बैठेने की कोशिश कर रहे थे उनके मुंह लटक जाते हैं।  मैं सोने की कोशिश करता हूँ - बस के झटकों के बाबजूद । अब कोई चिंता नहीं है।  अपना तो वैसे भी लास्टस्टॉप है।  मैंने आंखे बंद कर ली हैं।  हवा के झोंके अच्छे लग रहे हैं। न जाने कब नींद आ गयी।

'उतरना नहीं है क्या, ये लास्ट स्टॉप है' ,कंडक्टर मुझे जगा
कर कह रहा है।

मैं अंगडाई लेकर बस छोड़ देता हूँ।

लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित (से. नि.) की अन्य किताबें

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रचनाएँ
इन्द्रधनुष
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आम लोगों की जिंदगी की तरह तरह के रंग बिखेरती हुयी कहानियाँ जो कभी आपको हँसाएगी , कभी आपकी आँखें नम कर देंगी और कभी सोचने पर मजबूर कर देंगी। भावनाओं की कशमकश , विचारों की उथल पुथल में झूलते पात्रों से मिल कर लगेगा कि उसे आपने जरूर कभी न कभी अपने आस पास ही देखा है ।
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रेलगाड़ी बस प्लेटफॉर्म पर लगने ही वाली थी, इसकी उद्घोषणा तो २ मिनट पहले ही हो चुकी थी। अब कुली और खोमचे वाले प्लेटफॉर्म की तरफ जमावड़ा करने लगे जो इस बात का निश्चित संकेत हैं कि गाड़ी सचमुच ही आने वाली थ

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जब गाड़ी ट्रैफिक लाइट पर रेंग रही थी, आशा ने ताज्जुब से कहा, ‘आज दोपहर में भी इतना ट्रैफिक है इस रोड पर’। ‘सारा शहर ही जब देखो तब कहीं भागता रहता है’, लता ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा। सुदीप उन

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 नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे नयी कार की बधायी देता ,मिठाई मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती है? साथ में

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‘……. यात्री गण कृपया ध्यान दें ,छत्रपति शिवाजी टर्मिनल को जानेवाली पुष्कर एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से चालीस मिनट की देरी से चल रही है। आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है।’ इस एनाउंसमेंट को सुनकरस

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साक्षात्कार के अधिकतर सवाल अब भी रमन  के दिमाग में घूम रहे थे । “हमारे इस प्रोडक्ट को तुम आज कितने लोगों को बेच सकते हो ? तुम्हारे कितने जानने वाले इसे इस्तेमाल करते हैं ?” वो परेशान था, ये सोच कर कि

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छोटू और लम्बू एक छोटे से गाँव में रहते थे और अक्सर शहर जाकर पैसा कमाने की बातें किया करते थे. एक दिन दोनों ने आपस में सलाह कर शहर जाने का फैसला किया। छोटू ने खूब घी डाल कर १०० लड्डू बनाये तो लम्बू भी

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तेजप्रताप से मेरी मुलाकात बारह साल बाद हो रही थी । उसको कुश्ती में एक राज्यस्तरीय सम्मान मिला था और मुझे जिलाधिकारी की हैसियत से उस सम्मान समारोह में विशेष अतिथि का दर्जा दिया गया था। बरसों पहले गॉंव

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"तुम ?" राजेश के मुह से अनायास ही उस वक्त निकला जब वह पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ एक भव्य और विशालकाय इमारत में प्रवेश कर रह था , जिसके प्रवेश-द्वार को एक सुरक्षाकर्मी बड़ी नफासत से खोल कर अभिवादन

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बीयर की चुस्कियों के साथ मैं और राजेश अपने मनपसंद रेस्टोरेंट में टाइमपास कर रहे थे क्योंकि हमारी फ्लाइट तीन घंटे देरी से जाने वाली थी। काफी दिनों से मैं ऐसे ही किसी मौके की तलाश में था जहाँ एक दोस्त क

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पैक-अप होते ही भीड़ का रेला उसकी एक झलक पाने को सारे बंधन तोड़ कर उस तक पहुँचना चाहता था, मगर कार के दक्ष ड्राइवर ने सधे हुए नपे तुले हाथों से एक पल में ही गाड़ी ठीक उसके सामने लगा दी,फिर लपक कर बड़ी न

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एक बार एक लोभी व्यक्ति रात में एक गड्ढे में गिर गया।  सुबह हुयी तो वहां जा रहे एक एक युवक राहगीर से उसने निकलने के लिए मदद माँगी।  उसे ऊपर लेने के लिए राहगीर ने अपना हाथ बढ़ाया और बोला , ‘बुजुर्गवार,

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सुल्तान और अंजलि दोनों भाई बहन की मंजिल एक थी - उनका घर। जैसे ही उनके पापा यानी प्रमोद ने उनकी मम्मी यानी सलमा की मौत की खबर दी ,दोनों सकते में आ गए थे । अचानक हुए हार्ट अटैक को पहचानने और डाक्टर के

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 हमारे घर में अगर कोई वीआईपी है तो वो मेरी पत्नी नहीं है।  जी हाँ , आपने ठीक समझा। उसकी भी एक बॉस है जो उसे भी अपनी उँगलियों पर नचाती है।   वो है हमारी काम वाली बाई –मुन्नी।   इस बात का अनुमान तो मु

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‘हे भगवान! ये महीने की पहली तारीख हर बार इतनी देर से क्यों आती है’ दामिनी ने फिर सोचा। हर महीने के तीसरे–चौथी हफ्ते में अक्सर यह ख़याल उसके मन में आता था, खास कर जब कोई पैसे खर्च करने वाली बात होती। अख

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सुनील एक शातिर चोर था। चोरों की बिरादरी में उसकी खासी इज्जत थी. वो लोग कहते थे कि अगर सुनील का दिल आ जाये तो वो किसी आदमी की आँखों से काजल भी चुरा लाये और उसे पता भी न चले। टूंडला जंक्शन से मुगलसराय ज

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डायरी के पन्नो में सिमटा घर

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सुदीप की डायरी (21 अगस्त 20**) आज का दिन शुरू से ही मनहूस रहा है. सुबह देर से आँख खुली, रात भर मुन्ने ने सोने जो नहीं दिया था। ऑफिस के लिए भी लेट हुआ. ब्रेकफ़ास्ट छोड़ कर भी समय से न पहुँच सका और बॉस

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नाम का सवाल

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अजय को एक अदद क्रिकेट बैट की तलाश थी। कल सुबह सात बजे से उसका इंटर कॉलेज टूर्नामेंट में ओपनिंग बैटिंग करनी थी और आज रात को उसका बेट एक एक्सीडेंट में शहीद हो गया था। गनीमत है उसे खुद इसमें कोई चोट नहीं

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जीवन चक्र

7 अगस्त 2023
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अजय ने पान की गुमटी देख कर कार रोकी और अपनी मनपसंद सिगरेट खरीद कर उसके कश लगाने लगा। बेचारे को घर और ऑफिस में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है क्योंकि उसकी बीबी और बॉस दोनों ही उसका सिगरेट पीना पसंद नहीं करते

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बरसों की मेहनत

7 अगस्त 2023
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तेजप्रताप से मेरी मुलाकात बारह साल बाद हो रही थी । उसको कुश्ती में एक राज्यस्तरीय सम्मान मिला था और मुझे जिलाधिकारी की हैसियत से उस सम्मान समारोह में विशेष अतिथि का दर्जा दिया गया था। बरसों पहले गॉ

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खबरों की दुनियां

7 अगस्त 2023
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हमारी टीम ने अपनी मनपसंद जगह चुन कर कैमरा लगा लिया था। इस जगह से वह मंच बिल्कुल साफ दिखता था जहाँ से एक वीईपी को आकर कोरोना के प्रकोप से बेघर हुए मजदूरों को खाना बांटना था। मेरी चैनल के चीफ-एडिटर ने

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भिक्षाम देहि:

7 अगस्त 2023
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“भिक्षाम देहि:”, कहते हुए अजय ने भिक्षा-पात्र संदीप के सामने खटखटाया तो संदीप को उन भिखारियों का ध्यान आया जो रोज ऑफिस जाते समय मेट्रो में इस तरह कटोरे खड़काते हुए घूमते रहते थे। उसने मुस्कुराते हुए

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शादी का लिफाफा

16 सितम्बर 2023
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 अजय की बेटी की शादी में जाने के लिए जब सब तैयार हो रहे थे तो मैंने इस काम के लिए ले जाने वाले एक लिफाफे को निकाला और सोचा इसमें कितनी रकम डालूं। आम तौर पर मेरी पत्नी इस जिम्मेदारी को निभाती थी और इस

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आदत से मजबूर

16 सितम्बर 2023
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विमान में प्रवेश की उद्घोषणा के साथ रमा एक झटके से उठ बैठी और लपक कर लाइन में लग गयी। वहीं सुरेश आराम से अपने लैपटॉप पर काम करता रहा। दोनों दम्पतिअक्सर हवाई जहाज से यात्रा करते थे और हर बार ऐसा ही घटन

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बचपन का भोलापन

16 सितम्बर 2023
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अपने कम्प्यूटर के लिए मैं एक नया रंगीन प्रिंटर लाया था। घर में सबको बुला कर शेखी बघारते हुए बताया," ये बहुत अच्छी तकनीक से बना है और किसी भी चीज को हू-बहू प्रिंट कर देता है।" फिर मैंने सबको आदेश दिया

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बस के इंतजार में

3 अक्टूबर 2023
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'उन्नीस नंबर की फ़्रीक़ुएन्सी क्या है?', उसी आवाज ने दूसरी बार ये सवाल किया था। शायद सवाल मुझसे ही पूंछा जा रहा था।  मैंने काले रंग की उस लम्बी सी कार को घूरना बंद किया जिसका ड्राईवर गुनगुनाते हुए उसे

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निःशब्द

3 अक्टूबर 2023
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रूमी अपने गांव में दादाजी के साथ कुछ दिन के लिए छुट्टी मनाने अमेरिका के एक बड़े संस्थान से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आई थी। ब्रांडिंग के बारे में चर्चा करते हुए उसने दादाजी को मैकडोनल कंपनी का उदाहरण द

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ज्ञान की बात

3 अक्टूबर 2023
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टेलीविजन पर शंकराचार्य और मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ का प्रसंग चल रहा था। जीत और हार के लिए जो मानक निर्धारित किए गए थे मुझे उस समय वह बड़े हास्यास्पद लग रहे थे। दोनों के गले में फूलों की एक-एक माला थी

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झूठा इंसान

3 अक्टूबर 2023
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कई साल पहले की बात है , मैं दिल्ली में नौकरी करता था. सर्दियों की एक सुबह स्कूटर पर मैं गाज़ियाबाद से अपने ऑफिस जा रहा था।  रोज की इस दिनचर्या में स्कूटर के साथ दिमाग में विचार भी अपनी गति और दिशा में

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फर्जी अफसर

3 अक्टूबर 2023
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एक बार मेरा भतीजा अपने मित्र का फौज की वर्दी में एक फोटो लेकर आया और बोला कि चाचा यह भी फौज में अफसर बन गया है। मैंने कुछ पल तक उस फोटो को देखा और कहा,"तुम्हारा दोस्त तुमसे कोई मज़ाक कर रहा है, यह आदम

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नयी ट्रक

3 अक्टूबर 2023
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हमारे यूनिट में एक बार एक प्रख्यात कंपनी की दो दर्जन ट्रक ट्रायल की लिए आईं। ये उस समय की देश की आधुनिकतम ट्रक थीं जिसमे‘आटोमेटिकगियर’ लगे थे। इस ट्रायलके आधार पर ही उस कंपनी को फौज से एक बड़ा आर्डर मि

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लौटा बचपन

3 अक्टूबर 2023
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 "खुशबू,मैं नीचे टहलने जा रहा हूँ, तुम भी चलोगी क्या?" मैंने सोफे से उठते हुए पूछा।   इससे पहले कि खुशबू कोई जबाब देती,माया ने उसे आंखें दिखते हुए कहा,“खुशबू को अभी होम-वर्क पूरा करना है,आप जाइये।“ 

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विदेशी मेहमान

3 अक्टूबर 2023
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 जमुनादास की चाय तो कुछ खास नहीं थी पर उसकी छोटी सी दुकान पर जमीं रहने वाली भीड़ शायद उसकी लच्छेदार बातों के दम पर ही जुटा करती थी। हर बात वो इतने विश्वास के साथ कहता था कि मानों उसके आँखों के सामने घ

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सारी दुनिया को बेच डालूँगा

3 अक्टूबर 2023
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 बेचनलाल जी बचपन के मित्र है। तीन साल पहले तक सैकिंड-हैण्डखटारास्कूटर को घसीटते घूमते थे। अब न जाने कैसे उनका कायापलट हो गया है। पांच गाड़ियों और दो फ्लैट के साथ आलीशान आफिस है। बड़ा काम हैऔर नाम भी।

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ये कैसी भीड़ ?

3 अक्टूबर 2023
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 उस दिन से पहले मैं भगवान् से हमेशा मन्नत माँगता था कि मेरे खोमचे पर भी खूब भीड़ हो.  वैसी ही भीड़ जैसी नंदू और राधे के खोमचों पर अक्सर हुआ करती है. इसी भीड़ के दम पर वो लोग अक्सर मेरा मजाक भी उड़ाया करत

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किरायेदार

3 अक्टूबर 2023
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गुप्ताजी का आज का व्यवहार अप्रत्याशित था । पिछले बारह वर्षों से मैं उनका किरायेदार था पर हम दोनों के परिवारों के बीच इतना आना-जाना था कि लोग उन्हें हमारा रिश्तेदार ही समझते थे। घर में कोई उत्सव हो या

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आँख वाले तो देख लेते

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कई साल पहले की बात है ,मेरे ग्यारह वर्षीय पुत्र ने गिटार सीखने की इच्छा जाहिर की थी। मेरे घर के पास ही एक संस्थान था जहाँ बच्चों को गिटार सीखने का प्रशिक्षण दिया जाता था, अत: मैंने अपने बेटे का दाखिला

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नमूने

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मेरे एक मित्र के सर पर गिनती के पांच बाल हैं। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं बल्कि बिलकुल सत्य वचन हैं । आप चाहें तो गिन भी सकते हैं। पर मजाल हैं की कोई उनको सामने आकर गंजा कह जाये। वो पहले तो अविश्वास से

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हिसाब किताब

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घर में कल शाम से ही बबाल मचा हुआ था। शाम को सुधा की शादी में जाना था और लेन देन की डायरी कहीं मिल ही नहीं रही थी। इस डायरी में इस बात का हिसाब किताब रखा जाता था कि किसने हमारे घर में हुए किसी समारोह म

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