बेचनलाल जी बचपन के मित्र है। तीन साल पहले तक सैकिंड-हैण्डखटारास्कूटर को घसीटते घूमते थे। अब न जाने कैसे उनका कायापलट हो गया है। पांच गाड़ियों और दो फ्लैट के साथ आलीशान आफिस है।
बड़ा काम हैऔर नाम भी।
कुछ दिन पहले उनके आफिस में जाना हुआ,तो पूंछने लगे,'क्या कर रहे हो,आजकल?’ मैंने कहा,'जिन्दगी भर अफसरी की है अब रिटायर्मेंट के बाद काम तो बस का नहीं। पर तुम्हारी भाभी को खर्चा करने की जो लत लग गयी है लगता है दिवालिया बन जाऊंगा।'
उन्होंने सुझाया,'कुछ बेचते क्यों नहीं'।मैंने घबरा कर कहा, 'अब इस उम्र में ये क्या बस का है'।वो बोले,' अजी आपको क्या करना है, चार पांच लडके /लड़किया रख लेंगे।‘ मैंने फिर घबरकर कहा,'अरे यहाँ अपने खाने के लाले पड़े है, उन्हें तनखा कहाँ से दूंगा ?’वो बोले, ‘तनखा की बात तो एक महीने बाद आयेगी। और फिर उनको तनखा तो अपना सेल्स टार्गेट पूरा करने के बाद ही मिलेगी।और फिर दो तीन हफ्ते तो ट्रायल के नाम पर ही घसीट जायेंगे।‘मैंने पूंछा,'वो लोग मान जायेंगे?' वो बोले,'नौकरी का एक इश्तहार लगा कर तो देखो,कैसे लोगों का सैलाब टूट पड़ता है।और भला हो इस मंदी का, बड़े बड़े इंजिनियर और ‘ऍम बी ए सस्ते’ में मिल जाते है।' मैं अब तक आशवस्त नहींथा,सो पूछा ,'इनके लिए आफिस कहाँ से लूँगा?’उन्होंने कहा,'कमाल करते है,आप भी। आजकल बड़ी बड़ी कंपनी मार्केटिंग स्टाफ को आफिस नहीं देती तो हमें क्या जरूरत है।हां,ये पहले ही साफ़ कर देना कि मोबाइल और बाइक उन्हें अपने पास से लानी होगी। आपको तो बस शाम को रिपोर्ट लेना है।'
मेरी जिज्ञासा अब बढ गयी थी,तो कहा,'पर बेचन भाई,मै बेचूंगा क्या?' उन्होंने तुरंत अपने लैपटॉप पर एक पेज खोल कर सामने कर दिया और बोले,'अपने पास हजारों प्रोडक्ट है- माथे की बिंदी से लेकर हेलीकाप्टर तक। बस आपको अपना मनपसंद आइटम चुन लेना है। अपना क्या है हमें तो बेचने और खरीदने वाले दोनों तरफ से जरा जरा सा कमीशन मिलता है -दाल रोटी चल जाती है। पर यहाँ तो घर की बात है, स्पेशिअल रेट लगाऊंगा।'
मुझे अब तक नहीं समझ आ रहा था कि ये सब इतना ही आसान है। मैंने फिर पूंछा, ‘ग्राहक मिल जायेंगे
इन सब के लिए?' वो बोले, ‘हमने घास थोड़ी खोदी है, धंधा करते है। अपनी जरुरत के मुताबिक लोगों के फोन नंबर थोक के भाव आसानी से मिल जाते है बाज़ार में। बस रोज हर स्टाफ को सौ-सौ नाम पकड़ा दो, उन्हें ग्राहक बनाना तो उनका काम है। और फिर उनका अपना भी तो कुछ सर्किल होगा -वो कब काम आयेगा? काम अच्छा चल गया तो एक सस्ता सा कम्प्यूटर दिलवादुंगा और किसी को इस पर भी बैठा देंगेचलाने के
लिए फिर हजारों ‘ई-मेल एड्रेस’ भीदिलवा दूंगा ।और काम बढ गया तो तुम अपनी वेबसाइट बना लेना।'
इस बीस मिनट के छोटे वार्तालाप में हमारे ज्ञान चक्षु खुल गए। लगा अभी तक बस खरीदारी करना ही
सीखते रह गए, बेचना तो किसी ने सिखाया ही नहीं। धन्य हो बेचनलाल, तुम पहले क्यों नहीं मिले?