अजय को एक अदद क्रिकेट बैट की तलाश थी। कल सुबह सात बजे से उसका इंटर कॉलेज टूर्नामेंट में ओपनिंग बैटिंग करनी थी और आज रात को उसका बेट एक एक्सीडेंट में शहीद हो गया था। गनीमत है उसे खुद इसमें कोई चोट नहीं आई थी । अब रात में कोई दुकान भी नहीं खुली होगी जहाँ से नया खरीद लाये। तभी उसे तिवारी की याद आई.वो एस डी कालेज का छह फुटा लड़का जो अक्सर प्रैक्टिस के लिए आता था जहाँ पर उसके कालेज के लोग भी प्रैक्टिस करते थे।
उसके कालेज और एस डी कालेज के बीच में एक बड़ा खेल का मैदान था जहाँ वह अक्सर प्रैक्टिस किया करता था और तिवारी भी । पिछले हफ्ते बाइक से जाते तिवारी ने एक घर की तरह इशारा करके बताया था कि वह उसका घर है। 'चलो तिवारी को उसके घर पर पकड़ता हूँ और उससे उसका बैट मांग लूँगा ',अजय ने सोचा। उसके घर जाकर दरवाजा खटखटाया तो एक अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला।' आंटी, तिवारी घर में है क्या?', उसने सवाल किया।
'किस तिवारी की बात कर रहे हो बेटा?', महिला ने सवाल के बदले सवाल किया।
अब अजय के चौंकाने की बारी थी। 'क्या यहाँ कई तिवारी रहते हैं?', उसने हड़बड़ा कर पूंछा।
'हाँ बेटा, मेरे पांच बेटे हैं और सब के सब तिवारी हैं और मेरे पति भी अपने नाम के साथ तिवारी लिखते हैं। अब तुम बताओ तुम्हें किस तिवारी से मिलाना है?' महिला ने जबाब दिया।
'आंटी वो जो छह फुट का तिवारी है, मैं उससे मिलने आया हूँ।', अजय ने कुछ सोच कर बोला।
'बेटा मेरे सभी बेटे और पति छह फुटे है।',महिला ने मुस्कुराते हुए कहा।
अजय अब तक काफी परेशान हो चूका था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उन आंटी से पार पाए। तभी उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी। उसने तपाक से कहा, 'आंटी ,
मुझे उस तिवारी से मिलना है जो एस डी कालेज में ग्यारवीं कक्षा में पढ़ता है।'
'अच्छा तो तुम शशि से मिलाना चाहते हो', कहकर उसने 'शशी, शशी ' की आवाज लगाई तो उसका वाला तिवारी बाहर निकला और अजय कि जान में जान आई।
वहां से लौटते समय अजय ने कसम खाई कि वह अब कभी अपने किसी मित्र को उसके सरनेम से नहीं बुलाएगा बल्कि हर किसी के पहले नाम से बुलाया करेगा। सरनेम तो पूरे परिवार का एक ही होता है और नाम सबका अलग अलग। और फिर पहले नाम से बुलाने पर दोस्ती में बेतकल्लुफी भी तो आती है।