मेरे एक मित्र के सर पर गिनती के पांच बाल हैं। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं बल्कि बिलकुल सत्य वचन हैं । आप चाहें तो गिन भी सकते हैं। पर मजाल हैं की कोई उनको सामने आकर गंजा कह जाये। वो पहले तो अविश्वास से आपकी तरफ देखेंगे फिर अपने एक-एक बाल को दिखा कर कहेंगे ,"ये देखो एक बाल, और ये दूसरा और एक और लो ये तीसरा। फिर उनकी गिनती तीसरे से आगे नहीं बढ़ती। अगर आप उनकी आदतों को नहीं जानते तो शायद उनसे आगे गिनने की गुहार लगा सकते हैं पर इस पर वो झिड़क कर बोलेंगे,"क्या मुझे और को काम नहीं हैं जिंदगी में बाल गिनने के सिवाय? तुम अगर घर से फालतू हो तो गिनते रहो अपने बाल। मैं चला। शायद इसी लिए ये कहावत बनी हैं कि 'गंजे को उसके मुंह पर गंजा नहीं कहना चाहिए'।
उन महाशय को अपने बाल काढने में बीस मिनट से कम नहीं लगते। पहले दो बाल एक तरफ कर लेंगे और तीन दूसरी तरफ फिर बड़ी देर तक तक शीशे में निहारने के बाद असंतुष्ट होकर एक बाल को तीन के समूह से उठा कर दो बाल वाली तरफ मिला देंगे और फिर निहारते रहेंगे जब तक फुर्सत हो।
ऐसे नमूने शायद अपने भी कहीं देखे हों।
हमारे जीवन में भी इसी तरह होता हैं। जो चीज हमारे पास काम मात्रा में उपलब्ध होती हैं हम दूसरों के सामने उसकी कमी को स्वीकार ही नहीं करते और व्यर्थ का विवाद खड़ा करते हैं जो धीरे धीरे हमारी आदत बन जाता हैं। उसकी देख रेख में हम इतना समय बर्बाद कर देते हैं कि हम बस नमूने बन कर रह जाते हैं।