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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022

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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में चारपाई पड़ी थी, उसी पर बैठ गया। भाभी खामोश-सी चौके में बैठी थीं । चूल्हे की आग मंझा गई थी, उन्होंने सुलगते कोयले पर घी की कटोरी गर्म होने के लिए रखी थी। मैं पहली बार इस घर में आया था, संकुचित-सा बैठ गया। भाभी के पास इस तरह अकेले में बैठना भी अजीब लग रहा था और जाकर बैठक में चुपचाप बैठने पर संकोच लगता था क्योंकि पराया घर और भाभी से पहली मुलाकात। कदम एकदम नहीं उठ पा रहे थे।

शाम काफी झुक आई थी। लालटेन जलाकर भाभी फिर वहीं चूल्हे के पास आकर बैठ गईं। उस उमस और खामोशी के वातावरण में जी घबराने लगा। आंगन में बंधे तार पर पड़े कपड़ों की सलवटों में अंधेरा भरता जा रहा था और जलती लालटेन का पीला-पीला बीमार-सा थकन भरा प्रकाश! और उसके सामने पड़ने पाली वस्तुओं की फैली हुई लंबी-लंबी काली छायाएं, घुटन-सी महसूस करते हुए, बहुत झिझकते-झिझकते कई बार कोशिश करने के बाद, एक बार आवाज़ फूट ही पड़ी-- क्या गोपाल भैया बहुत देर से आते हैं?

अक्सर देर हो जाती है। -वैसे ही बैठे भाभी ने निर्लिप्त भाव से कह दिया।

मैं खामोश हो गया, अब और कोई प्रश्न भी नहीं था। निदान चौके की तरफ ताकता रहा। चौके की छत को टिकाए रखने वाले दोनों खंभों की चौड़ी काली-काली छायाएं फर्श पर पड़कर फिर भीतरी दीवार की कालिख में गुम हो गई थीं और उनके बीच में दबी-सकुची-सी भाभी बैठी थीं...। मैं उकताकर उठना ही चाहता था कि भाभी बोलीं-- आप खा लीजिए, भूख लग रही होगी।

नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है, अब शायद आते ही होंगे। हमसे कहा था कि छह बजे तक जरूर आ जाएंगे। बहुत संभलते हुए घरेलू तरीके से मैंने कहा।

चौके का धुआँ अब तक साफ हो चुका था पर घर के और हिस्सों से अधिक कालिख उसमें फैल चुकी थी। मैं गौर से भाभी को ताक रहा था क्योंकि यह तय था कि उनकी नज़रें मेरी ओर नहीं उठेंगी।

एक काला-काला-सा भारीपन वहाँ की वायु में भर रहा था, कोई आवाज़ नहीं, ठहरा-ठहरा-सा सब कुछ निस्पंद... भाभी जैसे इस ठहराव को जीवन में डालकर अभ्यासी बन चुकी थीं। अभी शादी को साल भर से अधिक नहीं हुआ होगा, लेकिन यह गतिहीन ठहराव जैसे जीवन की हर रंगीनी को मिटा चुका है।

घी कड़क उठा, भाभी ने उंगलियों से पकड़कर हटा दिया, कुछ इतनी आसानी से कि जैसे गर्म धातु जरा भी असर नहीं करती, न उंगली थरथराई, न कलाई ने जल्दी की। धुआँ छोड़ती हुई ठिंगरी भी अब तक बिलकुल चुप हो गई थी... काफी देर बाद वह ऊबती हुई कुछ कहने जा रही थीं कि गोपाल आ गया। मुझे देखते ही वह बोल पड़ा-

काफी अकेलापन महसूस किया होगा, क्या बताऊँ देर हो गई।

मैं खामोश रहा। वह कमीज उतारते हुए कहने लगा-- इन्हें तो बस रोटी-गृहस्थी से काम है। अगर कनस्तर, डिब्बे और शीशियाँ जरा भी बुदबुदाना जानतीं होतीं तो शायद हमसे भी बात करने की नौबत न आती, तब भला तुमसे क्या की होंगी।

हाँ, भाभी बड़ी गंभीर मालूम पड़ती हैं। -कहकर मैंने उनकी तरफ नज़र डाली। उनमें कुछ हरकत सी हुई थी पर वह शायद पटा डालने के लिए थी।

नॉट सीरियसली बट सिली। -कहता हुआ गोपाल भीतर कमीज टाँगने चला गया। खाना खाते वक्त गोपाल कुछ विरक्त सा हो रहा था। हर चौथे-पाँचवे कौर के बाद पानी पीता जाता था। हम दोनों साथ ही खा रहे थे...

भाभी ने झिझकते हुए हाथ से रोटी थाली में रख दी। गोपाल ने झट से उठाकर रोटी के चार टुकड़े कर दिए, कुछ इतनी आसानी से कि कोई खास बात नहीं थी।

अरे, टुकड़े करने की क्या जरूरत है, गर्म तो नहीं है और मैं लखनऊआ भी नहीं, जो इतना तकल्लुफ बरत रहे हो।

कई बार कहने पर भी जब नहीं माना तो मेरे मुँह से निकल ही गया-- हद कर दी यार, तुमने भी, भई मेरी उंगलियाँ अभी साबित हैं।

यह कहकर मैं मेहमान की बू मिटाना चाहता था।

ये रोटियाँ हैं या नक्शे, कोई अफ्रीका का, कोई अमेरिका का।

मैं अप्रतिभ-सा हो गया। यदि मैं बार-बार न टोकता, तो शायद भाभी को यह लतीफ़ा न सुनना पड़ता।

थोड़ी देर बाद जब बाहर कमरे में आ गया, तो बड़ी अजीब सी बात सुन पड़ी। शायद बगल वाले कमरे में ही गोपाल था। काफी साफ़ सुनाई पड़ रहा था। वह कह रहा था-- मैं पानी की तरह रुपया बहाकर घर को ठीक रखना चाहता हूँ और कुछ नहीं तो आज एक नया ढंग पेश किया तुमने। इसी तरह की शर्मिंदगी मुझे हमेशा उठानी पड़ती है और तुम अपने तौर-तरीकों से बाज नहीं आती।...तुम्हारी इतनी मजाल, रोटियाँ लग गईं हैं।

गोपाल तैश में कह रहा था। भाभी कुछ बोली थीं। चटाक की आवाज और गोपाल का गूँजता हुआ स्वर-- यही चाहती थी न?

मैं सोचता था कौन हाथ छोड़े। नहीं समझ में आता और फिर हर बात का मुँह पर जवाब, बड़ी गंभीर बनी फिरती है।

दूसरे दिन जब विदा होने लगा तो जी में आया कि गोपाल से उसके वहशीपन के बारे में कुछ कह दूँ पर हिम्मत नहीं हुई। बाहर निकलने लगा तो दूर से ही मैंने कहा-- भाभी जी नमस्ते।

नीची नज़र किए ही भाभी जी ने नमस्ते की। मैं सकुचा गया। वे ही सारी बातें मन को भारी किए हुए थीं... उल्लास, खीज, विद्रोह, घृणा, प्यार कुछ भी नहीं, आखिर कैसे जीती हैं वे?

घर आते-आते उदासी दूर होती गई। कमरे का ताला खोला तो पहली नज़र आए हुए पत्रों पर पड़ी... एक लिफाफे पर नज़र उलझकर रह गई। यह पत्र अवश्य ही बिनती का है, ऐसा मुझे विश्वास हो गया। बिनती आखिर आज मैं तुम्हें याद आ ही गया। दो साल बाद। कुछ दर्द-सा उठा। पत्र खोलकर पढ़ने लगा-

प्रिय राजू, आज सहसा तुम याद आए हो। वास्तव में शादी के बाद लड़की के जीवन में महान परिवर्तन होता है, विवाह के बाद पुरुष को रहन-सहन का कुछ ढंग ही बदलना पड़ता है, पर लड़कियों को तो पूरी आत्मा बदलनी पड़ती है। यह मेरा स्वयं का अनुभव है, मैंने अपनी आत्मा को बदलने की चेष्टा की है। एक कीमती आत्मा की हत्या भी इसीलिए की कि वह तुम्हें प्यार करती थी। जब मैंने इस नए घर में कदम रखा था तो यही सोचकर कि मेरी आत्मा सदैव के लिए तुम्हारे पास है और शरीर इस नए घर का है। लेकिन बहुत ईमानदारी से कहूँ, बुरा मत मानना, कुछ दिनों बाद मेरी पसलियों की काया में कुछ नरम-स्पर्श-सा महसूस होने लगा, आत्मा का स्पंदन होने लगा और तभी से इस घर के दुख-सुख मुझे सताने लगे।

मुझे तुम्हारी उदारता पर विश्वास है इसीलिए लिख रही हूँ। मेरी कही हुई बात की ईमानदारी को यदि तुमने न समझा तो मेरे साथ अन्याय करोगे। सच यह है कि मैं तुम्हें भूलने लगी थी और अब भी बहुत याद नहीं करती...

मैं यहाँ बहुत सुखी हूँ। सारे आराम यहाँ हैं। मेरी मां और पापा का अरमान कि उनकी इकलौती लड़की का रिश्ता किसी ऊँचे घर में हो, पूरा हो ही गया है। इससे भी मुझे बहुत संतोष मिलता है। शादी होने से पहले मुझे तुम्हारा मोह था... तुमसे दूर होने की सोचकर मैं घबरा जाती थी... पर अब यह सब एक मुलम्मे की तरह उतर चुका है... पर 'ये' जिन्हें तुम अपना 'खुशनसीब जालिम मित्र' कहते हो, बहुत कुछ तुम्हारी तरह ही हैं, तुम्हारी तरह ही हँसते हैं, वैसे ही बात करते हैं, उसी तरह चलते-फिरते हैं, सब अंदाज वे ही हैं। हाँ, तुम्हारी आँखें जरा अधिक गहरी हैं जिनकी बरबस मुझे याद आ गई।

आज खाना पकाने वाली महाराजिन नहीं आई। घर की बहू हूँ मैं, खाना पकाने के लिए रसोईघर में गई, शायद पहली बार। जब वहाँ घुसी तो बरबस यह भाव जाग उठा कि तुम्हारे साथ यदि जीवन बीतता होता तो रोज ऐसे ही मुझे खाना पकाना पड़ता। तुम्हारे साथ जीवन की तमाम कल्पनाएँ मेरे दिमाग में आ-आकर समाती जा रही थीं। मुझे इस तरह रहना पड़ता, मैं यह करती, मैं वह करती, शाम को तुम्हारे आने की राह देखती, मैं खाना पकाती, तुम बीच-बीच में आकर छेड़ते, कभी दाल में पानी ज्यादा बताते तो कभी रसोईघर में गर्मी से परेशान देखकर मुझे बाहर ले जाते।

मेरी हालत अजीब-सी हो रही थी। तुम्हारी हर बात याद आने लगी। अकेले ही रोटी बनाने बैठी तो लगा जैसे तुम अभी छेड़ने आ रहे हो, तुम मेरी आँखों के सामने पूरी तरह से उभरे हुए थे, मेरी हर साँस में तुम बस गए थे। मेरे चारों ओर तुम थे। तुम्हारे पैरों की आहट हर तरफ से आ रही थी और मेरी हर रोटी टेढ़ी हो जाती थी... हर गोल बनती रोटी अपने-आप टेढ़ी होकर बदशक्ल हो जाती। यह सब मुझे बहुत अपना सा लग रहा था जैसे पुरानी आत्मा अपने पुराने रूप में मुझे वापस मिल गई हो। खाते वक्त उन्होंने हँसते हुए कहा कि वाह यह किसी खास जगह की रोटियों का नमूना है।

माता जी बोली थीं, अरे सीख जाएगी, इसमें हँसने की क्या बात, अभी आदत नहीं है।

पर राजू, मेरी आत्मा तुम्हारी आहट सुन रही थी। मैंने अपने आँसुओं को दोनों की नज़र चुराकर सुखा लिया। शायद किसी ने नहीं देखा। अगर देखा भी होगा तो समझ नहीं पाया होगा।

मैं पत्र आगे न पढ़ सका। घुटन, बेबसी, धुआँ, ठहराव, खामोशी और उसमें ऊबती हुई आत्मा। वे बेबस उठे हुए हाथ और पानी-भरी आँखें जैसे चारों ओर थीं, हर तरफ़ थीं।

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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अदालती फ़ैसला

20 जुलाई 2022
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अदालत में एक संगीन फ़ौजदारी मुकद्दमे के फ़ैसले का दिन। मुकद्दमा हत्या की कोशिश का था क्योंकि जिसे मारने की साजिश की गई थी वह गहरे जख्म खाकर भी अस्पताल की मुस्तैद देखभाल और इलाज की बदौलत जिन्दा बच गया

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अपने ही दोस्तों ने

20 जुलाई 2022
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हुआ यह कि भारत में विकास कार्यक्रम चल रहा था। एक सड़क निकाली गई जिसने घने जंगल को दो हिस्सों में बाँट दिया। उत्तरी हिस्से में शेर रह गए और दक्षिणी हिस्से में गीदड़ रह गए। तो एक दिन गीदड़ों के मुसाहिब

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आधी दुनिया

20 जुलाई 2022
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जहाज छूटने में कुछ देर थी। जेटी के कगार पर बैठे हुए पक्षी अजनबियों की तरह इधर-उधर देख रहे थे। जैसे वे उड़ने के लिए कतई तैयार न हों। खौलते पानी के बुलबुलों की तरह उनमें से एक-दो धीरे-से कुदकते थे और फि

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इंतज़ार

20 जुलाई 2022
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रात अँधेरी थी और डरावनी भी। झाड़ियों में से अँधेरा झर रहा था और पथरीली ज़मीन में जगह-जगह गढ़े हुए पत्थर मेंढ़कों की तरह बैठे हुए थे। बिजिलांते के बूटों की आवाज़ से दहशत और बढ़ जाती थी। हवा हमेशा की तर

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एक थी विमला

20 जुलाई 2022
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पहला मकान–यानी विमला का घर इस घर की ओर हर नौजवान की आँखें उठती हैं। घर के अन्दर चहारदीवारी है और उसके बाद है पटरी। फिर सड़क है, जिसे रोहतक रोड के नाम से जाना जाता है। अगर दिल्ली बस सर्विस की भाषा में

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क़सबे का आदमी

20 जुलाई 2022
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सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य स

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कितने पाकिस्तान

20 जुलाई 2022
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

20 जुलाई 2022
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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

20 जुलाई 2022
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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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