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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022

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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे। भाषा की दिक्कत भी थी। फ्रेंच से काम चल सकता था, पर वह फेलेमिश इलाका था। टेवर्न की अधेड़ औरत मदद तो करना चाहती थी, पर फ्रेंच नहीं बोलना चाहती थी। आखिर उसने बीयर का गिलास सामने रखा और फोन करने लगी।

जब तक उसने फोन किया और पता मालूम करके कैरीन लेने आयी, मैं उस छोटे से टेवर्न को देखता रहा। अधेड़ औरत को देखता रहा जो बार-बार मेरा गिलास बिना कहे भर देती थी। छोटे-से बिलियर्डरूम में उन स्पेनियों को देखता रहा जो खेलने से ज्यादा हँस रहे थे।

जब मैं रास्ता भूला था, शाम थी। उस वक्‍त प्लास्टिक की तरह चिकनी सड़कों के किनारे बिजली की बत्तियाँ गुलाबी से लाल और उसके बाद लाल से पीली हो गयी थीं। ...कोहरा बहुत था। कैरीन के आने तक इधर-उधर देखने और सोचने के अलावा करने के लिए कुछ नहीं था। भाषा के कारण बात समझ नहीं आती थी, सिवा कुछ शब्दों के। मन कुछ उलझ भी रहा था। जब-जब यह अधेड़ औरत बीयर का गिलास भरती, शालीनतावश मैं--'मेसीं बोकू' कहकर उसे देखने लगता। वह मुस्करा देती, और काउण्टर की तरफ चली जाती।

कैरीन के इन्तजार में और कुछ किया नहीं जा सकता था। अपने देश को भी उसी बीच याद किया। फिर इन योरोपीय देशों की ओर ध्यान चला गया।

गुलदस्ते की तरह सजे यह शहर और देश...और ..तभी गोलकुण्डा की याद आयी। एण्टवर्प और गोलकुण्डा। एक है एक था। हीरों की मण्डी। गोलकुण्डा की हीरों की उस मण्डी में अब गरीब दर्जी और सब्जी वाले बैठते हैं...बेट्स का ठण्डा गिलास हुआ तो अच्छा लगा। कुछ देर गौर से दरवाजे की तरफ देखता रहा। आनेवाले ज्यादा नहीं थे, इसलिए कैरीन जब आयी तो पहचान लेने में कठिनाई से ज्यादा झिझक हावी हुई।

शायद इसलिए कि वह उदास लग रही थी। मन में आया कि इस वक्‍त मेरा रास्ता भूल जाना और उसका लेने आना-यह कुछ ठीक नहीं हुआ। शायद उसे बहुत अच्छा नहीं लगा है...लेकिन मेरी भी मजबूरी थी। बढ़ती रात में मैं और कहीं जा भी नहीं सकता था। एण्टवर्प में किसी को जानता भी नहीं था। इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि इस क्षण के चाहे-अनचाहे भारीपन को मंजूर करके मैं कैरीन के साथ सहजता से पेश आने की कोशिश करूँ...

लग रहा था कि वह मुस्कराएगी नहीं, पर वह मुस्करायी, भारीपन कुछ कम हुआ। सामने बैठते हुए उसने अधेड़ औरत को इशारा किया कि वेट्स उसे नहीं चाहिए और बोली, “क्यों, कभी घर का रास्ता भूला जा सकता है। कितना अच्छा होता अगर मैँ रास्ता भूल गयी होती, और कोई लेने आता..."

मैंने उसे गौर से देखा। उसके सुनहरे बालों की लट सामने झूल आयी थी और आँखें कुछ बड़ी-बड़ी हो गयी थीं, जैसे कभी-कभी गहरी उदासी में हो जाती हैं। बात जारी रखने के लिए मैंने कहा, “घर का रास्ता भूलना शायद आसान नहीं होता... "

वह कुछ नहीं बोली। मुझे लगा कि इतनी खामोशी में अब हॉल गाँव तक का रास्ता कैसे कटेगा। और कैरीन के घर में ठहरना कहाँ तक ठीक होगा। लेकिन कोई विकल्प नहीं था। मन में अपमान-सा महसूस करते हुए यह रात तो मुझे गुजारनी ही थी। सर्दी भी बढ़ रही थी और कोहरा घना होता जा रहा था। मेरी गाड़ी में फॉग लाइट्स भी नहीं थी।

इससे पहले कि मैं चलने के लिए बेमन से, पर जरूरत के लिए कसमसाऊँ, कैरीन काउण्टर पर पैसे चुकाकर आयी और बोली, “चलें।''

“तुम्हारे देश के हाईवेज बहुत खूबसूरत हैं।” मैंने जड़ता तोड़ने के लिए फिर बात शुरू की।

“यह हिटलर की देन है। आन्तोबान...उसी के दिमाग की उपज है। यह फौजों के लिए बनाये गये थे ताकि फौजें बस्तियों के बाहर से गुजर जाएँ, उनकी सरगर्मी का पता न चले...दूसरे देशों की सीमाओं पर पहुँचने में कोई रुकावट न पड़े...अब वही सब देशों ने बना ली है...'' कहते-कहते उसने अपनी कार का दरवाजा खोला, “तुम पीछे-पीछे आओ। हम तीसरी लेन में चलेंगे धीरे-धीरे, ठीक है। गाँव करीब पचास किलोमीटर है।"

कोहरे में लिपटा वह फासला तकलीफदेह और उबाऊ हो गया था। सफेद धुएँ की सुरंग में कैरीन की गाड़ी की पिछली रोशनियाँ देखते-देखते चलते जाने की एकरसता खलने लगी थी। हाईवे लगभग खाली था। रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे। आखिर बायीं ओर मुड़कर एक काली पहाड़ी-सी दिखाई दी...पर वह जंगल था और उसमें घुसते ही रोशनी का एक धब्बा और सफेद दीवार दिखाई दी तो मैंने समझ लिया कि अब हम पहुँच गये हैं...

वह एक खूबसूरत कॉटेज था। ऊँचे-ऊँचे वन्य वृक्षों के बीच में। मैं बिस्तर उतारने लगा तो कैरीन ने कहा, “'तुम्हारा बिस्तर लगा हुआ है। सामान बँधा रहने दो, सुबह उतार लेना।” और अपने हार्थों पर दस्ताने पहनती हुई वह काटेज के पीछे की ओर चल दी। घास की नमी उस सूखी ठण्डक में कुछ ज्यादा ही अच्छी लगी। पैण्ट के पाँवचे भीगकर मोजों को भिगोने लगे थे।

बह आउट-हाउस लकड़ी का था। मुख्य कॉटेज के पीछे, घने पेड़ों के बीच। नाम जंगली पेड़ों में सर्दी जैसे हुई बैठी थी। एक क्षण बाद ही माँगी घास चुभने लगी थी। कैरीन ने आगे बढ़कर 'कुटी' का दरवाजा खोला। कुटी यानी-- लकड़ी का एक कमरा जो चीड़ की महक से भरा हुआ था। एक कोने में पत्थरों से घिरा फायर-प्लेस था जिसमें लकड़ियाँ जलकर अंगारे बन चुकी थीं। कैरीन ने बिस्तर दिखाते हुए कहा, “ठीक है। यह लकड़ियाँ रखी हैं। पोदीने की चाय पिओगे।"

“अब बहुत रात हो गयी है, बनाने में... ''

“मैं चाय बनाकर गयी थी। फिर गरम कर लूँगी। मैंने सोचा आखिर तो हिन्दुस्तानी हो, चाय ही पसन्द करोगे।"

"अब सुबह पिऊँगा। मैं बहुत थका हुआ हूँ।''

“अच्छा गुडनाइट।'' और कैरीन चली गयी।

मैं बैग में घुसकर लेट गया। दहकते अंगारों और लकड़ी की दीवारों की पतली सेंधों से गरम और तेज सर्द हवा की मुलायम बर्छियाँ चल रही थीं। चीड़ की महक भरी हुई थी। बैग की अपनी महक थी। कुछ देर बाद जब मन ने सब कुछ स्वीकार कर लिया--वह जंगली अँधेरा, सर्द और गर्म हवा की नुकीली रेशमी चीड़ और बैग की महक-तब अपने आप नींद आ गयी।

और फिर सुबह हुई। यानी आँख खुली। समय देखने से ही अन्दाज हुआ कि सुबह हो गयी होगी।

फायर-प्लेस में अंगारों की दूखियाँ राख सूखे चम्पा फूलों के ढेर की तरह जमा थी। बड़ा चिमटा पास रखा था। लकड़ियों का ढेर सुन्‍न था। दरवाजे के पास नायलन करतनों की बनी मछलियाँ चुपचाप डोरे के सहारे लटक रही थीं।

बेहद अजीब थी वह सुबह। आवाज-रहित सुबह। सब कुछ खामोश और सुन्‍न। खिड़की खोली तो उसकी आवाज से लगा कि कहीं कोई आवाज हो सकती है। लकड़ी के फर्श पर धप-धप किया कि कोई आवाज तो हो, कुछ तो कहीं से सुनाई पड़े। भोजपत्र और देवदार के लम्बे पेड़ों में भी आवाज नहीं थी। घास जैसे भीग-भीगकर दम तोड़ चुकी थी। सड़ी हुई घास पर भोजपत्र के पड़े हुए पत्ते हरी मुर्दा आँखों की तरफ ताक रहे थे। भयानक सन्‍नाटा...मैंने हथेलियाँ रगड़ीं, सर्दी के लिए नहीं, सरसराहट की आवाज के लिए कि देखें यहाँ इनमें आवाज होती है या नहीं, फिर लकड़ियों के चिमटे से खड़बड़ाया, आवाज हुई। जोर- जोर से लकड़ी के फर्श पर चला-फिर आवाज़ हुई...पर यह खेल भी बहुत भयानक होता जा रहा था। आवाज़ होती थी और मर जाती थी। उसकी कोई अनुगूँज नहीं बचती थी। यह कैसे पेड़ थे। कैसा जंगल था, कैसी घास थी। कैसी हवा थी।...जिसमें कोई स्वर नहीं था, जैसे बस सन्नाटा पैदा करता हो...मैंने खासकर देखा-खाँसी भी मर गयी। जितनी आवाज पैदा कर लो, बस उतनी ही...

सामने कॉटेज को घूरा। प्राणहीन कॉटेज खड़ा था...कैसा आतंक था यह। रात में ही कैरीन और उसके माँ-बाप की हत्या हो गयी हो और इस मुर्दा माहौल में मैं अकेला रह गया हूँ। आखिर मन घबराने लगा, मैंने गाना गाने की कोशिश की...तत्काल मरते जाते स्वर कितना भयावह हो गये हैं...कोई गाना ऐसे कैसे गाया जा सकता है। आखिर अपने से घबराकर मैं फिर बैग में घुस गया और आँख मूँदकर अपने ही साथ सोने का नाटक करने की कोशिश की। पर व्यर्थ... आखिर जब दिल बेतरह घबराने लगा और साँस घुटने लगी तो बैग से निकलकर मैंने फिर फर्श पर पैर पटके--वही धप-धप और उसके तत्काल बाद वही गहरी खामोशी...

एकाएक लगा कि अगर अभी, बिलकुल अभी जंगल, पेड़ों या घास से या आस-पास से आवाज न फूटी तो पागल हो जाऊँगा। हवा चाहे न हो पर आवाज तो हो...और उसी पागलपन की हालत में लगभग दरवाजा तोड़ता हुआ-सा मैं बाहर ठण्डी घास पर निकलकर एकदम जोर-से चीखा था, “'कैरीन।"

फिर भी कोई आवाज नहीं हुई--सिर्फ एक ध्वनिहीन दृश्य उभरा। कॉटेज का पिछला दरवाजा खुला...

हाथ में छोटी-सी ट्रे लिये कैरीन दिखाई दी। हलके-हलके मुस्कराते हुए उसके चलकर आने और मुस्कराने के दृश्य में कुछ हलचल हुई पर सन्नाटा फिर भी नहीं टूटा...

“गुड मार्निंग।'” और कैरीन की ट्रे के बर्तनों के धीरे-से खड़खड़ा जाने का एहसास हुआ। जैसे एक साँस आयी।

“तुमने कपड़े क्‍यों उतार रखे हैं।''

“कपड़े...” मैंने अपने को गौर से देखा। हाँ, सचमुच मैं नंगे बदन खड़ा था। उस भयानक सर्दी में! मुझे बिलकुल याद नहीं आया कि किसी घबराहट के क्षण में, घुटती साँसों में मुक्ति पाने के लिए मैंने कपड़े उतार दिये थे। रात तो पूरी बाँहों वाला पुलोवर तक पहनकर सोया था।

“गर्मी लग रही थी।” मैंने अपने को सँभाला।

“सर्दी खाकर बीमार पड़ सकते हो।” कैरीन ने धीरे-से कहा, ''अजीब है, कपड़े पहन लो। मैं चाय बनाती हूँ।''

मेरे कान खड़े हो गये थे। कैरीन की हलकी साँसों की सरसराहट। केतली के ढक्कन के धीरे-से हिलकर फिट हो जाने की आहट। फिर कैरीन के हाथ से चम्मच छूट जाने और चम्मच के प्याले से टकराने की मामूली-सी ध्वनि। फिर प्याले में चाय गिरने की आवाज का एहसास और फिर चीनी चलाने के लिए चम्मच का बार-बार प्याले की तह में घिसटने का आभास...

और तब मुझे सर्दी लगने और कपड़े पहनने की इच्छा का, जीवित होने का एहसास भी हुआ।

“क्यों, चाय अच्छी नहीं लगी?'” कैरीन ने पूछा।

“बहुत अच्छी।”

“कहो तो छुट्टी ले लूँ। तुम्हें ब्रुसेल्स घुमा दूँ और ग्राँ-काफे में अच्छी चाय भी पिला दूँ। तैयार हो जाओ तो चला जाए। क्यों? नौ बजे निकल चलें।'' कहकर वह उठ गयी।

मुझे मालूम था कि कैरीन के माँ-बाप वहाँ सामने वाले कॉटेज में थे। पर आश्चर्य हो रहा था कि उनसे मिलवाने की बात वह नहीं कर रही थी। शीशे की खिड़कियों के पार आते या जाते भी उनकी छाया नहीं दिखाई दे रही थी। होना सब कुछ कैरीन की मर्जी से ही था। परिचय पुराना नहीं था। और अभी हम इतने खुले भी नहीं थे कि बेझिझ्क कुछ पूछ सकें।

ठीक नौ बजे वह उसी दरवाजे में दिखाई दी, जिससे सुबह वह चाय लेकर आयी थी। आते ही बोली, “चलें।"

“सवाँ।”' मैंने कहा, तो वह मुस्करायी।

और हम गाँव से निकलकर मुख्य सड़क पर आ गये। बूम के पास से गुजरे तो मिट्टी की जलागंध आ रही थी। मैंने पूछा, “यह मिट्टी जलने की महक कैसी है ?''

“आखिर तुम बोले तो।”' कैरीन ने गाड़ी स्लो-लेन में लाते हुए कहा, “ये ईंटों की फैक्टरियाँ हैं। तुम सिगरेट पीना बन्द नहीं कर सकते।''

उसने कहा तो एकाएक मैं बहुत अपमानित और तुच्छ महसूस करने लगा। शायद एयरकण्डीशण्ड कार में घुमड़ती हुई सिगरेट की महक उसे अच्छी नहीं लग रही थी। मैंने काँच उतारकर महक का माहौल साफ कर देना चाहा, तो वह फिर मुस्करायी, “तुम मेरी बात समझे नहीं।''

“क्या!"

“सिगरेट वाली। मैं चाहती हूँ तुम कुछ बात करो। सिगरेट तुम्हें बात नहीं करने देती। एकान्तिक बना देती है। यह खामोशी तुम्हें नहीं खलती ? कोई बात करते हो तो कितना अच्छा हो।''

उसके यह कहते ही सुबह वाला भारीपन एकाएक लौट आया और मुझे लगा कि शायद कैरीन भी उतनी ही मस्त है। मैंने कहा, “तो तुम बताती चलो।"

“दाहिनी ओर एण्टवर्प छोड़कर अब हम ब्रुसेल्स की ओर बढ़ आये हैं।''

"और ।''

“मेरे देश की आबादी एक करोड़ है। कि हम बहुत सम्पन्न हैं।''

"क्यों, कैसे ?''

“क्योंकि हमने कटांगा और बेल्जियन कांगों की खानों से सोना और ताँबा निकाल-निकालकर अपने देश में भर लिया है।''

"और ।''

“यह बी.पी. है--ब्रिटिश पेट्रोल, पर हम इसे बूअस्पिस कहते हैं। गँवार का पेशाब।"

"और ।''

“हम बेल्जियंस पिसोनोमी के विशेषज्ञ हैं।”

"और ।''

“ब्रुसेल्स आ गया है। अब हम तुम्हें चाय पिलाएँगे।''

“यहाँ इतने कम लोग क्यों हैं। कोई दिखाई ही नहीं देता। मैं चाहूँ तो तुम्हारी राजधानी की सड़कों पर आते-जाते लोगों की गिनती कर सकता हूँ।"

“गिनती करने में लग जाओगे तो फिर बातें बन्द ही जाएँगी।” कहती हुई वह मेरा हाथ पकड़कर ग्राल्पस में आ गयी। कार हमने बाहर छोड़ दी थी। ग्राल्पस पथरीली इंटों का छोटा-सा चौक था। खाली-खाली और सूना। उसने गर्व से इशारा किया--ग्राँ-काफे दल ग्राँ-प्लास।

एक बहुत पुराना काफे । उजड़ा-उजड़ा-सा पूरा और थका हुआ-सा। बीचोंबीच खड़ा हुआ एक मुर्दा घोड़ा। स्टफ्ड इधर-उधर दीवारों और कार्निसों पर लटकते काठ के योद्धा। छतों से लटकते ताँत की कुप्पियों के गुच्छे। हम काठ की सीढ़ी से चढ़कर ऊपर पहुँच गये। छोटी-छोटी खिड़कियों के पास लगी हुई उदास मेजें। कैरीन ने चाय का ऑर्डर दे दिया था। शराब के प्यालों में गरम पानी आ गया और पानी में ताबीज़ की तरह लटकी चाय की पोटली धीरे-धीरे रंग छोड़ने लगी।

“तुम्हारा देश कितना खूबसूरत है?''

"बहुत ।"

“बहुत क्या होता है। कुछ बताओ...” कैरीन ने हठ किया।

“तुम्हारे बालों की तरह खूबसूरत। पर बेहाल।''

वह थोड़ी-सी शरमायी फिर उँगली पर एक लट लेते हुए बोली, “यह सचमुच खूबसूरत है। और छोड़ो। यह बताओ अँगरेजों ने तुम्हें बहुत लूटा है?''

“बहुत ज्यादा।''

“लोग बहुत गरीब हैं?''

“ज्यादातर ।''

सुनकर वह चुप हो गयी थी। फिर बात बदलते हुए बोली, '“कल सुबह तुम हॉलैण्ड चले जाओगे?!

“हाँ ।''

“तो चलो, तुम्हें कुछ और घुमा दें।'!

“घूमते-घामते घर निकल चलेंगे।”

“घर!"

“तुम घर से इतना घबराती क्यों हो।''

“घबराती कहाँ हूँ। सिर्फ इतना है कि घर-घर नहीं लगता।”

“क्यों? माँ-बाप से कुछ... ''


“नहीं, वे बहुत अच्छे हैं। उन्हें खुद घर घर की तरह नहीं लगता। हम प्रकृति के पास और साथ होना चाहते थे। इसीलिए हॉल में घर बनवाया था कि फूल होंगे, चिड़ियाँ होंगी। तितलियाँ होंगी। गिलहरियाँ होंगी...पर जर्मनी...”

“जर्मनी। जर्मनी से इसका क्‍या लेना-देना। देश। देश तुम्हारा है, प्रकृति तुम्हारी... घर तुम्हारा है।''

“हाँ है, पर..." और यहाँ पर उसने बात तोड़ दी थी।

हम घूमते-घामते घर लौट आये थे। रात का खाना खा चुकने के बाद हम पोदीने की चाय पी रहे थे। सर्दी और कोहरा बहुत था। उसने फायर प्लेस में लकड़ियाँ जला दी थीं। वह बार-बार अपने बालों की लट अँगुली पर लपेट रही थी। मैं रह-रहकर सामने काटेज की ओर देख लेता था। जहाँ सिर्फ एक खिड़की रोशन थी। वह बार- बार मेरी बिछलती नज़र को देख लेती थी। आखिर मैंने खामोशी तोड़ी, “'मैं तुमसे बहुत नाराज़ हूँ।''

“क्यों ?”' वह पास खिसक आयी।

“तुमने अपने माँ-बाप से भी नहीं मिलवाया।"

“माँ तो खैर बीमार हैं। वे उठ नहीं सकतीं। पिता आज शाम तुमसे मिलने खुद कुटी में आनेवाले थे, पर उन्होंने आज ही पैर में चोट लगा ली है। महज पागलपन में।"

“पागलपन में।'”

“और क्या!"

"तुम्हारी बातें मैं पूरी तरह समझ नहीं पाता।''

“मुश्किल तो कुछ भी नहीं है। अगर समझना चाहो तो। लेकिन शायद तुम मेरी त्रासदी समझ नहीं पाओगे।”

“तुम बहुत अकेली हो?"

“दूसरे अर्थों में।''

“पुरुष के अभाव में।'' मैंने झिझक तोड़ते हुए कहा।

वह धीरे-से हँसी, फिर बोली, ''बस, यहीं तक दिमाग दौड़ता है। तुम पुरुष नहीं हो क्या। इस वक्‍त तुम मेरे बिलकुल करीब हो। पुरुष का अभाव कहाँ है। वह तो कहीं भी मिल जाता है। मिल सकता है। पर मात्र घर और पुरुष ही तो सब कुछ नहीं है। क्‍या घर इतने से बन जाता है।'' उसके चेहरे पर उदासी का बादल आ गया था, और वह एकटक मुझे ताक रही थी। मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा था। सन्ध्रों से सर्दी और फायर-प्लेस से गर्मी की रोशनी लपटें फिर आक्रमण कर रही थीं। उसने चुपचाप दोनों प्याले उठाकर ट्रे में रख लिये थे और हाथ फैलाये अपनी हथेलियों को ताकने लगी थी।

“दोपहर में तुम कुछ बात फूलों, तितलियों की कर रही थीं।''

“हाँ, जर्मनी की भी।"

“यह जर्मनी बार-बार क्यों घुस आता है।''

“हमारा गाँव सीमा के काफी पास है। जर्मनी का विशाल औद्योगिक केद्र डुसूलडोर्फ जब से स्थापित हुआ है, हमारे देश की हालत खराब हो गयी है। न यहाँ चिड़ियाँ आती हैं...जहरीला धुआँ सब कुछ चाट गया...इस वीरानेपन की कल्पना कर सकते हो। हम इसीलिए शहर छोड़कर यहाँ आये थे कि बेरिख होंगे..."

"बेरिख।''

“ये सफेद हाल वाले खूबसूरत पेड़।” उसने भोज पत्र के पेड़ की ओर इशारा किया था, जिसका तना खिड़की से झाँक रहा था--पर सब बेकार हो गया। जब से डुसूलडोर्फ का जहरीला धुओँ देश में भरना शुरू हुआ है, हमारे पेड़ मुरझा गये हैं। नयी पत्तियाँ तक खुशी से नहीं निकलतीं। फूल खिलने बन्द हो गये। चिड़ियाँ न जाने कहाँ चली गयीं। गिलहरियों ने आना बन्द कर दिया। पिता ने पैर में चोट लगा ली, पता है कैसे। हम लोग तो ब्रुसेल्स में थे। दोपहर में वे निकले तो बहुत दिनों बाद बैरिख पर एक गिलहरी फुदकती दिखाई दे गयी...बच्चों की तरह पागल हो उठे। गिलहरी देखने के लिए नंगे पाँव दौड़ पड़े। सूखी झाड़ी के टूटे हुए ठूँठ ने उनका पैर फाड़ दिया...गिलहरी तो खैर भाग गयी पर वे पट्टी बाँधे बिस्तर पर पड़े हैं...सुबह तुम्हें मिलवा दूँगी। चिड़ियाँ तो अब आती ही नहीं। कितना सन्नाटा लगता है यहाँ। घर घर नहीं लगता है। लौटकर आने को जी नहीं करता, तुम ऐसे जहरीले सन्नाटे में रह सकते हो?”

मैं चुपचाप उसकी ओर देखता रहा। रात काफी हो चुकी थी। उसने हलके से अँगड़ाई ली और अँगुलियाँ चटकाते हुए बोली, “अपने देश पहुँचकर खत लिखा करोगे?”

“क्यों तुम्हें शक है कि... "

"नहीं, पर क्‍या पता, शायद हम एक-दूसरे को तो याद रख पाते हैं पर यह भूल जाते हैं कि कौन क्‍या चाहता हुआ मिला था। अच्छा...गुडनाइट।”

और वह ट्रे लेकर चल दी। मैं कुटी में दरवाजे पर खड़ा होकर उसे घास भरी पगडण्डी से जाते हुए देखता रहा। वह कॉटेज तक पहुँची, दरवाजा खुला। फिर बन्द हुआ। फिर रोशनी जली। फिर रोशनी बन्द हुई। फिर कुछ देर का व्यवधान हुआ। उसके बाद ऊपर वाली रोशन खिड़की का पल्ला खुला। उसमें से कैरीन का एक हाथ निकला-फिर गुनगुनाहट करने के लिए फिर पल्‍ला बन्द हुआ। रोशनी बुझी और भयानक खामोशी छा गयी।

सुबह सामान लादकर चलने से पहले मैं कैरीन के माँ-बाप से मिलने गया। माँ तकिये के सहारे आधी लेटी थी। पिता पैर में पट्टी बाँधे बच्चों की तरह शरमाते हुए मुस्करा रहे थे। कैरीन कुछ छोटे-छोटे पैकेट लिये खड़ी थी। विदा लेकर मैं चला तो वह नीचे आयी। बोली, “पेट्रोल पम्प तक तुम्हें छोड़ आती हूँ। सफर लम्बा है, कार की चैकिंग भी करवा दूँगी। गैस भी ले लेना। और हाँ ये पैकेट रख लेना।”

“इसमें क्या है?"

“कुछ है। ऐसे ही। दूसरे देश पहुँच जाओ तब देख लेना।” और उसने वे छोटे-छोटे पैकेट वहीं सीट पर रख लिये। खुद भी साथ बैठ गयी। पेट्रोल पम्प तक साथ चलने के लिए।

“तुम्हें पैदल लौटना होगा।'' मैंने कहा।

“पास ही है।” वह बोली।

पेट्रोल पम्प से आगे सफर चलते हुए मैंने कैरीन से विदा ली और शब्दों के अभाव में सिर्फ इतना ही कह पाया, “मैं तुम्हें खत लिखूँगा।''

“बेहतर है मत लिखना। खतों से खामोशी और बढ़ती है।”

“हो सके तो कभी फिर आना। बहुत-सी बातें करेंगे। अच्छा...” कैरीन फिर उदास हो गयी थी। सड़क पर मुड़ते हुए मैंने उसे एक बार फिर देखा। वह हाथ हिला रही थी।

आखिर वह वहीं छूट गयी। और हालैण्ड की सीमा पर आये पास कण्ट्रोल पर जब मैं अपने कागजों पर मुहरें लग जाने की प्रतीक्षा कर रहा था तो मैंने कैरीन के दिये पैकेट खोल-खोलकर देखे। एक में मनेकेन-पीस की छोटी-सी मूर्ति थी। उसी मूतते हुए बच्चे की जो ग्रांलपास के वाली गली में सर्दियों से खड़ा मृत रहा है। दूसरे में मशहूर सूती लेस लगे कपड़े पहने एक गुड़िया थी। तीसरे में उसके सुनहरे बालों की एक लट और चौथे में कलफ लगे कपड़े की बनी एक तितली।

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य स

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कितने पाकिस्तान

20 जुलाई 2022
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

20 जुलाई 2022
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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

20 जुलाई 2022
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

20 जुलाई 2022
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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

20 जुलाई 2022
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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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