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तलाश

20 जुलाई 2022

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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज़-सी झिलमिलाती रही थी।

अपना दरवाज़ा खोलकर वह बरामदे में निकल आई। उसने उनके कमरे के बाहरवाले दरवाज़े को हल्के से छुआ। वह खुला हुआ था। खामोशी से वह जीने से उतरी... गली का दरवाज़ा भी बंद नहीं था। उसे कुछ शंका हुई। ममी बिना कुछ कहे, इतने सवेरे कहाँ निकल गई। ममी के पास काम भी बहुत था। ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे वह खुद सोई थी।

ज़ीने से वह फिर ऊपर बरामदे में आ गई। आहिस्ता से उसने उनके कमरे का दरवाज़ा खोला। नीचे कालीन पर रजिस्टर बिखरे हुए थे। लाल-नीली पेंसिलें पड़ी हुईं थीं। कार्बन का डिब्बा पड़ा था। नीली और लाल दवातें और होल्डर रखे थे। कॉफी के एक प्याले में जली हुई तीलियाँ, राख और सिगरेटों के बदरंग टुकड़े पड़े थे।

ममी शायद बहुत थक गई थीं। वह पलंग पर बेखबर सो रही थीं। जूड़े के पिन सिरहाने रखे हुए थे। दाहिनी तरफ़ वाले तकिए पर एक हल्का-सा गड्ढा था। पलंग की सिरहाने वाली पाटी पर एक सिगरेट दबाकर बुझाई गई थो। टुकड़ा नीचे पड़ा था।

उनके चेहरे पर बेहद मासूमियत थी। उतना ही धुला-धुला-सा चेहरा था, जितना सुबह उठकर मुँह धोने के बाद निखर आया करता था। साथ-साथ चाय पीते वक्‍त वह अक्सर बहुत लगाव से उनके चेहरे को देखा करती थी... ओस में धुले हुए कमल-सी ताज़गी उभर आया करती है... ममी के चेहरे पर। पता नहीं ऐसा क्या था ममी के चेहरे में कि वह डूबी-डूबी-सी देखती रह जाती थी!

वह चुपचाप उनके कमरे से निकल आई थी। अपने कमरे में आकर उनके जागने का इंतजार करती रही थी। कुछ ही देर बाद उनके कमरे में कुछ आहट हुई थी और उसे लगा कि ममी ने बरामदेवाले दरवाजे की चटखनी बहुत आहिस्ता से बंद की थी और उतने ही धीमे से बीचवाले दरवाज़े की चटखनी खोली थी। चटखनी खोलने के बाद वह एकदम उसके कमरे में नहीं आई थीं। कुछ क्षणों तक चुपचाप वहीं खड़ी रहीं। फिर उन्होंने हल्के से आवाज दी थी, “सुमी, जाग गई" और वह कमरे से होती हुई बाथरूम की तरफ चली गई थीं। उनके साथ ही कमरे में एक ठंडा- सा झोंका आया था... शीतल-सी गंध फैल गई... जैसे वह बिस्तर से नहीं, गुसलखाने से नहाकर निकली हों।

जब तक वह बाथरूम से आईं, सुमी ने चाय तैयार कर ली थी। वह रोज की तरह ही चाय पीने के लिए बैठी थीं। साड़ी उन्होंने जरूर कंधों से कुहनियों तक लपेट रखी थी। सलवटें कुछ ज्यादा ही थीं। साड़ी के नीचे उनकी भरी-भरी संगमरमरी बाँहें झिलमिला रही थीं। आँखों में अथाह गहराइयाँ थीं। उनके बैठने में भी रोज जैसा फैलाव न था, शालीन तनाव था।

“शायद मुझे दो रोज के लिए बाहर जाना पड़े... ग्रांट बाकी पड़ी है। साल खत्म होने से पहले सांइटिफिक इन्स्ट्रमेंटस खरीदने हैं," ममी ने निहायत आसानी से कहा था।

“मैं बनी रहूँगी... आप हो आइएगा,"” सुमी ने दूसरा प्याला बनाकर उनके सामने रख दिया था।

“किसी दाई को कह दूँगी। वह यहाँ सो जाया करेगी। दो दिन की बात है।" उन्होंने कहा, तो सुमी ने उतनी ही आसानी से स्वीकार कर लिया, “जैसा आप ठीक समझें। दिन को तो कोई दिक्कत है नहीं, ऑफिस से आने में ही छह बज जाते हैं।”

“इस मामले में यह घर बहुत सेफ है!” उन्होंने कहा, तो सुमी ने उत्साह से जोड़ दिया, “यह तो सही है। डर बिल्कुल नहीं लगता।"

और वे दोनों अपने-अपने काम पर जाने के लिए तैयार होने लगी थीं। अपने कपड़े निकालते हुए वह देख रही थी कि ममी कुछ उलझन में हैं। बार-बार वह ब्लाउज़ों को निकालकर देख रहो थीं। आखिर उन्होंने बाँहवाला एक ब्लाउज निकाल लिया था। उनके पास वह शायद इकलौता था। उसके साथ की कोई साड़ी भी नहीं थी। वह हमेशा सलीवलेस ही पहनती थीं। जैसे-तैसे उन्होंने कंट्रास्ट बना लिया था। उसे कुछ अटपटा-सा लगा। ममी की खुली हुई बाँहें सचमुच बहुत खूबसूरत और सुडौल लगती थीं... कभी-कभी तो उसे स्वयं उनकी बाँहों से ईर्ष्या होती थी।

फिर बह ड्रेसिंग-टेबल पर चली गई। और उसने देखा था कि वह एक सिम्त से बैठकर बाँहों की पिछली ओर एक निशान पर बेसक्रीम लगा रही थीं... शायद बाँह पर कोई नील था और उन्होंने बाँहोंवाला ब्लाउज़ पहन लिया था।

एक क्षण के लिए सुमी को वह कुछ ज्यादा उम्र की दिखाई दी थीं। पर वह टोकना नहीं चाहती थी। तैयार होकर वह बस के आने का इंतजार करने लगी थीं। कॉलेज की बस में स्टाफ के लोग भी जाया करते थे। वह बारजे पर कुछ इस तरह खड़ी इंतज़ार कर रही थीं, जैसे स्कूली बच्चे करते हैं।

सुमी वह सब देखती रही। वह जब छोटी थी, तब भी उसे अपनी ममी बहुत सुंदर लगती थीं। उनके सुडौल हाथ-पैर, तराशे हुए नक्श और ताज़गी! उनमें ऐसी ताज़गी थी, जो उम्र के साथ खिलती आई थी। उसकी किसी मित्र ने उन्हें देखकर माँ नहीं समझा था। ज़्यादा से ज़्यादा बड़ी बहन ही माना था। उनका रख-रखाव भी ऐसा था कि अपने तक को उन्होंने बिगड़ने नहीं दिया था... उसमें वही लोच और नर्मी थी, जो सुमी को अपने में लगती थी। उनके तन से ऐसी अछूती गंध फूटती थी, जो सबको अपनी तरफ खींचती है।

महीने में एक बार तो उनका तन इतना तेज़ महकता था कि सुमी बार-बार किसी-न-किसी बहाने से उनके कंधों पर अपना सिर रख देती थी। तब जैसे गंध का एक झरना बहने लगता।

दो कमरों का घर उस घाटी-सा गमकने लगता था, जिसमें कस्तूरी मृग आ गया हो। फिर दो-तीन दिनों बाद वह गंध धीरे-धीरे डूबने लगती थी।

बस आई और ममी चली गईं। सुमी उन्हें जाते हुए देखती रही। बस में स्टाफ के लोग थे और कॉलेज की कुछ लड़कियाँ भी।

उनके जाते ही वह अकेली रह गई थी। एकाएक उसे लगा था, जैसे सुमी ही बाहर चली गई थी और वह ममी की तरह घर में रह गई हो। अकस्मात उसने अजीब तरह की ज़िम्मेदारी महसूस की और उनके कमरे में जाकर उसने सब सामान करीने से लगाना शुरू कर दिया था। रजिस्टर और कापियाँ बटोरकर एक ओर छोटी मेज़ पर रख दीं। बिस्तर झाड़कर कवर कर दिया था। बिस्तर झाड़ते वक्‍त जरूर एक अव्यक्त-सी तकलीफ उसे हुई थी और लगा था कि ममी की चीज़ें छूने का उसे कोई अधिकार नहीं है... फिर कमरे में खड़े-खड़े फ्रेम में वह तस्थीर देखती रही थी, जिसमें पापा और ममी के साथ नन्‍ही-सी वह बैठी हुई है। न जाने क्यों उस तस्वीर को वह उठा लाई और उसे अपने कमरे में रखकर, उसी जगह ममी के कमरे में वह वाली तस्वीर रख आई थी, जिसमें सागर उमड़ रहा था और ऊँचे आसमान में जलपक्षी उड़ रहे थे।

उसे वक्‍त का खयाल भी नहीं रहा था। एक बक्सा खोलकर उसने पापा की वह डायरी निकाली थी, जिसमें वह हर महत्वपूर्ण घटना को नोट किया करते थे। उसमें रिश्तेदारों के कुछ पते, कुछ हिसाब और जन्मतिथियाँ लिखी हुई थीं। ममी की जन्मतिथि भी थी और उसकी भी... देखा, तो एकाएक देखती रह गई... ममी कुल उन्नीस बरस बड़ी हैं। बीस की वह और उन्तालीस की ममी।

ममी का जन्मदिन तब से मनाया ही नहीं गया... सचमुच ममी को कितना सूना लगता होगा! आठ बरस निकल गए... पर लगता है, पापा जैसे अभी-अभी उठकर चले गए हों। उनके मरने की बात अब बहुत पुरानी-सी लगती है। एक बीती हुई बात की तरह। लोग ठहर जाते हैं; पर कुछ बातें हैं, जो बीत जाती हैं... पापा की बातें तो जैसे बीत गई हैं; पर वह खुद अभी तक रुके हुए हैं। लेकिन अब कुछ-कुछ ऐसा लगता है, जैसे पापा डगमगा गए हों और चुपचाप घर चले जाना चाहते हों। जैसे वह अपनी गलती महसूस कर रहे हों। यूँ चुपचाप आठ बरस तक खामोश बैठे रहकर उन्होंने अच्छा नहीं किया।

वह आहिस्ता से पापा को उठाकर अपने कमरे में ले आईं। बहुत देर वह चुपचाप बैठी रही और उन्हें ताकती रही। वह खामोश थे। उन्होंने कुछ नहीं कहा।

शाम को ममी पहले लौट आती हैं। वह वापस आई, तो उन्होंने चाय बना ली थी। घर आकर ममी ने साड़ी तो बदली थी, पर ब्लाउज़ नहीं। मन में आया था कि पूछ लें, पर लगा था कि ब्लाउज़ न बदलनेवाली बात पूछने का अधिकार सिर्फ पापा को है... पर वह खामोश बैठे हुए थे।

“मम्मी, तुम कहीं घूम आया करो। तुमने तो अपने को एकदम बाँध लिया है... इतना काम करती हो..." सुमी बोली, तो अपनी ही आवाज बहुत बूढ़ी-सी लगी।

ममी ने उसे गौर से ताका था। सचमुच उसका वह मतलब नहीं था, अपनी बात को सहज बनाने के लिए उसने आगे जोड़ दिया था, “तुम्हारे साथ-साथ मैं भी निकल चला करूँगी... कभी-कभी मन बहुत ऊबता है।”

ममी के होंठों पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गई थी।

“चल, आज पिक्चर देख आएँ... वहीं कुछ खा-पी लेंगे," ममी ने कहा था।

उसने प्रस्ताव मंजूर कर लिया था। ममी फिर साड़ी के चुनाव में उलझ गईं, तो उसने अपनो साड़ी उनके सामने रख दी, “यह पहन लो, ममी... बहुत अच्छी लगेगी।" एक क्षण के संकोच के बाद उन्होंने सुमी की साड़ी बाँध ली थी और तितली की तरह तैयार हो गई थीं।

घर से निकलते वक्त सुमी ने बत्तियाँ बुझाईं और ताला लगाया था। ज़ीने उतरते वक्‍त ममी ने धीरे से कहा था, “शायद बिजली का बिल अभी तक पड़ा हुआ है!"

“मैं कल जमा करवा दूँगी।”

और फिर धीरे-धीरे उसने सब हिसाब-किताब संभाल लिया था। अंडे वाले ने इस बार जब उससे पूछा था, “मेम साहब, क्रीम तो नहीं चाहिए ?” तो उसे कुछ अटपटा-सा लगा था।

घर-खर्च की सारी परचियाँ, बिल और कैशमेमों उसके कमरे में जमा हो गए थे। धोबी की किताब उसकी अलमारी में आ गई थी। दूधवाले की पर्ची उसके पर्स में पहुँच गई थी।

उसकी चार साड़ियाँ और ब्लाउज ममी के कपड़ों में जा मिले थे।

वह हर सुबह ममी के तैयार होने की राह देखती। उन्हें जो चप्पल पहननी होती, पहन लेतीं। उसके बाद वह कोई-सी भी चप्पल पहनकर चली जाती।


वह खुद ज़िद करके भी ममी को पहनाती थी। उसने ज़बर्दस्ती उनका शाल उतरवाकर कार्डिगन पहना दिया था।

“यह क्या तमाशा करती है, सुमी... तू क्या पहनेगी, बता ?” ममी ने प्यार से झिड़कते हुए कहा था।

“मेरे पास कोट है।”

“वह पुरानी..."

“इतनी जल्दी कपड़े पुराने नहीं होते... कल ड्राइक्लीन करवा लिया था, एकदम नया निकल आया है।” वह बोली थी।

“पुरखिन हो गई!” ममी ने प्यार से कहा था।

और शाम को जब वह लौटी, तो ममी के कमरे में फिर रजिस्टर और कापियाँ फैली थीं। ट्रे में चाय के खाली बर्तन पड़े थे। लाल-नीली दवातें थीं, पेंसिलें थीं और एक प्लेट में सिगरेट के टुकड़े, राख और तीलियाँ थीं। ममी बारजे पर झुकी हुई दूर कुछ देख रही थीं। शायद कुछ ऐसा, जो सड़क की भीड़ में उन्हें कतई अलग दिखाई दे रहा था।

सुमी का आना उन्हें पता चला। कुछ क्षणों के बाद बारजे में ही वह कुछ सोचती-सी खड़ी हो गई थीं।

“ममी... चाय पी ली...” उसने पुकारा तो वह कुछ चौंक-सी गईं, "मुझे पता ही नहीं चला, तू कब आ गई। चाय भी बना ली... मैं जरा थक गई थी... आजकल कॉलेज में काम बहुत बढ़ गया है। एक भी घंटा फ्री नहीं मिलता... डिमॉन्सट्रेटर भी छुट्टी पर है...” तमाम टूटी-फूटी बातें कहती हुई वह सुमी के कमरे में आ गई थीं।

उनके माथे पर लाल स्याही से एक गोल बिंदी बनी हुई थी। स्याही की किनारियाँ सुखकर गोटे की लकीर की तरह झिलमिला रही थीं। ममी उतनी ही सुंदर लग रही थीं, पर वह बिंदी उसे खल रही थी। शायद ममी को कुछ उलझन होने लगे या वह बर्दाश्त न कर पाए।

मुझे आज बहुत काम करना है," सुमी ने धीरे से कहा था।

“कुछ मैं करवा दूँ ?” ममी ने सहारा पकड़ा था।...

“हमारे यहाँ एक और एक्सचेंज खुल रहा है... 'कोड मैसेजेज़' के लिए। उसकी क्लासेज़ शुरू हुई हैं, उन्हीं लेसन्‍ज़ को दुहराना है।" सुमी ने सब समझा दिया था।

“तो तू अपना काम कर... खाना मैं बना लेती हूँ।"

“सूप बना लो, ममी, ज्यादा भूख भी नहीं है। सलाइसेज़ तल लेंगे, बस हो जाएगा।"

“अच्छा।” कहकर वह उठ गई थीं।

फिर खामोशी छा गई थी। दोनों कमरे दो अलग-अलग दुनियाओं में बदल गए थे। उसके कमरे में पापा-अब भी रुके हुए थे। ममी शायद उनसे कुछ बात करना चाहती थीं। शायद उन्हें लग रहा था कि पापा की तरफ से अब सुमी ही बात कर सकती है। और सुमी को लगा कि यहाँ से निकलकर अगर चल दें, तो पापा भी नहीं रुक पाएँगे। वह उसके साथ पीछे-पीछे चले आएँगे। चुपचाप।

अपने कमरे में जाकर ममी ने पुराने कागजों और सामान को उलटना-पुलटना शुरू कर दिया था। उन्हीं में पापा के कुछ पुराने खत निकल आए थे। कुछ देर बाद उसने ममी को बाथरूम की तरफ जाते देखा। लौटकर वह आई तो मुँह धुला हुआ था। बिंदी मिटी हुई थी। चेहरा बहुत ताज़ा-ताज़ा लग रहा था।

“सुमी, जरा बड़ी वाली अलमारी खिसकाना है। उसके पीछे कुछ कागज गिर गए हैं। आ तो ज़रा..." ममी ने कहा, तो वह उठकर गईं थी। अलमारी खिसकाई, तो कागजों का एक अंबार लुढ़क पड़ा और वह छड़ी भी, जो पापा ने पहाड़ पर खरीदी थी। एक बार उनके पैर में मोच आ गई थी। धूल का एक बगूला गिरे हुए कागजों से उठा था और ममी बेतरह खाँसने लगी थीं।

“तुमने अपने कमरे में क्या-क्या जमा कर रखा है, ममी ? इतने सामान के बीच दम नहीं घुटता? कुछ उधर जीनेवाली अलमारी में रख देती हूँ।” उसने कहा, तो उन्होंने प्रतिवाद नहीं किया। दोनों ने मिलकर बहुत-सा सामान जीनेवाली अलमारी में लगा दिया।

“छड़ी मैं अपने कमरे में रखूंगी," सुमी ने कहा, तो बात में अजीब-सी विसंगति दिखाई दी, पर वह धीरे से फिर बोली, “कभी-कभी रात में उधर बिल्ली आती है..."

और ममी जब सूप बनाने के लिए चली गईं, तो जीनेवाली अलमारी से वह पापा की फाइलें चुपचाप उठा लाई और उन्हें पलंग के नीचे रख लिया था।

पापा का वह बचा-खुचा सामान जैसे हर वक्‍त इधर-उधर चलता रहता था। वह छड़ी और वह सामान अपना ठिकाना नहीं खोज पा रहे थे। तीसरे दिन उसने सारे सामान को मेज की नीचेवाली पटरी पर सँभालकर रख दिया था, पर सफाई करते वक्‍त वह वहाँ से लुढ़क पड़ा। अलमारी के भीतर वे बड़ी-बड़ी फाइलें किसी भी सिम्त से समाती नहीं थीं। अलमारी बहुत सँकरी थी। हारकर उसने एक गठरी बाँध ली और उसे फिर पलंग के नीचे रख लिया था। पापा भी रुके हुए थे।

उसी दिन ममी ने कहा था, “मैं आज रात को गाड़ी से जाऊँगी। वो कॉलेज के लिए सामान खरीदना था न... मार्च खत्म होने से पहले-पहले पेमेंट करना होगा... तीसरे दिन आ जाऊँगी। दाई से मैंने कह दिया है। वह रात को होस्टल से आ जाएगी, यही दस-साढ़े दस बजे।"

“तुम्हारी गाड़ी किस वक्त जाती है?”

“आठ बजकर पाँच पर..."

“चपरासी आएगा न?" सुमी ने कहते ही अपनी गलती भाँप ली, तो उसे ठीक कर लिया, “तुम्हारा सामान ठीक कर दूँ...”

“दो दिन की तो बात है, कौन बहुत-सा सामान ले जाना है।" ममी ने कहा और वह सूटकेस खाली करने लगी।

सुमी ने जिद करके अपनी साड़ियाँ और पर्स उन्हें दे दिया था। वह अपने कमरे में कपड़े बदलने चली गईं। सुमी ने रूमालों का एक सेट रखने के लिए सूटकेस खोला, तो जेब में चपटा-सा पैकट पड़ा देखकर वह बेहद सकुचा गई थी। सूटकेस बंद करके उसने रूमाल ऊपर रख दिए थे।

ममी साड़ी बदलकर आईं, तो उनके तन से गंध फूट रही थी... पर उनके कंधे पर सिर रखते हुए संकोच हो रहा था। तब एक क्षण के लिए उसने महसूस किया था कि वह गंध पिछले दो-तीन दिन से घर-भर में समाई हुई थी।

ठीक सवा सात बजे नीचे टैक्सी का हॉन बजा। ममी एकाएक घबरा-सी गईं। उतावलेपन में वह अपना सूटकेस उठाकर खुद ही सीढ़ियाँ उतरने लगीं। तभी टैक्सीवाला सरदार ऊपर आ गया। सुमी ने बिस्तर उसके लिए लुढ़का दिया और उनके हाथ से सूटकेस लेना चाहा, तो उन्होंने बड़ी आसानी से कहा था, “वह ले जाएगा।"

जब तक टैक्सीवाला सरदार दुबारा नहीं आया, वह वहीं सीढ़ियों पर रुके- रुके उससे बात करती रहीं, “दाई ज़रूर आ जाएगी... इधर का दरवाजा बंद रखना... रुपए हैं न... दाई से कहना, वह शाम का खाना भी बना देगी।"

और वह ज़रा तेज़ी से सीढ़ियाँ उतर गई थीं। सुमी बारजे पर आ गई। टैक्सी . की खिड़की से उन्होंने ऊपर देखते हुए धीरे से हाथ हिलाया था। टैक्सी चल पड़ी थी। उधरवाली खिड़की से सिगरेट का एक सुलगता हुआ टुकड़ा सड़क पर गिरा था। सुमी वहीं खड़ी-खड़ी उस टुकड़े को ताकती रही थी।

बहुत-सी पेटियों में सामान आया था। ममी रात को वापस आई थीं, इसलिए पेटियाँ घर पर ही उतारी गई थीं। वह बहुत खुश थीं, “हमारे कॉलेज में जो-जो इंस्ट्रूमेंट्स अब आ गए हैं, किसी भी कॉलेज की लैब में नहीं हैं।"

और गंदे कपड़े निकालने के लिए जब उन्होंने होल्डाल खोला था, तो सबसे पहले रूमाल निकालकर सुमो को दिए थे, “एक भी नहीं खोया... पाँच ये रहे, एक पर्स में है। ठीक है न..."

मलगुजे रूमालों में उड़ा-उड़ा सेंट महक रहा था... एक साड़ी के साथ ऊनी मोजा झाँक आया, तो ममी ने वह साड़ी होल्डाल की जेब में दबाते हुए कहा, “फिर निकाल लेंगे जब धोबी आएगा।” और उसे लपेटकर पलंग के नीचे सरका दिया था।

उन दिनों के बीच पानी का एक रेला आ-गया था। वे सिर्फ किनारों की तरफ समानांतर खड़ी रह गई थीं। और कभी-कभी ममी उसे देखकर ऐसे घबरा उठती थीं, जैसे पापा आ गए हों। और वह ममी को देखकर ऐसे अकुला, उठती थी, जैसे पापा चले गए हों। पर पापा थे कि न आते थे, न जाते थे... वह सिर्फ रुके हुए थे।

आखिर सुमी ने दिल कड़ा करके एक दिन कह दिया था, “ममी, यहाँ से मुझे ऑफिस बहुत दूर पड़ता है... अगर दो-तीन महीने में तुम्हें कॉलेज का काटेज मिल गया, तो ऑफिस और भी दूर हो जाएगा... इस वक्‍त वर्किंग गर्ल्स होस्टल में जगह मिल सकती है... अगर तुम कहो तो मैं यहाँ सीट ले लूँ?”

ममी एकाएक गंभीर हो गईं थीं। उन्होंने गौर से सुमी को देखा था। पर उसके चेहरे पर कहीं भी विक्षोभ नहीं था। आँखों में कोई दूसरा रंग नहीं था और लहजे में भी कटुता नहीं थी। सबकुछ सहज था।

“वहाँ तुम्हें दिक्कत होगी।” ममी के स्वर में प्यार था।

“तो घर भाग आऊँगी।” सुमी के लहजे में बहुत अपनापन था। बात बहुत आसान-सी रह गई थी। उसमें कोई पेंच या मरोड़ नहीं था।

पहली तारीख को सुमी होस्टल में पहुँच गई। ममी उसके साथ आईं और कमरे में सामान सजा गईं थीं। कुछ चीजें खरीदकर दे गई। बहुत-सी हिदायतें दे गई। शुरू- शुरू में कुछ दिनों तक तो वह हर शाम को कुछ देर के लिए आती रहीं, कभी-कभी सुमी जाती रही; फिर धीरे-धीरे टेलीफोन पर मुलाकात होने लगी... और फिर उसमें भी व्यवधान पड़ने लगा।

पर यह अच्छा हुआ था कि पापा उसके साथ चले आए थे। अब उसे पापा पर भी उतना तरस नहीं आता था। वह ममी के मोहताज नहीं रह गए थे। उसने उन्हें मुक्त कर लिया था। पर होस्टल का अकेलापन खाने दौड़ता था। सनकी लड़कियों के बीच दम घुटता था। लगता था कि ये सब भी पापा की तरह ही कहीं-न-कहीं रुकी हुई थीं।

एक दिन वह बहुत अकेली थी, तो पापा के कागज़-पत्तर खोलकर बैठ गई। डायरी खोली, तो देखते-देखते नजर पड़ी--ममी के जन्मदिन पर... पापा ने बड़े प्यार से ममी के बारे में कुछ लिखा था, जीवन-भर सुख देने की शपथ खाई थी। ग्यारह बरस पहले उन्होंने वह सब लिखा था... उसे बड़ी शांति मिली थी। पापा की तरफ से उसने उन्हीं की इच्छा पूरी कर दी थी। उसने तारीख देखी। तीन दिन बाद ममी चालीस की हो रही थीं।

और वह ममी के जन्मदिन पर बहुत सुबह-सुबह ही नरगिस के फूलों का गृच्छा लेकर पहुँची थी। वहाँ पहुँचकर एकाएक वह असमंजस में पड़ गई थी। इस वक्‍त आकर उसने अच्छा नहीं किया। शायद ममी को उलझन हो। उसका इस तरह आना खल जाए। उसे कल फोन कर देना चाहिए था। लेकिन लौटते भी बन नहीं रहा था।

उसने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी।

“आई।” ममी की आवाज़ थी।

उन्होंने दरवाजा खोला, तो सुमी ने नरगिस के फूल लिए-लिए ही उन्हें प्यार से बाहों में कस लिया था। फिर हाथों में पकड़ा दिए थे।

ममी ने एक बार सुमी को देखा था, फिर फूलों को, और सोचती-सी बोली थीं, “तेरे पापा भी यही फूल लाते थे..."

फिर अपने को सँभालते हुए वह जल्दी-जल्दी गईं और चाय बना लाई थीं। प्याला बनाकर उन्होंने सुमी के आगे बढ़ा दिया था। चाय पीते हुए, दोनों ही अपनी- अपनी जगह बहुत अलग-अलग-सी एक-दूसरे को देख लेती थीं। आखिर ममी ने धीरे से पूछ लिया था, “सुमी, वहाँ कोई दिक्कत तो नहीं?”

“न ममी... बस, कभी-कभी बहुत सन्‍नाटा-सा लगता है।”

“यहाँ भी बहुत लगता है," ममी ने कहा था। फिर वह कुछ सकुचाई-सी देखती रही थीं और अपने में उलझती हुई बोली थीं, “घर में नाश्ता भी तो नहीं है... तुझे क्या कराऊँ ?"

“अंडेवाला अभी नहीं आया?"

“उसे छुड़ा दिया था।” ममी की आँखें शायद हल्के-से नम हो आई थीं। वह इधर-उधर देखने लगीं। फिर अपने पर ही हँसती हुई-सी उठी थीं, कुछ और सहारा न पाकर मेज पर रखे कैलेंडर को देखने लगी थीं। हँसते-हँसते ही बोली थीं, “जब से तू गई, तारीख ही नहीं बदली। खयाल ही नहीं रहा।"

और सुमी चाहते हुए भी कुछ कह नहीं पा रही थी। उसे लग रहा था कि चलने के लिए उठने से पहले वह ज्यादा-से-ज्यादा पूछ पाएगी, तो यही कि 'ममी, कितना बज गया है...'

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य स

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कितने पाकिस्तान

20 जुलाई 2022
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

20 जुलाई 2022
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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

20 जुलाई 2022
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

20 जुलाई 2022
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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

20 जुलाई 2022
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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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