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इंतज़ार

20 जुलाई 2022

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रात अँधेरी थी और डरावनी भी। झाड़ियों में से अँधेरा झर रहा था और पथरीली ज़मीन में जगह-जगह गढ़े हुए पत्थर मेंढ़कों की तरह बैठे हुए थे। बिजिलांते के बूटों की आवाज़ से दहशत और बढ़ जाती थी। हवा हमेशा की तरह वीतराग थी…लोगों में सनसनी या दहशत दौड़ जाती है पर हवा उसी तरह खामोश आवाज़ में गाती, सरसराती रहती है। हवा की आवाज़ तभी टूटती है जब बिजलांते टीम के बूट रेत या धूल के कार्पेंट पर सप्-सप् करते हैं या मेंढ़कनुमा बैठे छोटे-छोटे पत्थरों से टकरा जाते हैं…

पेरीज़ शहर के फ्रीटाउन इलाके के बाहर तुमाहोल की बस्ती जाग रही थी। लेकिन घरों में रोशनी नहीं थी। बिजिलांते के बूट रोशनी से बहुत घबराते हैं…जहाँ भी कोई रोशनी टिमटिमाती है तो वे उसे बुझाने के लिए, उस पर धावा करने के लिए दौड़ते हैं, लेकिन वे पत्थरों से घबराते हैं…या तो पत्थरों से उनके बूट टकराते हैं या पत्थर आकर उनकी कनपटी पर पड़ते हैं।

मेंढकों की तरह ज़मीन पर बैठे हुए पत्थर रात में कैसे उड़ने लगते हैं, यह रहस्य बिजिलांते की गश्ती टुकड़ियों की समझ में नहीं आता था।

इसीलिए गश्त वाले एक सिपाही ने पादरी के सामने कहा था–रात में यह पत्थर उड़ते हैं…होली फादर! यह दैवी आपदा है…हमें जब फ्री टाउन इलाके के बाहर तुमाहोल की इस बस्ती में भेजा गया तो यह नहीं बताया गया था कि यहाँ भूत-प्रेत रहते हैं…हमसे कहा गया था–तुमाहोल में निगर्स रहते हैं…लेकिन यहाँ तो पत्थर उड़ते हैं…

झोंपड़ीनुमा चर्च में जलती मोमबत्तियों की रोशनी में काला पादरी मुस्कराया था–माई सन! तुमाहोल भूत-प्रेतों की बस्ती नहीं है…शैतान ने कहीं और जन्म लिया है…शैतान को पहचानो…तुम्हें शांति मिलेगी!

सिपाही अपनी सूजी आँख और कनपटी सहला रहा था। उसने अपनी नाक साफ की तो खून के कतरे देखकर वह घबरा गया था।

अस्पताल के डॉक्टर ने रिपोर्ट दी थी कि कैडिट थ्री-ज़ीरो-वन दिमागी रूप से कमज़ोर है। ताज्जुब है कि इस जैसे कायर को बिजिलांते में चुना गया। इसके दिमाग में भूत-प्रेत भर गए हैं और इसे पत्थर उड़ते हुए दिखाई देते हैं…अगर रानी के राज्य और गोरी सभ्यता की हमें रक्षा करनी है तो थ्री-ज़ीरो-वन जैसे कायरों और अंधविश्वासियों से भी हमें अपनी रक्षा करनी होगी!

चीफ वह रिपोर्ट देखकर भड़क उठा–इज़ इट ए ब्लडी मेडिलक रिपोर्ट? डॉक्टर तक हमें राजनीतिक रिपोर्ट देने लगे हैं…तुम घायलों की रक्षा करो…गोरी सभ्यता की रक्षा के लिए हम तैनात किए गए हैं!

लेकिन यह तो बहुत बाद की बात है। वह रात तो बहुत अँधेरी थी जिसमें स्तोम्पी सीपी ने तुमाहोल की बस्ती में पहला पत्थर उठाया था। हुआ यह था कि घर पर दो कमरों की फूस की झोंपड़ी को अगर कहा जा सके तो उस घर पर सौतेले बाप ने उसकी माँ को बहुत मारा था। इल्ज़ाम यह था कि स्तोम्पी सोवेतो में चल रहे विप्लव में शामिल हुआ था। सौतेला बाप उसकी माँ को पीटते हुए चीख रहा था–आज़ादी और बराबरी में भी चाहता हूँ…पर उसके लिए यह ज़रूरी नहीं कि जान खतरे में डाली जाए! तू कितना ईधन चूल्हे मे डालती है? बता! ज़रूरी है कि सारा ईधन एक बार ही डाल दिया जाए? बता और तेरा यह स्तोम्पी! बारह बरस का छोकरा स्तोम्पी–वहाँ–सोवेतो के विप्लव में शामिल होने गया था…खुद ही नहीं, छोटे भाई को भी साथ ले गया था।

माँ सिसक रही थी…बाद में उठकर वह खाना परोसने लगी थी। उसने दोनों बेटों को आवाज़ लगाई…पर स्तोम्पी का मन उचट चुका था। सिवा कुछ बर्तनों की आवाज़ के और कोई आवाज़ उस रात के पहले पहर में नहीं थी।

बस, रात बहुत अँधेरी थी और माँ के मार खाने के बाद डरावनी भी हो गई थी। झाड़ियाँ और झुरमुट सुस्ताते हाथियों की तरह अँधेरे में हाँफ रहे थे कि तभी बाज़ार के कॉफे से मिरियम मकेबा की आवाज़ आई थी…मिरियम मकेबा के गीत के शब्द वीतराग हवा पर तैरते आए थे…ज्यूकबॉक्स में किसी ने सिक्का डाला होगा। स्तोम्पी सीपी को मिरियम मकेबा की आवाज़ और गीत बहुत पसंद हैं। जब भी कोई लड़का सिक्का हाथ में लेकर अपनी पसंद का गीत ढूँढ़ता तो स्तोम्पी सीपी उसे मिरियम मकेबा का गीत सुनने के लिए प्रेरित करता…उसके पास तो पैसे होने का सवाल ही नहीं उठता था। मिरियम मकेबा के गीत पर वह दिल खोलकर नाचता था…कॉफे के लोग भी उसके नाच में रम जाते थे और कभी-कभी खुद उठकर भी नाचने लगते थे।

उस रात कॉफे से गीत की आवाज़ आई तो स्तोम्पी चुपचाप बाज़ार की ओर निकल गया। वह गीत उसे खींच रहा था। रास्ते तो उसके लिए जाने-पहचाने थे। और फिर वे इतने ऊबड़-खाबड़ भी नहीं। वह तो तुमाहोल में ही पैदा हुआ था पर दूसरे मोहल्ले में रहता था। जब उसका बाप मरा तो वह पाँच साल का था। फिर माँ ने दूसरी शादी कर ली तो वह इस मोहल्ले में चला आया।

कॉफे में पहुँचकर स्तोम्पी ने देखा–कोई सात-आठ लोग जमा थे। उनमें से दो को उसने पहचाना। वे सोवेतो के विप्लवी दिनों में उसे दिखाई दिए थे। वह तो यूँ ही घूमता-घामता वहाँ पहुँचा था…उसे पता भी नहीं था कि विप्लव क्या होता है…लेकिन भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। वैसे तो दुकानें बंद थीं पर जो खुली थीं, वे तड़ातड़ बंद होती जा रही थीं…लोग घरों से निकलकर नदी की तरह मेन स्ट्रीट पर उमड़ रहे थे…और विजिलांते के दस्ते बंदूके ताने शिकारियों की तरह तैयार खड़े थे, स्तोम्पी की समझ में तब कुछ-कुछ आने लगा था। उसका सौतेला बाप डरी-डरी आवाज़ में इन्हीं दस्तों की बात किया करता था…माँ को मारने के बाद वह खुद रोया करता था और बाद में उसे समझाता था कि डर के कारण उसके भीतर गुस्से का भूत जागता है…

‘‘तुम्हें खदानों से डर लगता है?’’ माँ तब पूछती थी–‘‘खदानों के अंदर के अँधेरे से डर लगता है?

‘‘नहीं…खदान में किस बात का डर! वहाँ तो बहुत आराम है, लेकिन धरती पर आते-आते जब बूटों की या गालियों की आवाज़ सुनाई देती है, तब डर लगता है।’’ सौतेला पिता तब बताता था।

‘‘गालियाँ कौन देता है? ठेकेदार?’’ माँ आगे पूछती।

‘‘नहीं…ठेकेदार तो पैसा और शाबाशी देता है…अगर दिन-भर में पच्चीस ट्रॉली बजरी हमने काट ली तो वह साथ बैठकर कॉफी भी पिलाता है…गालियाँ तो विजिलांते के सिपाही देते हैं।’’ पिता बताता था।

‘‘लेकिन तुम्हारा ठेकेदार तो गोरा है!’’

‘‘तो उससे क्या हुआ। हर गोरा तो कामचोर या बदमाश नहीं होता…हमारा ठेकेदार हमसे काम लेना और हमें खुश रखना जानता है।’’

‘‘तो सिपाही गालियाँ क्यों देते हैं?’’

‘‘उन्हें शक है कि हमारी खदानों में विद्रोही शरण पाते हैं…वे विजिलांते से बचने के लिए खदानों में छुप जाते हैं और हम मज़दूर लोग उन्हें पनाह देते हैं!’’

‘‘लेकिन तुम्हारे पास तो मज़दूर होने के परिचय-पत्र रहते हैं। क्या वे सिपाही तुम्हें नहीं पहचानते?’’

‘‘हमें सिर्फ नंबर से पहचाना जाता है…अगर नंबर एकदम न बोला, या याद करने में देर लगी तो च्यूइंगम खाते विजलांते का बट हमारे…’’

‘‘धीरे बोलो…जगह बताने की क्या ज़रूरत है कि बूट कहाँ पड़ता है…कुछ तो लिहाज करो…बच्चे जाग रहे हैं!’’

‘‘क्या बोली!’’ पिता गुर्राया था।

‘‘कहा न, धीरे बोलो!’’

‘‘हरामज़ादी! यहाँ भी धीरे बोलने को कहती है। तेरे एक लात लगाऊँ वहाँ पर…वहीं पर…जहाँ…जहाँ मेरे पड़ी थी।’’

और पिता ने दो-तीन लातें माँ के मार दी थी…माँ एकदम चीखकर कराहने लगी थी…और फिर पिता बिलख-बिलखकर रोने लगा था…माँ को सँभालने लगा था…फिर माँ ने खाना परोसा था। रेती के केकड़ों का शोरबा और जौ की रोटी जो वह तीन दिन पहले नानबाई की दुकान से लाई थी।

रेती के केकड़े पकड़ने में स्तोम्पी माहिर था। अगर हवा न चल रही हो तो रेती पर उनके चलने के निशान कुछ देर बने रहते हैं। और फिर वे छेद तो दिखाई ही पड़ जाते हैं जिनमें वे टेढ़े होकर घुस जाते हैं…वे सागर के केकड़ों की तरह काले नहीं होते, वे रेत की तरह ही शर्बती होते हैं…कभी-कभी तो किसी छेद को खोदने से केकड़ों की पूरी बस्ती ही मिल जाती है…भयातुर केकड़े तब भागते हैं…कुछ रह जाते हैं, कुछ रेत में रास्ते बनाकर भीतर छुप जाते हैं।

उस रात खाने के बाद पिता ने माँ को सीधा लिटा लिया था और उसकी दोनों टाँगों को फैलाकर वह उस जगह को सेंकता रहा था–जहाँ उसने माँ को मारा था। और खुद भी अपनी उस जगह को सेंकता रहा था जहाँ उसे विजिलांते ने मारा था। सेंकने के लिए पिता ने लैंप की लौ बहुत ऊँची कर ली थी, इसी से लैंप का शीशा चटक गया था तो माँ ने उसे कोसा था–‘‘दर्द तो ठीक हो जाएगा लेकिन यह शीशा कहाँ से आएगा?’’

लंबी लौ के कारण शीशा तो उनके शरीर की तरह काला पड़ गया था, लेकिन उसकी चटकन ब्लेड की धार की तरह चमकने लगी थी।

सुबह अपने पिता को बिना बताए स्तोम्पी खदानों के इलाके में गया था…यूँ ही घूमता हुआ, पास जाने की हिम्मत तो नहीं थी…खदानों के इलाके में गया था…यूँ ही घूमता हुआ, पास जाने की हिम्मत तो नहीं थी…खदानों के अलग-अलग इलाके चहारदीवारियों या कँटीले तारों से घिरे हुए थे…गेट पर नए मज़दूर भर्ती के लिए खड़े थे…अपने-अपने सिटिज़न पास लिए हुए। संतरी उनको रोके हुए थे।

स्तोम्पी पास तक तो नहीं जा सका इसलिए वह एक टीले पर चढ़कर देखता रहा था…खदानों के मुहाने छोटे-छोटे छेदों की तरह दिखाई दे रहे थे और उनमें उतरने वाले मज़दूर केकड़ों की तरह ही गायब होते जा रहे थे। कटी हुई बजरी लेकर आने वाली ट्रालियाँ तो बहुत बाद में ऊपर आती हैं। मज़दूर तो केकड़ों की तरह नीचे ही छिपे रहते हैं।

लेकिन उस दिन स्तोम्पी ने मेन स्ट्रीट में लोगों को धरती के ऊपर देखा था। तब वह कुछ-कुछ समझ सका था और तभी अपने सौतेले पिता के प्रति उसके मन में कुछ अपनापन-सा उभरा था…

और तब स्तोम्पी ने विजिलांते के शिकारी सिपाहियों को आँख उठाकर देखा था…और दौड़कर भीड़ के आगे खड़ा हो गया था। उसे देखकर तमाशबीन बच्चे भी धीरे-धीरे भीड़ के आगे आ गए थे और उमड़ती नदी की पहली लहर की तरह विजिलांते के दस्तों के सामने खड़े हो गए थे।

विप्लवी आंदोलन के नेता ने चीखकर कहा था–‘‘बच्चों को पीछे हटाओ! यह कहाँ से आ गए?’’

तो उसी ने बुजुर्ग साथी से कहा था–‘‘नही! ये दस-दस, बारह-बारह बरस के बच्चे हमसे ज़्यादा साहसी हैं। इनके पास केवल भविष्य है…इन्हें सिर्फ पाना है, कुछ खोना नहीं। हमारा वर्तमान हमें कायर बना सकता है…इन्हें नहीं…इनके पास केवल भविष्य है!’’

और उसके बाद क्या हुआ यह तो स्तोम्पी को भी नहीं मालूम…उसे तो होश तब आया जब उसने अपने को डिटेंशन लॉकअप में पाया। मारकाट के बाद उसकी मरहमपट्टी कर दी गई थी, लेकिन उसके शरीर में जगह-जगह दर्द था। तब उसे घर का लैंप बहुत याद आया था और सपने में उसने देखा था–उसका सौतेला पिता उसे जगह-जगह उसी तरह सेंक रहा था जैसे उसने माँ को सेंका था। आँख खुली तो देखा–डिटेंशन वार्ड में अँधेरा था। वहाँ कोई लैंप नहीं था, और न कोई लौ…

दो महीने बाद स्तोम्पी को दो झापड़ मारकर छोड़ा गया। डिटेंशन कैंप का जेलर राउंड पर आया तो स्तोम्पी और दूसरे सात बच्चों को देखकर चीखा था–अबे गधो! नाबालिगों को बंद करके रखा है, ब्रिटिश कानून ग्रेट-ब्रिटेन में चाहे नेस्तनाबूद हो चुका हो लेकिन प्रीटोरिया की सरकार मानव-अधिकार और आधारभूत कानूनों की अभी भी रक्षा करती है…नाबालिगों को हम अदालत की आज्ञा बिना डिटेंशन में नहीं रख सकते! इन्हें इसी वक्त रिहा करो…नहीं तो मानव-अधिकारों के हनन का कलंक हम पर लग जाएगा। इन्हें छोड़ों…आज़ाद करो…सफर के पैसे देकर इन्हें घर भेजो…अभी…फौरन…

और तह स्तोम्पी छोड़ा गया था। वह नहीं जानता था कि अब क्या करे? घर जाए या यहीं रुक जाए? उसे अंदाज था कि छोटे भाई ने घर लौटकर बता दिया होगा कि वह कहाँ है…

और यह बात दोनों को पता हो गई थी–माँ को भी और सौतेले पिता को भी, लेकिन दोनों एक-दूसरे से इस बात को छुपाते रहे थे–और स्तोम्पी के इस तरह गायब होने को उसके आवारा हो जाने का नाम देते रहे थे और यही उन्होंने विजिलांते के दस्ते से भी कहा था, जो स्तोम्पी को पूछते हुए आया था।

‘‘जी! उसका नाम स्तोम्पी सीपी है…उम्र बारह साल। वो मेरा सौतेला बेटा और मेरी पत्नी का बेटा है…वह शुरू में ही आवारा लग रहा है…घर से चीज़ें चुराकर भागता रहा है…जब भूखा मरने लगता है तो लौट आता है। इस वक्त हमें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं कि वो कहाँ है! लौटकर अगर आया तो हम आपके पास रिपोर्ट करेंगे। उसे आपके सामने हाज़िर करेंगे। उसने हमें बहुत परेशान कर रखा है…और साब! हम तो वैसे ही बहुत परेशान लोग हैं…’’

विजिलांते बहुत संतुष्ट होकर लौट गए–ही नोज़ हिज़ पास्ट। प्रेज़ेंट एंड फ्यूचर। हमने इन निगर्स को सभ्य बनाया, रोज़गार दिया और चर्च दिया। इन्हें इनका ईश्वर दिया।

और स्तोम्पी जब तुमाहोल में लौटकर आया तो वह पहले सीधे चर्च गया। काले पादरी ने उसे पहचाना और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा–‘‘माई सन! जो मन और तन से आज़ाद नहीं है वो किसी भी धर्म का बंदा नहीं है।’’

काले पादरी की बात स्तोम्पी समझ ही नहीं पाया। उसने उसी तरह आंखें फाड़कर काले पादरी को देखा जैसे उसने मेन स्ट्रीट में विजिलांते के दस्तों को देखा था।

वह झोंपड़ीनुमा चर्च से बाहर निकल आया था…मोमबत्तियों की रोशनी में काला पादरी बहुत संतुष्ट-सा मुस्करा रहा था।

दूर कॉफे से तभी मिरियम मकेबा की पुकारती आवाज़ आई थी और स्तोम्पी उस तरफ खिंचा चला गया था। ज्यूकबॉक्स में किसी ने सिक्का डाला था और मिरियम मकेबा की आवाज एकदम फूट पड़ी थी–

‘‘आओ प्यार करो…

तन के क्षणिक अनुराग से नहीं…

वह भी ज़रूरी है…

लेकिन पहले धरती से प्यार करो…

इसके जंगलों, कछारों और हवा से प्यार करो…

जब तक जंगल, पहाड़ और हवा आज़ाद नहीं हैं

तब तक तुम्हारा तन भी आज़ाद नहीं है

नश्वर तन को आज़ाद करो…

आओ प्यार करो।…आओ प्यार करो!’’

शब्द और अर्थ स्तोम्पी की समझ में नहीं आते थे पर मिरियम मकेबा की आवाज़ के अर्थों में एक कशिश थी…वह पुकारती आवाज़ उसे खींचती थी…

मिरियम मकेबा की आवाज़ के बीच उसे विजिलांते के दस्ते और काले पादरी के राहत देते वचन एक-से लगते थे। काले पादरी के वे वचन आज़ादी का आसरा देते हुए सहने और सहते जाने की सीख देते थे।

लेकिन यह उसके सौतेले पिता ने नहीं किया। उसने स्तोम्पी को बाँहों में लेते हुए इतना ही कहा–‘‘स्तोम्पी बेटे! मैं वही चाहता हूँ जो तुम चाहते हो…लेकिन मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता! तुम्हारी माँ भी तुम्हें खोना नहीं चाहती…जिस दिन तुम खो जाओगे…हम दोनों अजनबी हो जाएँगे! हम तुम्हारा खो जाना…तुम्हारा समाप्त हो जाना बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे! तुम बच्चों की विप्लवी सेना में सबसे आगे हो…लेकिन…’’

इस लेकिन का उत्तर किसी के पास नहीं था। स्तोम्पी ने अपने सौतेले पिता से पूछा, ‘‘लेकिन?’’

‘‘लेकिन…यही कि तुम विप्लव…इस क्रांति के पीछे रहो। तुम अभी बारह साल के हो…बहुत बड़ी उम्र है तुम्हारे पास।’’

‘‘वे मुझे इसी उम्र पर रोके रखना चाहते हैं। वे मुझे इस उम्र से आगे बढ़ने नहीं देंगे।’’

‘‘स्तोम्पी! तुम अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ी बात कर रहे हो।’’ पिता चीखा था।

‘‘अत्याचार और अन्याय सहने वालों की उम्र हमेशा बराबर होती है।’’ स्तोम्पी ने बुजुर्गो की तरह चीखकर कहा था–‘‘मैं ज़्यादा नहीं जानता, पर जब आप मां को मारते हैं तो मैं जानता हूँ वह मार कहाँ से आती है…’’

और यही वह रात थी जो अँधेरी और डरावनी थी जब विजिलांते टीम के बूट रेत या धूल के कार्पेट पर सप्-सप् कर रहे थे और कभी-कभी मेंढ़कनुमा बैठे हुए छोटे-छोटे पत्थरों से टकरा जाते थे।

मेंढ़कों की तरह ज़मीन पर बैठे हुए यह पत्थर रात में कैसे उड़ने लगे थे, यह रहस्य विजिलांते के गश्ती दस्तों की समझ में नहीं आया था।

स्तोम्मी तो तब मिरियम मकेबा का गीत सुन रहा था…तभी एक आदमी दौड़ता आया था और उसने कॉफे के मालिक से हाँफते हुए कहा था–‘‘बत्ती बुझा दो…वे आ रहे हैं!’’ कॉफे की बत्ती फौरन गुल हो गई थी और उसे अँधेरे में कुछ लोग इधर-उधर निकल गए थे। ज्यूक बॉक्स से थोड़ी-सी हलकी रोशनी आ रही थी। आखिर वह रोशनी भी बंद कर दी गई और गीत की आवाज़ भी एकाएक बीच में टूट गई।

स्तोम्पी की समझ में कुछ नहीं आया कि वह क्या करे। अँधेरे में पड़ी एक बेंच पर वह बैठ गया था। तभी विजिलांते का एक दस्ता आया था…

उनके हाथों में खदानों की टार्चे थीं और वे कॉफे में लोगों को ऐसे तलाश रहे थे जैसे खदान में केकड़ों को तलाश रहे हों। अपनी जल्दबाज़ी में उन्होंने बाहर बैठे स्तोम्पी को नहीं देखा था। लेकिन कॉफे का मालिक उन्हें मिल गया था। यही बहुत था। उन्होंने कॉफे के मालिक को बुरी तरह पीटा था…बिजली के तार काट दिए थे, सारे बर्तन फोड़ दिए थे और ज्यूकबॉक्स तोड़ दिया था।

जब वे लौट रहे थे तो एक उड़ता हुआ पत्थर आया था…फिर बहुत-से पत्थर उड़ते हुए आए थे और कैडिट थ्री-ज़ीरो-वन की कनपटी से खून बहने लगा था। आँखें सूज गई थीं।

उनके पास जानकारियाँ थीं…कैडिट थ्री-वन को चौकी पर जमा करके वे स्तोम्पी के घर पहुँचे थे। उन्होंने बूटों से दस्तक देकर उसके पिता और माँ को जगाया था। छोटा भाई अँधेरे में दुबक गया था। एक ने आगे बढ़कर कहा था :

‘‘स्तोम्पी को बाहर निकालो!’’

खदान की टार्च हाथ में देखकर उसका पिता तो पहले यही समझा था कि ठेकेदार आया है…लेकिन इस वक्त तो वह कभी नहीं आता। पिता समझ गया था।

‘‘स्तोम्पी तो घर में नहीं है! वह खाने के वक्त भी नहीं था। पता नहीं कब कहाँ भाग जाता है…एकदम आवारा हो गया है।’’

‘‘वो आवारा ही नहीं, खतरनाक हो गया है…उसने डेढ़ हज़ार बच्चों को पत्थर मारना सिखाया है।’’ विजिलांते का मुखिया चीखा था।

‘‘यह तो वह बचपन से करता था।’’ पीछे खड़ी माँ ने दबी आवाज़ में कहा था–‘‘बचपन में वह मेंढकों को पत्थर मारा करता था…तब भी वो बहुत शैतान था…’’

‘‘अब वो पूरा शैतान हो गया…डेविल! वो जब भी घर आए, हमारे हवाले कर दिया जाए। तुम रोज़ चौकी पर आकर हाज़िरी दिया करो…शाम होते ही!’’

आदेश देकर विजिलांते लौट गए थे।

लेकिन उस दिन से स्तोम्पी घर नहीं लौटा। माँ कभी-कभी रोती थी–‘‘उसे माँ की याद भी नहीं आती….सौतेला पिता भी पछताता था–वो कभी छुपकर मुझसे मिलने ही चला आता…’’

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वही हुआ जो ऐसे में होता है। वह रात भी अँधेरी थी। विजिलांते के बूटों की आवाज़ से दहशत और बढ़ गई थी…फिर चर्च की झोंपड़ी के पीछे गोलियाँ चली थीं। काला पादरी घबराकर बाहर आया था। तुमाहोल की बस्ती को साँप सूँघ गया था।

बुरी तरह से घायल स्तोम्पी खून की मटमैली चादर पर तड़प रहा था।

डर से थरथर काँपती चर्च की बुढ़िया टीचर एक मोमबत्ती थामे पास आई थी और उसे देखते ही डरी आवाज़ में चीख पड़ी थी–‘‘यह तो स्तोम्पी है! इस बच्चे को उन्होंने क्यों मार डाला!’’

पादरी के चेहरे पर पूजा की उदासी थी।

बुढ़िया टीचर ने तब उसके पास बैठते हुए पादरी से कहा था–‘‘स्तोम्पी के घर वालों को खबर कर दो…यह सिर्फ पाँच-सात मिनट का मेहमान है…’’

‘‘नहीं! किसी को खबर मत करो…’’ कराहते हुए स्तोम्पी बोला था। तब तक पादरी पवित्र चल ले आया था।

‘‘खबर करना तो ज़रूरी है…’’ पादरी बोला था।

‘‘नहीं!’’ टूटती आवाज़ में स्तोम्पी ने कहा था–‘‘मेरी माँ सुनेगी तो रोएगी…उसे मत बताना कि मैं मारा गया हूँ। उससे यही कहना कि मैं…मैं डिटेंशन में हूँ…मुझे विजिलांते ने पकड़ लिया है…’’

‘‘माइ सन…’’ पादरी की आँखों में आँसू थे।

‘‘मुझे चुपचाप यहीं कहीं दफना देना…मगर मेरी माँ…मेरे पिता को मत बताना…उन्हें यही बताना–मैं डिटेंशन में हूँ…तब वे रोएँगे नहीं, मेरा इंतज़ार करेंगे…’’

‘‘यस माई सन! जीसस क्राइस्ट ने भी यही कहा है–मैं मनुष्य का शरीर धारण करके फिर धरती पर जाऊँगा…मेरा इंतज़ार करना…’’

‘‘मुझे जीसस क्राइस्ट का इंतज़ार नहीं है फादर…’’ कहते-कहते स्तोम्पी की आँखें पथरा गई थीं।

बुढ़िया टीचर ने मोमबत्ती की काँपती लौ में और पास जाकर देखा…और कसमसाकर वहीं बैठ गई।

काले पादरी ने अँधेरे में ही क्रास बनाया।

रक्त की चादर पर स्तोम्पी पड़ा था।

उसकी पलकें बंद करने से पहले पादरी ने एक बार उसकी आँखों में देखा…तो बुढ़िया टीचर ने मोमबत्ती और पास कर दी। फिर उसने धीरे से बुदबुदा कर पूछा–‘‘इसे किसका इंतज़ार था?’’

‘‘पता नहीं!’’

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

20 जुलाई 2022
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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

20 जुलाई 2022
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

20 जुलाई 2022
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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

20 जुलाई 2022
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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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