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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022

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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन में आ गया था।

विन्ध्यवासिनी ने उसे काणभूति के दर्शन करने का आदेश दिया। उसके साथ ही गुणाढ्य को भी पूर्वजन्म का स्मरण हो आया और वह काणभूति के पास आकर बोला, पुष्पदन्त ने जो बृहत्कथा तुम्हें सुनायी है, उसे मुझे भी सुना दो, जिससे मैं भी इस शाप से मुक्त होऊँ और तुम भी।

उसकी बात सुनकर काणभूति ने प्रसन्न होकर कहा, मैं तुम्हें बृहत्कथा तो अवश्य सुनाऊँगा पर पहले मैं तुम्हारे इस जन्म के वृत्तान्त को सुनना चाहता हूँ। काणभूति के अनुरोध पर गुणाढ्य ने अपनी कथा सुनायी, जो इस प्रकार थी -

प्रतिष्ठान प्रदेश में सुप्रतिष्ठित नाम का नगर है। वहाँ सोमशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहा करता था। उसके वत्स और गुल्म नामक दो पुत्र तथा श्रुतार्था नाम की एक कन्या थी। कालक्रम से सोमशर्मा और उसकी पत्नी दोनों का निधन हो गया। वत्स तथा गुल्म अपनी छोटी बहन का लालन पालन करते रहे। एक बार उन्हें पता चला कि उनकी बहन गर्भवती है। पूछने पर श्रुतार्था ने बताया कि नागराज वासुकि के भाई कीर्तिसेन ने एक बार उसे स्नान के लिए जाते देखा था और उन्होंने उसके ऊपर मुग्ध होकर उससे गान्धर्व विवाह कर लिया था। दोनों भाइयों ने कहा, इसका क्या प्रमाण है? श्रुतार्था ने नागकुमार का स्मरण किया। तुरन्त नागकुमार वहाँ प्रकट हो गया। उसने दोनों भाइयों से कहा, तुम्हारी यह बहन शापभ्रष्ट अप्सरा है और मैंने इससे विवाह किया है। इससे पुत्र उत्पन्न होगा, तब तुम दोनों की और इसकी शाप से मुक्ति हो जाएगी।

समय आने पर श्रुतार्था को पुत्र की प्राप्ति हुई। मैं (गुणाढ्य) वही पुत्र हूँ। मेरे जन्म के कुछ समय पश्चात् ही शाप से मुक्त हो जाने के कारण मेरी माता और फिर मेरे दोनों मामा भी चल बसे। मैं बच्चा ही था। फिर भी किसी तरह अपने शोक से उबरकर मैं विद्या की प्राप्ति के लिए दक्षिण की ओर चल दिया। दक्षिणापथ में रहकर मैंने सारी विद्याएँ प्राप्त कीं।

बहुत समय के बाद अपने शिष्यों के साथ उस सुप्रतिष्ठित नगर में लौटा तो मेरे गुणों के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हुई। राजा सातवाहन ने मुझे अपनी सभा में आमन्त्रित किया। मैं अपनी शिष्य मण्डली के साथ वहाँ गया। वहाँ भी मेरी बड़ी आवभगत हुई। राजा ने अपने मन्त्रियों से मेरी प्रशंसा सुनी तो उसने प्रसन्न होकर मुझे अपना एक मन्त्री नियुक्त कर दिया। वसन्त का समय था। राजा सातवाहन अपनी सुन्दर रानियों के साथ राजमहल की वापी (बावड़ी) में जलक्रीड़ा कर रहे थे। जिस तरह जल में उतरे श्रेष्ठ और मतवाले हाथी पर उसकी प्रेयसी हथिनियाँ अपनी सूँडों में जलभर कर पानी की फुहारें छोड़ती हैं, वैसे ही वे रानियाँ राजा के ऊपर पानी छींट रही थीं और राजा भी प्रसन्न होकर उन पर पानी के छींटे उछाल रहा था। एक रानी ने बार-बार अपने ऊपर पानी के तेज छींटे पड़ने से परेशान होकर राजा से कहा, मोदकैस्ताडय।

राजा ने इस संस्कृत वाक्य का अर्थ समझा कि मुझे मोदकों (लड्डुओं) से मारो और उसने तुरन्त अपने सेवकों को ढेर सारे लड्डू लाने का आदेश दिया। यह देख वह रानी हँस पड़ी और बोली, हे राजन्, यहाँ जलक्रीड़ा के समय लड्डुओं का क्या काम। मैंने तो यह कहा था कि मुझे उदक से मत मारो। आपको तो संस्कृत व्याकरण के सन्धि के नियम भी नहीं आते हैं, न आप किसी वाक्य का प्रकरण के अनुसार अर्थ ही लगा पाते हैं। वह रानी व्याकरण की पण्डित थी। उसने राजा को ऐसी ही खरी-खोटी सुना दी और बाकी लोग मुँह छिपाकर हँसने लगे। राजा तो लाज से गड़ गया। वह जल से चुपचाप बाहर निकला। तब से वह न किसी से बोले, न हँसे। उसने तय कर लिया कि या तो पाण्डित्य प्राप्त कर लूँगा या मर जाऊँगा। उस दिन राजा न किसी से मिला, न भोजन किया, न सोया। मन्त्री शर्ववर्मा ने मुझे बताया, महाराज की रानियों में वह जो विष्णु-शक्ति की बेटी है, वह बड़ी पण्डिता बनी फिरती है। उसने हमारे महाराज का अपमान कर दिया है। वैसे व्याकरण पढ़ने की और पण्डित बनने की तो उनकी इच्छा बहुत समय से है, अब रानी की बात और लग गयी है। अगले दिन मैं और शर्ववर्मा राजा से मिलने गये। राजा के सामने हम कुछ देर तक बैठे रहे। राजा कुछ भी न बोला।

मैंने पूछा, महाराज क्या बात है, अकारण आप उदास क्यों दिख रहे हैं? तब भी राजा ने कुछ उत्तर न दिया। तब शर्ववर्मा ने राजा को किस्सा सुनाते हुए कहा, महाराज, आज मैंने सपने में देखा कि एक कमल आकाश से गिरा, उसके साथ कोई देवकुमार प्रकट हुआ, उसने कमल को खिला दिया, कमल के खिलते ही उसमें से श्वेतवस्त्रधारिणी एक देवी निकली और वह सीधे आपके मुख में चली गयी। इतना देखा और मैं जाग गया। महाराज, अब मैं समझ गया। वह देवी वास्तव में सरस्वती थी, और उसने आपके मुख में वास करना आरम्भ कर दिया था - इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। शर्ववर्मा की गप्प सुनकर राजा थोड़ा-सा मुस्कराया। फिर बोला, मैं मूर्ख हूँ। विद्या के बिना मुझे यह लक्ष्मी अब बिलकुल भी नहीं भाती। तुम लोग बताओ कि कोई व्यक्ति परिश्रम करे, तो कितने समय में व्याकरण सीख सकता है? मैंने कहा, राजन्, व्याकरण तो सभी विद्याओं का दर्पण है। नियम है कि बारह वर्ष तक व्याकरण का अध्ययन नियमित करना चाहिए, तभी व्याकरण आता है।

पर मैं आपको छह वर्ष में व्याकरण का ज्ञान करा दूँगा। यह सुनते ही शर्ववर्मा डाह के साथ बोल पड़ा, हे महाराज, मैं आपको छह महीने में व्याकरण का ज्ञान करा दूँगा। मैंने कहा, राजन्, यह तो असम्भव है। यदि शर्ववर्मा छह महीने में आपको व्याकरण सिखा दे, तो मैं संस्कृत, प्राकृत और देशी भाषा तीनों का त्याग कर दूँगा। शर्ववर्मा बोला, और मैं ऐसा न कर पाया, तो बारह वर्ष तक तुम्हारी पादुकाएँ माथे पर धारण करूँगा। स्वामी कुमार की कृपा से प्राप्त कातन्त्र व्याकरण के सहारे शर्ववर्मा ने राजा को छह महीने में विद्याओं में पारंगत बना दिया। सारे राष्ट्र में उत्सव मनाया गया। घर-घर पर पताकाएँ फहरा रही थीं। राजा ने अपार धन-सम्पदा देकर शर्ववर्मा की पूजा की और उसे नर्मदा के तट पर भृगुकच्छ (भड़ौच) देश का राजा बना दिया। विष्णुशक्ति की पुत्री जिस रानी के कहने पर राजा को विद्याभ्यास की लगन लगी थी, उसे राजा ने अपनी पटरानी बना लिया। मैंने भी तीनों भाषाएँ छोड़कर मौन धारण कर लिया और फिर विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने निकल पड़ा।

देवी विन्ध्यवासिनी के कहने पर ही मैं तुमसे मिलने आया हूँ। विन्ध्य के वन में रहकर वहाँ के पुलिन्दों से मैंने यह पिशाच भाषा सीखी है, जिसमें मैं अब बोल रहा हूँ। अब तुम मुझे बृहत्कथा सुनाओ, जिसे मैं इसी पैशाची भाषा में लिखूँगा। उसके बाद मेरी शापमुक्ति हो जाएगी। गुणाढ्य के द्वारा इस प्रकार अपनी कथा सुनाने पर काणभूति ने भी उसे वररुचि से सुनी हुई बृहत्कथा सुनायी। गुणाढ्य ने उस बृहत्कथा को सात वर्षों में सात लाख छन्दों में पैशाची (प्राकृत) में लिखा। उस घोर वन में स्याही न मिलने के कारण मनस्वी गुणाढ्य ने अपने रक्त से ही वह विशाल कथा लिख डाली। लिखते-लिखते जब वह अपनी कथा पढ़ने लगता, तो सुनने के लिए सिद्ध विद्याधरों का जमघट आकाश में लग जाता। इस प्रकार गुणाढ्य की पूरी कथा लिखी गयी, उस महाकथा को काणभूति ने सुना और गुणाढ्यकृत बृहत्कथाग्रन्थ को देखा।

सुनकर और देखकर वह शाप से मुक्त हो गया। उसके साथ रहने वाले पिशाच भी उस कथा को सुनकर दिव्यलोक में पहुँच गये। अब गुणाढ्य ने सोचा-देवी पार्वती ने मेरी शापमुक्ति का उपाय बताते हुए कहा था कि मुझे इस कथा का प्रचार करना होगा। तो मैं इसके प्रचार के लिए क्या करूँ, इसे किसको अर्पित करूँ? गुणदेव और नन्दिदेव ये दो शिष्य गुणाढ्य के साथ थे। वे उससे बोले, इस महान काव्य को अर्पित करने के लिए राजा सातवाहन से बढ़कर और दूसरा उचित पात्र कौन हो सकता है। जैसे वायु एक झकोरे में फूल की सुगन्ध को दूर-दूर तक फैला देता है, ऐसे ही वे इस कथा का प्रसार करेंगे। गुणाढ्य को भी यह सुझाव पसन्द आया।

वह अपने शिष्यों को लेकर प्रतिष्ठानपुर की ओर चल पड़ा। नगर में पहुँचकर गुणाढ्य तो नगर के बाहर एक बगीचे में टिक गया और अपने शिष्यों को राजा के पास भेजा। शिष्यों ने राजा सातवाहन को बृहत्कथा की पुस्तक बताते हुए कहा कि यह गुणाढ्य की कृति है। राजा ने उस पुस्तक का वृत्तान्त सुनकर कहा, एक तो सात लाख श्लोकों में इतना लम्बा यह पोथा है, तिस पर नीरस पिशाच भाषा में लिखा हुआ और लिखावट मनुष्य के रक्त से की गयी है। धिक्कार है ऐसी कथा को। दोनों शिष्य चुपचाप पुस्तक उठाकर गुणाढ्य के पास लौट आये और अपने गुरु को राजा के व्यवहार की बात जस की तस बता दी। यह सब सुनकर गुणाढ्य बहुत खिन्न हुआ। वह उस बगीचे के पास ही एक ऊँची चट्टान पर बैठ गया तथा चट्टान के नीचे उसने एक अग्निकुण्ड बनवाया। जब अग्निकुण्ड में आग दहकने लगी।

तो गुणाढ्य ने अपनी बृहत्कथा पढ़ना आरम्भ किया। शिष्य आँखों में आँसू भरकर यह दृश्य देखते रहे। गुणाढ्य आसपास के वन में रहने वाले मृगों और पशु-पक्षियों को कथा सुनाते हुए एक-एक पन्ना आग में झोंकने लगा। वह कथा सुनाता जाता और सुनाये हुए भाग के पन्ने एक-एक कर जलाता जाता। वन के पशुओं और पक्षियों ने आहार त्याग दिया। वे गुणाढ्य के आस-पास स्तब्ध होकर आँखों में आँसू भर कर बृहत्कथा सुनते रहे। इस बीच राजा सातवाहन अस्वस्थ हो गया। वैद्यों ने परीक्षा करके बताया, सूखा मांस खाने से राजा को रोग लग गया है। पाकशाला के रसोइयों को बुलाकर डाँटा गया, तो उन्होंने कहा, इसमें हमारा क्या दोष? बहेलियों से जैसा मांस हमें मिलता है,

वैसा हम पकाते हैं। बहेलियों को बुलाकर पूछा गया, तो उन्होंने बताया, नगर के पास ही पहाड़ की चोटी पर एक ब्राह्मण बैठा हुआ है। वह पोथी का एक-एक पन्ना पढ़ता जाता है और आग में फेंकता जाता है। वन के सारे प्राणी इकट्ठे होकर निराहार रहकर उसकी कथा को सुन रहे हैं। इसलिए उनका मांस ऐसा हो गया है। राजा को इस बात का पता चला, तो उसे बड़ा कौतूहल हुआ। वह उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ गुणाढ्य अपनी कथा सुना रहा था। इतने समय से वन में रहने के कारण गुणाढ्य की देह पर जटाएँ बढ़कर लटक आयी थीं, मानो कुछ शेष बचे शाप के धुएँ की लकीरों ने उसे घेर रखा हो। आँसू बहाते शान्त बैठे पशुओं और पक्षियों के बीच गुणाढ्य कथा पढ़ रहा था।

राजा ने उसे पहचाना, प्रणाम किया और सारा वृत्तान्त पूछा। यह जानकर कि गुणाढ्य वास्तव में शिव के गण माल्यवान का अवतार है, राजा उसके चरणों पर गिर पड़ा और शिव के मुख से निकली उस दिव्य कथा को माँगने लगा। गुणाढ्य ने कहा, राजन्, एक-एक लाख श्लोकों के सात खण्डों वाले इस ग्रन्थ के छह लाख श्लोक मैं जला चुका। एक लाख श्लोकों का यह अन्तिम सातवाँ खण्ड बचा है, जिसमें राजा नरवाहनदत्त की कथा है। इसे ले जाओ। यह कहकर बृहत्कथा का शेष भाग राजा सातवाहन को सौंपकर गुणाढ्य ने उससे और अपने शिष्यों से विदा ली और योग से अपना देह त्यागकर शापमुक्त होकर पूर्वपद को प्राप्त किया। राजा सातवाहन बृहत्कथा की बची हुई पोथी लेकर नगर आया। उसने गुणाढ्य के शिष्यों गुणदेव और नन्दिदेव का मान-सम्मान करके उनकी सहायता से बृहत्कथा का अपनी भाषा में अनुवाद कराया और इस कथापीठ की रचना की। फिर तो यह कथा प्रतिष्ठानपुर में और उसके पश्चात् सारे भूमण्डल में प्रसिद्ध होती चली गयी।

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

20 जुलाई 2022
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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

20 जुलाई 2022
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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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