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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022

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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वही चिर पहचाने चेहरे ...वही मस्ती और दिखावटी लापरवाही, जो नुमायश में घूमते वक़्त लोगों पर आ जाती है। उसे खूब देख चुका हूँ; देखते-देखते अभ्यस्त हो गया हूँ। सब कुछ साधारण हो गया है। इस नुमायशी जिन्दगी में कोई उतार चढ़ाव नहीं दीखता, सो जाकर सीधा एक पुस्तक-भण्डार पर खड़ा हो गया। मित्र कुछ अँगरेजी की पुस्तकें उलटने-पलटने लगे। मैंने सामने रखी एक पत्रिका उठा ली, उसे खोलने ही जा रहा था कि मित्र ने फुसफुसाकर कहा, “वाह-वाह, क्‍या चीज़ है!”

मैंने उनकी पसन्द-भरी आँखों की ओर देखा, तो जैसे पानी को दिशा मिल जाती है, वैसे ही मेरी दृष्टि अनायास उधर घूम गई, जिधर वह देख रहा था। यह एक कलेण्डर था, जिसमें दो स्वस्थ बच्चे, रुई सा सफेद कबतूर पकड़े थे। मन आपसे-आप खिल उठा। उन बच्चों की सारी मासूमियत और कोमलता जैसे हृदय में उतर गई। लगता था अभी यह लड़का अपने दोनों हाथों को झटका देकर कबूतर को आकाश की ओर छोड़ देगा। फिर दोनों-लड़का और लड़की-खिलखिला कर हँस उठेंगे। और तब इनकी आँखें और भी छोटी हो जाएँगी। गालों पर लाली दौड़ जाएगी। “वी लव पीस,” मित्र बड़बड़ाया। ध्यान भंग हो गया। तसवीर के नीचे दृष्टि रुकी। उन अक्षरों पर पड़ी जो मित्र ने पढ़े थे-“हमें शान्ति प्यारी है।' मेरा मन फिर भटक गया। शान्ति की बातें भी बहुत नई नहीं रह गई थीं। तस्वीर में एक अजीब-सी ताजगी जरूर थी।

मैंने जो पत्रिका उठाई थी, उसे देखने लगा। ऊपर किसी वनखण्ड का सुरम्य दृश्य छपा था। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर। और पलटा, गदराई फसलों की झूमती हुई बालियों की तसवीरें थीं। फिर कुछ सुख-बिलास की वस्तुओं के चित्र और उनके विज्ञापन। आगे कुछ आलीशान इमारतों के फोटो और उसके बाद युद्धस्थल की भयंकर तस्वीरें ! बारूद के उठते हुए गुबार, चील की तरह उड़ते हुए हवाई जहाज, धराशायी इमारतें, उजड़े हुए खेत, जिनमें सैनिक संगीनें आगे किए फसल रौंदते बढ़े जा रहे थे। वे भी अच्छे नहीं लगे पत्रिका बन्द कर दी। अन्तिम कवर का दृश्य फिर सामने था-युद्ध का महाभयंकर दृश्य। तबीयत अकुला उठी। सैनिकों की लाशों के ढेर, कटे हुए हाथ और टाँगें ! धरती की सतह से पृष्ठभूमि में उठता हुआ धुएँ का समुद्र | जैसे धरती के नीचे दबे किसी सुप्त जवालामुखी ने मुँह खोल दिया हो, अभी धुआँ है फिर लावा बह निकलेगा और...और इस बची हुई कुचली-त्रस्त घास और कटे-पंगु शरीर को भी ढक लेगा !

मित्र ने कहा, “चलो।"

मैं चल दिया।

नुमायश से कुछ तो खरीदना चाहिए, इसीलिए उसने औरों की देखा-देखी एक बहुत बड़ा -गुब्बारा ख़रीदकर मेरे हाथ में थमा दिया था। मुझे हँसी आ गई कि क्या खरीदारी का दिखावा जरूरी था ? वह अपनी साइकिल पर चढ़कर चला गया। गुब्बारा मेरे पास ही रह गया।

टहलता हुआ घर पहुँचा तो रात काफी जा चुकी थी। विचारों का कोई मजबूत सिलसिला नहीं था। जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस गुब्बारे को ही सीने पर रखकर उँगलियों से धीरे-धीरे बजाकर तुप...तुप की आवाज पैदा करता रहा। गुब्बारे से कुछ हलकी बदबू आ रही थी,

जैसे कोई विषैली गैस।

धीरे-धीरे मैं उस तुप...तुप की आवाज़ में डूबता गया। एक अजीब मधुर संगीत था उसमें । बस केवल संगीत रह गया--और मैंने देखा, एक टिन के खाली डिब्बे पर दो नन्‍हें-नन्‍हें हाथ थापें दे रहे थे। वह मेरे पड़ोस की बेबी थी। अपनी गुदारी हथेलियों से उस डिब्बे को बजा रही थी। अनोखा समाँ बाँध रखा था उसने। बड़ी मौज में बजाए जा रही थी, तभी रानी आकर उससे बोली, “बुलउआ तो दे आई।”

अपनी ढोलक बजाना छोड़ बेबी बोली, “तब तो मेहमान आते होंगे, मेरी गुड़िया नहायी भी नहीं।”

रानी बोली, “नहीं, पहले घर की सफाई कर लो!”

बेबी ने परेशानी दिखाते हुए कहा, “तुम्हें क्या, तुम लड़के वाली बन कर बैठ गई, हमें हज़ार काम हैं, लड़की का ब्याह है, घर की सफाई-दावत...सभी तो अकेले करना है।” और इतना कहकर चप्पल वाले दफ़्ती के डिब्बे से गुड़िया की साड़ी निकालने लगी। एक रेशमी कतरन दिखाते हुए बोली, “ये गुड़िया की बनारसी साड़ी, है, सितारेदार।”

“मैंने तो गुड्डे के कपड़े दिल्ली से मँगवाए हैं ।” रानी ने शान दिखाते हुए कहा।

“बहुत-कुछ,” बेबी डींग सुनकर बड़बड़ाई, “राधा अम्मा की गठरी में से चुराए हैं। हमने देखा था।” और बेबी ने रानी की तरफ मुँह बिचका दिया।

“हमने तो माँगे थे, तू चोट्टिन है, तूने राधा की पेन्सिल चुराई थी...चोट्टिन...चोट्टिन ।” रानी ने बेबी की पोल खोलते हुए ताली बजाकर कहा।

बेबी ने तैश में आकर रानी के कपड़ों का डिब्बा फेंक दिया, झल्लाकर बोली, “हम नहीं खेलते, तू चोर...गुड्डा चोर...गुड्डे के घर वाले चोर।”

रानी ने कपड़े बटोरते हुए समझदारी से कहा, “ऐसे हम नहीं खेलते।”

...फिर न जाने क्या, जैसे जल में पड़ती परछाइयाँ हिलकर मिट गई हों। कुछ हलचल। अजीब-सा शोर, जिसमें वे स्वर डूब गए थे, दृश्य धुंधले पड़ने लगे। कुहरा-सा छाने लगा। उस कूहरे के बीच से सिर्फ़ रानी का मुख दिखाई दिया। वह कह रही थी, “बेबी, खेलो न !”

“सच्ची-सच्ची बोलो तो खेलूँगी...हूँ...” बेबी ने उठाया हुआ सामान जमीन पर रखते हुए कहा।

“अच्छा भाई, सच्ची-सच्ची गुड्डे के कपड़े दिल्ली से नहीं, यहीं से ख़रीदे थे, बस !” रानी ने समझौता कर लिया।

दोनों दफ़्ती के बनाए घरों के पास बैठ गईं। एक दूसरे के सहारे खड़े थे दोनों के घर। बस, दोनों की सीमाएँ नीम की सींकें रखकर अलग कर ली गई थीं। रानी के घर की चौखट से लगा गुड्डा खड़ा था, पर बेबी की गुड़िया शरम के मारे घर के भीतर बैठी थी। दियलियों का बना तराजू एक ओर रखा था और पालकी मकान के पीछे पड़ी थी। रानी के घर के सामने टीन की मोटर बारात के लिए तैयार थी।

“बहू, जरा खाना देख लेतीं।” बेबी खुद बोली और स्वयं ही जवाब भी दे दिया, “अच्छा भाई आयी, फुरसत मिले तब तो, एक काम हो ।” फिर रानी के घर सब तैयारी देखकर बोली, “रानी, धीरे-धीरे करो भाई, तुम तो जल्दी मचाए हो।”

“अरे अभी बारात चल थोड़े ही रही है।” रानी ने कहा।

“हमने नहाया तक नहीं, चलो नहा लें।” बेबी ने कहा और थोड़ा खिसक कर बैठ गई।

दोनों नहाने लगीं। सिर पर हाथ ले जाकर गुदगुदी-सी बाँह मुड़ी और कलाई मुड़ते ही मुट्ठी से पानी गिर गया...शू...शू की आवाज़...और दोनों हाथ-पैर रगड़ने लगीं। नहाना ख़त्म हुआ तो कपड़े बदले। पैर तक दोनों हाथ गए, फिर कमर पर आकर हवा में गाँठ लगाई। कन्धे पर इधर-उधर हाथ चलाकर दुपट्टा डाला और दोनों तैयार हो गईं। अब रानी का गुड्डा तैयार था। बेबी की गुड़िया भी तैयार थी। पर बेबी खाना बनाने में लगी थी। मिट्टी की पूरी, कचौरी, लड्डू और बरफी।

रानी के घर बैण्ड बज उठा। रानी मुँह में कागज की तुरही लगाए आवाज करती जा रही थी। बीच-बीच में झूमती हुई बोलती, “कुड़म-कुडुम की झइयम-झइयम...” और बेबी भी अपने घर बैठी मुस्करा-मुस्करा कर दूल्हे के घर के बाजों की आवाज़ पर मटकती जा रही थी।

पर बाजों की आवाज एकदम तेज हो गई...गड़गड़ाहट में बदल गई...घोर गर्जन। विषैली-सी महक उड़ने लगी और धुएँ के गहरे बादल चारों तरफ उभरने लगे। हवाई जहाजों की गन्‍नाहट और भगदड़ का मिला-जुला शोर। दूर खड़ी फसलों को रौंदकर बढ़ते हुए खूँखार सिपाहियों के दस्ते...बरदीधारी...मारी बूट और बन्दूकों में लगी संगीनें। क्षण-भर में ही वे सारे सिपाही अपनी लाल-लाल आँखें चमकाते, नथुने फड़काते एकाकार हो गए। वह सिर्फ एक सैनिक था। दैत्य की तरह ! जमीन पर टैंकों की तरह बड़े-बड़े पैर गड़ाए आसमान तक की ऊँचाई में खड़ा था। उसकी आँखों में ज्वालामुखी थे, नथुनों से विषैले धुएँ के गुब्बार निकल रहे थे। फिर वह चला और आगे बढ़ते-बढ़ते उसका आकार छोटा होता गया, वह सादा-सा आदमी रह गया। अरे, यह तो जैकब साहब का लड़का था। वह कमर पर हाथ रखे बहुत तेज नजरों से इधर-उधर पेड़ की शाख्रों को देख रहा था। जिधर किसी पक्षी के उड़ने की सरसराहट सुनाई पड़ती, उधर ही उसकी नज़र घूम जाती। इस पेड़ से उस पेड़, जैसे कोई पक्षी खो गया हो। आखिर उसकी दृष्टि कोठी के रोशनदान और कार्निस की मेड़ के बीच बैठे एक जंगली कबूतर पर पड़ी। बहुत तेज नजरों से उसने उसे देखा। रानी और बेबी भी सकपकायी-सी उसे देख रही थीं। उसने अपनी चौड़ी पेटी को थोड़ा कमर पर कसा और कोठी के भीतर चला गया।

रानी ने एक सन्देह-भरी दृष्टि बेबी की ओर डाली। बेबी ने जैसे सब कुछ समझते हर चुपचाप ख़ामोश नजरों से उत्तर दे दिया। दोनों की दृष्टि कार्निस की मेड़ और रोशनदान बीच बैठे उस जंगली कबूतर पर टिक गई जो बैठा सुस्ता रहा धा-सिलेटी-सा नरम पंखदार पक्षी, रेशम-से पंख, सेमल की रुई-से नरम और चिकने। बेबी और रानी असमंजस-भरी दृष्टि से ताकती रहीं। वह कबूतर आँखें बन्द कर लेता तो ज्वार के दाने की तरह सफेदी चमक उठतीं।

दोनों ने उधर ताका जिधर कोठी में वह आदमी घुस गया था। वहाँ कोई नहीं था। उन्होंने फिर अपना खेल शुरू कर दिया। रानी ने टीन की कार में गुड्डे को बैठाया। घुर्र-घुर्र की आवाज के बाद कार चल पड़ी। बेबी और रानी दोनों, मुँह से कागज की फुकनियाँ बजा रही थीं। इधर-उधर घुमाकर कार गुड़िया के दरवाज़े पर खड़ी कर दी गई। रौनक छा गई। फूल बरसाए गए। बाजे बजे। आखिर नीशा को कार से उतारकर लड़की के दरवाजे पर बिछी दियासलाई की खाट पर बैठा दिया गया। क्षण-भर में भाँवरें पड़ीं। ढोलक बजी। रानी ने जल्दी मचाई। बोली, “भाई जल्दी करो, नहीं तो गाड़ी छूट जाएगी।”

बेबी बनारसी साड़ी तह कर रही थी। पालकी बाहर आ गई। रानी ने उस पर रेशमी ओढ़नी डाल दी। काफी फुरती से तैयारी हो रही थी। दूल्हा बाहर दियासलाई के पलंग पर दीवार से टेक लगाए खड़ा था।

तभी उधर बूटों की आवाज हुई। आहट सुनकर रानी सतर्क हो गई। उन्होंने कबूतर की तरफ देखा। रानी बोली, “ढेला मार दो।”

“हाँ-हाँ, मार दो, जल्दी से,” बेबी ने खड़े होते हुए फुरती से कहा, “बहुत जल्दी, जल्दी...” और रानी ने अपनी बाँह पीछे करके एक ढेला कबूतर की तरफ फेंका। जैकब साहब का लड़का निशाना लगा रहा था। वह कंकड़ रोशनदान की लकड़ी पर भट्‌ से लगा। कबूतर ने गरदन घुमाई और हलकी सरसराहट के साथ उड़ चला।

रानी और बेबी कूदती हुई तालियाँ बजा-बजाकर शोर मचा रही थीं, “कित्ता अच्छा हुआ...हो...हो ।” उनकी तालियों में अजीब-सा संगीत था। उनके थिरकते पैरों में अनोखी लय थी।

इधर जैकब साहब का लड़का आग्नेय नेत्रों से इनको ताक रहा था। गुस्से से उसकी आँखों में आग-सी दहक उठी, नथुने फूल उठे। उसने जलती आँखों से दोनों को देखा। वे हँस रही थीं। शोर मचा रही थीं। तालियाँ पीटे जा रही थीं। खामोश करने के लिए उसने अपनी राइफिल से उधर ऊपर की ओर हवाई फायर कर दिया। रानी और बेबी सहमीं, दोनों ने एक दूसरे की बाँहें भींच लीं तो जैसे साहस आ गया, अपार साहस !

धड़ाके की गूँज हुई और सब-कुछ बदल गया। जैकब का लड़का खो गया था। एक क्षण को वही राक्षसी रूप उभरा...धुएँ के बादल उमड़े और सब शान्त हो गया...चारों ओर से हँसी की हल्की खिलखिलाहट की आवाज आ रही थी।

मेरी साँस की रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई थी। नाक में विषैली गैस की महक भर रही थी।

क्षण-भर बाद ही चौंककर मेरी आँखें खुल गईं। देखा, वह बड़ा-सा गुब्बारा फूट गया था, उसकी खाल मेरे पंजे में थी और उसमें से बदबू आ रही थी। मुस्करा कर रह गया। सुबह काफी निखर आई थी।

“हाइड्रोजन बम पर प्रतिबन्ध की माँग! आज की ताजा ख़बर !”

चीख़ता हुआ अख़बार वाला नीचे सड़क से गुजर रहा था !

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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अदालती फ़ैसला

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अदालत में एक संगीन फ़ौजदारी मुकद्दमे के फ़ैसले का दिन। मुकद्दमा हत्या की कोशिश का था क्योंकि जिसे मारने की साजिश की गई थी वह गहरे जख्म खाकर भी अस्पताल की मुस्तैद देखभाल और इलाज की बदौलत जिन्दा बच गया

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हुआ यह कि भारत में विकास कार्यक्रम चल रहा था। एक सड़क निकाली गई जिसने घने जंगल को दो हिस्सों में बाँट दिया। उत्तरी हिस्से में शेर रह गए और दक्षिणी हिस्से में गीदड़ रह गए। तो एक दिन गीदड़ों के मुसाहिब

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आधी दुनिया

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जहाज छूटने में कुछ देर थी। जेटी के कगार पर बैठे हुए पक्षी अजनबियों की तरह इधर-उधर देख रहे थे। जैसे वे उड़ने के लिए कतई तैयार न हों। खौलते पानी के बुलबुलों की तरह उनमें से एक-दो धीरे-से कुदकते थे और फि

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इंतज़ार

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रात अँधेरी थी और डरावनी भी। झाड़ियों में से अँधेरा झर रहा था और पथरीली ज़मीन में जगह-जगह गढ़े हुए पत्थर मेंढ़कों की तरह बैठे हुए थे। बिजिलांते के बूटों की आवाज़ से दहशत और बढ़ जाती थी। हवा हमेशा की तर

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पहला मकान–यानी विमला का घर इस घर की ओर हर नौजवान की आँखें उठती हैं। घर के अन्दर चहारदीवारी है और उसके बाद है पटरी। फिर सड़क है, जिसे रोहतक रोड के नाम से जाना जाता है। अगर दिल्ली बस सर्विस की भाषा में

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क़सबे का आदमी

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सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य स

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कितने पाकिस्तान

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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

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गर्मियों के दिन

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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

20 जुलाई 2022
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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

20 जुलाई 2022
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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

20 जुलाई 2022
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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

20 जुलाई 2022
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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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