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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022

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घूँघटवाली बहू

बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की गन्दगी से जी घबरा गया। लौट आया। मन्दिर न्यास के सदस्य, एक पत्रकार मित्र योगेश ने कहा-भाई साहब! प्रसाद तो ग्रहण करते जाइए। मैंने घर पर मँगवा लिया है। बच्चों से भी मिल लीजिए।

हम घर पहुँचे। देसी घी की बड़ी पूड़ियों सहित इतना अधिक और इतनी तरह का प्रसाद था कि उसे ग्रहण कर सकना असम्भव था। निश्चय ही वह गिरधारी बाँके बिहारी जी का भोग होगा। प्रसाद प्राप्त किया। बच्चों से मिले। तभी लम्बा घूँघट काढ़े घर की बहू आई। उसने हम दोनों के पाँव छुए। हमने भरपूर दुआएँ दी। बहू गायत्री के पास बैठ गई। लम्बा घूँघट बदस्तूर कढ़ा हुआ था।

चलने लगे तो बहू ने फिर पैर छुए। रास्ते में प्रदीप ने बताया-भाई साहब! योगेश की बहू (पत्नी) वृन्दावन की नगर पार्षद है।

मैं चौंका-बहू। नगर पार्षद! वो घूँघटवाली बहू! क्या बात कर रहे हो!

-मैं ठीक कह रहा हूँ भाई साहब...अभी दो-तीन हफ्ते पहले ही तो चुनाव हुए हैं। बहू बहुत वोटों से जीती है।

अभी हम बाजार से होते हुए मुख्य सड़क की ओर जा रहे थे। प्रदीप ने कहा-वो देखिए भाई साहब!

दीवार पर प्रचार-पोस्टर चिपका था। घूँघट वाली बहू तेजस्वी मुद्रा में भाषण दे रही थी!

ताजमहल किसका है ?

मामला ताजमहल का था। दौर बाजारवाद का था। तीन बाजारवादी सैलानी नौजवान, जो हर चीज को, यहाँ तक कि सभ्यता, संस्कृति और उसके अर्वाचीन स्मारकों तक को निजी सम्पत्ति बनाना चाहते थे, ताजमहल देखने के बाद अपने सात सितारा होटल लौट रहे थे।

एक ने कहा-ग्रीन रिवोल्यूशन के बाद भी देश में जगह-जगह अकाल पड़ता रहता है। मैं इसे ख़रीद कर अनाज का गोदाम बनाऊँगा ताकि देश में कोई आदमी भी भूखा न मरे!

दूसरे ने कहा-तू बहुत आदर्शवादी है। बकवास करता है...मैं तो ताजमहल को ख़रीद कर इसे सात सितारा होटल बनाऊँगा ताकि मैं और मेरे साथ-साथ अपना देश भी थोड़ा मालामाल हो जाए!

उन दोनों के साथ चलते हुए तीसरे दोस्त ने कहा-लेकिन यह सब तो तुम तब कर पाओगे, जब मैं ताजमहल को बेचूँगा! मैं उसे बेचूँगा ही नहीं।

जिन्होंने यह बातचीत सुनी थी, वे सोच रहे थे कि ताजमहल किसका है!

लक्ष्मी

दीवाली की रात से पहले वाला दिन। एक करोड़पति मित्र ने अपने लेखक मित्र से कहा-दोस्त! घर के दरवाजे खुले रखना....आज रात लक्ष्मी आएगी।

तो लेखक ने कहा-तो दोस्त! अपने घर के दरवाजे भी खोल देना, नहीं तो लक्ष्मी निकलेगी कैसे?

किसान

बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद कश्मीर में भी दंगे हो गए। कश्मीरी पण्डितों के मन्दिर भी गिराए जा रहे थे। एक मन्दिर पर हमले का ख़तरा देखकर पुजारी भाग गया।

एक किसान ने देखा। नाराज भीड़ उधर ही आ रही थी। वह मन्दिर में घुस कर बैठ गया और कुरान पढ़ने लगा। नाराज़ भीड़ लौट गई। उसने पुजारी को पुकारा-

-अरे ओ अजुध्यानाथ! अपने मन्दिर को सँभालो।

वैलकम

जेल में कालाबाज़ारी सेठ पहले से बन्द था।

एक नया कैदी लाया गया। उसे देखकर कुछ कैदियों को ताज्जुब हुआ। वह इनकम टैक्स कमिश्नर था।

कालाबाजारी सेठ ने उसे पहचाना। बोला-

-नमस्ते कमिश्नर साहब! आप वही हैं न, जिसने मुझ पर इनकम टैक्स रेड की थी...आप भी आ गए! वैलकम...

सच्ची घटना

एक पुश्तैनी मालदार लेखक ने अपना एक मकान फोकटी लेखक दोस्त को किराये पर दे दिया। वह फोकटी न किराया देता था न घर छोड़ता था। झगड़ा बढ़ गया तो फोकटी दोस्त ने कहा-जाओ, जाके कोर्ट से ख़ाली करवा लो।

पुश्तैनी लेखक को गुस्सा आ गया-मुझे कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी...मेरे पास और भी तरीके हैं!

पुश्तैनी लेखक ने मोहल्ले के दो गुण्डों को पैसा देकर मकान खाली करवा लिया। लेकिन गुण्डों ने उस पर अपना ताला डाल दिया।

जनाज़ा

हम लोगों की हमदमी दोस्ती और घरेलू घनिष्ठता के बावजूद नोंक-झोंक भी चलती ही रहती थी। हँसी-मजाक भी। एक दिन खासी गम्भीर मुद्रा में राजेन्द्र बोला-यार, तुझे नहीं लगता कि राकेश ने अपनी रचना के बल पर नहीं, सम्पर्कों, ठहाकों, ड्रिंक पार्टियों, पंजाबी लॉबी और डिनर राजनीति के सहारे अपने झण्डे गाड़ रखे हैं!

मैंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।

-तू अगर मेरा साथ दे तो...राजेन्द्र ने फिर बड़ी गम्भीरता से कहा-तो देखते-देखते इसका जनाज़ा उठ जाएगा!

आख़िर मुझे कहना पड़ा-इसमें मेरे साथ देने की ज़रूरत ही कहाँ है। तू अगले छह महीनों में जो कुछ लिखे, राकेश के नाम से छपवा दे, वह अपने-आप ही मर जाएगा।

रिज़र्वेशन

बात मण्डल-कमण्डल से होती हुई दलितों-कमजोर वर्गों के रिज़र्वेशन पर आ गई। हिन्दी साहित्य के सवर्णवादी चरित्र पर भी छींटाकशी चल रही थी। कुछ उत्तेजित दलित लेखक आक्षेप लगा रहे थे कि हमने-यानी मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव ने नई कहानी की जमीन पर कब्जा कर लिया था और किसी को वहाँ घुसने नहीं दिया था। साथ ही यह आरोप भी था कि हमारी मानसिकता दलित विरोधी है। आरक्षण विरोधी है।

मैंने प्रतिवाद किया-आप यह कैसे कह सकते हैं? नई कहानी के दौर में तो मण्डल-कमण्डल का नाम नहीं था। आरक्षण आदि का सवाल नहीं था। आप तो अब 27 प्रतिशत आरक्षण माँग रहे हैं, हमने तो कहानी के क्षेत्र में उसी समय अपने त्रिगुट के सब से कमजोर वर्ग को 33.3 प्रतिशत रिज़र्वेशन दे रखा था।

तितली

ईडन गार्डन के खुले मंच पर नृत्य सम्राट उदयशंकर का नृत्य प्रदर्शन था। दर्शकों की भीड़। उदयशंकर ताण्डव नृत्य प्रदर्शित कर रहे थे। वे नृत्य की ताल और लय में तल्लीन थे। ताण्डव के प्रलय पक्ष का रौद्ररूप जब आया, तभी नृत्य सम्राट की टाँगों के बीच दो तितलियाँ आकर चक्कर काटने लगीं। कुछ पल तो वे उसी लय में नृत्य करते रहे पर तितलियों ने अपना नृत्य नहीं रोका तो उदयशंकर ने अपना नृत्य एकाएक रोक दिया। दर्शक अचम्भे में पड़ गए। वे समझ नहीं पाए कि ऐसा क्‍यों हुआ। तब उदयशंकर ने तितलियों की बात बताते हुए कहा-बड़ी से बड़ी कला स्थगित या खण्डित की जा सकती है यदि उससे जीवन विनष्ट या खण्डित होता हो!

जेबकतरा

मुकद्दमा बहुत मामूली था।

अदालत में कोई भीड़-भाड़ भी नहीं। दो-एक वकील, तीन-चार पुलिस वाले। अदालत के कारिंदे। एक चपरासी और जेबकतरा। जुर्म भी संगीन नहीं था।

मजिस्ट्रेट ने सजा सुनाई-एक साल की सजा या एक हजार रुपया जुर्माना! क्‍या मंजूर है तुम्हें?

जेबकतरा-हुज़ूर, जुर्माना!

मजिस्ट्रेट-ठीक है। जाके जुर्माना खजाने में जमा करो और रसीद लाकर अदालत में पेश करो।

जेबकतरा-हुज़ूर! एक घण्टे की मोहलत दे दी जाए।

मजिस्ट्रेट-क्यों ?

जेबकतरा-हुज़ूर! इतना वक्‍त तो लग ही जाएगा...

मजिस्ट्रेट-ठीक है....ठीक है...मुंशी जी, अगला केस।

जब तक दो-तीन मुकद्मों की पेशियाँ हुई तब तक जेबकतरे ने आकर खजाने की रसीद पेश कर दी। उसे रिहा कर दिया गया। वह अदालत को सलाम करके चल दिया। जाते-जाते बन्द मुट्ठी से उसने उस पुलिस वाले को कुछ थमाया जो उसे पेशी पर लाया था। एक मरियल से वकील ने भीड़ में गुम होते जेबकतरे की तरफ से नजरें घुमाकर मजिस्ट्रेट को देखा।

मजिस्ट्रेट ने वकील को बताया-ठीक है...जब पुलिस पकड़ के लाएगी, तो फिर सजा दे दूँगा!

पाँचों उँगलियाँ

घटना सच्ची है। किसानों के बेताज बादशाह चौधरी चरनसिंह के जमाने की। वे भारत के अकेले ऐसे अल्पजीवी प्रधान मन्त्री थे, जिन्होंने अपने कार्य काल में कभी सदन का सामना नहीं किया था। प्रधान मन्त्री तो वे नहीं रह गए थे पर किसानों के वे बड़े नेता तो थे ही। प्रधान मन्त्री रहते समय कुछ विरोधी छुट भइयों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

एक किसान रैली में वे उन्हीं आरोपों का उत्तर दे रहे थे। अन्त में वे हाथ की हथेली दिखाते हुए बोले-ये कहावत भी है और दुनिया जानती है कि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं!

भीड़ में से एक किसान खड़ा हो गया। दोहर में से हाथ निकालकर “कौर बनाते हुए' वह बोला-पर चौधरी साब, खाते वक्‍त पाँचों उँगलियाँ बराबर हो जाती हैं।

आगरा का शोधार्थी

भयानक गर्मी पड़ रही थी। दिमाग तक पसीज रहा था। उन्हीं दिनों आगरा विश्वविद्यालय का एक शोधार्थी आया। उसने बताया कि वह मेरे कथा-साहित्य पर शोध करना चाहता है। निर्देशक महोदय ने उसे आदेश दिया था कि वह मुझसे मिले और कोई अछूता-सा विषय लेकर आए।

मुझे उस गर्मी में एक ही अछूता-सा विषय सुझा। मैंने कहा-देखो भइया! राजेन्द्र यादव आगरा के हैं। आगरा के शोधार्थियों पर उनका हक बनता है। एकदम अछूता विषय हो सकता है-“हिन्दी कथा साहित्य में 'हँस और कंस'...उसकी आँखें चमकीं। मैंने उसकी सुविधा के लिए और खुलासा कर दिया-आधुनिक कथा यथार्थ और पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में आप हँस और कंस के सम्बन्धों का विवेचन कीजिए। कथा- साहित्य और जातिवाद के समीकरणों का विश्लेषण कीजिए। क्योंकि राजेन्द्र यादव तो यादव हैं ही, कंस भी यादव था। दोनों का भाषा क्षेत्र भी एक है। दोनों की मानसिक अपेक्षाएं भी एक हैं। और आगे बढ़कर आधुनिक काल में आते हुए हंस के स्त्रीवाद और कथा-लोचना के ठाकुरवाद का तुलनात्मक अध्ययन भी किया जा सकता है...

शोधार्थी की आँखों की चमक और बढ़ गई। वह बोला-सर! है तो यह एकदम अछूता विषय। हमारे निर्देशक-सर राजेन्द्र यादव जी के प्रशंसक भी हैं। सर! अगर राजेन्द्र यादव जी का पता और फोन नम्बर मिल जाता तो...

मैंने उसे फ़ौरन पता और फोन नम्बर थमा दिया। वह धन्यवाद देता हुआ प्रणाम करके चला गया।

वायरलैस

संसार के पुरातत्त्ववेत्ताओं की अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस मिस्र की राजधानी काहिरा में चल रही थी। भारत में यह हिन्दुत्ववादी शक्तियों की सत्ता का दौर था। पुरातन गौरव के गुणगान और पुराणों को इतिहास सिद्ध करने का तूफानी अभियान चल रहा धा। उस कांफ्रेंस में भारतीय पुरातत्त्ववेत्ताओं की मण्डली भी भाग ले रही थी।

मिस्र की सभ्यता और उसकी प्राचीनता पर भाषण देते हुए वहीं के एक पुराविद्‌ ने कहा-लगभग दस वर्ष पहले नील नदी के दक्षिणी इलाके में हमारी टीम ने लगभग एक हजार फीट गहरी खुदाई की। कुछ प्राचीन अवशेष, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े आदि बड़ी संख्या में वहाँ से बरामद हुए। सबसे महत्त्वपूर्ण एक साक्ष्य मिला, वह आज के बिजली जैसे तार की तरह था। वह गल गया था पर कई स्थानों पर उसके टुकड़े मिले... ।

-आप कहना क्‍या चाहते हैं? किसी ने उस पुराविद्‌ को टोका।

-यही कि अभी निश्चित तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, पर अनुमान के आधार पर शायद यह कहना अनुचित नहीं होगा कि ढाई हजार वर्ष पहले हमारे यहाँ टेलीग्राफ जैसी कोई चीज रही होगी।

भारतीय पुराविद्‌ खामोश कैसे बैठ सकते थे! टीम के नेता ने अध्यक्ष से बोलने की इजाजत माँगी। इजाजत उन्हें मिल गई।

वे बोले-मैं भारत का प्रतिनिधि हूँ। आप जैसे संसार के विख्यात पुराविदों के समक्ष मैं पुरातन भारतीय सभ्यता का एक प्रामाणिक साक्ष्य रखना चाहूँगा। हमारे अन्वेषक पुराविदों ने विंध्याचल पर्वत के क्षेत्र में एक हजार फुट गहरी नहीं, बल्कि दो हजार फुट गहरी खुदाई की...हमने धरती की कई परतों की खुदाई और सर्वेक्षण किया. ..वहाँ कोई विशेष अवशेष हमें प्राप्त नहीं हुए...

-तो आप कहना क्या चाहते हैं? किसी ने टोका।

-यही कि कोई भी अवशेष न मिलने से यह प्रमाणित होता है कि तीन हजार वर्ष पहले हमारे यहाँ वायरलैस था!


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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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अदालती फ़ैसला

20 जुलाई 2022
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अदालत में एक संगीन फ़ौजदारी मुकद्दमे के फ़ैसले का दिन। मुकद्दमा हत्या की कोशिश का था क्योंकि जिसे मारने की साजिश की गई थी वह गहरे जख्म खाकर भी अस्पताल की मुस्तैद देखभाल और इलाज की बदौलत जिन्दा बच गया

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अपने ही दोस्तों ने

20 जुलाई 2022
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हुआ यह कि भारत में विकास कार्यक्रम चल रहा था। एक सड़क निकाली गई जिसने घने जंगल को दो हिस्सों में बाँट दिया। उत्तरी हिस्से में शेर रह गए और दक्षिणी हिस्से में गीदड़ रह गए। तो एक दिन गीदड़ों के मुसाहिब

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आधी दुनिया

20 जुलाई 2022
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जहाज छूटने में कुछ देर थी। जेटी के कगार पर बैठे हुए पक्षी अजनबियों की तरह इधर-उधर देख रहे थे। जैसे वे उड़ने के लिए कतई तैयार न हों। खौलते पानी के बुलबुलों की तरह उनमें से एक-दो धीरे-से कुदकते थे और फि

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इंतज़ार

20 जुलाई 2022
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रात अँधेरी थी और डरावनी भी। झाड़ियों में से अँधेरा झर रहा था और पथरीली ज़मीन में जगह-जगह गढ़े हुए पत्थर मेंढ़कों की तरह बैठे हुए थे। बिजिलांते के बूटों की आवाज़ से दहशत और बढ़ जाती थी। हवा हमेशा की तर

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एक थी विमला

20 जुलाई 2022
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पहला मकान–यानी विमला का घर इस घर की ओर हर नौजवान की आँखें उठती हैं। घर के अन्दर चहारदीवारी है और उसके बाद है पटरी। फिर सड़क है, जिसे रोहतक रोड के नाम से जाना जाता है। अगर दिल्ली बस सर्विस की भाषा में

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क़सबे का आदमी

20 जुलाई 2022
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सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य स

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कितने पाकिस्तान

20 जुलाई 2022
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कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा...तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हँसती है...पर मैं जानता हूं, तेरी

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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

20 जुलाई 2022
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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

20 जुलाई 2022
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

20 जुलाई 2022
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

20 जुलाई 2022
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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

20 जुलाई 2022
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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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