हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं।
आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब तो आचार्य जी उनके साथ आ सकते हैं। वे बड़े प्रसन्न होकर विनत भाव से आचार्य जी के पास पहुँचे। बातचीत शुरू की तो आचार्य जी ने आर्य समाज की भी धज्जियाँ निकाल दीं।
आचार्य जी का छात्र समुदाय बहुत विस्मित और विचलित हुआ। वह साहस करके असलियत जानने के लिए आचार्य जी के पास पहुँचा।
तो आचार्य जी ने बताया-आजकल मैं इंटेलैक्च्युअल हो गया हूँ, जिसकी कहो, धज्जियाँ निकाल दूँ!