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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022

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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उसी वन में रहने लगा। वह नित्यप्रति वन में इधर-उधर जाता और मृगों का शिकार करता। उसी उद्देश्य से बरगद के नीचे एक बड़ा जाल बिछा जाता और उसमें जंगली पशुओं को फँसाकर ले जाता।

एक दिन दुर्भाग्यवश लोमश नाम का बिलाव स्वयं उस जाल में फँस गया। चूहे ने निकलकर देखा तो उसके हर्ष की सीमा न रही क्योंकि जिस शत्रु का उसे सदा भय बना रहता था, वह आज जाल में बँधा पड़ा था। अब वह पूरी स्वच्छन्दता के साथ उधर-उधर घूमकर अपना खाना इकट्ठा करने लगा। एक बार तो वह गर्व से भूलकर उस जाल पर भी चढ़ गया जिसमें बिलाव फँसा हुआ था और उसकी तरफ बड़ी ही अवज्ञापूर्ण दृष्टि से देखने लगा। वह आज लोमश की हँसी उड़ाना चाहता था लेकिन उसी समय उसे सामने से हरिण नाम का लाल-लाल आँखों वाला एक नेवला आता हुआ दिखाई दिया। डर से उसका रोम-रोम काँप उठा। उसकी सारी खुशी न जाने कहाँ चली गयी। दूसरे ही क्षण उसने अपनी गरदन ऊपर उठाकर देखा तो एक उल्लू को पेड़ की डाल पर बैठे देखा। उसे देखकर वह और भी अधिक डर गया। दो शत्रु उसकी घात में बैठे थे और एक शत्रु जाल में पड़ा हुआ था। इस भयावने दृश्य के सामने उपस्थित होने के कारण चूहा कुछ क्षणों तक तो बेहोश-सा हो गया लेकिन फिर सँभलकर उसने अपनी बुद्धि का सहारा लिया और जाल में फँसे हुए बिलाव से बोला, “भाई लोमश! तुम्हें इस तरह मृत्यु के संकट में पड़ा देखकर मुझे दया आ रही है। वैसे तो तुम मेरे शत्रु हो लेकिन फिर भी तुम्हें बचाना चाहता हूँ। इस जाल से छूटने के बाद यदि तुम मुझे न मारो तो मैं इस संकट से तुम्हें बचा लूँ। मैं अपने पैने दाँतों से अभी तुम्हारे जाल को काट सकता हूँ लेकिन सिर्फ इसी शर्त पर कि तुम मेरी रक्षा करो, क्योंकि उल्लू और नेवला दो शत्रु मेरी घात में बैठे हुए हैं। वह देखो, कैसी लाल आँखों से देख रहा है वह पापी नेवला। अब हमारी रक्षा का एक ही उपाय है कि मैं तुम्हारे पास जाल के भीतर आ जाऊँ और अन्दर से जाल काट दूँ, लेकिन विश्वासघात न करना मित्र! देखो, कितने समय से हम एक-दूसरे के पड़ोसी बनकर इसी वृक्ष के ऊपर-नीचे रहते हैं फिर यदि हमने ही एक-दूसरे का गला काटा तो इससे अधिक घृणित व्यवहार और क्या होगा? इस आपत्ति में तो हमारी एक-दूसरे से परस्पर मित्रता ही लाभदायक है। जब समय निकल जाएगा तो फिर तुम और हम पछताते ही रहेंगे और किसी तरह भी हमारे प्राण नहीं बच पाएँगे। इसलिए जैसे मनुष्य लकड़ी के सहारे बड़ी-बड़ी नदियों को पार करता है और जैसे मनुष्य लकड़ी को और लकड़ी मनुष्य को नदी के पार ले जाती है वैसे ही हम दोनों के बीच सन्धि होना दोनों के लिए हितकर होगा।”

इस तरह बुद्धिमान चूहा अनेक तरह की बातें बनाने लगा। बिलाव ने यह समझकर कि चूहा निश्चित ही जाल काटकर उसकी जान बचा लेगा, उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और कहा, “हे भाई चूहे! इससे अधिक प्रसन्नता की बात और क्या होगी कि तुम पड़ोसी होने के नाते मेरी रक्षा करोगे। आओ मित्र! मेरे पास आ जाओ और पिछली सारी बातों को भूल जाओ। हमारी-तुम्हारी इस मित्रता में दोनों का ही हित है, इसलिए शीघ्र ही इस जाल के अन्दर आ जाओ और पहले अपनी रक्षा करो, फिर अपने दाँतों से जाल को काट डालना। मैं तुम्हारा उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा।

“हे मित्र! मैं तुम्हारी शरण में हूँ। अब मुझसे किसी भी तरह तुमको भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।”

बिलाव की बातें सुनकर चूहा बोला, “ठीक है मित्र! मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास होता है क्योंकि आपत्तिकाल में तो प्रत्येक को अपनी शत्रुता भुला देनी चाहिए क्योंकि आपस में विद्वेष रखने से तो मृत्यु आकर हम दोनों को डस जाएगी। इसलिए तुम पर पूरी तरह विश्वास करके मैं अभी तुम्हारे पास आ रहा हूँ, फिर भी एक बार कहता हूँ कि कहीं विश्वासघात न कर बैठना मित्र! नहीं तो इससे बड़ी मूर्खता तुम्हारे जीवन की और नहीं होगी।”

बिलाव ने चूहे को पूरा-पूरा आश्वासन दिया। दूसरे ही क्षण चूहा जाल के अन्दर आ गया। बिलाव ने उसका स्वागत करते हुए कहा, “मेरे प्रियतम मित्र! तुम्हीं अन्त समय में मेरे काम आये, इसलिए तुम्हीं मेरे सच्चे मित्र हो। आओ मेरी गोद में बैठ जाओ। किसी तरह तुम मुझे इस संकट से मुक्त कर दो तो फिर अपने भाई-बन्धुओं सहित तुम्हारा स्वागत करूँगा और सदा अपने आपको तुम्हारा ऋणी समझूँगा।”

चूहा पूर्ण विश्वास के साथ बिलाव की गोदी में जा बैठा। बिलाव और चूहे की मित्रता देखकर नेवला और उल्लू हताश हो गये। अब शिकार करने के लिए कोई भी मौका उन्हें नजर नहीं आ रहा था। कुछ देर और प्रतीक्षा करके वे वहाँ से चले गये।

थोड़ी देर बिलाव की गोद में विश्वास के साथ बैठने के पश्चात चूहे ने अपना कार्य प्रारम्भ किया। अपने पैने दाँतों से वह जाल को काटने लगा लेकिन काटते-काटते चूहे ने काफी देर लगा दी, तब बिलाव अधीर होकर कहने लगा, “भाई चूहे! तुमने तो इतनी देर लगा दी। शीघ्रता करो। अगर शिकारी आ गया तो फिर मेरी जीवन-रक्षा किसी प्रकार नहीं हो सकेगी। देखो, तुम्हारा भय तो दूर हो गया है लेकिन अब मेरे भय को दूर करने में तुम इतना विलम्ब क्यों कर रहे हो?”

बिलाव की बात सुनकर चूहे ने कहा, “घबराओ नहीं मित्र! मैं समय का उपयोग अच्छी तरह जानता हूँ और मैं किसी प्रकार भी समय को हाथ से नहीं जाने दूँगा। यथासमय ही काम करना चाहिए तभी उसका फल मिलता है। सोचो तो, यदि समय से पहले मैं तुमको बन्धन से छुड़ा दूँ तो मेरे लिए सदा ही तुमसे खतरा बना रहेगा, इसलिए मैं इतनी देर कर रहा हूँ। घबराओ नहीं, मैंने सारा जाल काट डाला है, सिर्फ एक रस्सी छोड़ी है। जैसे ही बहेलिया दिखाई पड़ेगा, उसी क्षण मैं उसे काट डालूँगा। उस समय तुम डर के मारे शीघ्र ही पेड़ पर जा चढ़ोगे और इधर मैं अपने बिल में घुस जाऊँगा। इस तरह दोनों की जान बच जाएगी।”

चूहे की यह बातें सुनकर बिलाव कहने लगा, “हे मित्र चूहे! देखो तो मैंने किस तरह शीघ्र तुम्हारी जान बचा ली है, नहीं तो अब तक नेवला तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर जाता। अब तुम मेरे काम में देरी करते हो, यह तो सज्जनता नहीं है। शीघ्रता करो मित्र! क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है? भूल जाओ पिछली बातों को। मैं सच कहता हूँ कभी भी तुम्हारा अनिष्ट नहीं करूँगा।

“हे मित्र! अब मुझे अधिक कष्ट न पहुँचाओ और शीघ्र ही इस जाल को काटकर मुझे मुक्त कर दो।”

इस पर चूहा बोला, “हे भाई लोमश! हम दोनों ने अपने-अपने स्वार्थ के लिए एक-दूसरे पर विश्वास किया है, लेकिन जिस मित्रता के कारण कुछ भी भय हो, उसके प्रति प्रत्येक को पूर्णतः सतर्क रहना चाहिए। बलवान् के साथ सन्धि करके अपनी रक्षा में असावधानी करने से कुपथ्य करने के समान वह सन्धि अनर्थ हो जाती है।

“हे लोमश! इस संसार में कोई न तो किसी का स्वाभाविक मित्र है और न कोई स्वाभाविक शत्रु। कार्यवश एक-दूसरे के शत्रु या मित्र होते हैं। जिस तरह पालतू हाथी के द्वारा जंगली हाथी फँसाये जाते हैं, उसी तरह स्वार्थ की सिद्धि होने पर कोई किसी की परवाह नहीं करता, इसलिए मैंने काम को अधूरा ही रहने दिया है। व्याध दीखते ही मैं काम पूरा कर दूँगा और उस समय तुम अपनी जान बचाने के लिए पहले भागकर पेड़ पर चढ़ोगे और मेरा किसी प्रकार अहित नहीं कर सकोगे। देखो तो, एक ही रस्सी बची है। यह मत समझना कि मैं तुम्हारे साथ किसी प्रकार का विश्वासघात कर रहा हूँ। यह तो मैं नहीं करूँगा क्योंकि मित्र लोमश! क्या मैं तुम्हारे उपकार को भूल जाऊँगा?”

इस तरह बिलाव और चूहा बातें करते रहे। थोड़ी देर बाद ही चूहे को दूर से आता हुआ बहेलिया दिखाई दिया। उसने तुरन्त ही रस्सी को कुतर डाला। यमराज के समान काले वर्ण वाले उस भयानक बहेलिये को देखते ही बिलाव भयभीत होकर पेड़ पर चढ़ गया और चूहा अपने बिल में घुस गया।

बहेलिया बिलाव को पकड़ने भागा लेकिन वह उसके हाथ नहीं आया। इधर चूहे पर भी उसे रोष आया लेकिन बिल में उसका वश ही क्या था। अन्त में हताश होकर वह अपने कुतरे हुए जाल को लेकर चला गया। जब वह चला गया तो बिलाव ने पुकारकर कहा, “भाई चूहे! शत्रु तो चला गया। अब क्यों डरकर अन्दर छिप रहे हो? आओ, मेरे पास आओ, जान बचने की खुशी में हम नाचेंगे, कूदेंगे और गाएँगे। आओ, मित्र! यदि आपत्ति के क्षण हमने साथ-साथ रहकर बिताये हैं तो फिर सुख के समय साथ-साथ क्यों न रहें।”

बिलाव की बात सुनकर चूहा बाहर निकल आया लेकिन बोला कुछ भी नहीं और न उसके पास ही गया।

बिलाव फिर कहने लगा, “मित्र! मेरे बुलाने पर भी तुम नहीं आते हो। देखो, जो मित्रता स्थापित करके उसका निर्वाह नहीं करता वह कृतघ्न कहलाता है। देखो, नाहक मुझ पर अविश्वास न करो। आओ जिस तरह एक दीन अपने त्राणकर्त्ता का स्वागत करता है उसी तरह मैं भी तुम्हारा स्वागत करूँगा। आओ, सारा सन्देह हृदय से निकाल दो। तुम अपने किये गये उपकार के कारण मेरे शरीर, घर और मेरी सारी वस्तुओं के स्वामी हो। मन्त्री के पद पर रहकर तुम मुझे सदा उचित परामर्श देते रहो। मैं तुम्हें शुक्राचार्य की तरह बुद्धिमान समझता हूँ। मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ कि तुम्हारे साथ कभी भी विश्वासघात नहीं करूँगा।”

बिलाव की यह बातें सुनकर चूहे ने मुस्कराते हुए सिर हिलाया और कहा, “मित्र लोमश! जो तुम कहते हो वह तुम्हारे साथ ठीक ही है लेकिन मेरे विचार तुम्हारे विचारों के साथ साम्य नहीं खाते। तुम्हारी शपथ मैंने सुन ली और इसके साथ तुमने अपने पवित्र हृदय के बारे में पूरी-पूरी सफाई दी है लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे पास नहीं आया, इसका कारण सुन लो। शत्रु और मित्र दोनों की ही मनुष्य को परीक्षा करनी चाहिए लेकिन यह कार्य अत्यन्त कठिन है। कभी शत्रु ही मित्र बन जाता है और घनिष्ठ मित्र ही एक क्षण में विष घोलने वाला शत्रु बन जाता है। आपस में इन सम्बन्धों की सच्ची गति कौन जान सकता है? इस संसार में मित्रों की न तो कोई जाति है और न शत्रुओं का ही कोई निश्चित सम्प्रदाय है। केवल किसी कारणस्वरूप ही शत्रु और मित्र हो जाते हैं। जिसके जीवित रहने से जिसका स्वार्थ सिद्ध होता है और जिसके मरने से जिसकी विशेष हानि होती है वही उसका परम मित्र है। मित्रता और शत्रुता अधिक दिनों तक टिकने वाली वस्तु नहीं है। स्वार्थ ही मित्रता और शत्रुता का प्रधान कारण है क्योंकि इसी के वश में होकर मित्र शत्रु हो जाते हैं और शत्रु भी मित्र के रूप में बदल जाते हैं। जो अधिक मित्र पर पूरा-पूरा विश्वास और शत्रु पर अविश्वास करते हैं वे कभी भी बुद्धिमान नहीं कहलाते। अविश्वासी व्यक्ति पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और विश्वस्त व्यक्ति पर भी पूर्णतया विश्वास नहीं करना चाहिए। कभी-कभी ऐसे सरलता से विश्वास कर लेने के कारण ऐसी आपत्ति उठ खड़ी होती है कि व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है।

“हे भाई लोमश! और तो क्या कहूँ, इस संसार में माता-पिता, मामा-भानजे और अन्य भाई-बन्धु सभी अपना स्वार्थ पहले सोचते हैं। सभी दूसरों से पहले अपना बचाव चाहते हैं। सोचो तो, जब पुत्र पतित हो जाता है तो माता-पिता समाज में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उस पुत्र का त्याग कर देते हैं। यही स्वार्थपरता हमारे परस्पर सम्बन्धों की मूल प्रेरणा है। तुम जब तक जाल में थे तब तक तो मुझसे दबे हुए थे क्योंकि तुम्हारा बहुत बड़ा स्वार्थ मेरी ताकत के साथ अटका हुआ था लेकिन अब तुम पूर्णतः मुक्त हो गये हो और इसी कारण तुम्हारा कोई भी स्वार्थ इस समय मुझसे नहीं अटका हुआ है। फिर भी तुम स्वभाव के बड़े चंचल हो। चंचल व्यक्ति दूसरों की रक्षा तो क्या ठीक तरह से अपनी रक्षा भी नहीं कर सकता। उसकी बुद्धि कभी स्थिर नहीं रहती। इसी कारण उसका कोई भी कार्य कभी सफल नहीं होता।

“हे लोमश! तुम इतनी मीठी-मीठी बातें क्यों बना रहे हो। इसके पीछे भी एक कारण है जिसे मैं जानता हूँ क्योंकि बिना कारण कोई किसी का प्रिय या अप्रिय नहीं होता। पति-पत्नियों के बीच की प्रीति भी निःस्वार्थ नहीं होती। स्वार्थ के पीछे ही भाई-भाई का जानी दुश्मन बन जाता है।

“हे भाई लोमश! मेरी और तुम्हारी मित्रता एक स्वार्थ को लेकर हुई थी लेकिन उसके पूरा होने के पश्चात् भी तुम उसी प्रकार मुझसे प्रीत करते हुए दीख रहे हो, इसका उद्देश्य इसके सिवा और कुछ नहीं हो सकता कि अबकी बार तुम मुझे खाकर अपनी भूख मिटाना चाहते हो। बस इसी कारण मैं अब तुम्हारे पास नहीं आना चाहता।

“हे मित्र! समय के द्वारा कारण की उत्पत्ति होती है। कारण कभी स्वार्थहीन नहीं होता। जो उस स्वार्थ का ध्यान रखता है वही इस संसार में बुद्धिमान है और वही अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। मैं संसार के व्यवहार को अच्छी तरह जानता हूँ और सन्धि और विग्रह की मूल प्रेरणा को समझता हूँ। इसलिए मुझे अपनी बातों से बहकाना कठिन है मित्र! मैं देख रहा हूँ कि जिस प्रकार बादल का रूप प्रतिक्षण बदला करता है वैसे ही तुम्हारा भाव भी प्रतिपल बदल रहा है। तुम अभी तक तो मेरे शत्रु थे, फिर किसी विशेष स्वार्थ के कारण मित्र हो गये इसलिए यह निश्चित है कि तुम्हारी मित्रता और शत्रुता का आधार तुम्हारा स्वार्थ है, फिर अब मैं तुम्हारा कैसे भरोसा कर लूँ? जब तक तुम्हारा स्वार्थ था, मैं तुम्हारा मित्र था लेकिन अब यदि मैं अपने आपको तुम्हारा मित्र समझूँ तो मुझसे बड़ा मूर्ख इस संसार में और कोई नहीं होगा। मैं पूरी तरह नीति का जानकार हूँ। स्पष्ट बात है लोमश! तुमने मेरे प्राण बचा दिये और मैंने तुम्हारे प्राण बचा दिये। इसी अपने-अपने स्वार्थ के लिए हमने मित्रता कर ली थी लेकिन अब तुम्हारे साथ मेरी मित्रता कैसे निभ सकती है? मैं दुर्बल हूँ, तुम बलवान हो। मैं भक्ष्य हूँ और तुम भक्षक हो, भला तुम्हारी और मेरी मित्रता कैसी? यह तुम्हारे भोजन का समय है, इसीलिए मुझे बहला-फुसला रहे हो जिससे मैं मूर्खतावश कहीं तुम्हारे पास आ जाऊँ तो तुम बड़े चाव से बोटी-बोटी खा जाओ। बस मित्र! मेरे ऊपर कृपा करो। मैं मूर्ख नहीं हूँ। बलवान से निर्बल की मित्रता अच्छी नहीं होती। भय का कोई कारण न होने पर भी बलवान के प्रति हमेशा सतर्क रहना चाहिए।

“हे भाई! और कोई सेवा हो तो कहो लेकिन पास आने के लिए मत कहो क्योंकि मैं आत्मसमर्पण नहीं कर सकता। संसार में अपनी रक्षा के लिए मनुष्य धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, राज्य आदि सब कुछ त्यागने को तैयार हो जाता है क्योंकि एक बार जीवित बच रहने से तो ये वस्तुएँ फिर जुटायी जा सकती हैं। शास्त्र का कथन है कि स्त्री और सम्पूर्ण धन देकर भी आत्मरक्षा करनी चाहिए। जो व्यक्ति आत्मरक्षा में तत्पर रहता है और सदा अपनी बुद्धि को काम में लेता है, वह कभी भी किसी विपत्ति में नहीं फँसता। शत्रु के बल को अच्छी तरह परख लेना चाहिए और फिर अपनी बुद्धि पर आश्रित रहकर धैर्य से कार्य करना चाहिए।”

चूहे की कटी हुई बातें सुनकर बिलाव लज्जित होता हुआ बोला, “मित्र चूहे! तुम्हारा कथन उचित नहीं है! तुम्हें मेरे ऊपर तनिक भी विश्वास नहीं है। मैं तुम्हारे उपकार को भूला नहीं हूँ और यह भी जानता हूँ कि मित्र-द्रोह करना पाप है, फिर तुम क्यों डरते हो? मैं तो तुम्हारा अभी भी मित्र हूँ फिर यह कैसे हो सकता है कि मैं तुम्हें ही खाकर अपनी उदरपूर्ति करूँ। यह तुम्हारी गलत धारणा है। मेरे हृदय में इस तरह की घृणित भावना नहीं पल सकती। एक बार आओ तो मित्र! देखो मैं तुम्हारा स्वागत करने के लिए कितना लालायित हो रहा हूँ।”

बिलाव की बात सुनकर फिर चूहा हँसा और कहने लगा :

“हे लोमश! ठीक है, तुम्हारे हृदय में किसी तरह की घृणित भावना नहीं पल रही है लेकिन पण्डितों का कथन है कि अत्यन्त प्रिय व्यक्ति पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए, अतः चाहे तुम कुछ भी समझो, मैं निर्बल हूँ इसलिए तुम पर विश्वास नहीं कर सकता। बुद्धिमान व्यक्ति का काम निकल जाने पर शत्रु के वशीभूत नहीं होते। इस विषय में शुक्राचार्य जी का मत सुनो :

“बलवान शत्रु के साथ सन्धि करके सदैव सावधान रहे और कार्य हो जाने पर कभी उसका विश्वास न करे। अविश्वासी पर तो कभी किसी तरह का विश्वास न करे लेकिन विश्वस्त पर भी अधिक विश्वास न करे। दूसरों पर तो अपना विश्वास जमा दे लेकिन स्वयं किसी का विश्वास न करे। सभी की तरफ सन्देह की दृष्टि रखकर सदा अपनी रक्षा में तत्पर रहे।” आत्मरक्षा कर सकने पर धन और पुत्र आदि सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं। दूसरों पर विश्वास न करना ही नीतिशास्त्र का मत है ‘जो व्यक्ति किसी पर विश्वास नहीं करता वह निर्बल होने पर भी शत्रुओं के चंगुल में नहीं आता और जो सभी पर विश्वास करता है उस बलवान को भी निर्बल शत्रु मार डालता है।’

“हे लोमश! तुम स्वभाव से ही मेरे शत्रु हो। तुमसे मुझे अपनी रक्षा करनी चाहिए और तुम्हें भी बहेलिये से सतर्क रहना चाहिए।”

चूहे के यह कहते ही बिलाव बहेलिया का नाम सुनते ही वहाँ से भाग गया और इधर चूहा अपने बिल में घुस गया।

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

20 जुलाई 2022
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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

20 जुलाई 2022
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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

20 जुलाई 2022
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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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