अदालत में एक संगीन फ़ौजदारी मुकद्दमे के फ़ैसले का दिन। मुकद्दमा हत्या की कोशिश का था क्योंकि जिसे मारने की साजिश की गई थी वह गहरे जख्म खाकर भी अस्पताल की मुस्तैद देखभाल और इलाज की बदौलत जिन्दा बच गया था।
इस मुकहमे में पाँच अभियुक्त थे। जज ने फैसला सुनाया
-अभियुक्त नं. 1 को पर्याप्त सबूत न होने के कारण बरी किया जाता है, लेकिन हालात और साक्ष्यों से जो कुछ इस अदालत के सामने आया है, उसे देखते हुए अभियुक्त नं. 1 पर जख्मी फर्द के इलाज और दवा-दारू के लिए एक लाख रुपया जुर्माना किया जाता है!
अदालत के फ़ैसले के बाद अभियुक्त नं. 1 जुर्माना चुकाकर राजनीति में चला गया और एक बड़ा राजनेता बन गया।
अदालत ने अभियुक्त नं. 2 का फ़ैसला सुनाया-इस अभियुक्त नं. 2 ने जख्मी फर्द पर गँड़ासे जैसे धारदार हथियार से वार किया, इसलिए इसे सात साल की बामशक्कत कैद की सजा दी जाती है।
अदालत के फैसले के मुताबिक अभियुक्त नं. 2 ने सजा काटी और बाहर आकर वह पेशेवर हत्यारा बन गया।
अदालत ने अभियुक्त नं. 3 की सजा सुनाई-लगता है कि जुर्म के हालात को यह शख्स बखूबी तैयार कर सकता है और उन्हें लागू करने के फर्जी सबूत भी दे सकता है, इसलिए इसे एक साल की सजा और एक हजार रुपया जुर्माना किया जाता है!
अदालत के फैसले के मुताबिक अभियुक्त नं. 3 ने जुर्माना अदा किया, एक साल की सजा काटने के बाद वह सरकारी संस्थानों के निर्माणों का ठेकेदार बन गया।
अदालत ने अभियुक्त नं. 4 की सजा सुनाई-5000 रु. जुर्माने के साथ इसे साक्ष्य के अभाव में बरी किया जाता है।
पाँच हजार जुर्माना अदा करने के बाद अभियुक्त नं. 4 ने किराने की दुकान खोली और वह एक जनरल स्टोर का मालिक बन गया।
अदालत ने अभियुक्त नं. 5 को बेदाग बरी कर दिया।
अभियुक्त नं. 5 बरी होने के बाद भी जानता था, उसका निकटतम समाज उसे बरी नहीं करेगा। वह सन्यासी बन गया।
पूरा नाम 'कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना' का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 6 जनवरी, 1932 को हुआ था। प्रारम्भिक पढ़ाई के पश्चात् कमलेश्वर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। कमलेश्वर बहुआयामी रचनाकार थे। उन्होंने सम्पादन क्षेत्र में भी एक प्रतिमान स्थापित किया।
हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी। कमलेश्वर की अनेक कहानियों का उर्दू में भी अनुवाद हुआ है।
उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। १९९५ में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण' से नवाज़ा गया और २००३ में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'(उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कमलेश्वर ने नई कहानी को जीवन दृष्टि एवं विशेष गति प्रदान की हैं. उनकी कहानियाँ नितांत व्यावहारिक जीवन पहलुओं पर आधारित हैं. उन्होंने संवेदना के स्तर पर खंड या व्यक्ति के माध्यम से पिंड या समष्टि की संवेदना को स्वरूप प्रदान किया हैं. डॉ इन्द्रनाथ मदान के अनुसार एक कहानीकार, आलोचक और कहानी सम्पादक के नाते कमलेश्वर का चिंतन व्यापक, विस्तृत और प्रायः गम्भीर हैं. कमलेश्वर कस्बे की जिन्दगी का अनुभव कर, महानगर में आए थे, तभी तो उनकी कहानियाँ कस्बे से लेकर शहर की स्थितियों का बयान करती हैं. उनहोंने कथ्य के साथ शिल्प को भी तराश तराश कर एक नवीन, आकर्षक, मोहक एवं प्रभावी स्वरूप प्रदान किया हैं. यथार्थ को अनुभूतिपरक आयाम दिया हैं. कमलेश्वर की कहानियों में आज के यांत्रिक युग की मानव चेतना व्यक्त हैं. उसकी सोच सभी यंत्रवत हो गई हैं. इसी कारण पारस्परिक विशवास का संकट उपस्थित हुआ ही हैं. मलेश्वर जी को कई सम्मान भी मिले हैं उन्हें 2005 में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया, साथ ही कितने पाकिस्तान के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया. 27 जनवरी, 2007 को फ़रीदाबाद, हरियाणा में इनका देहावसान हो गया.D