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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022

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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है।

अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो मुनीम जी...

हुजूर ! मैं तो खुद घबरा गया हूँ....मैंने इशारे से पेशकश भी की...चाहा कि बला टल जाए। एक लाख तक की बात की, लेकिन वह तो टस-से-मस नहीं हो रहा है...मुनीम बोला।

तो ? हे भगवान...मेरी तो साँस उखड़ रही है....

तब तक रमुआ पानी ले आया। ज़मींदार ने पानी पिया...पर घबराहट कम न हुई।

हिन्दू है कि मुसलमान ?

सिख है !

तो अभी लस्सी-वस्सी पिलाओ। डिनर के लिए रोको। सोडा-पानी का इन्तज़ाम करो, फकीरे से बोल तीन-चार मुर्गे कटवाओ और उनसे कहो, हम सारा हिसाब दिखा देंगे, पर आप शहर से इतनी दूर से आए हैं...हमारे साथ ड़िनर करना तो मंजूर करें...

मुनीम घबराया हुआ चला गया। पाँच मिनट बाद ही मुनीम अफसर को लेकर ज़मींदार साहब के प्राइवेट कमरे में आया। ज़मींदार साहब ने घबराहट छुपा कर, लपकते हुए उसका स्वागत किया। उसे खास चांदी वाली कुर्सी पर बैठाया।

आइए हुज़ूर ! तशरीफ रखिए...यहाँ गाँव आने में तो आपको बड़ी तकलीफ होगी....ज़मींदार साहब ने अदब से कहा।

अब क्या करें ज़मींदार साहब, हमें भी अपनी ड्यूटी करनी होती है। आना पड़ा...अफसर बोला।

तब तक लस्सी के गिलास आ गए।

यह लीजिए हुज़ूर ! ज़मींदार साहब बोले—शाम को हम और आप ज़रा आराम से बैठेंगे...आप पहली बार तशरीफ लाए हैं...

जी हाँ, जी हाँ....लेकिन मुनीम से कहिए, पिछले तीन सालों के हिसाब-किताब के कागजात तैयार रखे...ज़मींदार के फिर पसीना छूट गया। उसने खुद को संभाला। पसीना पोंछ कर बोला—अरे हुज़ूर पहले शाम तो गुज़ारिए....फिर रात को आराम फरमाइए...सुबह आप जैसा चाहेंगे, वैसा होगा....

तभी नौकर ने आकर मालिक को जानकारी दी-मालिक ! रात के लिए फकीरे के यहाँ से कटे मुर्गे आ गए हैं...मालकिन पूछ रही हैं कि चारों शोरबे वाले बनेंगे या आधे भुने हुए और आधे शोरबे वाले ?

-बताइए हुजू़र; कैसा मुर्ग पसन्द करेंगे ? शोरबे का या भुना हुआ, या दोनों ! ज़मींदार साहब ने पूछा।

इनकमटैक्स अफसर एकदम कच्चा पड़ गया। कहने लगा-ज़मींदार साहब मैं चलता हूँ...

अरे क्यों ? कहाँ ? हमसे कोई गलती हो गई क्या ?

नहीं, नहीं, लेकिन आपके साथ बैठकर मुर्ग खाने की मेरी औकात नहीं है। वैसे आपके मुनीम जी ने मुझे एक लाख देने की पेशकश की थी। लेकिन मैं अब आप से अपना इनाम लेकर जाना चाहता हूँ !

ज़मींदार और सारे कारकुन चौंके कि आखिर यह माजरा क्या है?

ज़मींदार साहब भी चौंके ।

लेकिन आप...?

हुजू़र ! मैं एक लाख रुपये की रिश्वत लेकर भी जा सकता था। पर नहीं, मुझे तो आपसे बस अपना इनाम चाहिए !

इनाम !

जी हुज़ूर! मैं इनकमटैक्‍स अफसर नहीं, मैं तो आपकी रियासत का बहुरूपिया किशनलाल हूँ। सोचा, अपनी कला दिखाकर आपसे ही कुछ इनाम हासिल किया जाए....

ज़मींदार भड़क गया-तो तू किशनू धानुक है...रामू धानुक का आवारा बेटा! अरे हरामजादे, तेरी वजह से मुझे हार्ट-अटैक भी हो सकता था....तेरा इनाम-विनाम तो गया भाड़-चूल्हे में। अगर सदमे से मुझे कुछ हो जाता तो?...मैं हुक्म देता हूँ, हमारी रियासत छोड़ कर कहीं भी चला जा। यहाँ दिखाई दिया तो मैं तेरे हाथ-पैर तुड़वा दूँगा!

बहुरूपिये कलाकार किशनलाल को इनाम तो नहीं ही मिला, डर के मारे उसे वह कस्बा भी छोड़ना पड़ा।

फिर कई बरस बाद ज़मींदार के उसी गाँव में एक बूढ़ा साधु आया। वह एक पीपल के पेड़ के नीचे धूनी रमा के बैठ गया। वह किसी से कुछ माँगता नहीं था। उसके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ने लगा। वह थोड़ा प्रवचन भी देने लगा। लोगों ने उसकी कुटिया बनवाने की बात की तो उसने मना कर दिया। वह जाड़े, गर्मी, बरसात में वहीं पीपल के नीचे बैठा ध्यान, भजन, प्रवचन में खोया रहता। उसकी कीर्ति फैलने लगी। दूर-दूर क्षेत्रों से लोग उसके दर्शन करने आने लगे।

एक दिन ज़मींदारिन भी उसके दर्शन करने आईं। उन्होंने श्रद्धा से दक्षिणा दी। साधु ने वह धन ग्राम पंचायत को दान में दे दिया। प्रवचन देते समय उसने कहा-यह धन मेरा अर्जित धन नहीं था। मैंने इसे अपने श्रम से नहीं कमाया था...यह समाज का धन है, उसी तरह समाज के पास लौट जाना चाहिए जैसे वर्षा का जल सागर में लौट जाता है......

श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी। ज़मींदारिन रोज उसके दर्शन करने आने लगीं। एक दिन उन्होंने ज़मींदार साहब से कहा-क्यों न हम साधु जी को हवेली में ले आएं। वे जाड़े, गर्मी, बरसात में वहीं पीपल के नीचे बैठे रहते हैं, बारिश के दिनों में वहाँ बहुत कीचड़ हो जाती है। भक्तों को बड़ी असुविधा होती है।

ज़मींदार साहब ने हां कर दी, बड़ी धूम-धाम से ज़मींदारिन साधु महाराज को हवेली में ले आईं। भक्त वहीं आने लगे।

ज़मींदारिन ने भक्तों के लिए भण्डारा शुरू करवा दिया। प्रवचन देते समय साधु महाराज ने कहा...पेट तो पशु भी भर लेता है...पर मनुष्य के पास एक और पेट होता है, वह है विद्या और ज्ञान का खाली पेट! यदि वह नहीं भरता तो भण्डारे का भोजन व्यर्थ चला जाता है।

ज़मींदार-ज़मींदारिन ने साधु की बात को समझा। उन्होंने ग्राम पंचायत को धन दे कर गाँव में एक पाठशाला खुलवा दी। पर एक समस्या सामने आई। उसमें पढ़ने के लिए बच्चे आते ही नहीं थे। तब साधु ने एक दिन प्रवचन में कहा-जो भक्त मेरे दर्शनों के लिए आते हैं, यदि वे अपने बच्चों को पाठशाला में नहीं भेजते तो उनसे मेरा निवेदन है कि वे मेरे दर्शन के लिए न आएँ!

साधु महाराज की बात का असर हुआ। पाठशाला में बच्चे पहुँचने लगे। भक्तों की भीड़ भी और बढ़ने लगी।

ज़मींदार और ज़मींदारिन ने दुनिया का दूसरा चेहरा देखा। और एक रात, जब सारे भक्त जा चुके थे, उन्होंने अपनी सारी धन-सम्पदा लाकर साधु महाराज के चरणों में रख दी-महाराज! आप जैसे चाहें, हमारी इस अकूत सम्पदा और सम्पत्ति का उपयोग करें।

दूसरे दिन सुबह भक्त आने लगे पर साधु का कहीं पता नहीं था। ज़मींदार और ज़मींदारिन सकते में आ गए। पूरी हवेली की तलाशी ली गई। उस साधु की परछाईं तक वहाँ नहीं थी। वह साधु सारी धन-सम्पदा लेकर चम्पत हो चुका था। ज़मींदार और ज़मींदारिन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था। तभी भक्तों की उत्तेजित और नाराज भीड़ में वही पुराना बहुरूपिया किशनलाल दिखाई दिया। ज़मींदार का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था ही। वे भड़क उठे-

इतने बरसों बाद किशनू तू यहाँ! मैंने तो तुझे देश निकाला दिया था। तू यहाँ क्या करने आया है?

हुज़ूर! मैं अपना इनाम लेने आया हूँ!-किशनलाल ने अदब से कहा।

कौन सा इनाम? किस बात का इनाम?

हुजूर! पिछला इनाम भी, जो आपने नहीं दिया था और इस बार का इनाम भी!

इस बार का इनाम!-लोग भौंचक्के थे।

जी हुज़ूर! वो साधु मैं ही तो था, जिसे कल रात आपने सारा खजाना सौंप दिया था!

लोगों को विश्वास नहीं हुआ। ताज्जुब से ज़मींदार ने पूछा-तू ही वह साधु था?

जी हुज़ूर!

तो वो सारी धन-दौलत कहाँ है जो मैंने तेरे हवाले की थी।

हुज़ूर! वो सारी दौलत हवेली की पिछवाड़े वाली कोठरी में सही- सलामत रखी है!

नौकर-चाकर दौड़ पड़े। वे खजानेवाली गठरी उठा के ले आए। वह उसी की साधुवाली धोती में बँधी थी। गठरी खोल के देखी गई। सारी दौलत के साथ ही उस में उसकी दाढ़ी-मूंछ भी रखी थी। उसका गेरुआ कुर्ता और रुद्राक्ष की माला और अन्य मालाएँ भी, जो वह साधु के रूप में पहनता था।

भक्तों की पूरी भीड़ ने राहत की साँस ली। ज़मींदार-ज़मींदारिन उसे ताज्जुब से देख रहे थे।

अरे पागल! तब तू इनाम क्‍यों माँग रहा था? तू तो यह सारी दौलत लेकर भाग भी सकता था।

भाग तो मैं जरूर सकता था हुज़ूर...लेकिन तब साधुओं पर से लोगों का विश्वास उठ जाता हुज़ूर...

लोगों ने उसे आँखें फाड़-फाड़ कर आश्चर्य से देखा। ज़मींदार और ज़मींदारिन ने भी। सबकी आंखों में अचरज था। कितना बेवकूफ आदमी है यह...अपनी सच्चाई न बताता और सारा खजाना लेकर भाग जाता तो ज़मींदार भी क्‍या कर लेता...

किशनू बहुरूपिया अपने इनाम के इन्तज़ार में चुपचाप खड़ा था।

तभी ज़मींदार साहब ने कहा-किशनू! यह जो तेरे साधु के कपड़े, मालाएँ वगैरह पड़ी हैं, इन्हें तो उठा ले!

वो तो मैं उठा लूँगा....पर मेरा इनाम? वह तो दे दीजिए!

सचमुच हमें तेरी अकल पर बड़ा तरस आ रहा है किशनू.... ज़मींदार साहब बोले-तू सचमुच मूरख है।-

हुजूर! आखिर मैं कलाकार हूँ न...हम मूरखों से ही यह दुनिया चलती है.... मुझे तो सिर्फ अपना इनाम चाहिए! आपकी धन-दौलत नहीं...

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

20 जुलाई 2022
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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

20 जुलाई 2022
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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

20 जुलाई 2022
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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

20 जुलाई 2022
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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

20 जुलाई 2022
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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

20 जुलाई 2022
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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

20 जुलाई 2022
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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

20 जुलाई 2022
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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

20 जुलाई 2022
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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

20 जुलाई 2022
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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

20 जुलाई 2022
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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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