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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022

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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी वह खुद ही ड्राइव कर रहा था। उसका ब्लोअर खराब था, नहीं तो गाड़ी कुछ तो गर्म हो जाती। दूरी के हिसाब से वह शाम चार बजे तक जिनीवा पहुँच जाता, फिर कम्यून खोजने में आधा घण्टा लगता और हद से हद वह कम्यून के दोस्तों के साथ पाँच बजे बैठा हुआ चाय पी रहा होता। लेकिन बर्फ के तूफान ने उसे मुसीबत में डाल दिया था। दोस्तों ने बताया था कि रास्ता बहुत खूबसूरत है। वह था भी, पर बेमौसम आये तूफान ने सब चौपट कर दिया था। जिनीवा जाने वाली सड़क तो बहुत शानदार है। वैसे यूरोप के सभी देशों की सड़कें शानदार हैं पर तूफान का कोई क्‍या करे। फॉग लाइट्स न होतीं, तब तो ड्राइव करना सम्भव ही न होता। दिन में ही घना अंधेरा छाया हुआ था। उसे लग रहा था कि ऐसे तूफान में जिनीवा पहुँचना शायद मुमकिन नहीं होगा, इसलिए ड्राइव करते-करते वह लगातार किसी मोटल की तलाश में भी था। पेट्रोल भी लेना ही था।

आखिर एक मोटल-सा नजदीक आता लगा। वह मोटल ही था। उसने गाड़ी रोकी। गैस पम्प पर रोशनी थी, पर आदमी कोई नहीं था। उसने कई बार हॉर्न बजाया, तो काफी देर बाद एक आदमी निकलकर आया।

उसने चाबी दी और कहा, “बीस लीटर पेट्रोल !”

"गैस!"

“हाँ! रात-भर के लिए यहाँ मोटल में कमरा मिल जाएगा?"

"हाँ, औरत भी मिल जाएगी।"

“औरत की जरूरत नहीं है।'!

“तो फिर उन्हें तुम्हारी जरूरत भी नहीं है!”

इस उत्तर से उसने अपमानित महसूस किया था, पर कर क्‍या सकता था? अपनी बेबसी और मजबूरी को देखते, उसने अपमान का वह घूँट पीते हुए भी पूछा था।

“अगला मोटल कितने किलोमीटर पर मिल सकता है?''

“यही कोई सत्तर किलोमीटर पर...लेकिन औरतों वाली बात वहाँ भी होगी...इस सर्द तूफानी शाम में तुम औरतों से बचकर क्यों निकलना चाहते हो ?"

वह चुप रहा। पेमेण्ट किया और गाड़ी स्टार्ट करके चल दिया। उसके जूते और मोजे पूरी तरह से भीग गये थे। पैर ठण्डे हो रहे थे। तृफान बदस्तूर जारी था। रुकने की जगह का कोई अता-पता नहीं था। सर्दी एकाएक बढ़ रही थी और जिनीवा अभी डेढ़ सौ किलोमीटर दूर था। और फिर जिनीवा पहुँचकर भी तो कम्यून का पता करना था, जहाँ उसे ठहरना था। वह बहुत परेशान था, पर चलते जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। सड़क खाली थी। ट्रैफिक था ही नहीं। उससे गलती यह हुई थी कि उसने चलने से पहले मौसम का बुलेटिन नहीं सुना, इसलिए इस तूफान में फँस गया था...

सत्तर किलोमीटर के बाद भी कोई मोटल नहीं आया, तो वह पस्त हो गया। आखिर पार्किंग लेन में गाड़ी खड़ी करके वह सुस्ताने बैठ गया। और राहत की बात यह थी कि वहीं एक नीग्रो जोड़ा भी गाड़ी रोके खड़ा था।

सड़क के दोनों ओर चीड़ के जंगल थे। तूफानी बारिश में वे जैसे हवा से बातें कर रहे थे...उनकी सरसराहर की तेज़ आवाजें और बर्फ में भीगने की मिली-जुली ठण्डी महक आ रही थी। महक तो उसे अच्छी लगी पर उस तेज हवा को बर्दाश्त करना मुश्किल था। उस नीग्रो जोड़े को एहसास था कि कोई गाड़ी पास आकर रुकी है। उसने क्रास करते हुए उन्हें देखा था। वे दोनों भी सिकुड़े हुए बैठे थे।

तभी सायरन बजाती ट्रैफिक पुलिस की एक गाड़ी उसकी और नीग्रो की गाड़ी के बीच में रुकी...उन्होंने गेस्टापों की तरह तेज लाइट डालकर तीनों को देखा और ऊपरी खिड़की का शीशा थोड़ा-सा उतारकर उसमें बैठे आदमी ने कहा, “गो! गो!”

“पर इस तूफान में-हाऊ गो? हाऊ?'” नीग्रो चीखा था।

"नो स्ते...गो...'' ट्रैफिक वाला और जोर से चीखा था।

“ओके... .ओके...पाँच मिनट बाद!'' नीग्रो शान्त पड़ गया था। ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी पाँच मिनट की मोहलत देकर आगे चली गयी थी। उस नीग्रो ने अपनी गाड़ी मेरी गाड़ी के बराबर में लगा दी थी और पूछा था, “कहाँ?"

“जिनीवा! एण्ड यू?''

“लूजान...दीज बास्टर्ड्स...ये तुम्हारा पैसा तो निचोड़ लेते हैं लेकिन अपने देश में टिकने नहीं देते!” उस नीग्रो ने अंग्रेजी में कहा था, “सारी नफरत और कल्चर की बातें करते हुए ये हमें और तुम्हें बर्दाश्त नहीं करते। तुम एशिया से हो? शायद इण्डियन या पाकिस्तानी... ''

"इण्डियन !"

“हम अमेरिकन हैं, पर ये हमें अमेरिकन नहीं मानते-ये हरामजादे हमें जबान दबाकर निगर्स पुकारते हैं और नीग्रो ही मानते हैं...मुझसे पूछ रहे थे, इस औरत को कहाँ से पकड़ लाये? पर यह औरत नहीं, मेरी बीवी है...ये हरामजादे औरत और बीवी में फर्क नहीं करते...औरत की इज्जत नहीं करते। ये सिर्फ पैसे वाली औरतों और आर्मी की औरतों की थोड़ी-बहुत इज्जत करते हैं...अच्छा है कि इन्हें अँग्रेजी नहीं आती--'' वह बोला था और बहुत तेजी से अपनी गाड़ी सड़क पर लाकर कोहरे और बर्फ की बारिश में आगे चला गया था।

उसकी हिम्मत पस्त थी। बर्फ, कोहरे और सर्दी ने उसे लगभग लाचार- सा कर दिया था। वह उस नीग्रो जोड़े के साथ निकल जाना चाहता था, पर गाड़ी के इंजन ने धोखा दे दिया था। वह स्टार्ट ही नहीं हुआ। शीशे चढ़ाकर बैठे रहने के अलावा अब कोई चारा नहीं था...यहाँ तो एक-सी परेशानी में पड़े आदमी की जान-पहचान का भी कोई मतलब नहीं था, वह नीग्रो जोड़ा भी उसी उलझन में था, जिसमें वह खुद फंसा हुआ था, पर यह जोड़ा अमरीकन था, इसलिए वह समान अपमान सहते हुए भी उससे अलग हो गया था। देश के हिसाब से अपमान का दंश और अपमान को सहने का अनुपात भी अलग-अलग था, यही उसे लगा था। वह अमेरिकन नीग्रो तो गाली भी दे सकता था। वह तो खुद को और भी गया-गुजरा पा रहा था...उसे लगा कि वह दूसरा तूफान तो इस बर्फीले तूफान से भी ज्यादा भयानक है! और तब उसे पेरिस के सोबोर्न इलाके का वह रेस्टोरेण्ट याद आया था, जहाँ वह इण्डियन रेस्टोरेण्ट नाम सुनकर अपने लोगों से मिलने, अपनी पहचान पाने के लिए गया था। “रेस्टारेण्ट इण्डियन' के सभी कर्मचारी हिन्दुस्तानी ही थे और म्यूजिक सिस्टम पर रविशंकर का सितार बज रहा था। उसने राहत की साँस ली थी। मछली की करी के साथ उसने भात खाया, पर जब उसने भारतीय बेयरे से हिन्दी में बात करनी चाही थी, पता चला था कि वे भारतीय तो हैं पर पाण्डिचेरी के हैं, इसलिए फ्रेंच बोलते हैं...वह कसमसा के रह गया था। उसने रेस्टारेण्ट के मैनेजर से भी मिलने की इच्छा जाहिर की थी पर मैनेजर भी उससे बिना मिले भाग गया था...

लेकिन क्‍यों ?...वह क्‍यों एक भारतीय से मिलना नहीं चाहता था? तब एक बेयरे ने बड़ी शालीनता से बताया था, “कि साहब! हम पाकिस्तानी हैं...पर हमारे पास पाकिस्तानी म्युजिक और पाकिस्तानी फूड के रूप में परोसने के लिए कुछ भी नहीं है, इससीलिए हम हिन्दुस्तानी म्युजिक और फूड के नाम पर अपना कारोबार चलाते और अपना पेट भरते हैं...इसी मजबूरी को छिपाने के लिए मैनेजर साहब आपसे बिना मिले भाग गये हैं...!"

उसने तब आदमी की जड़ों के उस सांस्कृतिक संकट को पहचाना था, और उससे सहानुभूति महसूस की थी। वह खुद इसी बात का जगह-जगह शिकार था। उसे लग रहा था कि आगे भी शायद लगातार उसे इसी संकट से गुजरना है...पहचान और मानवीय सम्मान की तलाश में!

उसने यों ही गाड़ी स्टार्ट की तो इंजन चालू हो गया। यह भी आश्चर्य की बात थी। नहीं तो इतनी ठण्डक में बन्द पड़ी गाड़ी कब स्टार्ट होनेवाली थी!

तूफान अभी भी जारी था, पर वह जैसे-तैसे एक मोटल से आ लगा था।

"गैस? कितनी ?'' पम्प के आदमी ने आकर पूछा था।

"नहीं, गैस नहीं, मोटल में रुकने के लिए एक कमरा मिल सकता है?''

“पूछता हूँ!” कहते हुए वह भला आदमी भीतर चला गया और एक मिनट बाद ही फोन पर बात करके खुशखबरी लाया, “यस...रूम फॉर यू! कमरे खाली हैं तुम्हें जगह मिल जाएगी...गो...!"

वह मोटल के रिसेप्शन पर पहुँचा। बर्फीले तूफान से राहत देनेवाली गर्म हवा का झोंका लगा तो वह लगभग उनींदा हो गया।

“पासपोर्ट !'' उसे लगभग न देखते हुए रिसेप्शन वाले ने पासपोर्ट तलब किया।

उसने पासपोर्ट देकर राहत की साँस ली, पर तभी रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “सॉरी...नो रूम!"

“पर अभी तो आपने पम्प स्टेशन वाले को..."

“नो आर्गुमेण्ट...नो रूम...”

“मुझे मालूम है...रूम तो बहुत-से खाली पड़े हैं!”

“सॉरी, नो आर्गुमेण्ट...नो रूम...!"

“क्या यह रंगभेद है?” वह चीखा था...

“डोण्ट शाउट...नो रूम!"

और वह बेहद-बेहद अपमानित होकर बाहर निकल आया था। बाहर बर्फीली हवा के तीर उसे भेद रहे थे...जूते और मोज़े ज्यादा भीग चुके थे। उसने जो ओवरकोट निकालकर पहना था, वह भी अब तक काफी गीला हो चुका था, खून का घूँट पीते हुए वह अपनी गाड़ी तक आया था। गाड़ी ने साथ दिया, स्टार्ट हो गयी।

और तब वह सुबह तीन बजे जिनीवा पहुँचा था। अब वह कहाँ जाए? इस आड़े और बेहूदे वक्‍त में। सोचा स्टेशन पर रुक जाए, फिर सुबह सात-आठ बजे कम्यून को फोन करके वह अपना ठिकाना खोज लेगा।

जिनीवा के रेलवे वेटिंग रूम में वह जाकर लेट गया था। थका और पस्‍त। गाड़ी उसने पार्किंग आइलैण्ड में खड़ी कर दी थी। वेटिंग रूम में बर्फीली बारिश की ठण्डक के कोई आसार नहीं थे। वह माँ की गोद की तरह गर्म था...वह लेटा तो लेटते ही नींद आ गयी।

पर पाँच बजे सुबह ही सफाई कर्मचारी ने उसकी कमर में डण्डा ठोंकते हुए कहा, “यू निगर...गेट अप! गेट अप...”

और तब उसे उठना पड़ा था। और क्या करता! रात वाला तूफान अब थम चुका था। वह वेटिंग रूम की घटना सहकर भी अब वीतराग था। उसे पता था कि उसके साथ यही होना था...यह तूफान तो लगातार जारी रहेगा...

वह इधर-उधर घूमता रहा और जब सात बज गये तो उसने कम्यून में फोन किया। बहुत मुश्किल हुई यह बताने में कि वह कहाँ है, क्योंकि फोन रिसीव करनेवाली जूनिया को अँग्रेजी नहीं आती थी। बहुत मुश्किल से वह उसकी बात समझा। वह सिर्फ तीन शब्द बोली, “इन्डियन...स्तेशन...इआह !”

और जूनिया करीब आधे घण्टे बाद उसे खोजते हुए आयी थी। इन्दियन को पहचानना उसके लिए मुश्किल नहीं था। उसने भी जूनिया की तलाशती आँखों को तत्काल पहचान लिया था। जूनिया ने उससे हाथ मिलाया और बोली--गो...यानी आओ।

उसने अपनी गाड़ी के बारे में बताया तो वह कुछ समझी नहीं। वह अपनी सित्रों कार लेकर आयी थी, फिर इशारे से उसने उसे समझाया कि उसके पास भी गाड़ी है और वह ट्रेन से नहीं, बाई रोड आया है। उसे वहीं रोककर वह कुछ देर के लिए कहीं चली गयी। लौटी तो उसके हाथ में एक पर्ची थी। वह पर्ची स्टेशन पर कार पार्किंग की थी।

जूनिया ने अपनी छोटी सित्रों गाड़ी में उसे बैठाया और चल पड़ी। कुछ ही देर बाद वे ठहरने के स्थान पर पहुँच गये। उसे तो मेरियाने एन्किल के कम्यून में ठहरना था, पर यह जयह तो उसे कम्यून जैसी नहीं लग रही थी। पर मुश्किल यह कि वह जूनिया से ज्यादा बातचीत भी नहीं कर सकता था, क्योंकि वह अँग्रेजी नहीं समझतो थी। वह फ्रेंचभाषी थी और थोड़ी इटालियन और जर्मन बोल-समझ लेती थी।

सीढ़ियाँ चढ़कर जब वह ऊपर पहुँचा तो दरवाजे का ताला खोलते हुए जूनिया इतना ही बोली, “'स्तूदियो...माई... ''

और वह पेरिस के दो-चार दिनों के अनुभव से समझ गया था कि यह जूनिया का अपना कमरा था...यही उसने बताया भी था। कुछ देर के लिए वह कुछ भी समझ नहीं पाया था...कि कम्यून में पहुँचने के बजाय वह जूनिया के कमरे में क्‍यों और कैसे पहुँच गया है...फोन तो उसने सही नम्बर पर किया था।

स्टूडियो यानी कमरे के एक कोने में फोन भी रखा हुआ था...लेकिन उस पर फोन नम्बर नहीं लिखा था। कमरे के दूसरे कोने में छोटे-से पार्टीशन से सटा हुआ जूनिया का एक चूल्हे बाला किचिन था।

वह वहाँ खड़ी शायद चाय बना रही थी। पर वह हर गुजरते पल के साथ और भी गहरे रहस्य में फँसता जा रहा था...आखिर...ये जूनिया...ये उसका कमरा...फोन... उसका स्टेशन आकर उसे ले आना...

तब तक जूनिया ने चाय के मग्गे सामने रख दिये। वह चाय पीने लगा। चाय पीते-पीते ही उसने फोन नम्बर का रहस्य जानना चाहा। जूनिया ने नम्बर बताया...वह फ्रेंच गिनती नहीं समझ पाया तो जूनिया ने रोमन गिनती में, एक कागज पर अपना फोन नम्बर लिखकर बताया और इशारे से उसे आश्वस्त किया कि वह ठीक जगह आया है...चिन्ता की कोई बात नहीं है।

किचिन की तरफ से तभी कुछ चिट-चिट की आवाज़ आयी तो जूनिया उठी उसने एक प्लेट में भुने हुए सॉसेज लाकर रख दिये...और इशारा किया...खाओ! एक सॉसेज उसने भी उठा लिया था।

यानी अब उसका चाय-नाश्ता समाप्त हो गया था। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अब वह क्या कहे या क्‍या करे...काम तो कई थे और फिर उसे आगे भी जाना था। लूजान जाकर उसे “त्रिब्यू द लूजान' के रिपोर्टर पियरे कोल्ब से भी मिलना था। साथ ही उसे जिनीवा में भी एक-दो काम थे, पर भाषा की परेशानी के कारण सब कुछ जैसे अटका हुआ था। पर इन कार्यों से ज्यादा उसे थकान सता रही थी और सबसे पहले पिछली रात के तमाम जलते और सुलगते अपमानों को भूलकर वह सोना चाहता था।

चाय-नाश्ते के बाद जूनिया ने टूथपेस्ट, एक नया ब्रुश और छोटा टॉविल उसके सामने बढ़ा दिया और दरवाजे के बाहर गैलरी में बने बाथरूम की ओर इशारा किया और इशारों से यह भी जाहिर किया कि उसे मालूम है कि उसका सामान स्टेशन पर खड़ी कार में बन्द है..और यह भी कि वह ओवरकोट, जूते- मोजे उतारकर ब्रुश आदि कर ले और चाहे तो कुछ देर आराम भी कर ले। तब तक वह एक काम से कहीं जाएगी और तीन-चार घण्टे बाद लौट आएगी।

दोनों चाबियाँ थमाकर जूनिया अपने काम से चली गयी।

वह लौटी तब वह गहरी नींद में सो रहा था। उसी ने उसे कन्धे से हिलाकर जगाया और घड़ी दिखाते हुए बताया कि अब लंच का समय हो गया है इसलिए--गो! यानी चलो!

वह अपनी उसी सित्रों कार में उसे जिनीवा लेक पर ले गयी। वहीं एक बेहद खूबसूरत रेस्तराँ में उसने खाना खिलाया...फिर उसने झील में तैरते काले हंस दिखाये...और शैले-शैले कहा। उसने अन्दाज लगा लिया कि वह अंग्रेजी कवि शैली की बात बताना चाहती थी, जो इसी झील में एक तूफानी दिन अपने प्राण खो बैठा था। उसने आत्महत्या कर ली थी।

फिर वह उसे पतझड़ से भरे सुनसान जंगलों को दिखाने ले गयी थी...पतझड़ का दृश्य देखकर वह विमुग्ध रह गया था...शायद छुट्टी के कारण बहुत से सैलानी झील पर और जंगलों में भी मौजूद थे। पर वहाँ भीड़ के बावजूद एकान्त भी था।

वह जूनिया को लेकर भी विमुग्ध था। कैसी लड़की है यह...कितनी विचित्र और कितनी अलग। जूनिया जैसे उसकी जन्म-जन्मान्तर की बन्धु बनी उसके साथ उन्मुक्त भाव से पेश आ रही थी...

और तभी जूनिया एक आजाद-उन्मुक्त पंछी की तरह पतझड़ के सफेद कालीन पर दौड़ती चली गयी और कोहरे में अदृश्य हो गयी...उसके जैसे पंख लग गये थे।

कुछ पुकारने जैसी आवाज तो आयी थी, पर उसे यहाँ पुकारने वाला कौन था...लेकिन उसके मन में अनुगूँज उठी थी कि कहीं जूनिया ने तो उसे नहीं पुकारा था...उसने मन ही मन उस आवाज का उत्तर दिया था-जूनिया! जूनिया!!

लेकिन उसके उत्तर में कोई आवाज लौटकर नहीं आयी।

पतझड़ से भरा वह सफेद जंगल अब उसे एक तिलिस्म-सा दिखाई दे रहा था...अगर जूनिया उस कोहरे से लौटकर न आए तो, वह क्या करेगा? चारों तरफ तो जंगल ही जंगल है।

तभी एकदम अँधेरा छा गया। सफेद जंगल सुरमई हो गया और बारिश होने लगी। बारिश की सर्द-सुइयाँ बदन के खुले हिस्सों पर चुभने लगीं...धीरे-धीरे उसका ओवरकोट भी भीग गया...और पतझड़ के सूखे पत्तों के नीचे जमा बर्फीले कीचड़ ने ठसके सूखे हुए जूतों और मोज़ों को फिर भिगो दिया। कि तभी एकाएक भीगी तितली की तरह जूनिया उस कोहरे की दुनिया से निकलकर उसके पास आयी थी। कपड़े भीगकर उसके बदन से चिपक गये थे। और तब उसने उसे भर आँख देखा था, वह संगमरमर की नंगी मूर्ति की तरह लग रही थी। एकाएक वह समझ ही नहीं पाया था कि जूनिया किसी मोटल की औरत थी या संगमरमर की कोई कलामूर्ति!...

और उस सर्द और अँधेरे मौसम में उसका हाथ पकड़कर जूनिया उसे अपनी सित्रों कार तक घसीटती ले गयी थी और स्तूदियो की तरफ चल दी थी। बारिश और तेज हो गयी थी पर अभी तक बर्फ की बारिश में नहीं बदली थी। वह स्टेशन तक जाकर अपने कपड़े लाना चाहता था, पर कुछ संकोच, अड़चन और जूनिया की उन्मुक्त लय को तोड़ देने का साहस वह नहीं कर पाया था।

एकाएक सर्द हवा चलने लगी थी। उसने अपना भीगा हुआ ओवरकोट उतार कर जूनिया को देना चाहा था, पर कार में जगह की कमी और संगमरमरी जूनिया को लगातार देख सकने की इच्छा ने उसे रोक दिया था...

घर पहुँचते ही जूनिया ने इशारे से पूछा कि पहले तुम नहाओगे या मैं ?...नहाना क्या जरूरी था? पर जूनिया के प्रति एक अजीब-सी आसक्त के आकर्षण ने उसे खुद पहले नहाने को तैयार कर दिया था। पर कपड़े उसके पास कहाँ थे? उसकी उलझन को समझकर जूनिया ने अपना एक गाउन उसे दिया था और समझाकर बताया था कि आज इसे पहनकर ही सो जाओ...कौन देखनेवाला है कि तुम एक लड़की का गाउन पहनकर सो रहे हो...सुबह तक तुम्हारे कपड़े सूख जाएँगे...तब तुम उन्हें पहन लेना,

.और जब तक गैलरी के बाथरूम के गर्म पानी से नहाकर वह वापस आया था, तब तक जूनिया उस सर्दी में उसी संगमरमर की नंगी मूर्ति की तरह बैठी हुई चाय पी रही थी। वह जूनिया के गाउन में बहुत अटपटा महसूस कर रहा था।

फिर वह नहाने चली गयी। और जब वह लौटकर आयी, तब तक एक चूल्हे वाले किचिन में दलिया और पोर्क की खिचड़ी पककर तैयार हो गयी थी।

खिचड़ी खाने के बाद अब उसके सामने सोने का सवाल था। बिस्तर तो एक ही था और सर्दी हद से ज्यादा बढ़ गयी थी। दोपहर में तो वह अकेला था, इसलिए शान्ति से सो तो गया था, लेकिन अब इस रात में ?...इस रात में... ?

तब तक जूनिया अपना गाउन उतारकर बिलकुल एक उजागर संगमरमरी मूर्ति के रूप में उसके सामने थी। उसने उसी एक बिस्तर पर “इलेक्ट्रिक क्विल्ट' लगाकर उसे पुकारा था-गो! यानी आओ...

बिजली की यह रजाई गर्म हो रही थी और सारे संकोच के बावजूद वह अब आराम से सोना चाहता था-पर जूनिया का उजागर संगमरमरी शरीर उसे पुकार रहा था...पता नहीं यह पुकार खुद उसके मन की थी या जूनिया के मन की...

बिजली की उसी एक रजाई में आखिर वह भी जूनिया के साथ घुस गया था और करवट लेकर उसने उसके लिए तीन चौथाई जगह छोड़ दी थी...वह आधी से अधिक जगह पार करके भी जूनिया की तरफ नहीं खिसक पाया था और न जूनिया ने आधे बिस्तर की यह लक्ष्मण रेखा पार की थी।

सुबह आँख खुली तो चाय तैयार थी। साथ में उबले अण्डों का नाश्ता था। उसके बाद जूनिया ने पिछले दिन की तरह पेस्ट और ब्रुश उसके सामने रख दिया था...आज उसे इशारा करके कुछ बताने ककी जरूरत नहीं थी। उसे पता था कि बाथरूम की चाबी कहाँ लटकी हुई है।

बाथरूम से वह लौटा तो जूनिया तैयार होकर अब एक खूबसूरत पेण्टिंग की तरह उसके सामने मौजूद थी। उसने भर आँख उसे देखा। जूनिया मुस्करायी और बोली-गो! यानी चलें!

और तब उसे स्टेशन पर खड़ी गाड़ी तक पहुँचाने के लिए वह जिनीवा की स्विस बैंकों वाली स्ट्रीट से होती हुई पहले एक बहुत बड़े डिपार्टमेण्ट स्टोर में पहुँची थी। उसने अपनी गाड़ी पेवमेण्ट पर चढ़ा कर पार्क की और उसे डिपार्टमेण्ट स्टोर के लाऊंज में बैठाकर वह खुद भीतर चली गयी थी। उसने समझा जूनिया को कुछ खरीदना होगा।

काफी देर बाद जब वह लौटी तो उसके साथ एक बहुत खूबसूरत नौजवान था। उसने हलो किया और पास बैठ गया। जूनिया उसके उस पार बैठी हुई थी। और तब बहुत शालीनता से उस नौजवान ने अँग्रेजी में बात शुरू की थी...

"मेरा नाम फिलिप है...मैं इस डिपार्टमेण्ट स्टोर में नौकर हूँ, जूनिया मेरी मंगेतर है...हम जल्दी ही शादी कर लेंगे। इसने मुझे बताया कि तुम कल सुबह आये थे...तुम बहुत थके हुए थे।'”

जूनिया का मंगेतर अंग्रेजी में बात कर रहा था, इसलिए उसने सोचा कि एक अजनबी की तरह इस तरह आने और ठहर जाने का रहस्य साफ कर दे। उसने कहा, “जी हाँ, मैं बर्फ का तूफान पार करता हुआ आया था...और असल में मुझे 'मेरीयाने कम्यून' में ठहरना था...मैंने वहीं फोन किया था... "

“हाँ, तुमने ठीक ही फोन किया था...हाँ...क्या...हाँ, और देखो जूनिया कह रही है कि वह कम्यून अब वहाँ नहीं है, पर वह फोन तो अब भी वहीं है...क्या यह एक खूबसूरत बात नहीं है?''

और जूनिया की बहुत खूबसूरत हँसी उसे फिलिप के कन्धे के उस पार से सुनाई दी थी...

“कल मेरी छुट्टी थी इसलिए जूनिया तुम्हें मुझसे मिलवा नहीं पायी...आज लेकर आयी है...” फिलिप बोला।

“मैं...मैं जूनिया को बहुत...बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ...बहुत-बहुत!'” उसके मुँह से अनायास निकला था।

“अरे, इसमें धन्यवाद की क्‍या बात है...हाँ क्या...हाँ...हाँ...जूनिया कह रही है, कल रात भी तेज तूफान आया था...शायद तुम उसमें कहीं भटक जाते...इसलिए उसने सुबह तक का इन्तजार किया...हाँ...हाँ..एक और बात, जूनिया जानना चाहती है कि तुम कौन हो?''

“तुम कौन हो! तुम कौन हो!...' जूनिया का यह सवाल एक आदिम सवाल की तरह उसकी पूरी चेतना में कौंधने और गूँजने लगा था।

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रचनाएँ
कमलेश्वर जी की हिन्दी कहानियाँ
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कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमलेश्वर के कुछ ख़ास सृजन में 'काली आंधी', 'लौटे हुए मुसाफ़िर', 'कितने पाकिस्तान', 'तीसरा आदमी', 'कोहरा' और 'माँस का दरिया' शामिल हैं। हिंदी की कई पत्रिकाओं का संपादन किया लेकिन पत्रिका 'सारिका' के संपादन को आज भी मानक के तौर पर देखा जाता है। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं।
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खर्चा मवेशियान

20 जुलाई 2022
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राज्य के वन-मन्त्री दौरे पर थे। रिजर्व फारेस्ट के डाक बँगले में उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ के लश्कर वालों ने भी। उन्होंने वन अधिकारी को बुलवाया और ताकीद की-देखो रेंजर बाबू! मैं पुराने मन्त्री की तरह

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गर्मियों के दिन

20 जुलाई 2022
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चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर

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चप्पल

20 जुलाई 2022
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कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार

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जार्ज पंचम की नाक

20 जुलाई 2022
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यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए

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तस्वीर, इश्क की खूँटियाँ और जनेऊ

20 जुलाई 2022
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वे तीन वेश्याएँ थीं। वे अपना नाम और शिनाख्त छुपाना नहीं चाहती थीं। वैसे भी उनके पास छुपाने को कुछ था नहीं। वे वेश्याएँ लगती भी नहीं थीं। उनके उठने-बैठने और बात करने में सलीका था। मेक-अप भी ऐसा नहीं जो

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तुम कौन हो

20 जुलाई 2022
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रात तूफानी थी। पहले बारिश, फिर बर्फ की बारिश और बेहद घना कोहरा। अगर हवा तेज न होती तो शायद इतनी मुसीबत न उठानी पड़ती। पर हवा और हवा में फर्क होता है। यह तो तूफानी हवा थी जो तीर की तरह लगती थी। गाड़ी व

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नीली झील

20 जुलाई 2022
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बहुत दूर से ही वह नीली झील दिखाई पड़ने लगती है। सपाट मैदानों के छोर पर, पेड़ों के झुरमुट के पीछे, ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे धरती एकदम ढालू होकर छिप गया हो, लेकिन गौर से देखने पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच

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पेट्रोल

20 जुलाई 2022
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मन्त्री जी लम्बे दौरे से लौट रहे थे। अरे ड्राइवर! पेट्रोल पूरा भरवा लिया था? जी साब, भरवा नहीं पाया। पर इतना है कि घर तक आराम से पहुँच जाएँगे! तभी रास्ते में उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र के दो लोग मिल

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मांस का दरिया

20 जुलाई 2022
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जाँच करने बाली डॉक्टरनी ने इतना ही कहा था कि उसे कोई पोशीदा मर्ज नहीं है, पर तपेदिक के आसार ज़रूर हैं। उसने एक पर्चा भी लिख दिया था। खाने को गिज़ा बताई थी। कमेटी पहले ही पेशे पर रोक लगा चुकी थी। सब प

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राजा निरबंसिया

20 जुलाई 2022
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'एक राजा निरबंसिया थे', मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आस-पास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुर

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लाश

20 जुलाई 2022
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सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सडकों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली के खम्भों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालण्टियर कई दिनों से शहर में पर्चे बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकडती जा रही थीं।

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सफेद सड़क

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सवाल नंगी सास का

20 जुलाई 2022
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सुबह खिड़की के काँच पर भाप जमी थी। भीतर से साफ करना चाहा तो बाहर पानी की लकीरें नरम बर्फ की परत जमी रहीं। फिर भी कुछ-कुछ दिखाई देता था। ट्रेन किसी मोड़ पर थी। उसके कूल्हे पर खूबसूरत खम पड़ रहा था। नर्

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सीख़चे

20 जुलाई 2022
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जिन्दगी के दूसरे पहर में यदि सूरज न चमका तो दोपहरी कैसी ? बादल आते हैं, फट जाते हैं, परन्तु ये भूरे धुँधले बादल तो उसे हटते नजर ही नहीं आते। अगर उसका अपना दूसरा सूरज हो तो कैसा रहे ? इस मुहल्ले में अ

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सुबह का सपना

20 जुलाई 2022
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बात असल में यों हुई। उन दिनों शहर में प्रदर्शनी चल रही थी। जाने की कभी तबीयत न हुई। आखिर एक दिन मेरे मित्र मुझे घर से पकड़ ले गए। शायद आखिरी दिन था उसका। चला गया, पर ऐसे जमघटों में अब मन नहीं जमता। वह

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हवा है, हवा की आवाज नहीं है

20 जुलाई 2022
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कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे

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शास्त्रज्ञ मूर्ख (हितोपदेश)

20 जुलाई 2022
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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए। अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे।

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अपनी-अपनी दौलत

20 जुलाई 2022
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पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकमटैक्स विभाग का कोई अफसर आया है और उनके हिसाब-किताब के रजिस्टर और बही-खाते चेक करना चाहता है। अब क्या होगा मुनीम जी ? ज़मींदार ने घबरा कर कहा-कुछ करो म

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आत्मा की आवाज़

20 जुलाई 2022
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मैं अपना काम खत्म करके वापस घर आ गया था। घर में कोई परदा करने वाला तो नहीं था, पर बड़ी झिझक लग रही थी। गोपाल दूर के रिश्ते से बड़ा भाई होता है, पर मेरे लिए वह मित्र के रूप में अधिक निकट था। आंगन में च

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इंटेलैक्च्युअल

20 जुलाई 2022
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हिन्दी के एक बड़े आदरणीय आचार्य थे। आस्था से वे घनघोर सनातनी थे। लेकिन एक दिन न जाने क्‍या हुआ कि आचार्य जी ने सनातन धर्म की धज्जियाँ निकाल दीं। आर्य समाजियों को ख़बर मिली। वे बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्ह

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एक अश्लील कहानी

20 जुलाई 2022
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नग्नता में भयानक आकर्षण होता है, उससे आदमी की सौन्दर्यवृत्ति की कितनी सन्तुष्टि होती है और कैसे होती है, यह बात बड़े दुःखद रूप में एक दिन स्पष्ट हो ही गयी। अनावृत शरीर से न जाने कैसी किरनें फूटती हैं,

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कर्त्तव्य

20 जुलाई 2022
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शाही हरम की बेगमों की डोलियाँ बीजापुर से दिल्ली की ओर जा रही थीं : रास्ता बीहड़ और सुनसान था। रास्ते में मराठा महाराज शिवाजी का इलाका तो पड़ता ही था। सेना के अपने दुश्मन और अपनी दक्षता होती है, साथ ही

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कामरेड

20 जुलाई 2022
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लाल हिन्द, कामरेड!--एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा। लाल हिन्द--कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेड़ों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी ह

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कोहरा

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पियरे की बात मुझे बार-बार याद आ रही थी-पैसे से उजाला नहीं होता ! अगर होता, तो हमारा देश सूरज को खरीद लेता ! लेकिन तुम सूरज नहीं खरीद सकते ! उस वक्त हम एक छोटी-सी घाटी में खड़े हुए थे। रीथ भी साथ थी।

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खामोशी एडगर ऐलन पो

20 जुलाई 2022
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'मेरी बात सुनो,' शैतान ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'जिस जगह की मैं बात कर रहा हूँ, वह लीबिया का निर्जन इलाका है - जेअर नदी के तट के साथ-साथ, और वहाँ न तो शांति है, न खामोशी। नदी का पानी भूरा मटमै

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गार्ड आफ ऑनर

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मिली-जुली गठबन्धन सरकार के एक मन्त्री। पुलिस लाइन में उनका दौरा था। कार से उतरते ही वे प्रशंसकों-चापलूसों से घिर गए। गले में मालाएँ पड़ने लगीं। फूलों की बौछार। नारों की जय-जयकार। तब एक पुलिस अफसर भी

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चौकी-चौका -बंदर

20 जुलाई 2022
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एक पण्डित जी घर के चबूतरे पर चौकी लगाकर बैठते थे। मोहल्ले के लोग कभी धर्म पर, कभी स्वास्थ्य पर, कभी ध्यान योग पर उनके उपयोगी प्रवचन सुनते थे। उसी चौकी पर लोग दान-दक्षिणा रख देते थे। उसी से पण्डित जी

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तलाश

20 जुलाई 2022
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उसने बहुत धीरे-से दरवाज़े को धक्का दिया। वह भीतर से बंद था। जब तक वह सोई थी, तब तक बीचवाला दरवाज़ा बंद नहीं किया गया था। भिड़े हुए दरवाज़े की फाँक से रोशनी का एक आरा-सा गिरता रहा था, रोशनी मोमिया कागज

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तीसरा संस्करण

20 जुलाई 2022
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एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ। तब समाज क

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दिल्ली में एक मौत

20 जुलाई 2022
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मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश

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पत्थर की आँख

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यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने

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भूख

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पूस की दाँतकाटी सर्दी पड़ रही थी। बच्चा भूखा था। माँ के स्तनों में दूध नहीं था। थोड़ी दूर पर एक अलाव जल रहा था। भूखा बच्चा माँ के स्तनों को निचोड़ता पर जब दूध नहीं निकलता था तो वह बच्चे को लेकर अलाव क

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मुक़ाबला

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सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली

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रावल की रेल

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तो दोस्तो, हुआ ऐसा कि मैं कच्छ के दिशाहारा रेगिस्तान की यात्रा से ध्वस्त और त्रस्त किसी तरह भुज (गुजरात) पहुँचा। स्टेशन के अलावा और कोई भरोसे की जगह नहीं थी, इसलिए वहीं चला गया। स्टेशन पर मीटर गेज की

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वीपिंग-विलो

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हैम्पटन कोर्ट पैलेस से निकलकर गरम चाय पीने की तलब सता रही थी। पुराने किलों या महलों से निकलकर जैसी व्यर्थता हमेशा भीतर भर जाती है, वैसी ही व्यर्थता मन में भरी हुई थी। एक निहायत बेकार-सी अनुभूति। उदासी

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सर्कस

20 जुलाई 2022
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सर्कस तो आपने जरूर देखा होगा। उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं। शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्‍का घूमता हुआ आता है। उसी के साथ एक छरहरे

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सिपाही और हंस

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तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे। राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखो

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सुख

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यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया थ

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हमलावर कौन ?

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दोस्तो! यह आज के यथार्थ को पेश करती एक दारुण कहानी है। इसके लेखक हैं-मुद्राराक्षष। यह कालजयी कहानी मैं आपको सुनाता हूँ- भारत-पाकिस्तान युद्ध । भारत की सेनाएँ पाकिस्तानी इलाकों को जीतती हुई भीतर तक पा

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लघु-कथाएँ

20 जुलाई 2022
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घूँघटवाली बहू बात वृन्दावन की है। मैं मन्दिरों में नहीं जाता। देखना हो तो जाने से परहेज भी नहीं करता। कहा गया कि बिहारी जी का मन्दिर तो देख ही लीजिए। यानी दर्शन कर लीजिए। गया। पर रास्ते और आस-पास की

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इनसान और भगवान्

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यह एक अजीब विस्मयकारी और चौंकानेवाला दृश्य था। भादों का महीना और कृष्ण जन्माष्टमी का अवसर। निर्जला व्रत किए लाखों लोगों का हुजूम, जो कृष्ण जन्माष्टमी के महोत्सव में शामिल होने आए थे। कृष्ण मंदिरों के

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अष्टावक्र का विवाह

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एक बार महर्षि, अष्टावक्र महर्षि वदान्य की कन्या के रूप पर मोहित हो गये। उन्होंने उसके पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा,

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दीर्घतमा और प्रद्वेषी

20 जुलाई 2022
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प्राचीन काल में उतथ्य नाम के एक ऋषि थे। उनकी स्त्री का नाम ममता था। ममता अत्यन्त रूपवती थी। जब वह चलती तो आश्रम में एक बार तो उस रूप की गन्ध चारों ओर बिखर जाती। ममता के इस अनुपम रूप को देखकर उतथ्य के

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बिलाव और चूहे

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किसी विशाल घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था। उसकी जड़ों में सौ मुँह वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक चूहा रहता था। उसी वृक्ष की डाल पर लोमश नाम का एक बिलाव रहता था। कुछ दिनों बाद एक चाण्डाल भी आकर उ

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कबूतर और बहेलिया

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प्राचीन काल में एक क्रूर और पापात्मा बहेलिया रहता था। वह सदा पक्षियों को मारने के नीच कर्म में प्रवृत्त रहता था। उस दुरात्मा का रंग कौए के समान काला था और उसकी आकृति ऐसी भयानक थी कि सभी उससे घृणा करते

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मृत्यु ही ब्रह्म है

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याज्ञवल्क्य ने जाने कितने छात्रों को, जाने कितनी बार पढ़ाया होगा यह सूक्त। कितनी बार दुहराया होगा वह अर्थ जो उन्होंने अपने गुरु से सुना था। पर आज पहला मन्त्र पढ़ना आरम्भ किया, “न असत् आसीत् न सत् आसीत

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गुरु मिले तो

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वरुण एक जमाने में सबसे बड़े देवता थे। इन्द्र से भी बड़े। जिस काम के लिए बाद में इन्द्र बदनाम हुए उसका भी कुछ सम्बन्ध वरुण से था। नतीजा यह कि अनेक ऋषियों को वरुण की सन्तान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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कुत्ते का ब्रह्म ज्ञान

20 जुलाई 2022
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बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भ

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वररुचि की कथा

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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त

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गुणाढ्य

20 जुलाई 2022
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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन

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राजा विक्रम और दो ब्राह्मण

20 जुलाई 2022
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संसार में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी महाकाल की निवासभूमि है। उस नगरी के अमल धवल भवन इतने ऊँचे-ऊँचे हैं कि देखकर लगता है जैसे कैलास के शिखर भगवान शिव की सेवा के लिए वहाँ आ गये हों। उस नगरी में यथा नाम तथा

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शूरसेन और सुषेणा

20 जुलाई 2022
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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह च

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कैवर्तक कुमार

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राजगृह में मलयसिंह नाम के राजा राज्य करते थे। उनके मायावती नाम की अप्रतिम रूपवती एक कन्या थी। एक बार वह राजोद्यान में खेल रही थी तभी एक कैवर्तककुमार (मछुआरे के बेटे) की दृष्टि उस पर पड़ गयी। सुप्रहार

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