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अंतिम संस्कार

26 नवम्बर 2024

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 प्रभात के पार्थिव शरीर को सफेद चादर में लपेटा गया था, और हर किसी की आँखों में आँसुओं का सैलाब था। अरुणिमा, जो अब भी शादी के जोड़े में थी, उसे देखते हुए एक बुत बन गई थी। उसके हाथ कांप रहे थे, और वह चुपचाप प्रभात के चेहरे को देख रही थी।

प्रभात की मां अपने बेटे के शरीर के पास बैठी हुई थी, उनकी आँखों में मातृत्व की पीड़ा और दिल में असहनीय दुःख। वह बार-बार प्रभात का माथा सहला रही थीं, मानो यह सोच रही हों कि यह सब एक बुरा सपना है। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "तूने कहा था, मेरी बुजुर्गी का सहारा बनेगा। अब कैसे जीऊँगी तेरे बिना?"

अरुणिमा की मां ने उनकी तरफ देखा और उन्हें संभालने की कोशिश की, लेकिन खुद भी उनकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "भाभी, हमें हिम्मत रखनी होगी। भगवान की यही मर्जी थी।"

लेकिन उस क्षण, अरुणिमा के पास कोई शब्द नहीं थे। वह एक कदम आगे बढ़ी और प्रभात के माथे को अपने कांपते हाथों से छुआ। उसकी आँखों से आँसू चुपचाप उसके गालों पर बहने लगे। उसने प्रभात से कहा, "तुमने कहा था, यह हमारी ज़िंदगी की नई शुरुआत है। यह कैसा अंत है, प्रभात? मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारे साथ मेरा सफर इतना छोटा होगा।"

अंतिम यात्रा के लिए प्रभात के शरीर को अर्थी पर रखा गया। प्रभात के पिता ने कांपते हाथों से कंधा दिया। उनके चेहरे पर ऐसा दर्द था, जो शब्दों से परे था। उन्होंने कहा, "आज मैं अपने बेटे की अर्थी को कंधा दे रहा हूँ। यह दिन किसी भी पिता के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।"

रिया, जो अब तक खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी, अपनी जगह से दौड़कर भाई की अर्थी के पास आ गई। उसने प्रभात के पैर पकड़ लिए और फूट-फूटकर रोने लगी। "भैया, तुमने तो कहा था कि तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे। अब कौन मेरे हर सवाल का जवाब देगा? कौन मुझे मेरी हर गलती पर समझाएगा?"

अरुणिमा ने रिया को गले लगाया और सिसकते हुए कहा, "तुम्हारा भाई हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा, रिया। उसकी यादें, उसका प्यार, वह सब तुम्हारे साथ रहेगा।"

अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पर पहुंचे। चिता सजाई गई, और हर कोई असहाय खड़ा था। अरुणिमा ने प्रभात के चेहरे को देखा और कहा, "यह मेरा वादा है कि मैं हमेशा तुम्हारी पत्नी रहूंगी। चाहे तुम इस दुनिया में हो या नहीं।" तुम्हारी वादों की मुलाक़ात हमेशा मेरी यादों में रहेगी।

प्रभात के पिता ने उनकी चिता को आग दी। चारों ओर एक भारी सन्नाटा था, केवल लकड़ियों के जलने की आवाज़ गूंज रही थी। अरुणिमा ने दूर से देखा, उसकी आँखें अब भी प्रभात को ढूंढ रही थीं, लेकिन वह जानती थी कि अब उसे केवल यादों के सहारे जीना होगा।

प्रभात की मां ने अपने हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की, "हे भगवान, मेरे बेटे को अपनी शरण में ले लो। उसे वही सुकून दो, जो इस दुनिया ने उससे छीन लिया।"

रिया, जो अभी भी रो रही थी, अरुणिमा के पास आई और कहा, "भाभी, आप हमारे साथ हैं, तो भैया भी हमारे साथ हैं। आप हमें छोड़कर कभी मत जाइए।"

अरुणिमा ने रिया को गले लगाया और खुद को संभालने की कोशिश की। उसने खुद से वादा किया कि वह प्रभात के सपनों को पूरा करने की कोशिश करेगी, लेकिन उस क्षण, उसकी दुनिया पूरी तरह से टूट चुकी थी।


अंतिम संस्कार  का समय अरुणिमा और उसके परिवार के लिए कठिनतम दौर था। प्रभात की चिता से उठता धुआं जैसे अरुणिमा की आत्मा को चीर रहा था। वह शून्य में ताकती खड़ी थी, मानो उसके भीतर कुछ टूट चुका हो।


प्रभात की मां के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह बार-बार कहतीं, "मेरा बेटा... इतना बड़ा अन्याय क्यों? भगवान ने यह क्यों किया?" 

अंतिम संस्कार के बाद, परिवार जब घर लौटा, तो घर की खामोशी असहनीय लग रही थी। हर कोने में प्रभात की यादें बसी हुई थीं। दरवाजे पर लगे शुभ विवाह के तोरण अब चुभने लगे थे। सजावट की बची हुई लड़ियां, अधजले दीये, और फूलों की मुरझाई हुई मालाएं इस बात का एहसास दिला रही थीं कि खुशी के इस घर में अब गहरा सन्नाटा छा गया है।

अरुणिमा, जो अब भी अपने शादी के लाल जोड़े में थी, सबसे आखिरी में घर के अंदर आई। उसकी आंखें सूजी हुई थीं, और पैर कांप रहे थे। प्रभात के पिता ने दरवाजे पर खड़े होकर उसका सहारा दिया और कहा, "बेटा, तुमने जिस हिम्मत के साथ सबकुछ संभाला, वह कोई और नहीं कर सकता था। तुमने आज ये परिवार संभाल लिया, लेकिन अब हमें तुम्हारा भी ख्याल रखना है।"

अरुणिमा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप घर के भीतर आई और सोफे के पास बैठ गई। उसने चारों तरफ देखा, हर चीज उसे प्रभात की याद दिला रही थी। वहीं, रिया अपनी मां के गले लगकर फूट-फूटकर रो पड़ी।

प्रभात की मां बिल्कुल स्तब्ध थीं। वह कमरे के एक कोने में बैठकर चुपचाप रो रही थीं। उनकी आंखों के आंसू थम ही नहीं रहे थे। रिया ने उनके पास जाकर कहा, "मां, भाभी और हम सब हैं। हमें आपके सहारे की जरूरत है।"

मां ने अपने कांपते हुए हाथों से रिया को गले लगा लिया और कहा, "बेटा, प्रभात के बिना सब अधूरा लग रहा है। लेकिन हां, अब तुम दोनों मेरी ताकत हो।"

प्रभात के पिता ने धीरे से अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "जो हुआ, उसे हम बदल नहीं सकते। लेकिन हमें उसकी यादों को उसकी ताकत बनाना होगा।" उनकी आवाज भारी थी, लेकिन उनका इरादा मजबूत लग रहा था।

रिया भी इस दुःख से उबरने की कोशिश कर रही थी, लेकिन जब भी वह अपने भाई के कमरे को देखती, उसकी आंखों से आंसू बहने लगते।

अरुणिमा चुपचाप कमरे के कोने में बैठी थी। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वह किसी से कुछ कह नहीं रही थी। वह प्रभात के साथ बिताए हर पल को याद कर रही थी। उसे उनके साथ की हर छोटी-बड़ी बात याद आ रही थी।

एक समय ऐसा आया जब रिया उसके पास आई और कहा, "भाभी, भैया हमेशा कहते थे कि आप हमारी ताकत हैं। मुझे पता है कि आप अभी बहुत दर्द में हैं, लेकिन आप हमें कभी टूटने नहीं देंगी।"

यह सुनकर अरुणिमा ने रिया को गले लगाया और कहा, "तुम्हारा और मां-पापा का ख्याल रखना ही अब मेरी जिंदगी का मकसद है। प्रभात ने मुझे ये परिवार सौंपा है, और मैं इसे कभी टूटने नहीं दूंगी।"

शाम होते-होते, परिवार के सभी सदस्य प्रभात के कमरे में इकट्ठे हो गए। उसकी अलमारी, उसकी किताबें, और उसके बचपन के खिलौने—हर चीज पर धूल की एक हल्की परत जमने लगी थी, मानो समय भी उसकी कमी महसूस कर रहा हो।

मां ने उसका तकिया उठाया और फूट-फूटकर रो पड़ीं। पिता ने उन्हें संभाला और कहा, "हम उसे इस तरह याद नहीं करेंगे। वह जहां भी होगा, हमें मजबूत देखना चाहेगा।"

रात के वक्त, घर में एक अजीब सा सन्नाटा था। अरुणिमा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। वह प्रभात की तस्वीर को देख रही थी और सोच रही थी कि उसकी जिंदगी कैसे बदल गई। शादी के बाद वह जो सपने देख रही थी, वे सब बिखर गए थे।

उसने प्रभात की तस्वीर को गले लगाया और धीरे से कहा, "तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है, लेकिन मैंने वादा किया था कि तुम्हारे परिवार को हमेशा संभालूंगी। मैं ये वादा निभाऊंगी, चाहे मेरी जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं।"

अगली सुबह, परिवार ने मिलकर एक-दूसरे को संभालने की कोशिश की। पिता ने कहा, "हमें अब एक नई शुरुआत करनी होगी। प्रभात चाहता था कि हम खुश रहें।"

अरुणिमा ने अपनी आंखें पोंछी और कहा, "मैं इस परिवार की बेटी और बहू दोनों हूं। प्रभात की जगह कोई नहीं ले सकता, लेकिन मैं उनकी जिम्मेदारियां जरूर निभाऊंगी।"

इस तरह, परिवार ने धीरे-धीरे अपने दुख के साथ जीना सीख लिया। लेकिन प्रभात की यादें हमेशा उनके दिलों में जिंदा रहीं।



बाकी की कहानी अगले भाग में......

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