तुम करोगे यूँ किनारा हमने सोचा ना था
करा के दिल क़ो चाहत अपनी
यूँ बदल जाओगे हमने ऐसा सोचा ना था।
तुम जानो मज़बूरी हैं, या कोई लाचारी तुम्हारी
हमें इस तरह से भूल जाने की
आदत हैं या अदा हैं तुम्हारी देखके तड़पाने की।
देखकर तुमको अपनी चाहत याद आती हैं
माना की होंगी तुमने बेवफाइयां मेरे साथ
बेवफाइयों की हर बात याद आती हैं।
अब तो आजा तुझे मेरी बफायें बुलाती हैं
मुझसे रूठकर जाने वाले
कैसे और कब कहुँ मैं तुझसे
तेरी बहुत याद आती हैं।
आँखों में हर पल तेरा चेहरा
तेरी याद हर पल याद आती हैं
आ लौट जा मेरी रहो में
बिन तेरे यें बर्बादीया मुझे रुलाती हैं।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से.