जब करने को मैं चला भ्रमण,
तब मिली आज कुछ नई पवन ।
भीनी भीनी इसकी सुगंध,
जिससे भौरे बन जायँ अंध,
यह पवन भरी थी मधुर गंध,
तन हुआ मगन, मन हुआ मगन,
जब मिली सुगंधित नई पवन ।
कुछ कुछ ऐसा तब हुआ ज्ञात-
इसमें सुगंध थी भाँत भाँत,
आसान न सब जानना बात,
बस मीठा था दिशि का कण कण,
यों मिली अनोखी सुखद पवन ।
बौरे रसाल, बौरे कटहल,
कचनार, अनार, शंतरे फल,
फूलों की गिनती नहीं सरल,
मन मस्त हो रहा था छन छन !
यों मिली बसन्ती मधुर पवन ।