कल्पनामयी ओ कल्यानी!
ओ मेरे भावों की रानी!
क्यों भिगो रही कोमल कपोल
बहता है आंखों से पानी !
कैसा विषाद ? कैसा रे दुख ?
सब समय नहीं है अंधकार !
आती है काली रजनी तो
दिन का भी है उज्ज्वल प्रसार !
अधरों पर अपने हास धरो,
बाधाओं का उपहास धरो,
जीवन का दिव्य बिकास धरो,
तुम यों न निराशा श्वास भरो!
विश्वास अमर, साधना सफल,
सत्कर्मों से श्रृंगार करो
धुंधली तस्वीरें खींच खींच
मत जीवन का संहार करो
वेदों उपनिषदों की धात्री!
चिर जीवन चिर आनंद यहाँ,
मंगल चितन, मंगल सुकर्म
है जीवन में अवसाद कहाँ ?
हे आर्यों की गौरव विभूति !
तुम जीवन में मत अमा बनो
कल्याण-अमृत की वर्षा हो
तुम आशा की पूर्णिमा बनो!
तुम जगद्धात्रि! जग कल्याणी!
तुम महाशक्ति ! सोचो क्या हो,
कविते! केवल तुम नहीं अश्रु
जीवन में जय की आत्मा हो!
तुम कर्मगान गाओ जननी
तुम धर्मगान गाओ धन्ये
तुम राष्ट्र धर्म की दीक्षा दो,
तुम करो राष्ट्र रक्षण पुण्ये!
गाओ आशा के दिव्य गान,
गाओ, गाओ भैरवी तान
युग युग का घन तम हो विलीन
फूटे युग में नूतन विहान!
कल्मष छूटे अंतरतम का
गानो पावन संगीत आज,
जागे जग में मंगल-प्रभात
गाओ वह मंगल-गीत आज!