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गाँवों में

16 जून 2022

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जगमग नगरों से दूर दूर

हैं जहाँ न ऊँचे खड़े महल,

टूटे-फूटे कुछ कच्चे घर

दिखते खेतों में चलते हल;


पुरई पाली, खपरैलों में

रहिमा रमुआ के नावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


नित फटे चीथड़े पहने जो

हड्डी-पसली के पुतलों में,

असली भारत है दिखलाता

नर-कंकालों की शकलों में;


पैरों की फटी बिवाई में,

अन्तस के गहरे घावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


दिन-रात सदा पिसते रहते

कृषकों में औ' मजदूरों में,

जिनको न नसीब नमक-रोटी

जीते रहते उन शूरों में;


भूखे ही जो हैं सो रहते

विधना के निठुर नियावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


उन रात-रात भर, दिन-दिन भर

खेतों में चलते दोलों में,

दुपहर की चना-चबेनी में

बिरहा के सूखे बोलों में;


फिर भी, ओठों पर हँसी लिये

मस्ती के मधुर भुलावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गांवों में !


अपनी उन रूप कुमारी में

जिनके नित रूखे रहें केश,

अपने उन राजकुमारों में

जिनके चिथड़ों से सजे वेश;


अंजन को तेल नहीं घर में

कोरी आँखों के हावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


उस एक कुएँ के पनघट पर

जिसका टूटा है अर्ध भाग,

सब सँभल-सँभल कर जल भरते

गिर जाय न कोई कहीं भाग;


है जहाँ गड़ारी जुड़ न सकी

युग-युग के द्रव्य अभावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


है जिनके पास एक धोती

है वही दरी, उनकी चादर,

जिससे वह लाज सँभाल सदा

निकला करती घर से बाहर,


पुर-वधुत्रों का क्या हो श्रृंगार?

जो बिका रईसों-रावों में !

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


सोने-चांदी का नाम न लो

पीतल - काँसे के कड़े-छड़े।

मिल जायँ बहूरानी को तो

समझो उनके सौभाग्य बड़े !


रांगे की काली बिछियों में

पति के सुहाग के भावों में।

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


ऋण-भार चढ़ा जिनके सिर पर

बढ़ता ही जाता सूद-ब्याज,

घर लाने के पहले कर से

छिन जाता है जिनका अनाज;


उन टूटे दिल की साधों में

उन टूटे हुए हियाओं में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


खुरपी ले ले छीलते घास

भरते कोछों की कोरों में,

लकड़ी का बोझ लदा सिर पर

जो कसा मूँज की डोरों में;


उनका अर्जन व्यापार यही

क्या करें ग़रीब उपायों में ?

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


आजीवन श्रम करते रहना,

मुँह से न किंतु कुछ भी कहना,

नित विपदा पर विपदा सहना

मन की मन में साधें ढहना;


ये आहें वे, ये आँसू वे

जो लिखे न कहीं किताबों में;

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


रामायण के दो-चार ग्रन्थ

जिनके ग्रन्थालय ज्ञान-धाम,

पढ़-सुन लेते जो कभी कभी

हो भक्ति-भाव-वश रामनाम;


जगगति युगगति जिनको न ज्ञात

उन अपढ़ अनारी भावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


चूती जिनकी खपरैल सदा

वर्षा की मूसलधारों में,

ढह जाती है कच्ची दिवार

पुरवाई की बौछारों में;


उन ठिठुर रहे, उन सिकुड़ रहे

थरथर हाथों में पाँवों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गांवों में!


जो जनम आसरे औरों के

युग-युग आश्रित जिनकी सीढ़ी,

जिनकी न कभी अपनी ज़मीन

मर-मिट जाये पीढ़ी-पीढ़ी;


मज़दूर सदा दो पैसे के

मालिक के चतुर दुरावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


दो कौर न मुँह में अन्न पड़े

तब भूल जायँ सारी तानें,

कवि पहचानेंगे रूप-परी

नर-कंकालों को क्या जाने ?


कल्पना सहम जाती उनकी

जाते इन ठौर कुठाँवों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में!


हड्डी - हड्डी पसली - पसली

निकली है जिनकी एक-एक,

पढ़ लो मानव, किस दानव ने

ये नर-हत्या के लिखे लेख !


पी गया रक्त, खा गया मांस

रे कौन स्वार्थ के दाँवों में !

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


आँखें भीतर जा रहीं धंसी

किस रौरव का बन रहीं कूप ?

लग गया पेट जा पीठी से

मानव ? हड्डी का खड़ा स्तूप !


क्यों जला न देते मरघट पर

शव रखा द्वार किन भावों में ?

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


जो एक प्रहर ही खा करके

देते हैं काट दीर्घ जीवन,

जीवन भर फटी लँगोटी ही

जिनका पीतांबर दिव्य वसन;


उन विश्व-भरण पोषणकर्ता

नर-नारायण के चावों में,

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !


सेगाँव बनें सब गाँव आज

हममें से मोहन बने एक,

उजड़ा वृन्दावन बस जावे

फिर सुख की वंशी बजे नेक;


गूंजें स्वतंत्रता की तानें

गंगा के मधुर बहावों में।

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में !

झोपड़ियों की ओर - सोहन लाल द्विवेदी

जिनके अस्थि-पंजरों की

नीवों पर ये प्रासाद खड़े,

जिनके उष्ण रक्त के गारे से

गढ़ डाले भवन बड़े;


जिनकी भूखों की होली पर

मना रहे तुम दीवाली,

जिनसे तुम उज्ज्वल ! देखो,

उनकी देहें काली-काली;


उन भोले-भाले कृषकों की

करुण कथाओं पर पिघलो।

महलों को भूलो प्यारे!

अब झोपड़ियों की ओर चलो !


उनके फटे चीथड़े देखो

अपने वस्त्र विभवशाली,

उनकी रोटी-नमक निहारो

अपनी खीर-भरी थाली;


उनके छूँछे टेंट निहारो

अपनी बसनी धनवाली,

उनके सूखे खेत निहारो

अपनी उपवन हरियाली !


यह अन्याय अनीति मिटायो

युग-युग का दुख दैन्य दलो।

महलों को भूलो प्यारे !

अब झोपड़ियों की ओर चलो!

किसान - सोहन लाल द्विवेदी

ये नभ-चुम्बी प्रासाद-भवन,

जिनमें मंडित मोहक कंचन,

ये चित्रकला-कौशल-दर्शन,

ये सिंह-पौर, तोरन, वन्दन,


गृह-टकराते जिनसे विमान,

गृह-जिनका सब आतंक मान,

सिर झुका समझते धन्य प्राण,

ये आन-बान, ये सभी शान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान!

वह तेरी ताक़त पर किसान !


ये रंग-महल, ये मान-भवन,

ये लीलागृह, ये गृह-उपवन,

ये क्रीड़ागृह, अन्तर प्रांगण,

रनिवास ख़ास, ये राज-सदन,


ये उच्च शिखर पर ध्वज निशान,

ड्योढ़ी पर शहनाई सुतान,

पहरेदारों की खर कृपाण,

ये आन-बान, ये सभी शान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी ताक़त पर किसान!


ये नूपुर की रुनझुन रुनझुन,

ये पायल की छम छम छम धुन,

ये गमक, मीड़, मीठी गुनगुन,

ये जन-समूह की गति सुनमुन,


ये मेहमान, ये मेज़मान,

साक्री, सूराही का समान,

ये जलसा महफ़िल, समाँ, तान,

ये करते हैं किस पर गुमान ?


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी रहमत पर किसान !

वह तेरी ताक़त पर किसान !


चलती शोभा का भार लिये,

अंगों का तरुण उभार लिये,

नखशिख सोलह शृङ्गार किये,

रसिकों के मन का प्यार लिये,


वह रूप, देख जिसको अजान,

जग सुध-बुध खोता हृदय-प्राण,

विधि की सुन्दरता का बखान,

प्राणों का अर्पण, प्रणय गान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिकमत पर किसान !

वह तेरी किस्मत पर किसान !


सभ्यता तीन बल खाती है,

इठलाती है, इतराती है,

शिष्टता लंक लचकाती है,

झुक झूम भूमि रज लाती है,


नम्रता, विनय, अनुनय महान,

सजनता, मधुर स्वभाव बान;

आगत-स्वागत, सम्मान-मान,

सरलता, शील के विशद गान,


वह तेरी दौलत पर किसान!

वह तेरी मेहनत पर किसान !!

वह तेरी रहमत पर किसान !

वह तेरी कुव्वत पर किसान !


शूरों-वीरों के बाहुदंड,

जिनमें अक्षय बल है प्रचंड,

ये प्रणवीरों के प्रण अखंड,

जो करते भूतल खंड-खंड,


ये योधाओं के धनुष-वाण,

ये वीरों के चमचम कृपाण,

ये शूरों के विक्रम महान,

ये रणवीरों की विजय-तान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी रहमत पर किसान !

वह तेरी ताकत पर किसान!


ये बड़े बड़े प्राचीन किले

जो महाकाल से नहीं हिले,

ये यश:स्तम्भ जो लौह ढले

जिनमें वीरों के नाम लिखे,


ये आर्यों के आदर्श गान,

ये गुप्त-वंश की विजय तान,

ये रजपूती जौहर गुमान,

ये मुग़ल-मराठों के बखान,

वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी जुर्रत पर किसान !


ये इन्द्रप्रस्थ के राज्य-सदन,

पाटलीपुत्र के भव्य भवन,

ये मगध, अयोध्या, ऋषिपत्तन,

उज्जैन अवन्ती के प्रांगण,


वैशाली का वैभव महान,

काशी-प्रयाग के कीर्ति-गान,

लखनवी नवाबों के वितान,

मथुरा की सुख-सम्पति महान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी ताकत पर किसान !


इस भारत का सुखमय अतीत,

जिसकी सुधि अब भी है पुनीत;

इस वर्तमान के विभव गीत,

जिनमें मन का मधु संगृहीत,


आशाओं का सुख मूर्तिमान,

अरमानों का स्वर्णिम विहान,

प्रतिदिन,प्रतिपल की क्रिया,ध्यान,

उज्ज्वल भविष्य के तान तान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी ताक़त पर किसान !


कल्पना पङ्ख फैलाती है,

छू छोर क्षितिज के आती है,

भावना डुबकियाँ खाती है,

सागर मथ अमृत लाती है,


ये शब्द विहग से गीतमान,

ये छन्द मलय से धावमान,

प्रतिभा की डाली पुष्पमान,

तनता मृदु कविता का वितान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान!

वह तेरी ताक़त पर किसान !


निर्णय देते हैं न्यायालय,

स्नातक बिखेरते विद्यालय ।

कौशल दिखलाते यन्त्रालय,

श्रद्धा समेटते देवालय,


ग्रन्थालय के ये गहन ज्ञान,

संगीतालय के तान-गान,

शस्त्रालय के खनखन कृपाण,

शास्त्रालय के गौरव महान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी कुव्वत पर किसान ।


ये साधु, सती, ये यती, सन्त,

ये तपसी-योगी, ये महन्त,

ये धनी-गुनी, पण्डित अनन्त,

ये नेता, वक्ता, कलावन्त


ज्ञानी-ध्यानी का ज्ञान-ध्यान,

दानी-मानी का दान-मान,

साधना, तपस्या के विधान,

ये मानव के बलिदान-गान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !

वह तेरी ताक़त पर किसान !


ये घनन-घनन घन घंटारव,

ये झाँझ-मृदंग-नाद भैरव,

ये स्वर्ण-थाल भारती विभव,

ये शङ्ख-ध्वनि, पूजन गौरव,


ये जन-समूह सागर समान,

जो उमड़ रहा तज धैर्य-ध्यान,

केसर, कस्तूरी, धूप दान

ये भक्ति-भाव के मत्त गान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी ग़फ़लत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान!


ये मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर,

पादरी, मौलवी, पण्डितवर,

ये मठ, विहार, गद्दी गुरुवर,

भिक्षुक, सन्यासी, यतीप्रवर,


जप-तप, व्रत-पूजा, ज्ञान-ध्यान,

रोज़ा-नमाज़, वहदत, अजान,

ये धर्म-कर्म, दीनो-इमान,

पोथी पुराण, कलमा- कुरान,


वह तेरी दौलत पर किसान !

वह तेरी मेहनत पर किसान !

वह तेरी न्यामत पर किसान !

वह तेरी बरकत पर किसान!


ये बड़े-बड़े साम्राज्य - राज,

युग-युग से पाते चले आज,

ये सिंहासन, ये तख्त-ताज,

ये किले दुर्ग, गढ़ शस्त्र-साज,


इन राज्यों की ईंटें महान,

इन राज्यों की नींवें महान,

इनकी दीवारों की उठान,

इनकी प्राचीरों के उड़ान,


वह तेरी हड्डी पर किसान !

वह तेरी पसली पर किसान !

वह तेरी यांतों पर किसान!

नस की आँतों पर रे किसान!


यदि हिल उठ तू ओ शेषनाग !

हो ध्वस्त पलक में राज्य-भाग,

सम्राट् निहारे, नींद त्याग,

है कहीं मुकुट, तो कहीं पाग!


सामन्त भग रहे बचा जान,

सन्तरी भयाकुल, लुप्त ज्ञान,

सेनायें हैं ढूँढ़ती त्राण;

उड़ गये हवा में ध्वज-निशान !


साम्राज्यवाद का यह विधान,

शासन-सत्ता का यह गुमान,

वह तेरी रहमत पर किसान !

वह तेरी गफलत पर किसान !


मा ने तुझ पर आशा बाँधी,

तू दे अपने बल की काँधी;

ओ मलय पवन बन जा आंधी,

तुझसे ही गांधी है गांधी,


तुझसे सुभाष है भासमान,

तुझमे मोती का बढ़ा मान;

तू ज्योति जवाहर की महान,

उड़ता नभ पर अपना निशान,


वह तेरी ताकत पर किसान !

वह तेरी कुव्वत पर किसान!

वह तेरी जुरअत पर किसान !

वह तेरी हिम्मत पर किसान !


तू मदवालों से भाग-भाग,

सोये किसान, उठ ! जाग-जाग!

निष्ठुर शासन में लगा आग,

गा महाक्रान्ति का अभयराग!


लख जननी का मुख आज म्लान,

वह तेरा ही धर रही ध्यान,

तेरा लोहा जो सके मान,

किसमें इतना बल है महान ?


रे मर मिटने की ठान-ठान,

ले स्वतन्त्रता का शुभ विहान ।

गूंजे नभ दिशि में एक तान_

जयजन्मभूमि ! जय-जय किसान!


सोहन लाल द्विवेदी की अन्य किताबें

72
रचनाएँ
सोहनलाल द्विवेदी की प्रसिद्ध रचनाएँ
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सोहन लाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। सोहनलाल द्विवेदी स्वतंत्रता आंदोलन युग के एक ऐसे विराट कवि थे, जिन्होंने जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृति करने, उनमें देश-भक्ति की भावना भरने और नवयुवकों को देश के लिए बड़े से बड़े बलिदान के लिए प्रेरित करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी। वे पूर्णत: राष्ट्र को समर्पित कवि थे। सोहनलाल द्विवेदी जी की कविताओं का मुख्य विषय राष्ट्रीय उद्बोधन है। उनमें जागरण का सन्देश है। खादी-प्रचार, ग्राम-सुधार, देशभक्ति, सत्य, अहिंसा और प्रेम उनकी कविता के मुख्य विषय हैं।
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

16 जून 2022
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर च

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पूजा-गीत

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वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो। राग में जब मत्त झूलो तो कभी माँ को न भूलो, अर्चना के रत्नकण में एक कण मेरा मिला लो। जब हृदय का तार बोले, शृंखला के बंद खोले; हों जहाँ बलि शीश अगणित,

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नववर्ष

16 जून 2022
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स्वागत! जीवन के नवल वर्ष आओ, नूतन-निर्माण लिये, इस महा जागरण के युग में जाग्रत जीवन अभिमान लिये; दीनों दुखियों का त्राण लिये मानवता का कल्याण लिये, स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष! तुम आओ स्वर्ण-वि

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जगमग जगमग

16 जून 2022
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हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, नीचे ऊपर, हर जगह सुघर, कैसी उजियाली है पग-पग? जगमग जगमग जगमग जगमग! छज्जों में, छत में, आले में, तुलसी के नन्हें थाले में, यह कौन रहा है दृग को ठग? जगमग जगमग जगमग जगम

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युगावतार गांधी

16 जून 2022
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चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गये कोटि दृग उसी ओर, जिसके शिर पर निज धरा हाथ उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ, जिस पर निज मस्तक झुका दिया झुक गये उसी पर क

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जय राष्ट्रीय निशान

16 जून 2022
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जय राष्ट्रीय निशान! जय राष्ट्रीय निशान!!! लहर लहर तू मलय पवन में, फहर फहर तू नील गगन में, छहर छहर जग के आंगन में, सबसे उच्च महान! सबसे उच्च महान! जय राष्ट्रीय निशान!! जब तक एक रक्त कण तन में,

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आया वसंत आया वसंत

16 जून 2022
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आया वसंत आया वसंत छाई जग में शोभा अनंत। सरसों खेतों में उठी फूल बौरें आमों में उठीं झूल बेलों में फूले नये फूल पल में पतझड़ का हुआ अंत आया वसंत आया वसंत। लेकर सुगंध बह रहा पवन हरियाली छा

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अलि रचो छंद

16 जून 2022
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अलि रचो छंद आज कण कण कनक कुंदन, आज तृण तृण हरित चंदन, आज क्षण क्षण चरण वंदन विनय अनुनय लालसा है। आज वासन्ती उषा है। अलि रचो छंद आज आई मधुर बेला, अब करो मत निठुर खेला, मिलन का हो मधुर मेला

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खादी गीत

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खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा, माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा। खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा, मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा। खादी की

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गिरिराज

16 जून 2022
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यह है भारत का शुभ्र मुकुट यह है भारत का उच्च भाल, सामने अचल जो खड़ा हुआ हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल! कितना उज्ज्वल, कितना शीतल कितना सुन्दर इसका स्वरूप? है चूम रहा गगनांगन को इसका उन्नत मस्तक

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नयनों की रेशम डोरी से

16 जून 2022
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नयनों की रेशम डोरी से अपनी कोमल बरजोरी से। रहने दो इसको निर्जन में बांधो मत मधुमय बन्धन में, एकाकी ही है भला यहाँ, निठुराई की झकझोरी से। अन्तरतम तक तुम भेद रहे, प्राणों के कण कण छेद रहे। म

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मातृभूमि

16 जून 2022
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ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है, नीचे चरण तले झुक, नित सिंधु झूमता है। गंगा यमुन त्रिवेणी नदियाँ लहर रही हैं, जगमग छटा निराली पग पग छहर रही है। वह पुण्य भूमि मेरी, वह स्वर्ण भूमि मेरी। वह

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प्रकृति संदेश

16 जून 2022
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पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे बन जाओ। सागर कहता है लहराकर, मन में गहराई लाओ। समझ रहे हो क्या कहती हैं उठ उठ गिर गिर तरल तरंग भर लो भर लो अपने दिल में मीठी मीठी मृदुल उमंग! पृथ्वी कहती

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तुम्हें नमन

16 जून 2022
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चल पड़े जिधर दो डग, मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर ; गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गए कोटि दृग उसी ओर, जिसके शिर पर निज हाथ धरा उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ जिस पर निज मस्तक झुका दिया झुक गए उसी पर

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भारत

16 जून 2022
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भारत तू है हमको प्यारा, तू है सब देशों से न्यारा। मुकुट हिमालय तेरा सुन्दर, धोता तेरे चरण समुन्दर। गंगा यमुना की हैं धारा, जिनसे है पवित्र जग सारा। अन्न फूल फल जल हैं प्यारे, तुझमें रत्न

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रे मन

16 जून 2022
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प्रबल झंझावत में तू बन अचल हिमवान रे मन। हो बनी गम्भीर रजनी, सूझती हो न अवनी, ढल न अस्ताचल अतल में बन सुवर्ण विहान रे मन। उठ रही हो सिन्धु लहरी हो न मिलती थाह गहरी नील नीरधि का अकेला बन स

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वंदना

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वंदिनी तव वंदना में कौन सा मैं गीत गाऊँ? स्वर उठे मेरा गगन पर, बने गुंजित ध्वनित मन पर, कोटि कण्ठों में तुम्हारी वेदना कैसे बजाऊँ? फिर, न कसकें क्रूर कड़ियाँ, बनें शीतल जलन–घड़ियाँ, प्राण

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हिमालय

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युग युग से है अपने पथ पर देखो कैसा खड़ा हिमालय! डिगता कभी न अपने प्रण से रहता प्रण पर अड़ा हिमालय! जो जो भी बाधायें आईं उन सब से ही लड़ा हिमालय, इसीलिए तो दुनिया भर में हुआ सभी से बड़ा हिमालय

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कौन?

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किसने बटन हमारे कुतरे? किसने स्‍याही को बिखराया? कौन चट कर गया दुबक कर घर-भर में अनाज बिखराया? दोना खाली रखा रह गया कौन ले गया उठा मिठाई? दो टुकड़े तसवीर हो गई किसने रस्‍सी काट बहाई? कभी क

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बढे़ चलो, बढे़ चलो

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न हाथ एक शस्त्र हो, न हाथ एक अस्त्र हो, न अन्न वीर वस्त्र हो, हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो । रहे समक्ष हिम-शिखर, तुम्हारा प्रण उठे निखर, भले ही जाए जन बिखर, रुको नहीं, झुको नहीं, बढ

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कबूतर

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कबूतर भोले-भाले बहुत कबूतर मैंने पाले बहुत कबूतर ढंग ढंग के बहुत कबूतर रंग रंग के बहुत कबूतर कुछ उजले कुछ लाल कबूतर चलते छम छम चाल कबूतर कुछ नीले बैंजनी कबूतर पहने हैं पैंजनी कबूतर करते मुझको

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ओस

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हरी घास पर बिखेर दी हैं ये किसने मोती की लड़ियाँ? कौन रात में गूँथ गया है ये उज्‍ज्‍वल हीरों की करियाँ? जुगनू से जगमग जगमग ये कौन चमकते हैं यों चमचम? नभ के नन्‍हें तारों से ये कौन दमकते हैं य

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एक किरण आई छाई

16 जून 2022
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एक किरण आई छाई, दुनिया में ज्योति निराली रंगी सुनहरे रंग में पत्ती-पत्ती डाली डाली एक किरण आई लाई, पूरब में सुखद सवेरा हुई दिशाएं लाल लाल हो गया धरा का घेरा एक किरण आई हंस-हंसकर फूल लगे म

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पूजा-गीत

16 जून 2022
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वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो। राग में जब मत्त झूलो तो कभी माँ को न भूलो, अर्चना के रत्नकण में एक कण मेरा मिला लो। जब हृदय का तार बोले, शृंखला के बंद खोले; हों जहाँ बलि शीश अगणित,

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युगावतार गांधी

16 जून 2022
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चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गये कोटि दृग उसी ओर, जिसके शिर पर निज धरा हाथ उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ, जिस पर निज मस्तक झुका दिया झुक गये उसी पर क

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जय राष्ट्रीय निशान

16 जून 2022
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जय राष्ट्रीय निशान! जय राष्ट्रीय निशान!!! लहर लहर तू मलय पवन में, फहर फहर तू नील गगन में, छहर छहर जग के आंगन में, सबसे उच्च महान! सबसे उच्च महान! जय राष्ट्रीय निशान!! जब तक एक रक्त कण तन में,

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वह आया

16 जून 2022
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मन में नूतन बल सँवारता जीवन के संशय भय हरता, वंदनीय बापू वह आया कोटि कोटि चरणों को धरता; धरणी मग होता है डगमग जब चलता यह धीर तपस्वी, गगन मगन होकर गाता है गाता जो भी राग मनस्वी; पग पर पग धर-धर

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मज़दूर

16 जून 2022
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पृथ्वी की छाती फाड़, कौन यह अन्न उगा लाता बहार? दिन का रवि-निशि की शीत कौन लेता अपनी सिर-आँखों पर? कंकड़ पत्थर से लड़-लड़कर, खुरपी से और कुदाली से, ऊसर बंजर को उर्वर कर, चलता है चाल निराली ले। मज़दूर

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अभियान-गीत

16 जून 2022
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चलो आज इस जीर्ण पुरातन भव में नव निर्माण करो, युग-युग से पिसती आई मानवता का कल्याण करो ! बोलो कब तक सडा करोगे तुम यों गन्दी गलियों में ? पथ के कुत्तों से भी जीवन  अधम संभाल पसलियों में ? द

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कणिका

16 जून 2022
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उदय हुआ जीवन में ऐसे परवशता का प्रात । आज न ये दिन ही अपने हैं आज न अपनी रात! पतन, पतन की सीमा का भी होता है कुछ अन्त ! उठने के प्रयत्न में लगते हैं अपराध अनंत ! यहीं छिपे हैं धन्वा मेरे

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भावों की रानी से

16 जून 2022
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कल्पनामयी ओ कल्यानी! ओ मेरे भावों की रानी! क्यों भिगो रही कोमल कपोल बहता है आंखों से पानी ! कैसा विषाद ? कैसा रे दुख ? सब समय नहीं है अंधकार ! आती है काली रजनी तो दिन का भी है उज्ज्वल प्रसार

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उमंग

16 जून 2022
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उठ उठ री मानस की उमंग! भर जीवन में नव रूप रंग! उठ सागर की गहराई सी, पर्वत की अमित उँचाई सी, नभ की विशाल परछाँही सी, लय हों अग जग के रंग ढंग! उठ उठ री मानस की तरंग! छा जीवन में बन एक भाग,

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गढ़वाल के प्रति

16 जून 2022
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जाग रे जाग पहाड़ी देश जगा बंगाल, जगा पांचाल, जगा है सारा देश अशेष, जाग! तू भी मेरे गढ़वाल, हिमाचल के प्यारे गढ़देश ! साज सुंदर केसरिया देश जाग ! रे जाग! पहाड़ी देश ! बह रहा है नयनों से

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जागो बुद्धदेव भगवान

16 जून 2022
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कुशी नगर के भग्न भवन में कैसे सोये हो बोलो ? युग युग बीते तुम्हें जगाते अब तो प्रिय, आखें खोलो! पत्थर के कारा में बंदी तुम नीरव निस्तब्ध पड़े, एक बार जागो फिर गौतम! हो जायो अविलंब खड़े ! स

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अकबर और तुलसीदास

16 जून 2022
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अकबर और तुलसीदास, दोनों ही प्रकट हुए एक समय, एक देश, कहता है इतिहास; 'अकबर महान' गूँजता है आज भी कीर्ति-गान, वैभव प्रासाद बड़े जो थे सब हुए खड़े पृथ्वी में आज गड़े! अकबर का नाम ही है शेष स

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प्रसाद जी की पुण्य स्मृति में

16 जून 2022
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भारतीय सुसंस्कृति के गर्व औ अभिमान ! बुद्ध की सबुद्धि के कल्याण- मय आख्यान ! आर्य-गौरव के अलौकिक दिव्य उज्ज्वल गान! राष्ट्रभाषा के विधाता, श्री, सुरभि, सम्मान ! नित्य मौलिक, ऐतिहासिक, चिर-

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भैरवी के जन्मदिवस पर

16 जून 2022
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आज अवंध्या बनी, स्वर्ण संध्या में प्रतिभा रागमयी, आज महोत्सव हो मेरे गृह, रसना हो अनुरागमयी ; रोमों में ले पुलक, साधना बैठी बनी सुहागमयी, गत विहाग की निशा; उषा है आज 'भैरवी' रागमयी! चलो आज कवि! अम

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अभियान-गीत

16 जून 2022
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चल रे चल! अडिग! अचल! घन गर्जन, हिम वर्षण! तिमिर सघन, तड़ित पतन ! शिर उन्नत, मन उन्नत ! प्रण उन्नत, क्षत विक्षत ! रुक न विचल! झुक न विचल! गति न बदल ! अनिल ! अनल! चल रे चल! चिर शोषण, चि

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प्रभाती

16 जून 2022
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जागो जागो निद्रित भारत ! त्यागो समाधि हे योगिराज ! शृंगी फूँको, हो शंखनाद, डमरू का डिमडिम नव-निनाद ! हे शंकर के पावन प्रदेश ! खोलो त्रिनेत्र तुम लाल लाल ! कटि में कस लो व्याघ्रांबर को कर में

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नयनों की रेशम डोरी से

16 जून 2022
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नयनों की रेशम डोरी से  अपनी कोमल बरजोरी से।  रहने दो इसको निर्जन में  बांधो मत मधुमय बन्धन में,  एकाकी ही है भला यहाँ,  निठुराई की झकझोरी से।  अन्तरतम तक तुम भेद रहे,  प्राणों के कण कण छेद

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लहरों से डर कर

16 जून 2022
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर च

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यह है बसन्त का पहला दिन

16 जून 2022
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कुछ कुछ सुगंध के लेकर कण, अब देखो बहने लगी पवन, कुछ कुछ निकले हैं नये सुमन, यह है बसन्त का पहला दिन ! है कभी कभी आती कोयल, दो चार बोल गाती कोयल, फिर चुप हो छिप जाती कोयल, यह है बसन्त का प

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बसन्ती पवन

16 जून 2022
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जब करने को मैं चला भ्रमण, तब मिली आज कुछ नई पवन । भीनी भीनी इसकी सुगंध, जिससे भौरे बन जायँ अंध, यह पवन भरी थी मधुर गंध, तन हुआ मगन, मन हुआ मगन, जब मिली सुगंधित नई पवन । कुछ कुछ ऐसा तब हुआ

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बादल

16 जून 2022
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बादल भी बड़े खिलाड़ी हैं मानो कुछ इनको नहीं काम। बस, आठ पहर, चौबिस घंटे, खेला करते हैं सुबह शाम ! इनको है नींद नहीं आती थकते भी इनके नहीं पैर, जब देखो तब बन सैलाने करते रहते हैं सदा सैर !

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अगर कहीं बादल बन जाता ?

16 जून 2022
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अगर कहीं बादल बन जाता, तो मैं जग में धूम मचाता ! कड़कड़ गड़गड़ कड़कड़ गड़गड़, घड़घड़ गड़गड़ कड़कड़ गड़गड़, करता जग में भारी गर्जन कपते हाथी शेरों के मन ! मैं दुनिया का दिल दहलाता, अगर कहीं

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दीवाली

16 जून 2022
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हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, नीचे ऊपर, हर जगह सुघर, कैसी उजियाली है पग-पग? जगमग जगमग जगमग जगमग! छज्जों में, छत में, आले में, तुलसी के नन्हें थाले में, यह कौन रहा है दृग को ठग? जगमग जगमग जगमग जगम

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अगर कहीं मैं पैसा होता?

16 जून 2022
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पढ़े-लिखों से रखता नाता, मैं मूर्खों के पास न जाता, दुनिया के सब संकट खोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता ? जो करते दिन रात परिश्रम, उनके पास नहीं होता कम, बहता रहता सुख का सोता ! अगर कहीं मैं

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पहाड़ की चोटी से

16 जून 2022
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यदि पहाड़ की चोटी पर चढ़कर देखो बच्चो भू पर, तो अजीब चीजें आयेंगी तरह तरह की तुम्हें नज़र ! नहीं आदमी देख सकोगे, चलते फिरते सिर केवल, दिखा पड़ेंगे तुम्हें अजब से, चलते ज्यों चींटी के दल !

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रेल की खिड़की से

16 जून 2022
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छक छक, फक फक, छक छक, भक भक है रेल चली जाती धक धक । मैं बैठा डिब्बे के अंदर, जब नज़र डालता हूँ बाहर । तो दुनिया अजब नज़र आती, सब चीजें भगती दिखलाती। ये पेड़ भगे, ये पात भगे, जंगल के बड़े जमा

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क़लम की आत्मकहानी

16 जून 2022
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है मेरी अति करुण कहानी ! वही मुझे है यहाँ सुनानी ! मैंने बहुत कष्ट है पाया, इससे मूखी मेरी काया, मुझे लोग जंगल से लाते, मात पिता से साथ छुटाते । मेरा सुन्दर रङ्ग मिटाते, काला और कुरूप बना

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समुद्रतट

16 जून 2022
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यदि समुद्रतट पर तुम जाओ तो देखोगे अजब बहार, जल ही जल दिखलाता इतना मानो जलमय हो संसार ! बड़ी बड़ी लहरें उठती हैं मचता रहता हाहाकार, होता शोर ज़ोर से ज्यों ही लहरें टकराती हर बार ! रङ्ग बिरं

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तुम क्या करते, हम क्या करते ?

16 जून 2022
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लग जाते अंगूर नीम में और कुए से दूध निकलता, बिना तेल के डाले ही यदि घर में दिया रात दिन जलता। जोते बोये बिना खेत में गेहूँ, धान, चना उग आते, केला, सेब, नासपाती, संतरा, आम हर ऋतु में आते ।

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सपने में

16 जून 2022
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अम्मा आकर काजल देतो औ अनखनियाँ सपने में। भैया आकर मुझे उठा लेता है कनियाँ सपने में । मुन्नू आता, चाचा आते, दादा आते सपने में। खुल जाता है चन्द मदरसा गुरू पढ़ाते सपने में। करती म्याऊँ म्याऊ

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प्रयाण-गीत

16 जून 2022
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काम करेंगे हम हम हम ! नाम करेंगे हम हम हम !! बढ़े चलेंगे, चढ़े चलेंगे; हिम्मत से दिल मढ़े चलेंगे। बोलेंगे हर हर बम बम ! काम करेंगे हम हम हम! नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे, आये बला चिनौती

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शरद्ऋतु

16 जून 2022
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पहन चाँदनी की साड़ी तन आई खूब शरदऋतु बनठन । कैसा गोरा रंग निराला ? छाया चारों ओर उजाला ! नीले नभ में सुन्दर तारे, छिटक गये मोती से प्यारे । तालाबों में कोकाबेली, बागों में खिल उठी चमेली!

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मोर

16 जून 2022
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है मोर मनोहर दिखलाता ! यह किसका हृदय न ललचाता ? चलता कैसा सिर ऊँचा कर ? मस्ती से धीरे पग धर धर । सिर पर है ताज छटा लाता है मोर मनोहर दिखलाता ! गर्दन इसकी प्यारी प्यारी, सुन्दर सुन्दर न्यारी

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उग रही घास

16 जून 2022
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उग रही घास, उग रही घास । कल चावल चावल दीख पड़ी, तो अंगुल भर है आज खड़ी, कल होगी जैसे बड़ी छड़ी, हरियाली लाती आस पास ! उग रही घास, उग रही घास । किस समय कहाँ कब आती है ? कुछ बात न जानी जाती

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यह भारतवर्ष हमारा है!

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यह भारतवर्ष हमारा है! हमको प्राणों से प्यारा है!! है यहाँ हिमालय खड़ा हुआ, संतरी सरीखा अड़ा हुआ, गंगा की निर्मल धारा है! यह भारतवर्ष हमारा है! क्या ही पहाड़ियाँ हैं न्यारी? जिनमें सुंदर झ

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फूल हमेशा मुसकाता

16 जून 2022
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चाहे हवा बहे मतवाली फूल हमेशा मुसकाता । चाहे हवा चले लूवाली फूल हमेशा मुसकाता । बरसे प्यारी ओस मनोहर फूल हमेशा मुसकाता । चाहे ओले पड़ें शीश पर फूल हमेशा मुसकाता । काँटों की नोकों को सहकर

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अगर कहीं मैं पैसा होता?

16 जून 2022
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पढ़े-लिखों से रखता नाता, मैं मूर्खों के पास न जाता, दुनिया के सब संकट खोता ! अगर कहीं मैं पैसा होता ? जो करते दिन रात परिश्रम, उनके पास नहीं होता कम, बहता रहता सुख का सोता ! अगर कहीं मैं

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खादी गीत

16 जून 2022
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खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा, माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा। खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा, मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा। खाद

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गाँवों में

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जगमग नगरों से दूर दूर हैं जहाँ न ऊँचे खड़े महल, टूटे-फूटे कुछ कच्चे घर दिखते खेतों में चलते हल; पुरई पाली, खपरैलों में रहिमा रमुआ के नावों में, है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गाँवों

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कणिका

16 जून 2022
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उदय हुआ जीवन में ऐसे परवशता का प्रात । आज न ये दिन ही अपने हैं आज न अपनी रात! पतन, पतन की सीमा का भी होता है कुछ अन्त ! उठने के प्रयत्न में लगते हैं अपराध अनंत ! यहीं छिपे हैं धन्वा मेरे

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हल्दीघाटी

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वैरागन-सी बीहड़ बन में कहाँ छिपी बैठी एकान्त ? मातः ! आज तुम्हारे दर्शन को मैं हूँ व्याकुल उद्भ्रान्त ! तपस्विनी, नीरव निर्जन में कौन साधना में तल्लीन ? बीते युग की मधुरस्मृति में क्या तुम रह

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राणा प्रताप के प्रति

16 जून 2022
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कल हुआ तुम्हारा राजतिलक बन गये आज ही वैरागी ? उत्फुल्ल मधु-मदिर सरसिज में यह कैसी तरुण अरुण आगी? क्या कहा, कि-, 'तब तक तुम न कभी, वैभव सिंचित शृङ्गार करो' क्या कहा, कि-, 'जब तक तुम न विगत-

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महर्षि मालवीय

16 जून 2022
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तुम्हें स्नेह की मूर्ति कहूँ या नवजीवन की स्फूर्ति कहूँ, या अपने निर्धन भारत की निधि की अनुपम मूर्ति कहूँ ? तुम्हें दया-अवतार कहूँ या दुखियों की पतवार कहूँ, नई सृष्टि रचनेवाले या तुम्हें नया

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आज़ादी के फूलों पर

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सिंहासन पर नहीं वीर! बलिवेदी पर मुसकाते चल ! ओ वीरों के नये पेशवा ! जीवन-जोति जगाते चल! रक्तपात, विप्लव अशान्ति औ' कायरता बरकाते चल। जननी की लोहे की कड़ियाँ रह रहकर सरकाते चल ! कल लखनऊ गूं

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मुक्ता

16 जून 2022
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ज़ंजीरों से चले बाँधने आज़ादी की चाह । घी से आग बुझाने की सोची है सीधी राह ! हाथ-पाँव जकड़ो, जो चाहो है अधिकार तुम्हारा । ज़ंजीरों से कैद नहीं हो सकता हृदय हमारा!

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नववर्ष

16 जून 2022
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स्वागत! जीवन के नवल वर्ष आओ, नूतन-निर्माण लिये, इस महा जागरण के युग में जाग्रत जीवन अभिमान लिये; दीनों दुखियों का त्राण लिये मानवता का कल्याण लिये, स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष! तुम आओ स्वर्ण-वि

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सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी

16 जून 2022
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सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी जागो मेरे सोनेवाले! जब सारी दुनिया सोती थी तब तुमने ही उसे जगाया, दिव्य ज्ञान के दीप जलाकर तुमने ही तम दूर भगाया; तुम्हीं सो रहे, दुनिया जगती यह कैसा मद है मतवाले

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एक शस्त्र हो

16 अगस्त 2022
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न हाथ एक शस्त्र हो,  न हाथ एक अस्त्र हो,  न अन्न वीर वस्त्र हो,  हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।  रहे समक्ष हिम-शिखर,  तुम्हारा प्रण उठे निखर,  भले ही जाए जन बिखर,  रुको नहीं, झुको न

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भावों की रानी से

16 अगस्त 2022
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कल्पनामयी ओ कल्यानी! ओ मेरे भावों की रानी! क्यों भिगो रही कोमल कपोल बहता है आंखों से पानी ! कैसा विषाद ? कैसा रे दुख ? सब समय नहीं है अंधकार ! आती है काली रजनी तो दिन का भी है उज्ज्वल प्रसार

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