जगमग नगरों से दूर दूर
हैं जहाँ न ऊँचे खड़े महल,
टूटे-फूटे कुछ कच्चे घर
दिखते खेतों में चलते हल;
पुरई पाली, खपरैलों में
रहिमा रमुआ के नावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
नित फटे चीथड़े पहने जो
हड्डी-पसली के पुतलों में,
असली भारत है दिखलाता
नर-कंकालों की शकलों में;
पैरों की फटी बिवाई में,
अन्तस के गहरे घावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
दिन-रात सदा पिसते रहते
कृषकों में औ' मजदूरों में,
जिनको न नसीब नमक-रोटी
जीते रहते उन शूरों में;
भूखे ही जो हैं सो रहते
विधना के निठुर नियावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
उन रात-रात भर, दिन-दिन भर
खेतों में चलते दोलों में,
दुपहर की चना-चबेनी में
बिरहा के सूखे बोलों में;
फिर भी, ओठों पर हँसी लिये
मस्ती के मधुर भुलावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गांवों में !
अपनी उन रूप कुमारी में
जिनके नित रूखे रहें केश,
अपने उन राजकुमारों में
जिनके चिथड़ों से सजे वेश;
अंजन को तेल नहीं घर में
कोरी आँखों के हावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
उस एक कुएँ के पनघट पर
जिसका टूटा है अर्ध भाग,
सब सँभल-सँभल कर जल भरते
गिर जाय न कोई कहीं भाग;
है जहाँ गड़ारी जुड़ न सकी
युग-युग के द्रव्य अभावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
है जिनके पास एक धोती
है वही दरी, उनकी चादर,
जिससे वह लाज सँभाल सदा
निकला करती घर से बाहर,
पुर-वधुत्रों का क्या हो श्रृंगार?
जो बिका रईसों-रावों में !
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
सोने-चांदी का नाम न लो
पीतल - काँसे के कड़े-छड़े।
मिल जायँ बहूरानी को तो
समझो उनके सौभाग्य बड़े !
रांगे की काली बिछियों में
पति के सुहाग के भावों में।
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
ऋण-भार चढ़ा जिनके सिर पर
बढ़ता ही जाता सूद-ब्याज,
घर लाने के पहले कर से
छिन जाता है जिनका अनाज;
उन टूटे दिल की साधों में
उन टूटे हुए हियाओं में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
खुरपी ले ले छीलते घास
भरते कोछों की कोरों में,
लकड़ी का बोझ लदा सिर पर
जो कसा मूँज की डोरों में;
उनका अर्जन व्यापार यही
क्या करें ग़रीब उपायों में ?
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
आजीवन श्रम करते रहना,
मुँह से न किंतु कुछ भी कहना,
नित विपदा पर विपदा सहना
मन की मन में साधें ढहना;
ये आहें वे, ये आँसू वे
जो लिखे न कहीं किताबों में;
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
रामायण के दो-चार ग्रन्थ
जिनके ग्रन्थालय ज्ञान-धाम,
पढ़-सुन लेते जो कभी कभी
हो भक्ति-भाव-वश रामनाम;
जगगति युगगति जिनको न ज्ञात
उन अपढ़ अनारी भावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
चूती जिनकी खपरैल सदा
वर्षा की मूसलधारों में,
ढह जाती है कच्ची दिवार
पुरवाई की बौछारों में;
उन ठिठुर रहे, उन सिकुड़ रहे
थरथर हाथों में पाँवों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गांवों में!
जो जनम आसरे औरों के
युग-युग आश्रित जिनकी सीढ़ी,
जिनकी न कभी अपनी ज़मीन
मर-मिट जाये पीढ़ी-पीढ़ी;
मज़दूर सदा दो पैसे के
मालिक के चतुर दुरावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
दो कौर न मुँह में अन्न पड़े
तब भूल जायँ सारी तानें,
कवि पहचानेंगे रूप-परी
नर-कंकालों को क्या जाने ?
कल्पना सहम जाती उनकी
जाते इन ठौर कुठाँवों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में!
हड्डी - हड्डी पसली - पसली
निकली है जिनकी एक-एक,
पढ़ लो मानव, किस दानव ने
ये नर-हत्या के लिखे लेख !
पी गया रक्त, खा गया मांस
रे कौन स्वार्थ के दाँवों में !
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
आँखें भीतर जा रहीं धंसी
किस रौरव का बन रहीं कूप ?
लग गया पेट जा पीठी से
मानव ? हड्डी का खड़ा स्तूप !
क्यों जला न देते मरघट पर
शव रखा द्वार किन भावों में ?
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
जो एक प्रहर ही खा करके
देते हैं काट दीर्घ जीवन,
जीवन भर फटी लँगोटी ही
जिनका पीतांबर दिव्य वसन;
उन विश्व-भरण पोषणकर्ता
नर-नारायण के चावों में,
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
सेगाँव बनें सब गाँव आज
हममें से मोहन बने एक,
उजड़ा वृन्दावन बस जावे
फिर सुख की वंशी बजे नेक;
गूंजें स्वतंत्रता की तानें
गंगा के मधुर बहावों में।
है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में !
झोपड़ियों की ओर - सोहन लाल द्विवेदी
जिनके अस्थि-पंजरों की
नीवों पर ये प्रासाद खड़े,
जिनके उष्ण रक्त के गारे से
गढ़ डाले भवन बड़े;
जिनकी भूखों की होली पर
मना रहे तुम दीवाली,
जिनसे तुम उज्ज्वल ! देखो,
उनकी देहें काली-काली;
उन भोले-भाले कृषकों की
करुण कथाओं पर पिघलो।
महलों को भूलो प्यारे!
अब झोपड़ियों की ओर चलो !
उनके फटे चीथड़े देखो
अपने वस्त्र विभवशाली,
उनकी रोटी-नमक निहारो
अपनी खीर-भरी थाली;
उनके छूँछे टेंट निहारो
अपनी बसनी धनवाली,
उनके सूखे खेत निहारो
अपनी उपवन हरियाली !
यह अन्याय अनीति मिटायो
युग-युग का दुख दैन्य दलो।
महलों को भूलो प्यारे !
अब झोपड़ियों की ओर चलो!
किसान - सोहन लाल द्विवेदी
ये नभ-चुम्बी प्रासाद-भवन,
जिनमें मंडित मोहक कंचन,
ये चित्रकला-कौशल-दर्शन,
ये सिंह-पौर, तोरन, वन्दन,
गृह-टकराते जिनसे विमान,
गृह-जिनका सब आतंक मान,
सिर झुका समझते धन्य प्राण,
ये आन-बान, ये सभी शान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
वह तेरी ताक़त पर किसान !
ये रंग-महल, ये मान-भवन,
ये लीलागृह, ये गृह-उपवन,
ये क्रीड़ागृह, अन्तर प्रांगण,
रनिवास ख़ास, ये राज-सदन,
ये उच्च शिखर पर ध्वज निशान,
ड्योढ़ी पर शहनाई सुतान,
पहरेदारों की खर कृपाण,
ये आन-बान, ये सभी शान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान!
ये नूपुर की रुनझुन रुनझुन,
ये पायल की छम छम छम धुन,
ये गमक, मीड़, मीठी गुनगुन,
ये जन-समूह की गति सुनमुन,
ये मेहमान, ये मेज़मान,
साक्री, सूराही का समान,
ये जलसा महफ़िल, समाँ, तान,
ये करते हैं किस पर गुमान ?
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
चलती शोभा का भार लिये,
अंगों का तरुण उभार लिये,
नखशिख सोलह शृङ्गार किये,
रसिकों के मन का प्यार लिये,
वह रूप, देख जिसको अजान,
जग सुध-बुध खोता हृदय-प्राण,
विधि की सुन्दरता का बखान,
प्राणों का अर्पण, प्रणय गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिकमत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
सभ्यता तीन बल खाती है,
इठलाती है, इतराती है,
शिष्टता लंक लचकाती है,
झुक झूम भूमि रज लाती है,
नम्रता, विनय, अनुनय महान,
सजनता, मधुर स्वभाव बान;
आगत-स्वागत, सम्मान-मान,
सरलता, शील के विशद गान,
वह तेरी दौलत पर किसान!
वह तेरी मेहनत पर किसान !!
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान !
शूरों-वीरों के बाहुदंड,
जिनमें अक्षय बल है प्रचंड,
ये प्रणवीरों के प्रण अखंड,
जो करते भूतल खंड-खंड,
ये योधाओं के धनुष-वाण,
ये वीरों के चमचम कृपाण,
ये शूरों के विक्रम महान,
ये रणवीरों की विजय-तान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी ताकत पर किसान!
ये बड़े बड़े प्राचीन किले
जो महाकाल से नहीं हिले,
ये यश:स्तम्भ जो लौह ढले
जिनमें वीरों के नाम लिखे,
ये आर्यों के आदर्श गान,
ये गुप्त-वंश की विजय तान,
ये रजपूती जौहर गुमान,
ये मुग़ल-मराठों के बखान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी जुर्रत पर किसान !
ये इन्द्रप्रस्थ के राज्य-सदन,
पाटलीपुत्र के भव्य भवन,
ये मगध, अयोध्या, ऋषिपत्तन,
उज्जैन अवन्ती के प्रांगण,
वैशाली का वैभव महान,
काशी-प्रयाग के कीर्ति-गान,
लखनवी नवाबों के वितान,
मथुरा की सुख-सम्पति महान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताकत पर किसान !
इस भारत का सुखमय अतीत,
जिसकी सुधि अब भी है पुनीत;
इस वर्तमान के विभव गीत,
जिनमें मन का मधु संगृहीत,
आशाओं का सुख मूर्तिमान,
अरमानों का स्वर्णिम विहान,
प्रतिदिन,प्रतिपल की क्रिया,ध्यान,
उज्ज्वल भविष्य के तान तान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
कल्पना पङ्ख फैलाती है,
छू छोर क्षितिज के आती है,
भावना डुबकियाँ खाती है,
सागर मथ अमृत लाती है,
ये शब्द विहग से गीतमान,
ये छन्द मलय से धावमान,
प्रतिभा की डाली पुष्पमान,
तनता मृदु कविता का वितान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
वह तेरी ताक़त पर किसान !
निर्णय देते हैं न्यायालय,
स्नातक बिखेरते विद्यालय ।
कौशल दिखलाते यन्त्रालय,
श्रद्धा समेटते देवालय,
ग्रन्थालय के ये गहन ज्ञान,
संगीतालय के तान-गान,
शस्त्रालय के खनखन कृपाण,
शास्त्रालय के गौरव महान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान ।
ये साधु, सती, ये यती, सन्त,
ये तपसी-योगी, ये महन्त,
ये धनी-गुनी, पण्डित अनन्त,
ये नेता, वक्ता, कलावन्त
ज्ञानी-ध्यानी का ज्ञान-ध्यान,
दानी-मानी का दान-मान,
साधना, तपस्या के विधान,
ये मानव के बलिदान-गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
ये घनन-घनन घन घंटारव,
ये झाँझ-मृदंग-नाद भैरव,
ये स्वर्ण-थाल भारती विभव,
ये शङ्ख-ध्वनि, पूजन गौरव,
ये जन-समूह सागर समान,
जो उमड़ रहा तज धैर्य-ध्यान,
केसर, कस्तूरी, धूप दान
ये भक्ति-भाव के मत्त गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी ग़फ़लत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
ये मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर,
पादरी, मौलवी, पण्डितवर,
ये मठ, विहार, गद्दी गुरुवर,
भिक्षुक, सन्यासी, यतीप्रवर,
जप-तप, व्रत-पूजा, ज्ञान-ध्यान,
रोज़ा-नमाज़, वहदत, अजान,
ये धर्म-कर्म, दीनो-इमान,
पोथी पुराण, कलमा- कुरान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी न्यामत पर किसान !
वह तेरी बरकत पर किसान!
ये बड़े-बड़े साम्राज्य - राज,
युग-युग से पाते चले आज,
ये सिंहासन, ये तख्त-ताज,
ये किले दुर्ग, गढ़ शस्त्र-साज,
इन राज्यों की ईंटें महान,
इन राज्यों की नींवें महान,
इनकी दीवारों की उठान,
इनकी प्राचीरों के उड़ान,
वह तेरी हड्डी पर किसान !
वह तेरी पसली पर किसान !
वह तेरी यांतों पर किसान!
नस की आँतों पर रे किसान!
यदि हिल उठ तू ओ शेषनाग !
हो ध्वस्त पलक में राज्य-भाग,
सम्राट् निहारे, नींद त्याग,
है कहीं मुकुट, तो कहीं पाग!
सामन्त भग रहे बचा जान,
सन्तरी भयाकुल, लुप्त ज्ञान,
सेनायें हैं ढूँढ़ती त्राण;
उड़ गये हवा में ध्वज-निशान !
साम्राज्यवाद का यह विधान,
शासन-सत्ता का यह गुमान,
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी गफलत पर किसान !
मा ने तुझ पर आशा बाँधी,
तू दे अपने बल की काँधी;
ओ मलय पवन बन जा आंधी,
तुझसे ही गांधी है गांधी,
तुझसे सुभाष है भासमान,
तुझमे मोती का बढ़ा मान;
तू ज्योति जवाहर की महान,
उड़ता नभ पर अपना निशान,
वह तेरी ताकत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान!
वह तेरी जुरअत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
तू मदवालों से भाग-भाग,
सोये किसान, उठ ! जाग-जाग!
निष्ठुर शासन में लगा आग,
गा महाक्रान्ति का अभयराग!
लख जननी का मुख आज म्लान,
वह तेरा ही धर रही ध्यान,
तेरा लोहा जो सके मान,
किसमें इतना बल है महान ?
रे मर मिटने की ठान-ठान,
ले स्वतन्त्रता का शुभ विहान ।
गूंजे नभ दिशि में एक तान_
जयजन्मभूमि ! जय-जय किसान!