सिंहासन पर नहीं वीर!
बलिवेदी पर मुसकाते चल !
ओ वीरों के नये पेशवा !
जीवन-जोति जगाते चल!
रक्तपात, विप्लव अशान्ति
औ' कायरता बरकाते चल।
जननी की लोहे की कड़ियाँ
रह रहकर सरकाते चल !
कल लखनऊ गूंज उट्ठा था,
आज हरिपुरा हहर उठे,
बने अमिट इतिहास देश का
महाक्रान्ति की लहर उठे!
फूलों की मालाओं को
पद की ठोकर से दलते चल,
शूलों की मखमली सेज को
सुहला सुहला मलते चल ।
जननी के बंधन निहार
अपमान ज्वाल में जलते चल,
ठुकराये वीरों के उर के
रोषित रक्त उबलते चल !
पग-पग में हो सिंहगर्जना
दिशि डोलें, झंकार उठे,
जागें, सोयें इस युगवाले
यों तेरी हुंकार उठे !
है तेरा पांचाल प्रबल
बंगाल विमल विक्रमवाला,
महाराष्ट्र सौराष्ट्र हिन्द
अपने प्रण पर मिटनेवाला;
है बिहार गुणगौरववाला
उत्कल शक्तिसंघवाला
बलिवाला गुजरात, सुदृढ़
मद्रास, भक्ति वैभववाला;
फिर क्यों दुर्बल भुजा हमारी
कैसी कसी लोह-लड़ियाँ ?
अँगड़ाई भर ले स्वदेश
टूटे पल में कड़ियाँ-कड़ियाँ ।
आयें हम नंगे भिखमंगे
सब भूखों मरनेवाले ।
अपनी हड्डी-पसली खोले,
रक्तदान भरने वाले
खुरपी और कुदालीवाले ।
फड़ुआ औ' फरसेवाले ।
महाकाल से रातदिवस
दो टुकड़ों पर लड़नेवाले!
आयें, काल-गाल के छोड़े
वज्रदेह, दृढ़ व्रतधारी ।
एक बार फिर बढ़ें युद्ध में
फिर हो रण की तैयारी।
फूंक शंख बाजे रणभेरी
जननी की जय जय बोले ।
चले करोड़ों की सेना
डगमग डगमग धरणी डोले !
जिधर चलेगा उधर चलेगी
अक्षौहिणी सैन्य मेरी ।
कौन रोक सकता वीरों को
सृष्टि बनी जिनकी चेरी?
बढ़ जायें चालिस करोड़ फिर
बलि के मधुमय झूलों पर,
मेरी मा भी चले विहँसती
आज़ादी के फूलों पर ।