है मेरी अति करुण कहानी !
वही मुझे है यहाँ सुनानी !
मैंने बहुत कष्ट है पाया,
इससे मूखी मेरी काया,
मुझे लोग जंगल से लाते,
मात पिता से साथ छुटाते ।
मेरा सुन्दर रङ्ग मिटाते,
काला और कुरूप बनाते,
चाकू से फिर शीश काटकर,
मेरी जीभ छेदते हैं नर !
आगे क्या दूँ अधिक हवाला ?
आखिर मुंह कर देते काला !
किन्तु, भुला यह सभी बुराई,
करती उनकी सदा भलाई !
प्रतिदिन नये लेख लिखती हूँ !
दुश्मन का भी हित करती हूँ !!
कौन कहाँ ख़ुश रहता है ? - सोहन लाल द्विवेदी
पेड़ों में ख़ुश रहती चिड़ियाँ,
तालाबों में ख़ुशी मछलियाँ ।
जंगल में ख़ुश हिरन दौड़ते,
उपवन में ख़ुश बहुत तितलियाँ ?
चुहिया बिल में ख़ुश रहती है,
बिल्ली ख़ुश रहती कोने में।
कुत्ते ख़ुश दीखते सड़क पर,
बकरी ख़ुश बन में होने में।
गायें ख़ुश रहती थानों में,
हाथी ख़ुश रहता जंगल में ।
साही औ खरगोश, चौगड़े,
ख़ुश झाड़ी झुरमुट के दल में ।
गिल्ली ख़ुश रहती डालों में,
मकड़ी ख़ुश रहती जाले में।
मेढक क्या ही ख़ुश दिखलाते,
पड़े हुए नाली नाले में !
कोवे घर की मुंड़वाई पर,
रोटी देख देख ख़ुश होते ।
छत के नीचे छिपे कबूतर,
गुटगूँ बोल मज़े में सोते ।
छत्ते में ख़ुश नित मधुमक्खी,
बया झोंझ में मगन दिखाता।
खुंटकढ़वा बबूल में खटखट,
ख़ुश हो अपनी चोंच चलाता ।
माँदों में ख़ुश बड़ी लोमड़ी,
रेगिस्तान ऊँट को भाता !
शेर गरजता बियाबान में,
जहाँ घना जंगल दिखलाता ।
बगुले ख़ुश हैं तालाबों में,
गीध जहाँ मरघट दिखलाता।
गदहे .ख़ुश रहते खेतों में,
जहाँ हरा चारा मिल जाता !
लड़के ख़ुश रहते घर बाहर,
जहाँ कहीं हो खेल तमाशा ।
मुन्ने ख़ुश रहते गोदी पर,
मिलता जाये दूध बताशा ।
दादा ख़ुश रहते दफ़्तर में,
अम्मा ख़ुश रहती आँगन में।
नानी ख़ुशी कहानी कह कह,
टूटी खटिया के बाँधन में ।