उग रही घास, उग रही घास ।
कल चावल चावल दीख पड़ी,
तो अंगुल भर है आज खड़ी,
कल होगी जैसे बड़ी छड़ी,
हरियाली लाती आस पास !
उग रही घास, उग रही घास ।
किस समय कहाँ कब आती है ?
कुछ बात न जानी जाती है !
गुप चुप गुप चुप छा जाती है,
उगती है घुलमिल पास पास !
उग रही घास, उग रही घास ।
गिरती नन्हीं बँदें सुन्दर,
तब घास दिखाती है मनहर !
लहराती झोंके खा खाकर,
खिल उठती हैं आँखें उदास!
उग रही घास, उग रही घास ।
उजड़े में चमन बसाती है,
यह नंदन बाग लगाती है,
यह प्रभु की याद दिलाती है।
यह उसकी करुणा का विकास !
उग रही घास, उग रही घास ।