यदि पहाड़ की चोटी पर
चढ़कर देखो बच्चो भू पर,
तो अजीब चीजें आयेंगी
तरह तरह की तुम्हें नज़र !
नहीं आदमी देख सकोगे,
चलते फिरते सिर केवल,
दिखा पड़ेंगे तुम्हें अजब से,
चलते ज्यों चींटी के दल !
आँगन से मैदान दिखाते,
जंगल ऐसे जैसे बाग़,
खपरैलों, छप्पर, टीनों ये
दिखा पड़ेंगे जैसे दाग़।
कुत्ता बिल्ली देख न पाओगे,
बंदर की गिनती क्या ?
चकरा जाती आँखें बाहर,
फिर अंदर की गिनती क्या ?
नदी दिखाती नाला जैसी,
झीलें जैसे हों तालाब,
गाँव दिखाता है घर जैसे,
आगे का क्या कहूँ हिसाब ?
ज्यों बौनों का देश बसा हो,
सब बौने जिसकी बातें ?
ऐसा ही लगता आँखों को,
अजब देश की-सी बातें।