कुशी नगर के भग्न भवन में
कैसे सोये हो बोलो ?
युग युग बीते तुम्हें जगाते
अब तो प्रिय, आखें खोलो!
पत्थर के कारा में बंदी
तुम नीरव निस्तब्ध पड़े,
एक बार जागो फिर गौतम!
हो जायो अविलंब खड़े !
सारनाथ के जीर्ण शीर्ण
खंडहर हैं तुम्हें निहार रहे,
जागो ! काशी के प्रबुद्ध !
कितने यश आज पुकार रहे !
खड़ी सुजाता है बट तल फिर,
आकुल हृदय अधीर लिए,
पूर्णा खड़ी लिए झारी में,
और दृग में भी नीर लिए!
यशोधरा पद धूलि शीश धरने
को व्याकुल कल्याणी,
शुद्धोधन भूपाल विकल
सुनने को गौतम की वाणी!
छन्नक वह सारथी तुम्हारा
खड़ा, बिछा पथ पर पलकें
राहुल देख रहा उत्कंठित,
धूल धूसरित हैं अलकें !
उधर आम्र पाली आकुल है,
उमड़ा आँखों में सावन !
भिक्षु संघ है खड़ा समुत्सुक
सुनने को प्रवचन पावन !
कृषा गौतमी देखो आई
द्वार मृतक सुत गोद लिए,
आत्म बोध दो बोधिसत्त्व !
वह लौटे धाम प्रमोद लिए!
ऋषि पत्तन मृगदाव
तुम्हारे बिना सभी हैं म्लान मुखी,
कंथक खड़ा उदास पंथ में,
आकुल आँखें, प्राण दुखी!
आज लुंबिनी को दूर्वा भी
लगा रही मन में लेखा,
शाल वृक्ष देखते तुम्हारे
अरुण चरण तल की रेखा!
नैरंजरा नदी की लहरें
गाती हैं फिर कल कल गान,
जागो पीड़ित की पुकार पर
जागो बुद्धदेव भगवान !