सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
जब सारी दुनिया सोती थी
तब तुमने ही उसे जगाया,
दिव्य ज्ञान के दीप जलाकर
तुमने ही तम दूर भगाया;
तुम्हीं सो रहे, दुनिया जगती
यह कैसा मद है मतवाले ?
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !
तुमने वेद उपनिषद रचकर
जग-जीवन का मर्म बताया,
ज्ञान शक्ति है, ज्ञान मुक्ति है
तुमने ही तो गान सुनाया;
अक्षर से अनभिज्ञ तुम्ही हो
पिये किस नशा के ये प्याले ?
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
गंगा यमुना के कूलों पर
सप्त सौध थे खड़े तुम्हारे,
सिंहासन था, स्वर्ण-छत्र था,
कौन ले गया हर वे सारे?
टूटी झोपड़ियों में अब तो
जीने के पड़ रहे कसाले!
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गये क्या राम-राज्य वह
जहाँ सभी को सुख था अपना,
वे धन-धान्य-पूर्ण गृह अपने
आज बना भोजन भी सपना;
कहाँ खो गये वे दिन अपने
किसने तोड़े घर के ताले ?
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गये वृन्दावन मथुरा
भूल गये क्या दिल्ली झाँसी ?
भूल गये उज्जैन अवन्ती
भूले सभी अयोध्या काशी?
यह विस्मृति की मदिरा तुमने
कब पी ली मेरे मदवाले !
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गये क्या कुरुक्षेत्र वह
जहाँ कृष्ण की गूंजी गीता,
जहाँ न्याय के लिए अचल हो
पांडु-पुत्र ने रण को जीता;
फिर कैसे तुम भीरु बने हो
तुमने रण-प्रण के व्रण पाले!
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
तुमने तो जापान चीन तक
उपनिवेश अपने फैलाये,
तुमने ही तो सिंधु पार जा
करुणा के संदेश सुनाये;
भूल गये कैसे गौतम को
जो थे जगतम के उजियाले ।
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
याद करो अपने गौरव को
थे तुम कौन, कौन हो अब तुम।
राजा से बन गये भिखारी,
फिर भी,मन में तुम्हें नहीं ग़म ?
पहचानो फिर से अपने को
मेरे भूखों मरनेवाले !
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !
जागो हे पांचालनिवासी !
जागो हे गुर्जर मद्रासी !
जागो हिन्दू मुग़ल मरहठे
जागो मेरे भारतवासी !
जननी की ज़ंजीरें , बजतीं
जगा रहे कड़ियों के छाले!
सुना रहा हूँ तुम्हें भैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !