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बाई बाई

7 अप्रैल 2022

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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था।

दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थी जिस में ये पन चक्की लगाई गई थी। फातो के बाप को दो तीन रुपय रोज़ाना मिल जाते जो उस के लिए काफ़ी थे। फातो अलबत्ता उन को नाकाफ़ी समझती थी इस लिए कि उस को बनाओ सिंघार का शौक़ था। वो चाहती थी कि अमीरों की तरह ज़िंदगी बसर करे।

काम काज कुछ नहीं करती थी बस कभी कभी अपने बूढ़े बाप का हाथ बटा देती थी। उस को आटे से नफ़रत थी। इस लिए कि वो उड़ उड़ कर उस की नाक में घुस जाता था। वो बहुत झुँझलाती और बाहर निकल कर खुली हवा में घूमना शुरू कर देती या चनाब के किनारे जा कर अपना मुँह हाथ धोती और अजीब क़िस्म की ठंडक महसूस करती।

उस को चनाब से प्यार था उस ने अपनी सहेलियों से सुन रखा था कि ये दरिया इश्क़ का दरिया है जहां सोहनी महींवाल हीर रांझा का इशक़ मशहूर हुआ।

बहुत ख़ूबसूरत थी और बड़ी मज़बूत जिस्म की जवान लड़की। एक पन-चक्की वाले की बेटी शानदार लिबास तो पहन नहीं सकती मैली शलवार ऊपर फिरन कुर्ता....... दुपट्टा नदारद।

नज़ीर सचेत गढ़ से लेकर बानिहाल तक और भद्रवा से किश्तवाड़ तक ख़ूब घूमा फिरा था। उस ने जब पहली बार फातो को देखा तो उसे कोई हैरत न हुई जब उस ने देखा कि फातो के कुर्ते के निचले तीन बटन नहीं हैं और उस की जवान छातियां बाहर झांक रही हैं।

नज़ीर ने इस इलाक़े में एक ख़ास बात नोट की थी कि वहां की औरतें ऐसी क़मीसें या कुरते पहनती हैं जिन के निचले बटन ग़ायब होते हैं उस की समझ में नहीं आता था कि आया ये दानिस्ता हटा दिए जाते हैं या वहां के धोबी ही ऐसे हैं जो उन को उतार लेते हैं।

नज़ीर ने जब पहली बार सैर करते हुए फातो को अपनी तीन कम बटनों वाली क़मीस में देखा तो उस पर फ़रेफ़्ता हो गया। वो हसीन थी नाक नक़्शा बहुत अच्छा था ताज्जुब है कि वो मैली होने के बावजूद चमकती थी उस का लिबास बहुत गंदा था मगर नज़ीर को ऐसा महसूस हुआ कि यही उस की ख़ूबसूरती को निखार रहा है।

नज़ीर वहां एक आवारागर्द की हैसियत रखता था वो सिर्फ़ कश्मीर के देहात देखने और उन की सयाहत करने आया था और क़रीब क़रीब तीन महीने से इधर उधर घूम फिर रहा था। उस ने किश्तवाड़ देखा भद्रवा देखा कुद और बटोत में कई महीने गुज़ारे मगर उसे फातो ऐसा हुस्न कहीं नज़र नहीं आया था।

बानिहाल में पन-चक्की के बाहर जब उस ने फातो को तीन बटनों से बेनयाज़ कुरते में देखा तो उस के जी में आया कि अपनी क़मीस के सारे बटन अलाहिदा कर दे और उस की क़मीस और फातो का कुरता आपस में ख़लत-मलत हो जाएं। कुछ इस तरह कि दोनों की समझ में कुछ भी न आए।

उस से मिलना नज़ीर के लिए मुश्किल नहीं था इस लिए कि उस का बाप दिन भर गंदुम मकई और ज्वार पीसने में मशग़ूल रहता था और वो थी हँसमुख हर आदमी से खुल कर बात करने वाली। बहुत जल्द घुल्लू मिट्ठू हो जाती थी चुनांचे नज़ीर को उस की क़ुरबत हासिल करने में कोई दिक्कत महसूस न हुई। चंद ही दिनों में उस ने उस से राह-ओ-रस्म पैदा कर ली। ये राह-ओ-रस्म थोड़ी देर में मुहब्बत में तबदील हो गई पास ही चनाब जिसे इश्क़ का दरिया कहते हैं और जिस के पानी से फातो के बाप की पन-चक्की चलती थी इस दरिया के किनारे बैठ कर नज़ीर उस को अपना दिल निकाल कर दिखाता था जिस में सिवाए मुहब्बत के और कुछ भी नहीं था। फातो सुनती इस लिए कि वो इस के जज़्बात का मज़ाक़ उड़ाना चाहती थी असल में वो थी ही हन्सोड़। सारी ज़िंदगी वो कभी रोई न थी, उस के माँ बाप बड़े फ़ख़्र से कहा करते थे कि हमारी बच्ची बचपन में कभी नहीं रोई।

नज़ीर और फातो में मुहब्बत की पेंगें बढ़ती गईं। नज़ीर फातो को देखता तो उसे यूं महसूस होता कि उस ने अपनी रूह का अक्स आईने में देख लिया है और फातो तो उस की गरवीदा थी इस लिए कि वो उस की बड़ी ख़ातिरदारी करता था उस को ये चीज़ जिसे मुहब्बत कहते हैं पहले कभी नसीब नहीं हुई थी इस लिए वो ख़ुश थी।

बानिहाल में तो कोई अख़बार मिलता नहीं था इस लिए नज़ीर को बटोत जाना पड़ता था। वहां वो देर तक डाकख़ाना के अंदर बैठा रहता डाक आती तो अख़बार पढ़ के पन-चक्की पर चला आता। क़रीब क़रीब छः मील का फ़ासिला था मगर नज़ीर इस का कोई ख़याल न करता। ये समझता कि चलो वरज़िश ही हो गई है।

जब वो पन-चक्की के पास पहुंचता तो फातो किसी न किसी बहाने से बाहर निकल आती और दोनों चनाब के पास पहुंच जाते और पत्थरों पर बैठ जाते।

फातो उस से कहती “बख़ैर – आज की ख़बरें सुनाओ”

उस को ख़बरें सुनने का ख़बत था। नज़ीर अख़बार खोलता और उस को ख़बरें सुनाना शुरू कर देता। उन दिनों फ़िर्क़ा-वाराना फ़सादाद थे। अमृतसर से ये क़िस्सा शुरू हुआ था जहां सिखों ने मुस्लमानों के कई मुहल्ले जला कर राख कर दिए थे। वो ये सब ख़बरें उस को सुनाता वो सिखों को अपनी गंवार ज़बान में बुरा भला कहती। नज़ीर ख़ामोश रहता।

एक दिन अचानक ये ख़बर आई कि पाकिस्तान क़ायम हो गया है और हिंदूस्तान अलाहिदा हो गया है। नज़ीर को तमाम वाक़ियात का इल्म था मगर जब उस ने पढ़ा कि हिंदूस्तान ने रियासत मांगरोल और मानावा वार पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है तो वो बहुत परेशान हुआ मगर उस ने अपनी इस परेशानी को फातो पर ज़ाहिर न होने दिया।

दोनों का इश्क़ अब बहुत उस्तिवार हो चुका था इस का इल्म फातो के बाप को भी हो गया था। वो ख़ुश था कि मेरी लड़की एक मुअज़्ज़ज़ और शरीफ़ घराने में जाएगी मगर वो चाहता था कि उस की बेटी स्यालकोट न जाये जहां का नज़ीर रहने वाला था। उस की ये ख़्वाहिश थी कि नज़ीर उस के पास रहे।

दौलत-मंद का बेटा है। पन-चक्की के पास काफ़ी ज़मीन पड़ी है इस पर एक छोटा सा मकान बनवा ले और दोनों मियां बीवी इस में रहें जब चाहा पलक झपकते श्रीनगर पहुंच गए वहां एक दो महीने रहे फिर वापिस आ गए कभी कभार स्यालकोट भी चले गए कि वो भी इतनी दूर नहीं।

फातो के बाप से मुफ़स्सल गुफ़्तुगू की वो उस से बहुत मुतअस्सिर हुआ और उस ने अपनी रजामंदी का इज़हार कर दिया। नज़ीर और फातो बहुत ख़ुश हुए उस रोज़ पहली मर्तबा नज़ीर ने उस के होंटों को चूमा और ख़ुद अपने हाथ से इस के कुरते में तीन बटन लगाए।

दूसरे दिन नज़ीर ने अपने वालिदैन को लिख दिया कि वो शादी कर रहा है। कश्मीर की एक देहाती लड़की है जिस से उस की मुहब्बत हो गई है एक माह तक ख़त-ओ-किताबत होती रही आदमी रोशन ख़याल थे इस लिए वो मान गए हालाँकि वो अपने बेटे की शादी अपने ख़ानदान में करना चाहते थे।

उस के वालिद ने जो आख़िरी ख़त लिखा उस में इस ख़्वाहिश का इज़हार किया गया था कि नज़ीर फ़ातिमा का फ़ोटो भेजे ताकि वो अपने रिश्तेदारों को दिखाएंगे इस लिए कि वो उस के हुस्न की बड़ी तारीफ़ें कर चुका था।

लेकिन बानिहाल जैसे दूर उफ़्तादा इलाक़े में वो फातो की तस्वीर कैसे हासिल करता उस के पास कोई कैमरा नहीं था न वहां कोई फ़ोटोग्राफ़र, बटोत और कुद में भी इन का नाम-ओ-निशान नहीं था।

इत्तिफ़ाक़ से एक दिन सिरीनगर से मोटर आई नज़ीर सड़क पर खड़ा था उस ने देखा कि इस का दोस्त रणबीर सिंह ड्राईव कर रहा है इस ने बुलंद आवाज़ में कहा : “रणबीर यार – ठहरो”

मोटर ठहर गई दोनों दोस्त एक दूसरे को गले मिले। नज़ीर ने देखा कि उस की मोटर में कैमरा पड़ा है रोली फैक्स। नज़ीर ने उस से कुछ देर बातें कीं फिर पूछा “तुम्हारे कैमरे में फ़िल्म है?”

रणबीर ने हंस कर कहा “ख़ाली कैमरा और ख़ाली बंदूक़ किस काम की होती है मेरे कैमरे में सोला एक्सपोज़ेर मौजूद हैं”

नज़ीर ने फ़ौरन फातो को ठहराया और अपने दोस्त रणबीर से कहा : “यार इस के तीन चार अच्छे पोज़ ले लो और तुम मेरा ख़याल है स्यालकोट जा रहे हो वहां से डेवेलोप और प्रिंट करा के मुझे दो दो कापियां बटोत के डाकखाने की मार्फ़त भिजवा देना”

रणबीर ने बड़े ग़ौर और दिलचस्पी से फातो को देखा उस की मोटर में डोगरा फ़ौज के तीन चार सिपाही थे थ्री नाट थ्री बंदूक़ें लिए। रणबीर जो मुक़ाम फ़ोटो लेने के लिए पसंद करता ये मुसल्लह फ़ौजी इस के पीछे पीछे होते। नज़ीर उस के हमराह होना चाहता तो ये डोगरे उसे रोक देते। कश्मीर में हुल्लड़ मच रहा था उस के मुतअल्लिक़ नज़ीर को अच्छी तरह मालूम था कि हिंदूस्तान उस पर क़ाबिज़ होना चाहता है मगर पाकिस्तानी उस की मुदाफ़अत कर रहे हैं। फ़ोटो लेकर जब नज़ीर का दोस्त रणबीर अपनी मोटर के पास आया तो उस ने नज़ीर की तरफ़ आँख उठा कर भी न देखा फातो डोगरे फ़ौजियों की गिरिफ़त में थी उन्हों ने ज़बरदस्ती मोटर में डाला वो चीख़ी चलाई। नज़ीर को अपनी मदद के लिए पुकारा। मगर वो आजिज़ था। डोगरे फ़ौजी संगीनें ताने खड़े थे।

जब मोटर स्टार्ट हुई तो नज़ीर ने अपने दोस्त रणबीर से बड़े आजिज़ाना लहजे में कहा :“यार रणबीर! ये क्या हो रहा है”

रणबीर सिंह ने जो कि मोटर चला रहा था नज़ीर के पास से गुज़रते हुए हाथ हिला कि सिर्फ़ इतना कहा :

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ
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सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।
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बाँझ

7 अप्रैल 2022
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मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो साहिल के बेंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की तहे

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बदसूरती

7 अप्रैल 2022
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साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी।  उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्ल थी

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बादशाहत का ख़ात्मा

7 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बजी, मनमोहन पास ही बैठा था। उसने रिसीवर उठाया और कहा, “हेलो... फ़ोर फ़ोर फ़ोर फाईव सेवन...”  दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई, “सोरी... रोंग नंबर।” मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और किता

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फूजा हराम दा

7 अप्रैल 2022
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हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअ’ल्लिक़ अपने तास्सुरात बयान किए जिससे उसको अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था

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फुसफुसी कहानी

7 अप्रैल 2022
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सख़्त सर्दी थी। रात के दस बजे थे। शाला मार बाग़ से वो सड़क जो इधर लाहौर को आती है, सुनसान और तारीक थी। बादल घिरे हुए थे और हवा तेज़ चल रही थी। गिर्द-ओ-पेश की हर चीज़ ठिठुरी हुई थी। सड़क के दो रवैय्या पस्

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बर्फ़ का पानी

7 अप्रैल 2022
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“ये आप की अक़ल पर क्या पत्थर पड़ गए हैं” “मेरी अक़ल पर तो उसी वक़्त पत्थर पड़ गए थे जब मैंने तुम से शादी की भला इस की ज़रूरत ही क्या थी अपनी सारी आज़ादी सल्ब कराली।” “जी हाँ आज़ादी तो आप की यक़ीनन सल्ब हूई

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बलवंत सिंह

7 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

7 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बचनी

7 अप्रैल 2022
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भंगिनों की बातें हो रही थीं। खासतौर पर उन की जो बटवारे से पहले अमृतसर में रहती थीं। मजीद का ये ईमान था कि अमृतसर की भंगिनों जैसी करारी छोकरिया और कहीं नहीं पाई जातीं। ख़ुदा मालूम तक़सीम के बाद वो कहाँ

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फ़ूभा बाई

7 अप्रैल 2022
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हैदराबाद से शहाब आया तो इस ने बमबई सैंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहला क़दम रखते ही हनीफ़ से कहा। “देखो भाई। आज शाम को वो मुआमला ज़रूर होगा वर्ना याद रखो में वापस चला जाऊंगा।” हनीफ़ को मालूम था कि वो मु

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फूलों की साज़िश

7 अप्रैल 2022
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बाग़ में जितने फूल थे। सब के सब बाग़ी होगए। गुलाब के सीने में बग़ावत की आग भड़क रही थी। उस की एक एक रग आतिशीं जज़्बा के तहत फड़क रही थी। एक रोज़ उस ने अपनी कांटों भरी गर्दन उठाई और ग़ौर-ओ-फ़िक्र को बालाए ताक़

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फुंदने

7 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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फाहा

7 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

7 अप्रैल 2022
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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बदतमीज़ी

7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

20 अप्रैल 2022
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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

20 अप्रैल 2022
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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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