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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022

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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है।

बेगम साहिबा! जी हाँ!

मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारियां सँभालनी ही पड़ती हैं।

बेगम साहिबा! अस्ल में आप ऐसे मुआमलों में बहुत नर्म दिल वाक़े हुए हैं, बिल्कुल मेरी तरह।

मियां साहब! हाँ! मुझे आपकी सोशल ऐक्टिविटीज़ का इल्म होता रहता है। फ़ुर्सत मिले तो कभी अपनी वो तक़रीरें भेजवा दीजिएगा जो पिछले दिनों आप ने मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर की हैं... मैं फ़ुर्सत के औक़ात में उनका मुतालआ करना चाहता हूँ।

बेगम साहबा! बहुत बेहतर!

मियां साहब! हाँ बेगम! वो मैंने आपसे इस बात का ज़िक्र किया था!

बेगम साहबा! किस बात का?

मियां साहब! मेरा ख़याल है, ज़िक्र नहीं किया... कल इत्तिफ़ाक़ से मैं मँझले साहबज़ादे के कमरे में जा निकला, वो लेडी चटर्लीज़ लवर पढ़ रहा था।

बेगम साहिबा! वो रुस्वा-ए-ज़माना किताब!

मियां साहब! हाँ बेगम!

बेगम साहिबा! आपने क्या किया?

मियां साहब! मैंने उससे किताब छीन कर ग़ायब कर दी।

बेगम साहिबा! बहुत अच्छा किया आपने।

मियां साहब! अब मैं सोच रहा हूँ कि डाक्टर से मशवरा करूं और उसकी रोज़ाना ग़िज़ा में तबदीली क़रा दूँ।

बेगम साहिबा! बड़ा सही क़दम उठाएंगे आप।

मियां साहब! मिज़ाज कैसा है आपका?

बेगम साहिबा! ठीक है।

मियां साहब! मेरा ख़याल था कि आज आप से... दरख़ास्त करूं।

बेगम साहबा! ओह! आप बहुत बिगड़ते जा रहे हैं।

मियां साहब! ये सब आपकी करिश्मा साज़ियाँ हैं।

बेगम साहबा! लेकिन आपकी सेहत?

मियां साहब! सेहत? अच्छी है लेकिन डाक्टर से मशवरा किए बगै़र कोई क़दम नहीं उठाऊंगा... और आपकी तरफ़ से भी मुझे पूरा इत्मिनान होना चाहिए।

बेगम साहबा! मैं आज ही मिस सलढाना से पूछ लूंगी।

मियां साहब! और में डाक्टर जलाल से।

बेगम साहिबा! क़ाइदे के मुताबिक़ ऐसा ही होना चाहिए।

मियां साहब! अगर डाक्टर जलाल ने इजाज़त दे दी?

बेगम साहबा! अगर मिस सलढाना ने इजाज़त दे दी... मफ़लर अच्छी तरह लपेट लीजिए। बाहर सर्दी है।

मियां साहब! शुक्रिया!

डाक्टर जलाल! तुम ने इजाज़त दे दी?

मिस सलढाना! जी हाँ!

डाक्टर जलाल! मैंने भी इजाज़त दे दी... हालाँकि शरारत के तौर पर...

मिस सलढाना! मुझे भी।

डाक्टर जलाल! पूरे एक बरस के बाद वो..

मिस सलढाना! हाँ पूरे एक बरस के बाद।

डाक्टर जलाल! मेरी उंगलियों के नीचे उसकी नब्ज़ तेज़ होगई, जब मैंने उसको इजाज़त दी।

मिस सलढाना! उसकी भी यही कैफ़ियत थी।

डाक्टर जलाल! उसने मुझसे डरते हुए कहा, डाक्टर! ऐसा मालूम होता है, मेरा दिल कमज़ोर होगया है... आप कार्डियोग्राम लीजिए...

मिस सलढाना! उसने भी मुझसे यही कहा।

डाक्टर जलाल! मैंने उसके टीका लगा दिया।

मिस सलढाना! मैंने भी... सिर्फ़ सादा पानी का।

डाक्टर जलाल! सादा पानी बेहतरीन चीज़ है।

मिस सलढाना! जलाल! अगर तुम उस बेगम के शौहर होते?

डाक्टर जलाल! अगर तुम उस मियां की बीवी होतीं?

मिस सलढाना! मेरा कैरेक्टर ख़राब हो गया होता!

डाक्टर जलाल! मेरा जनाज़ा उठ गया होता!

मिस सलढाना! ये भी तुम्हारे कैरेक्टर की ख़राबी कहलाती।

डाक्टर जलाल! हम जब भी सोसाइटी के इन उल्लूओं को देखने आते हैं, हमारा कैरेक्टर ख़राब हो जाता है।

मिस सलढाना! आज भी होगा?

डाक्टर जलाल! बहुत ज़्यादा।

मिस सलढाना! मगर मुसीबत ये है कि उनका लंबे लंबे वक़्फ़ों के बाद होता है।

बेगम साहिबा! लेडी चटर्लीज़ लवर, ये आपने तकिए के नीचे क्यूँ रखी हुई है?

मियां साहब! मैं देखना चाहता था कि ये किताब कितनी बेहूदा और वाहियात है।

बेगम साहिबा! मैं भी आपके साथ देखूंगी।

मियां साहब! मैं जस्ता-जस्ता देखूंगा, पढ़ता जाऊंगा। आप भी सुनती जाइए।

बेगम साहिबा! बहुत अच्छा रहेगा।

मियां साहब! मैंने मँझले साहबज़ादे की रोज़ाना ग़िज़ा में डाक्टर के मशवरे से तबदीलियां करा दी हैं।

बेगम साहिबा! मुझे यक़ीन था कि आपने इस मुआमले में ग़फ़लत नहीं बरती होगी।

मियां साहब! मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी आज का काम कल पर नहीं छोड़ा।

बेगम साहिबा! मैं जानती हूँ... और ख़ास कर आज का काम तो आप कभी...

मियां साहब! आपका मिज़ाज कितना शगुफ़्ता है...

बेगम साहिबा! ये सब आपकी करिश्मासाज़ियाँ हैं।

मियां साहब! मैं बहुत महफ़ूज़ हुआ हूँ... अगर आपकी इजाज़त हो तो...

बेगम साहिबा! ठहरिए! क्या आपने दाँत साफ़ किए?

मियां साहब! जी हाँ! मैं दाँत साफ़ कर के और डेटॉल के ग़रारे कर के आया था।

बेगम साहिबा! मैं भी।

मियां साहब! अस्ल में हम दोनों एक दूसरे के लिए बनाए गए थे।

बेगम साहिबा! इसमें क्या शक है।

मियां साहब! में जस्ता-जस्ता ये बेहूदा किताब पढ़ना शुरू करूं।

बेगम साहिबा! ठहरिए! ज़रा मेरी नब्ज़ देखिए।

मियां साहब! कुछ तेज़ चल रही है... मेरी देखिए।

बेगम साहिबा! आपकी भी तेज़ चल रही है।

मियां साहब! वजह?

बेगम साहिबा! दिल की कमज़ोरी!

मियां साहब! यही वजह हो सकती है... लेकिन डाक्टर जलाल ने कहा था कोई ख़ास बात नहीं।

बेगम साहिबा! मिस सलढाना ने भी यही कहा था।

मियां साहब! अच्छी तरह इम्तिहान कर के उसने इजाज़त दी थी?

बेगम साहिबा! बहुत अच्छी तरह इम्तिहान कर के इजाज़त दी थी।

मियां साहब! तो मेरा ख़याल है कोई हरज नहीं।

बेगम साहिबा! आप बेहतर समझते हैं... ऐसा न हो, आपकी सेहत...

मियां साहब! और आपकी सेहत भी...

बेगम साहिबा! अच्छी तरह सोच समझ कर ही क़दम उठाना चाहिए।

मियां साहब! मिस सलढाना ने इसका तो बंदोबस्त कर दिया है न?

बेगम साहिबा! किसका? हाँ, हाँ, उसका तो बंदोबस्त कर दिया है उसने।

मियां साहब! यानी उस तरफ़ से तो पूरा इत्मिनान है।

बेगम साहिबा! जी हाँ!

मियां साहब! ज़रा अब देखिए नब्ज़?

बेगम साहिबा! अब तो... ठीक चल रही है... मेरी?

मियां साहब! आपकी भी नोर्मल है।

बेगम साहिबा! इस बेहूदा किताब का कोई पैरा तो पढ़िए।

मियां साहब! बेहतर... नब्ज़ फिर तेज़ होगई।

बेगम साहिबा! मेरी भी।

मियां साहब! नौकरों से मतलूबा सामान रखवा दिया है आपने कमरे में?

बेगम साहिबा! जी हाँ! सब चीज़ें मौजूद हैं।

मियां साहब! अगर आपको ज़हमत न हो तो मेरा टेमप्रेचर ले लीजिए।

बेगम साहिबा! क्या आप तकलीफ़ नहीं कर सकते... स्टॉप वाच मौजूद है। नब्ज़ की रफ़्तार भी देख लीजिए।

मियां साहब! हाँ! ये भी नोट होनी चाहिए।

बेगम साहिबा! सिमलिंग साल्ट कहाँ है?

मियां साहब! दूसरी चीज़ों के साथ होना चाहिए।

बेगम साहिबा! जी हाँ! पड़ा है तिपाई पर।

मियां साहब! कमरे का टेमप्रेचर मेरा ख़याल है थोड़ा सा बढ़ा देना चाहिए।

बेगम साहिबा! मेरा भी यही ख़याल है।

मियां साहब! नक़ाहत ज़्यादा होगई तो मुझे दवा देना न भूलिएगा।

बेगम साहिबा! मैं कोशिश करूंगी अगर...

मियां साहब! हाँ हाँ...! बसूरत-ए-दीगर आप तकलीफ़ न उठाईएगा।

बेगम साहिबा! आप ये सफ़ा... ये पूरा सफ़ा पढ़िए...

मियां साहब! सुनीए!...

बेगम साहिबा! ये आपको छींक क्यूँ आई?

मियां साहब! मालूम नहीं।

बेगम साहिबा! हैरत है।

मियां साहब! मुझे ख़ुद हैरत है।

बेगम साहिबा! ओह... मैंने कमरे का टेमप्रेचर बढ़ाने के बजाय घटा दिया था... माफ़ी चाहती हूँ।

मियां साहब! ये अच्छा हुआ कि छींक आगई और बर वक़्त पता चल गया।

बेगम साहिबा! मुझे बहुत अफ़सोस है।

मियां साहब! कोई बात नहीं। बारह क़तरे ब्रांडी इसकी तलाफ़ी कर देंगे।

बेगम साहिबा! ठहरिए...! मुझे डालने दें। आपसे गिन्ने में ग़लती हो जाया करती है।

मियां साहब! ये तो दुरुस्त है, आप डाल दीजिए।

बेगम साहिबा! आहिस्ता आहिस्ता पीछे।

मियां साहब! इससे ज़्यादा आहिस्ता और क्या होगा?

बेगम साहिबा! तबीयत बहाल हुई?

मियां साहब! हो रही है।

बेगम साहिबा! आप थोड़ी देर आराम कर लें।

मियां साहब! हाँ... मैं ख़ुद इसकी ज़रूरत महसूस कर रहा हूँ।

नौकर! क्या बात है , आज बेगम साहिबा नज़र नहीं आईं?

नौकरानी! तबीयत नासाज़ है उनकी।

नौकर! मियां साहब की तबीयत भी नासाज़ है।

नौकरानी! हमें मालूम था।

नौकर! हाँ! लेकिन कुछ समझ में नहीं आता।

नौकरानी! क्या?

नौकर! ये क़ुदरत का तमाशा... हमें तो आज बिस्तर-ए-मर्ग पर होना चाहिए था।

नौकरानी! कैसी बातें मुँह से निकालते हो। बिस्तर-ए-मर्ग पर हों वो...

नौकर! न छेड़ो उनके बिस्तर-ए-मर्ग का ज़िक्र... बड़ा शानदार होगा... ख़्वाह मख़्वाह मेरा जी चाहेगा कि उठा कर अपनी कोठरी में ले जाऊं।

नौकरानी! कहाँ चले?

नौकर! बढ़ई ढ़ूढ़ने जा रहा हूँ... चारपाई अब बिल्कुल जवाब दे चुकी है।

नौकरानी! हाँ! इसमें कहना, मज़बूत लकड़ी लगाए।
 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ
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सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।
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भंगिनों की बातें हो रही थीं। खासतौर पर उन की जो बटवारे से पहले अमृतसर में रहती थीं। मजीद का ये ईमान था कि अमृतसर की भंगिनों जैसी करारी छोकरिया और कहीं नहीं पाई जातीं। ख़ुदा मालूम तक़सीम के बाद वो कहाँ

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बाग़ में जितने फूल थे। सब के सब बाग़ी होगए। गुलाब के सीने में बग़ावत की आग भड़क रही थी। उस की एक एक रग आतिशीं जज़्बा के तहत फड़क रही थी। एक रोज़ उस ने अपनी कांटों भरी गर्दन उठाई और ग़ौर-ओ-फ़िक्र को बालाए ताक़

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फुंदने

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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022
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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

20 अप्रैल 2022
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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

20 अप्रैल 2022
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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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