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तीन मोटी औरतें

20 अप्रैल 2022

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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी के दिन मज़े से कट रहे थे।

मिसेज़ सतलफ़ के ख़द्द-ओ-ख़ाल मोटापे की वजह से भद्दे पड़ गए थे। उसकी बाहें कंधे और कूल्हे भारी मालूम होते थे। लेकिन इस उधेड़ उम्र में भी वो बन-संवर कर रहती थी। वो नीला लिबास सिर्फ़ इसलिए पहनती थी कि उसकी आँखों की चमक नुमायाँ हो और बनावटी तरीक़ों से उसने अपने बालों की ख़ूबसूरती भी क़ायम रखी थीं।

उसे मिसेज़ रिचमेन और मिस बेकन इसलिए पसंद थीं कि वो दोनों उसकी निस्बत मोटी थीं और चूँकि वो उम्र में भी उनसे क़दरे छोटी थी इसलिए वो उसे अपनी बच्ची की तरह ख़याल करतीं। ये कोई नापसंदीदा बात न थी। वो दोनों ख़ुश तबीयत थीं। अक्सर तफ़रीहन उसके होने वाले मंगेतर का ज़िक्र छेड़ देती।

वो ख़ुद तो इस इश्क़-ओ-मुहब्बत की उलझन से कोसों दूर थीं लेकिन इस मुआमले में उन्हें मिसेज़ सतलफ़ से पूरी हमदर्दी थी। उन्हें यक़ीन था कि वो दिनों ही में कोई नया गुल खिलाने वाली है।

वो उसके लिए किसी अच्छे बर की तलाश में थीं। कोई पेंशन याफ़्ता एडमिरल जो गोल्फ भी खेलना जानता हो या कोई ऐसा रंडुवा जो घर बार के जंजाल से आज़ाद हो। बहरहाल ये ज़रूरी था कि उसकी आमदनी माक़ूल हो। वो बड़े ग़ौर से उनकी बातें सुनती और दिल ही दिल में हँस देती।

इसमें कोई शक नहीं कि वो एक बार फिर शादी का तजुर्बा करना चाहती थी। लेकिन शौहर के इंतिख़ाब में उसका मिज़ाज मुख़्तलिफ़ था। उसे किसी स्याह रंग छरेरे बदन के अतालवी की चाहत थी, जिसकी आँखें हद दर्जा चमकीली हों या कोई हिस्पानवी जो आला ख़ानदान से तअल्लुक़ रखता हो और उसकी उम्र किसी सूरत में तीस बरस से एक दिन भी ज़्यादा न हो।

ये सच है कि तीनों एक दूसरी पर जान देती थीं और उनकी आपस में मुहब्बत की वजह सिर्फ़ मोटापा था। और मुतावातिर इकट्ठे ब्रिज खेलने से दोस्ती और गहरी होगई थी। उनकी पहली मुलाक़ात करबसाद में हुई, जहाँ ये एक ही होटल में ठहरी थीं और एक डाक्टर के जे़रे ईलाज थीं।

मिसेज़ रिचमेन ख़ुश शक्ल भी थी। उसकी नशीली आँखें, खुरदरे गाल और रंगीन होंट बहुत ही दिलफ़रेब और दिलकश थे। उसे हर वक़्त खाने-पीने की फ़िक्र रहती। मक्खन, बालाई, आलू और चर्बी मिली पुडिंग उसका मन भाता खाना था। वो साल में ग्यारह महीने तो जी भर कर काफ़ी खाती और फिर ईलाज के ज़रिये दुबली होने के लिए एक महीना करबसाद चली जाती। वो दिन-ब-दिन फूलती जा रही थी।

उसका अक़ीदा था कि अगर उसे मन मर्ज़ी की ख़ुराक खाने को न मिले तो ज़िंदगी बेकार है। मगर उसके डाक्टरों को इस बात से इत्तिफ़ाक़ न था। मिसेज़ रिचमेन का ख़याल था कि डाक्टर कुछ ऐसा क़ाबिल नहीं वर्ना क्या अजीब था कि वो ज़रा दुबली हो जाती। उसने मिस बेकन से इस बात का ज़िक्र किया। वो बस एक क़हक़हा लगा कर ख़ामोश हो गई। उसकी आवाज़ बहुत गहरी थी। और चिपटा सा चेहरा! उसकी दोनों आँखों में बिल्ली की आँखों जैसी चमक थी।

उसे मर्दाना पोशाक ज़्यादा पसंद थी और सिर्फ़ उसकी ख़ुश मिज़ाजी की वजह से तीनों सहेलियाँ एक दूसरी से बहुत क़रीब हो गई थीं। वो तीनों एक ही वक़्त पर खाना खातीं, इकट्ठी सैर को जातीं और टेनिस खेलने के वक़्त भी एक दूसरी से कभी जुदा न होतीं।

इसमें कोई शक नहीं कि वो अपना वज़न करतीं तो अपने मोटापे में कोई फ़र्क़ न पाकर उदास सी हो जातीं। मिस बेकन को ये बात बहुत ही नागवार गुज़री कि बियर्स रिचमेन तिब्बी ईलाज से अपना वज़न बीस पौंड घटा कर बद परहेज़ी की वजह से दिनों में फिर उसी तरह मोटी होजाए और उसके कहने पर तीनों करबसाद छोड़कर चंद हफ़्तों के लिए कहीं और चली जाएँ।

बियर्स कमज़ोर तबीयत थी और उसे एक ऐसे इंसान की ज़रूरत थी जो उसे बद एतिदाली से बचा सके। उसे यक़ीन था कि अब उसे वर्ज़िश करने का ख़ूब मौक़ा मिलेगा। न सिर्फ़ यही बल्कि वहाँ घर में अपनी बावर्चन रख लेने से उसे चर्बी मिली चीज़ें खाने से नजात मिल जाएगी। और कोई वजह न थी कि इन सब का वज़न दिनों में कम हो जाये।

मिसेज़ सतलफ़ अपने घर में अनोखे इरादे बाँध रही थी। उसे यक़ीन था कि वहाँ दिनों में उसका रंग निखर जाएगा और अपने लिए कोई छैला बांका अतालवी फ़्रांसीसी या अंग्रेज़ तलाश करेगी। वो तीनों हफ़्ते में सिर्फ़ दो दिन उबले हुए अंडे और टमाटर खातीं और हर सुबह उठ कर अपना वज़न करतीं। मिसेज़ सतलफ़ का वज़न अभी सिर्फ़ 154 पौंड रह गया और वो तो गोया अपने आप को एक जवाँ साल लड़की समझने लगी।

मिसेज़ बेकन और मिसेज़ रिचमेन के मोटापे में भी काफ़ी फ़र्क़ पड़ गया। वो तीनों मुतमइन नज़र आती थीं। लेकिन ब्रिज खेलने के लिए एक चौथे खिलाड़ी की ज़रूरत ने उन्हें एक हद तक परेशान सा कर दिया।

वो सुबह सवेरे ढीले-ढाले पाजामे पहने चबूतरे पर बैठी दूध में खांड मिलाए बगैर चाय पी रही थीं और साथ साथ डाक्टर बर्ट के तैयार किए हुए बिस्कुट भी खा रही थीं, जिनके मुतअल्लिक़ ये गारंटी दी गई थी कि वो चर्बी से बिल्कुल पाक हैं। नाशते के वक़्त मिस बेकन ने इत्तिफ़ाक़न लीना का ज़िक्र किया।

“वो कौन है?” मिसेज़ सतलफ़ ने पूछा।

“वो मेरे उस चचेरे भाई की बीवी है, जिसका हाल ही में इंतिक़ाल हुआ है। वो गुज़िश्ता दिनों आसाब शिकनी का शिकार रही। क्यों न उसे दो हफ़्ते के लिए यहाँ बुला लें?”

“क्या वो ब्रिज खेलना जानती है?”

“क्यों नहीं... उसके यहाँ आने से किसी दूसरे की ज़रूरत भी न रहेगी।”बात तय हो गई... लीना को बुलाने के लिए तार भेजा गया और वो तीसरे दिन आ पहुंची।मिस बेकन उसे स्टेशन पर लेने गई। शौहर की मौत की वजह से लीना के चेहरे पर ग़म के आसार नुमायाँ थे।

मिस बेकन ने उसे दो साल से नहीं देखा था। इसलिए बड़ी गर्मजोशी से उसका मुँह चूम लिया, “तुम बहुत दुबली हो।” उसने कहा।

लीना मुस्कुरा दी।

“गुज़िश्ता दिनों मेरी तबीयत अलील रही और अब तो वज़न भी बहुत कम हो गया है।”

मिस बेकन ने एक सर्द आह भरी, लेकिन ये ज़ाहिर न हो सका कि उसकी वजह रश्क थी या लीना से हमदर्दी। वो उसे एक पुर फ़िज़ा होटल में ले गई। जहाँ दोनों सहेलियों से उसका तआरुफ़ कराया गया।

उसकी बेकसी देख कर मिसेज़ रिचमेन का दिल भर आया और उसके चेहरे की ज़र्दी ने मिसेज़ सतलफ़ को भी बहुत मुतअस्सिर किया। होटल में थोड़ी देर तफ़रीह के बाद वो लंच के लिए अपनी क़्यामगाह को चल दीं।

“मुझे कुछ रोटी चाहिए।”

लीना के ये अल्फ़ाज़ सहेलियों के कानों पर बहुत गिराँ गुज़रे। वो तो दस साल हुए उसे छोड़ चुकी थी, हालाँकि मिसिज़ रिचमेन ऐसी लालची औरत भी रोटी से परहेज़ करती थी। मिसेज़ बेकन ने अज़राह मेहमान नवाज़ी ख़ानसामाँ से कहा कि फ़ौरन हुक्म की तामील करे।

“थोड़ा मक्खन भी...’’

किसी ग़ैर मरई क़ुव्वत ने एक लम्हे के लिए उन सब के होंट सी दिये।

“ग़ालिबन घर में मक्खन मौजूद नहीं। अभी ख़ानसामाँ से पूछती हूँ।” मिस बेकन ने किसी क़दर तवक्कुफ़ से जवाब दिया।

“मक्खन रोटी बहुत पसंद है।” लीना ने मिसेज़ रिचमेन से मुख़ातिब होकर कहा और ख़ानसामाँ से रोटी लेकर बड़े इत्मिनान से उसपर मक्खन लगाया।

मिस बेकन बोली, “हम यहाँ बहुत सादा ग़िज़ा की आदी हैं।”

लीना ने मछली के टुकड़े पर मक्खन लगाते हुए कहा, “मुझे जब तक मक्खन, रोटी आलू और बालाई मिलती रहे बहुत मुतमइन रहती हूँ।”

“अफ़सोस कि यहाँ कहीं बालाई नहीं मिलती।” मिसेज़ रिचमेन ने कहा।

“ओह...” लीना बोली।

लंच पर बग़ैर चर्बी के कबाब चुने गए। इसके अलावा पालक थी और दम बख़्त नाशपातियाँ भी। नाशपाती खाते ही लीना ने मुतजस्सिस नज़रों से ख़ानसामां की तरफ़ देखा और इशारा पाते ही ख़ानसामां खांड लेकर हाज़िर हो गया। उसने अपनी क़हवा की प्याली में तीन चमचे खांड डाल दी।

“तुम्हें खांड बहुत पसंद है।” मिसेज़ सतलफ़ ने कहा।

“हमें तो सेक्रीन ज़्यादा मर्ग़ूब है।” मिस बेकन ने एक टिकिया अपनी प्याली में डालते हुए कहा।

“ये तो एक बे लज़्ज़त शय है।” लीना ने जवाब दिया।

मिसेज़ रिचमेन मुँह बना कर और ललचाई हुई नज़रों से खांड की तरफ़ देखने लगी। मिस बेकन ने उसे ज़ोर से पुकारा और एक सर्द आह भर कर उसने भी मजबूरन सेक्रीन की टिकिया उठा ली।

लंच से फ़ारिग़ होने के बाद वो ब्रिज खेलने लगीं। लीना ख़ूब खेली। सबने खेल का लुत्फ़ उठाया। मिसेज़ सतलफ़ और मिसेज़ रिचमेन के दिल में मुअज़्ज़ज़ मेहमान के लिए गहरी हमदर्दी का जज़्बा पैदा हो गया। मिस बेकन के दिल की मुराद भी बर आई। और वो यही तो चाहती थी कि लीना उनके साथ दो हफ़्ते ख़ुशी से बसर करे।

चंद साअत बाद मिस बेकन और मिसेज़ रिचमेन गोल्फ़ खेलने चली गई और मिसेज़ सतलफ़ एक जवाँ साल, ख़ुश शक्ल प्रिंस रोकामीर के साथ सैर को निकल गई। लेकिन कुछ देर सुस्ताने के ख़याल से लेट गई। डिनर से थोड़ा सा वक़्त पहले सब लौट आईं।

“लीना प्यारी, कहो वक़्त कैसे गुज़रा।” मिस बेकन ने कहा, “गोल्फ़ खेलते वक़्त ध्यान तुम्हारी ही तरफ़ था।”

“ओह, मैं तो बड़े मज़े से बिस्तर पर ही पड़ी रही और जा कर कॉकटेल भी पी और सुनो... आज एक छोटा सा क़हवाख़ाना पर मेरी नज़र पड़ी, जहाँ बड़ी अच्छी बालाई भी मिल सकती है। मैंने रोज़ाना मकान पर बालाई मँगवाने का इंतिज़ाम कर लिया है।”

उसकी आँखें चमक रही थीं और उसे यक़ीन था कि वो तीनों उसकी बात को सराहेंगी।

“तुम कितनी अच्छी हो लीना,” मिसेज़ बेकन ने कहा, “लेकिन अफ़सोस कि हमें बालाई पसंद नहीं। ऐसी आब-ओ-हवा में ये हमें रास नहीं आ सकती।”

“न सही, मैं जो सलामत हूँ।” लीना ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुम्हें क्या अपनी शक्ल-ओ-सूरत की कोई परवा नहीं।” मिसेज़ सतलफ़ ने मुँह बना कर कहा।

“मुझे तो डाक्टर ने बालाई खाने को कहा है।”

“क्या उसने मक्खन, रोटी, आलू और चारों ही चीज़ें तजवीज़ की हैं?”

“बेशक, तुम्हारी सादी ग़िज़ा से मैं यही मुराद लेती हूँ।”

“तुम यक़ीनन बहुत मोटी हो जाओगी।” लीना खिलखिला कर हंस दी।

रात को उसके सो जाने पर देर तक तीनों नुक्ताचीनी करती रहीं। आज शाम उनकी तबीयत कितनी शगुफ़्ता थी लेकिन अब मिसेज़ रिचमेन बेज़ार सी नज़र आने लगी। मिसेज़ सतलफ़ अलग जली बैठी थी। और मिस बेकन का मिज़ाज भी बरहम हो चुका था।

“मैं क़तअन बर्दाश्त नहीं कर सकती कि वो मेरा मन भाता खाना मेरी आँखों के सामने बैठ कर उड़ाए।” मिसेज़ रिचमेन ने ज़रा तल्ख़ी से कहा।

“ये तो कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।” मिस बेकन ने जवाब दिया।
 

“आख़िर तुमने उसे यहां बुलाया ही क्यों?”

“मुझे इस बात की क्या ख़बर थी।”

“अगर उसके दिल में अपने मरहूम शौहर का ज़रा भी ख़याल होता तो वो कभी पेट भर कर न खाती... उसे फ़ौत हुए अभी दो महीने तो गुज़रे हैं।”

“अजीब मेहमान है कि उसे हमारी मर्ज़ी का खाना ही पसंद नहीं।”

“सुना, वो कल क्या कह रही थी, उसे डाक्टर ने मक्खन रोटी, आलू और बालाई खाने को कहा है।”

“उसे तो फिर किसी सेनोटोरियम का रुख़ करना चाहिए।”

“वो मेहमान है तो तुम्हारी। हमारा तो उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं तो मुतावातिर दो हफ़्ते तक उस पेटू का तमाशा देखती रही हूँ।”

“सिर्फ़ खाने-पीने को ज़िंदगी का मक़सद समझ लेना बड़ी बेहूदगी है।”

“तुम क्या मुझे बेहूदा पुकार रही हो।” मिसेज़ सतलफ़ ने कहा।

“आपस में बदगुमानी से फ़ायदा?” मिसेज़ रिचमेन ने बात काट कर कहा।

“मैं हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकती कि तुम हमारे सोते में बावर्चीख़ाना में घुस कर खाती-पीती रहो।”

इन अल्फ़ाज़ ने मिस बेकन के तन-बदन में एक आग लगा दी। वो उछल कर खड़ी होगई। “मिसेज़ सतलफ़ अपनी ज़बान सँभालो। तुम क्या मुझे इतना ही कमीना ख़याल करती हो।”

“आख़िर तुम्हारा वज़न क्यों नहीं कम होता।”

“बिल्कुल ग़लत, मेरा तो सेरों वज़न कम होगया है।”वो बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगी और आँसू उसकी आँखों से टपक टपक कर छाती पर गिरने लगे।

“प्यारी तुम मेरा मतलब नहीं समझीं...”

ये कह कर मिसेज़ सतलफ़ घुटनों के बल झुकी और उसके जिस्म को अपनी आग़ोश में लेने की कोशिश की। उसका भी दिल भर आया और आँखों से आँसूओं की लड़ी जारी होगई।

“तो क्या मैं दुबली दिखाई नहीं देती।” मिस बेकन ने हिचकी लेते हुए कहा।

“हाँ बेशक...” मिसेज़ सतलफ़ ने भर्राई हुई आवाज़ में जवाब दिया।

मिसेज़ रिचमेन भी जो फ़ित्रतन निहायत कमज़ोर तबीयत वाक़ा हुई थी, अब रोने लगीं। ये मंज़र बहुत रिक्क़त ख़ेज़ था। मिस बेकन ऐसी औरत को आँसू बहाते देख कर संग दिल इंसान भी मोम हो जाता।

बिलआख़िर उन्होंने अपने आँसू पोंछे और एक ने ब्रांडी और पानी के चंद घूँट पिए। वो अब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थीं कि लीना डाक्टर की हिदायत के मुताबिक़ अपनी मन मर्ज़ी की ग़िज़ा खाए। आख़िर वो उनकी मेहमान ठहरी। उनका फ़र्ज़ था कि हर तरह उसका कलेजा ठंडा करें। उन्होंने एक दूसरी का गर्मजोशी से मुँह चूमा और अपनी अपनी ख़्वाबगाहों में चली गईं।

ये सच है कि इंसानी फ़ितरत बहुत कमज़ोर है और उस पर किसी का कोई इख़्तियार नहीं। ग़िज़ा के मुआमले में अब हर एक अपनी मर्ज़ी की मालिक थी।

उन्होंने मछली के कबाब शुरू किए तो लीना की सिवय्यां मक्खन और पनीर पर बसर होने लगी। वो हफ़्ते में दो बार उबले हुए अंडे और कच्चे टमाटर खातीं। लीना मटर के दाने बालाई में मिला कर खाती। उसे अब टमाटर को मुख़्तलिफ़ मसालों में पका कर खाने का शौक़ चर्राया था। उसका ख़ानसामां भी बड़ा बा मज़ाक था। वो हर बार एक बेहतर चीज़ तैयार करके मेज़ पर चुन देता।

लीना ने एक मौक़े पर ये भी कहा कि “डाक्टर ने उसे लंच पर बरगंडी की अर्ग़वानी शराब और डिनर पर शम्पैन इस्तिमाल करने को कहा है।” इन अल्फ़ाज़ ने तीनों सहेलियों को दम बख़ुद कर दिया। वो अभी अभी हंस खेल रही थीं लेकिन यकायक कैफ़ियत बदल गई।

मिसेज़ रिचमेन का तो गोया रंग ज़र्द पड़ गया। मिसेज़ सतलफ़ की नीली आँखों में एक ख़ौफ़नाक सी चमक पैदा होगई और मिस बेकन की आवाज़ भर्रा गई। ब्रिज खेलते वक़्त वो बड़े नर्म लहजे में एक दूसरे से बात क्या करतीं। लेकिन अब बात बात पर बिगड़ने लगीं।

लीना ने उन्हें बहुतेरा समझाया बुझाया कि खेल के वक़्त आपस में तकरार मुनासिब नहीं। लेकिन बे सूद। वो ख़ुश थी कि खेल में शुरू ही से उसका पल्ला भारी रहा है और दिनों में उसने एक बड़ी रक़म जीत ली है। तीनों मोटी सहेलियों को अब एक दूसरी से नफ़रत होने लगी। वो अपने मेहमान से भी बदज़न हो चुकी थीं।

इसके बावजूद अक्सर एक दूसरी के ख़िलाफ़ कान भरतीं। लीना के सामने वो एक दूसरी से ज़ाहिरन मिलती रहीं, लेकिन फिर ये बात भी न रही। वो एक दूसरी से बहुत मायूस हो चुकी थीं। मिस बेकन लीना को रुख़्सत करने स्टेशन पर गई।

गाड़ी पर सवार होते वक़्त वो बोली,“मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं कि तुम्हारी मेहमान नवाज़ी का शुक्रिया अदा कर सकूं…”

“तुम्हारी सोहबत बहुत पुरलुत्फ़ रही...” मिस बेकन ने जवाब दिया।

जब गाड़ी रवाना हुई तो उसने इस ज़ोर से आह भरी कि प्लेटफार्म उसके पांव के नीचे काँप काँप गया और वो “उफ़ उफ़” का शोर बुलंद करती घर लौटी।

उसने ग़ुस्ल करने का लिबास पहना और होटल की तरफ़ आ निकली। एका एकी वो मचल सी गई। उसकी आँखों के सामने मिसेज़ रिचमेन नया पायजामा और गले में मोतियों की माला पहने, बनाव सिंघार किए बैठी थी।

वो उसकी तरफ़ बढ़ी, “क्या कर रही हो?”

उसके ये अल्फ़ाज़ दो पहाड़ों में बादल की गरज की तरह सुनाई दिए।

“कुछ खा रही हूँ।”

उसके सामने मक्खन, सेब का मुरब्बा, क़हवा और बालाई वग़ैरा चुने हुए थे, वो गर्म रोटी पर मक्खन की मोटी तह जमा कर उस पर मुरब्बा और बालाई डाल रही थी।

“तुम खाने की लालच में अपनी जान दे दोगी।”

“कोई परवा नहीं।” मिसेज़ रिचमेन ने एक बड़ा लुक़्मा चबाते हुए कहा।

“तुम और भी मोटी हो जाओगी।”

“बस ख़ामोश, उस नाबकार को ख़ुदा समझे जिसे मैं मुतावातिर दो हफ़्ते से हलक़ में रंगा-रंग के निवाले ठूंसते देखती रही हूँ। एक इंसान तो इतना हज़म नहीं कर सकता।”

मिस बेकन की आँखों में आँसू आगए। वो बिल्कुल बेजान सी होगई। उसे उस वक़्त शायद एक मज़बूत मर्द की ज़रूरत थी जो उसे घुटने पर लगा कर पुचकारे। वो ख़ामोशी से पास ही कुर्सी पर बैठ गई। ख़ादिम हाज़िर हुआ और उसने क़हवे की तरफ़ इशारा करके उसे लाने को कहा।

वो हाथ बढ़ा कर क्रीम रोल उठाने लगी। लेकिन मिसेज़ रिचमेन ने रिकाबी एक तरफ़ रख दी। मिस बेकन जल-भुन गई और उसे एक ऐसे नाम से मुख़ातिब किया जो ख़ासतौर पर औरतों के शायान-ए-शान न था... इतने में ख़ादिम उसके लिए मक्खन, मुरब्बा और क़हवा लिये आया।

“पगले, बालाई लाना भूल गया...” वो शेरनी की तरह बिफर कर बोली।

उसने खाना शुरू किया और हलक़ में मक्खन, मुरब्बा ठूंसने लगी। होटल में अब रंगा-रंग के इंसानों की चहल पहल नज़र आने लगी। मिसेज़ सतलफ़ भी प्रिंस रोकामीर के साथ चहल-क़दमी करती इधर आ निकली। वो पहले अपने गिर्द एक रेशमी लिबादा मज़बूती से लपेटे हुई थी ताकि इस तरह वो कुछ दुबली दिखाई दे।

अपनी ठोढ़ी का नुक़्स छुपाने के लिए उसने सर को ऊपर उठाया हुआ था। वो बहुत मसरूर थी... एक दोशीज़ा की तरह। प्रिंस उससे इजाज़त ले कर पाँच मिनट के लिए मर्दाना कमरे में अपने बाल संवारने गया और वो भी अपने रुख़सारों को ग़ाज़ा चमकाने के लिए ज़नाना कमरे की तरफ़ आई। एका एकी उसकी नज़र अपनी दोनों सहेलियों पर पड़ी, वो रुक गई।

“तुम पेटू हैवान…”

वो कुर्सी पर बैठ गई और ख़ादिम को आवाज़ दी। उसके ज़ेहन से अब प्रिंस का ख़याल भी उतर चुका था। आँख झपकते में ख़ादिम हाज़िर होगया।“मेरे खाने को भी यहीं लाओ।”

“और मेरे लिए सिवय्यां...”

“मिस बेकन!” मिसेज़ रिचमेन पुकार उठी।

“बस ख़ामोश।”

“तो मैं भी यही खाऊंगी।”

क़हवा लाया गया और क्रीम रोल और बालाई भी। वो गर्म रोटी पर बालाई तह जमा कर खाने लगीं। मुरब्बे के बड़े चमचे हलक़ में ठूंस लिये। वो गोया एक ख़ास एहतिमाम से खा रही थीं। ऐसे मौक़ा पर मिसेज़ सतलफ़ के लिए प्रिंस से लगाव एक बेमअनी बात थी।

“मैंने पच्चीस साल से आलू नहीं खाए”, मिस बेकन ने धीमी आवाज़ में कहा।

मिसेज़ रिचमेन ने फ़ौरन ख़ादिम को तीनों के लिए भुने हुए आलू लाने को कहा।

एक लम्हे के बाद भुने हुए आलू उनके सामने थे और वो बड़े चटख़ारे लेकर खाने लगीं। तीनों सहेलियों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और सर्द आहें भरने लगीं। अब उनके दरमियान ग़लत फ़हमी रफ़अ हो चुकी थी। और दिलों में इंतिहाई मुहब्बत का जज़्बा मोजज़न था। उन्हें यक़ीन न आता था कि आज से पहले वो एक दूसरे से क़ता-ए-तअल्लुक़ पर आमादा हो चुकी थीं। आलू अब ख़त्म हो चुके थे।

“होटल में चॉकलेट तो ज़रूर होंगे।” मिसेज़ रिचमेन ने कहा।

“क्यों नहीं।”

एक लम्हा बाद मिस बेकन अपना मुँह खोले हलक़ में चॉकलेट ठूंस रही थी। उसने दूसरे पर हाथ डाला और मुँह में डालने से पहले दोनों सहेलियों की तरफ़ नज़र उठाए नाबकार लीना को कोसने लगी।

“तुम जो चाहो कहो लेकिन ये हक़ीक़त है कि वो ब्रिज खेलना नहीं जानती ।”

“बेशक।” मिसेज़ सतलफ़ ने इत्तिफ़ाक़ करते हुए कहा।

मिसेज़ रिचमेन का ज़ेहन उस वक़्त किसी लज़ीज़ केक की फ़िक्र में था।
 

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बचनी

7 अप्रैल 2022
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भंगिनों की बातें हो रही थीं। खासतौर पर उन की जो बटवारे से पहले अमृतसर में रहती थीं। मजीद का ये ईमान था कि अमृतसर की भंगिनों जैसी करारी छोकरिया और कहीं नहीं पाई जातीं। ख़ुदा मालूम तक़सीम के बाद वो कहाँ

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फ़ूभा बाई

7 अप्रैल 2022
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हैदराबाद से शहाब आया तो इस ने बमबई सैंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहला क़दम रखते ही हनीफ़ से कहा। “देखो भाई। आज शाम को वो मुआमला ज़रूर होगा वर्ना याद रखो में वापस चला जाऊंगा।” हनीफ़ को मालूम था कि वो मु

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फूलों की साज़िश

7 अप्रैल 2022
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बाग़ में जितने फूल थे। सब के सब बाग़ी होगए। गुलाब के सीने में बग़ावत की आग भड़क रही थी। उस की एक एक रग आतिशीं जज़्बा के तहत फड़क रही थी। एक रोज़ उस ने अपनी कांटों भरी गर्दन उठाई और ग़ौर-ओ-फ़िक्र को बालाए ताक़

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फुंदने

7 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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फाहा

7 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

7 अप्रैल 2022
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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बदतमीज़ी

7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

20 अप्रैल 2022
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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

20 अप्रैल 2022
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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

20 अप्रैल 2022
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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

20 अप्रैल 2022
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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022
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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

20 अप्रैल 2022
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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

20 अप्रैल 2022
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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

20 अप्रैल 2022
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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

20 अप्रैल 2022
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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

20 अप्रैल 2022
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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

20 अप्रैल 2022
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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

20 अप्रैल 2022
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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

20 अप्रैल 2022
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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

20 अप्रैल 2022
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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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