ना जाणे काय हुआ गीत ऑफ़ डार्ड (1 9 81) को नकल लाइल्लपुरी द्वारा लिखा गया है, यह खयायम द्वारा रचित है और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया है।दर्द (Dard )न जाने क्या हुआ लता मंगेशकरकी लिरिक्स (Lyrics Of Na Jaane Kya Hua )न जाने क्या हुआ जो तूने छू लियान जाने क्या हुआ जो तूने छू लियाखिला गुलाब की तरह म
'डार्ड' 1 9 81 की हिंदी फिल्म है जिसमें राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, प्रेम चोपड़ा, पूनम ढिल्लों, शशि पुरी, ओम शिव पुरी, पिंचू कपूर, मजहर खान, शशि किरण और रणजीता प्रमुख भूमिका निभाते हैं। हमारे पास एक गीत गीत और दार्द का एक वीडियो गीत है। खय्याम ने अपना संगीत बना लिया है। लता मंगेशकर ने इन गीतों को गाया
छोड़ के राहें प्यारी चाहत की,जाने किस रास्ते पे चल निकले,तु गलत, मैं गलत, इन्ही सब में है खबर कितने अपने कल निकले ?लम्हें अनमोल कितने खो बैठें,किमती कितने अपने पल निकले ?इतनी सिद्धत से पाले हैं नफरत,कैसे उल्फ़त का कोई फल निकले,एक मौका दे एक -दूजे को,सब शिकायत की बर्फ गल निकले,ख्वाहिशे तो फन्ना हुई; रो
हो जो फुर्सत तो आ के मिल ले कभी, हर घड़ी तुझको ही बुलाता हुं,सोचता हूँ तुझे ही मैं अक्सर, गीत तेरे ही गुनगुनाता हुं,तु तो मशरूफ़ दूर बैठी है, तेरी यादों से दिल लगाता हुं,तेरी चाहत में जो भी लिखता हुं, तेरी तस्वीर को सुनाता हुं,यादें देती हैं तेरी जब दस्तक, खुद को भी मैं तो भूल जाता हुं,बेख़बर अजनबी मे
हर घड़ी गम से गुफ़्तगू में निकल जाती है,गम अगर छोड़े कभी तो कहीं ख़ुशी से मिलूं, आँखों में अश्क़ की नदियां-सी उभर आती है,आँखों के अश्क़ रुके तो कहीं हँसी से मिलूं, राह कोई भी चलूँ जख्म हैं स्वागत में खड़े,दर्द फुर्सत दे अगर तो कहीं राहत से मिलूं, रोजमर्रा की जरूरतों से जंग जारी है,प्यास-पानी से बढे बात तो
खुश रहे वो ,इसलिए ये दर्द भी सहना पड़ा,मन न था ,फिर भी मुझे ,उसे अलविदा कहना पड़ा,थी नहीं हसरत कभी जीना पड़े उसके बिना,उसके लिए हर वक़्त ही मरते हुए जीना पड़ा, एक उसके बिन अकेला इस कदर मैं हो गया,हर जख्म तनहा अकेले खुद मुझे सीना पड़ा,उसकी ख्वाहिस थी की मैं जिन्दा रहू,मेरा नाम हो,बस इसलिए ही जिन्दगी का ये
तुम जिसे ठुकरा गयी, वो अब जग को रास आ रहा है,जो सुना तुमने नहीं वो धून ज़माना गा रहा है,तुमने बोला था न बरसेगी जहाँ एक बूँद भी कल,उस जमीं के नभ पे इक्छित काला बादल छा रहा है,रात के डर से अकेला तुमने छोड़ा था जिसे कल ,उसकी खातिर आज सजकर, सूर्य का रथ आ रहा है,काँच का टुकड़ा समझकर फेंक आई तुम जिसे थी,पैसो
तेरी चाहत के तोहफे हैं,जो इन आँखों से बहते हैं,नहीं तू संग फ़क्त इनको तो मेरे पास रहने दे,महज़ आंसू बता इनको न तू अपमान कर इनका,मेरी उल्फत के मोती हैं, तू इनको ख़ास रहने दे,ज़माना, वक़्त और मजबूरियां मैं सब समझता हूँ,तू जा बेशक, तू मेरे संग तेरा एहसास रहने देन मुझसे छीन ये उम्मीद तू मेरा नहीं होगा,भले झू
संभालना हमको आता है हम संभल भी जायेंगे यादो की फूल बनकर तेरे साखो पर मुस्कराएंगे बिछड़ जाने से मुहब्बत की दस्ता ख़तम नहीं होती हम याद थे हम याद है तुझे हम याद आएंगे सलामत रहे तू अपनी दुनिया में मसरूफ रहे किस्तों में करके हम भी तुझे अब भूल जाएंगे शायर
रहे जुदा हो गई अब अजनबी हो जायेंगे .. तेरे मेरे सपने सनम अब तू ही बता कहा जायेंगे ...!! राह में कोई नहीं तेरे यादो के सिवा हमसफ़र ...तेरी याद अब ना आई तो शायद हम मर जाएंगे ...!!! दिवार ही दिवार खड़
जख्म ऐसा दिया की कोई दवा काम ना आई,आग ऐसी लगाई की पानी से भी बुझ ना पाई|हम आज भी रोते हैं उनकी याद में,जिन्हें हमारी याद गुजर जाने पर भी ना आई ||****************************************कांच चुभे तो निशान रहे जाते है,और दिल टूटे तो अरमान रहे जाते हैं |लगा देता हैं वक्त मरहम इस दिल पर,फिर भी उम्र भर ए
जिंदगी जब दर्द देती है तब जिंदगी का मतलब सीखते हैं.और जब दुसरे लोग लड़ते हैं तब लड़ना सीखते हैं.जब अपने साथ ना दें तो रोना सीखते है.और जब अपना साथ ना दे तब इस दुनियाँ को सीखते हैं.
जब दर्द न था,जिंदगी का पता न था । अब लंबी उम्र की दुआ ,ख़ौफ़ज़दा करती है । अपनी मर्ज़ी से मैं, न आया, न जाऊँगा । होगी विदाई बिना मर्जी । पुकारता हूँ तो वो नहीं सुनता ,क्यों आवाज़ दूं उसे ,ए जिंदगी । दिखलाके आइना ,चेहरा उसे दिखाए कोई । सुनते है बड़ा मोम है । मैं बेतजुर्बा हूँ । मुझे मालूम नहीं ।
तैयार की जाती है औरतें इसी तरह रोज छेदी जाती है उनके सब्र की सिल हथौड़ी से चोट होती है उनके विश्वास पर और छैनी करती है तार – तार उनके आत्मसम्मान को कि तब तैयार होती है औरत पूरी तरह से चाहे जैसे रखो रहेगी पहले थोड़ा विरोध थोडा दर्द जरुर निकलेगा आहिस्ते – आहिस्ते सब गायब और पुनश्च दी जाती है धार क्रूर
किसान अपने खेत की तैयारी के बाद बीज के लिए सरकारी बीज गोदाम की ओर दो लाभ प्राप्त करने की उम्मीद से जाता है।एक सरकारी अनुदान और फाउंडेशन सीड में कम बीमारी का दावा।मगर वास्तव में उसे दोनों में छलाबा ही मिलता हैन तो कोई अनुदान की गारंटी है और न ही उच्च गुणवत्ता के बीज की।खरीफ में धान के बीज की पौध डाली