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डर

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भाग 34प्रोफेसर मंत्रोचार करना शुरू करते है , और धीरे धीरे कर एक एक कर उस पर सरसो डालने लगते हैं ,*"!! समीक्षा और प्रणय जैसे ही अंतिम झरोखे पर दिया रखने जाते हैं ,तभी उसमे से अचानक दो हाथ बाहर आते

अब तक आपने पढ़ा के कैसे सार्थक घर से बहार निकल जाता है।  कैसे उसके अंदर मंदार सूबेदार की आत्मा कब्ज़ा कर लेती है। और यह सब वो उस बाड़े को पाने के लिए कर रहा है। क्या राज़ छिपा था, उस बाड़े में क्यों वो पूर

अब तक आपने पढ़ा के कैसे अमन ने अपनी माँ के साथ मज़ाक किया, कैसे अमन को अपनी माँ से डांट खानी पड़ी।  उधर सार्थक के सामने पूरे बाड़े का परिवार एक साथ खड़ा था।  अब क्या होगा क्या सार्थक और बाड़े मै रह रहा एलेक

अब तक आपने पढ़ा के सरिता और एलेक्स ने वो बाड़ा भोजवानी से खरीद लिया और वो वहां शिफ्ट भी कर गए वहां  सामान लगा रहे थे। इधर सार्थक को कुछ आवाज़े आ रही थी अब इस कहानी मोड़ लेने ही वाली थी कहानी अब दिलचस्प

उधर भोजवानी अपने सभी इन्वेस्टर फ्रेंड्स के साथ वहां पहुँच जाता है और जब बाड़े की हालत देखता है तो उन सब के पैरो से जमीन सार्क जाती है ये साइट ऐसे क्यों दिख रही है भोजवानी चिल्लाया यह तो अब तक टूट ज

इधर वो बाड़ा बन कर तैयार था उधर मिस्टर भोजवानी की चिंता बढ़ गयी थी भोजवानी परेशान था के कहीं मैंने उस जगह पर पैसा फंसा कर नुक्सान तो नहीं कर लिया। और उसकी चिंता भी जायज थी पहिले अमित और अब सार्थक भी अब

सार्थक का बचना अब बेहद मुश्किल था अब अब तक आपने पढ़ा के कैसे सार्थक उस बाड़े में बचने के लिए जद्दो जेहद कर रहा था पर मौत जैसे उसके सामने ऐसे खड़ी हो जाती जैसे उसने लाल कपडे पहन रखे हो और बैल उसके पीछे

अब तक आपने पढ़ा के कैसे सार्थक उस वीरान बाड़े के तहखाने में फंस जाता है, और कैसे भी अब उधर से बाहर निकल जाना चाहता है, क्योकि वो अब पूरी रात उस तहखाने में नहीं काटना चाहता था, किसी तरह उसे एक गोल दरवाज़ा

अब तक आपने पढ़ा के सार्थक कैसे उस बाड़े में उन मृत लोगो को चीज़ो को देखने की उत्सुकता में कैसे उस अलमारी के दरवाज़े के सहारे होता हुआ उस बाड़े के नीचे छिपे हुए तहखाने में जाने लगता है पर वो वहां दरबाज़ा बंद

अब तक आपने पढ़ा के सार्थक कैसे मराठा बाड़ा की चीज़ो में अपनी उत्सुकता बढ़ाता ही जा रहा था जो उसके लिए हानिकारक सिद्ध होने वाली थी अब बढ़ती ही जा रही थी उसके लिए खतरा बढ़ता ही जा रहा था पर सार्थक रुकने का ना

अमित कहाँ होगा ?कैसा होगा ?क्या हुआ होगा उसे ऐसा जो वो जबाव नहीं दे रहा ? कोई इतना गैरजिम्मेदार तो हो नहीं सकता कुछ तो हुआ ही होगा यह सब सोचते हुए सार्थक पुलिस स्टेशन में दाखिल होता है थाना इंचार्ज

सार्थक अब अंदर दाखिल हो चुका था वो देखता है वहां काम तरक्की पर है। "अरे !यहाँ तो काम चल रहा है वो यहाँ का इंचार्ज लग रहा है चलो उसी से पता करता हूँ" सार्थक कार से बाहर आता है और इंचार्ज के पास जाने ल

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डर बड़ी कमाल की चीज हैंडर का मुकाबला डट के कर लोतो वो डर डर के मैदान छोड़ देगा ।

डर के आगे…एक शीतल पेय के विज्ञापन की आख़िरी पंक्ति से बात शुरू करते हैं,डर के आगे......जीत है.विज्ञापन में तो अतिशयोक्तिपूर्णदावा किया गया है.परंतु क्या ये मुमकिन है?यदि हाँ,तो कैसे?संस्कृत का एक श्लोक हमारा मार्गदर्शन कर सकता है-तावद्भय

जलता है ज़िगर फिर भी धुंआ नहीं उठता, बदनामी का डर या तिरि रुसवाई का है डर .(आलिम)

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हम अपने हर उपलब्ध स्थान को भरने, अधिक कार्यों में व्यस्त रहने, संदेशों का जवाब देने, सोशल मीडिया और ऑनलाइन साइटों की जाँच करने, वीडियो देखने में बिताते हैं।हम अपने जीवन में खाली जगह से डरते हैं।परिणाम अक्सर एक निरंतर व्यस्तता, निरंतर व्याकुलता और परिहार, ध्यान की कमी, हमारे जीवन से संतुष्टि की कमी ह

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मैं हाल ही में एक दोस्त के साथ एक चर्चा कर रहा था जो अपने आप को उस उद्देश्यपूर्ण कार्य को करने से रोक रहा है जो वह सोचता है कि वह आगे बढ़ना चाहता है।क्या उसे रोक रहा है?खुद को सार्वजनिक रूप से रखने का डर। असफलता का डर। राय बनने का डर। गलत रास्ता चुनने का डर। काफी अच्छ

बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैगर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैसर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैमौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का हैकोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का हैकिसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का हैव्यस्त सब सियासी खेल

गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क

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