भाग 34प्रोफेसर मंत्रोचार करना शुरू करते है , और धीरे धीरे कर एक एक कर उस पर सरसो डालने लगते हैं ,*"!! समीक्षा और प्रणय जैसे ही अंतिम झरोखे पर दिया रखने जाते हैं ,तभी उसमे से अचानक दो हाथ बाहर आते
डर बड़ी कमाल की चीज हैंडर का मुकाबला डट के कर लोतो वो डर डर के मैदान छोड़ देगा ।
डर के आगे…एक शीतल पेय के विज्ञापन की आख़िरी पंक्ति से बात शुरू करते हैं,डर के आगे......जीत है.विज्ञापन में तो अतिशयोक्तिपूर्णदावा किया गया है.परंतु क्या ये मुमकिन है?यदि हाँ,तो कैसे?संस्कृत का एक श्लोक हमारा मार्गदर्शन कर सकता है-तावद्भय
जलता है ज़िगर फिर भी धुंआ नहीं उठता, बदनामी का डर या तिरि रुसवाई का है डर .(आलिम)
हम अपने हर उपलब्ध स्थान को भरने, अधिक कार्यों में व्यस्त रहने, संदेशों का जवाब देने, सोशल मीडिया और ऑनलाइन साइटों की जाँच करने, वीडियो देखने में बिताते हैं।हम अपने जीवन में खाली जगह से डरते हैं।परिणाम अक्सर एक निरंतर व्यस्तता, निरंतर व्याकुलता और परिहार, ध्यान की कमी, हमारे जीवन से संतुष्टि की कमी ह
मैं हाल ही में एक दोस्त के साथ एक चर्चा कर रहा था जो अपने आप को उस उद्देश्यपूर्ण कार्य को करने से रोक रहा है जो वह सोचता है कि वह आगे बढ़ना चाहता है।क्या उसे रोक रहा है?खुद को सार्वजनिक रूप से रखने का डर। असफलता का डर। राय बनने का डर। गलत रास्ता चुनने का डर। काफी अच्छ
बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैगर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैसर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैमौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का हैकोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का हैकिसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का हैव्यस्त सब सियासी खेल
गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क