तेरी ज़ुल्फ़ों के लहराने से जब खुशबू निकलती हैतुझे अपना बना लूँ फिर तो हर धड़कन मचलती हैमिलन की आस हो मन में तो फिर दूरी है बेमानीजलधि में ही समाने को तो हर नदिया उछलती हैमुहब्बत के प्यासे को पिला दो चाहे तुम कुछ भीदीदार ए यार से ही फिर तो बस सेहत संभलती है जतन कर लो मगर इसको बुझा पाना नही मुमकिनअगन
मुझको मालूम है तूने मुझे दिल से निकाला हैतेरा दर आज भी मेरे लिए लेकिन शिवाला है एक तेरे साथ में ही ज़िंदगी आबाद लगती थीबड़े जतनों के संग इसको मैंने तन्हा संभाला है लाख तूफ़ान आने पर भी जो डगमग नहीं होतीवही बाती तो जीवन भर सदा करती उजाला है ज़िंदगी किस तरह होगी ये तय करते हैं बस पासेमुझे तो हार दी जब
अँधेरे जब कभी इंसान के जीवन में आते हैं तभी तो चाँद दिखता है ये तारे टिमटिमाते हैंसरद रातें हुईं लम्बी तो ग़म किस बात का प्यारे सुबह की आस में फिर से चलो दीपक जलाते हैंघना कोहरा है राहों में नज़र कुछ भी नहीं आता चलो फिर से मुहब्बत की घनी बारिश कराते हैंपात शाखों से झरते हैं रवि मायूस रहता है सृजन फि
घिरे हैं आज कांटों में और ना कहीं फूल खिलते हैंसमय तेरी महर के बिन कभी हमदम ना मिलते हैंघाव कुछ इस कदर पाएं है हमने खास अपनों सेदर्द से बिलबिलाते होंठ हम अक्सर ही सिलते हैंबड़ा रूखा सा मौसम है कहीं ना कोई हलचल हैघने पेड़ों की शाखों पे भी तो ये पत्ते ना हिलते हैंराह जो
मुहब्बत करके जो मझधार में संग छोड़ जाते हैंलाख चाहा किया भूलें वो फिर भी याद आते हैं अगर बनता है हर इंसान केवल एक मिट्टी सेकहो जज़्बात अपने दिल के वो कैसे छुपाते हैं हरे हैं घाव सीने के मगर उनकी ये फितरत हैभूल के सारी पीड़ा को वो केवल मुस्कुराते हैं भले ही सामने सबके मैं पत्थर सा कहूँ खुद कोमगर तन्ह
शिक़वा यह नहींकि हम पे ऐतबार नहीं,ज़ालिम, के लहज़े में रहाअब प्यार नहीं, जवाब देते क्याहम सवालिया नज़र का,ढूंढते रहे, पर दिखा उसमेंइंतज़ार नहीं, बातें तो देरतल्क, करतारहा वो मुझसे,खोखले अल्फ़ाज़में मिला अफ़्कार नहीं, साक़ी मेरा क्याबिगाड़ लेगी तेरी शराब,निगाहे-नरगिससे जो हुआ सरशार नहीं, माना नाराज़ हैपर जलील क
जब भी मौसम ज़मीं पे अपनी फितरत को बदलते हैंमिलन की आस में यारां दिल के अरमान मचलते हैं किसी तपते बदन को जब जब फुहारें ठण्ड देती हैंये बंधन प्यार के एक दूजे की बाहों में फिसलते हैं अब तो सूरज हुआ मद्धिम और रातें भी ठिठुरती हैंउनके आगोश की गर्मी से अब हम ना निकलते हैं जब खिले फूल बगिया में और मौसम भी
भले ही मुद्दतों से हम ना तुमसे बात करते हैंतेरे ख़्वाबों में ही लेकिन बसर दिन रात करते हैंये माना बाग़ उजड़ा है बहारें अब ना आती हैंउम्मीदें मन में रख मेघा फिर भी बरसात करते हैंजिन्हें इस ज़िन्दगी में प्यार में भगवान दिखता हैहदें सब तोड़ कर वो फिर से मुलाक़ात करते हैंभूल कुछ हो गईं तुमसे चूक मैंने भ
भले ही घाव भर जाएं निशां तो फिर भी रहते हैंमुहब्बत के गमों को आज हम तन्हा ही सहते हैंवो पत्थर हैं ज़माने से कभी कुछ भी नहीं बोलामगर हम उनसे लिपटे आज भी झरने से बहते हैंबड़ी चिंता है दुनिया को कहीं वो बात ना कर लेंतभी जज्बात मन के आज वो नज़रों से कहते हैंकटेगी ज़िन्दगी खुशहाल हो बस साथ में उनकेमहल पर
आसमान को भी ज़मी कीये खबर कर देंकहो तो ज़मीनो आसमाइधर उधर कर देंबात दिल मे आती हैऔर डर भी साथक्या जाने की लोगमुझको किधर कर देंमोहब्बत में मकाम आयेजरूरी तो नहीक्यूँ न मोहब्बत कोरास्ते का सफर कर देंहै नफरत का सबब वोतो क्या करेंलगायें आग दुनिया कोसिफर कर देंबैठा है महफ़िल मेंडरा जाता है दिलकहीं न लोग पहचा
गुज़र जाती है सारी उम्र बस एक प्यार पाने मेंमुझे तो हार मिलती आई है संगदिल ज़माने में मुहब्बत के लिए मैं ज़िन्दगी भर प्यास से तड़पासुबह से शाम हो जाती है बस रिश्ते निभाने में कोई तो बात है जो दर्द मेरे कम ना होते हैंख़ुदा को भी मज़ा आता है बस मुझको रुलाने में पुकारा जिसने जब मुझको दौड़ कर बांह को पक
मापनी- २२२१ २२२१ २२२१ २२ काफ़िया- अल रदीफ़- जाते “गज़ल”गर दरख़्त न होते तो कदम चल निकल जातेयह मंजिल न होती तो सनम हम फिसल जातेतुम ही कभी जमाने को जता देते फ़साने तो -होके तनिक गुमराह सनम हम सम्हल जाते॥कहती यह दीवार सितम कितना हुआ होगा यह जाल मकड़ी के हटाते तो विकल जाते॥उठें हा
बेदिली महफिले-जानां से रफ्ता-रफ्ता कीजिये,इससे पहले सर चले, खुद को चलता कीजिये।आये हैं तो रख लीजिये जामो-साकी की कदर,पर होश तारी ही रहे, घर की हिफाजत कीजिये।चार रोजा जिंदगी और सद हजारां इश्तियाक,अब भी कुछ बिगड़ा नहीं होशे-तमन्ना कीजिये।किसका जूता किसके सर क्या करेंगे ज
वो अपने दर्द के सब रिश्ते पुराने हो गएमेरे दीवाने भी अब तो पूरे सयाने हो गएएक समय वो भी था वो मेरे नज़दीक थे अब तो रुखसार को देखे ज़माने हो गएमेरे जीवन में तो बस एक तपती धूप थीवो यहाँ आ गए और मौसम सुहाने हो गएवक्त की चाल कभी कोई नहीं जा
काफ़िया- आने, रदीफ़ – की बात कर! "गज़ल” दिखे तो छा गए सपने, दिल लगाने की बात कर झिझक क्यूँ पग रुके तेरे, मुस्कुराने की बात कर बात दिगर हो तो कहना, गैरसमझ न छुपा रखना मित्र बन गए तुम अपने, अब हँसाने की बात कर॥ देखो बागों की कलियाँ, झूमने लगी हैं बहारें भँवरे भी मचलने ल
"गज़ल" देखता हूँ मैं कभी जब तुझे इस रूप में सोचता हूँ क्यों नहीं तुम तके उस कूप में क्या जरूरी था जो कर गए रिश्ते कतल रखके अपने आप को देखते इस सूप में।। देख लो उड़ गिरे जो खोखले थे अधपके छक के पानी पी पके फल लगे बस धूप में।। छोड़ के पत्ते उड़े जो देख पीले हो गए साख से जो भी जुड़े हैं सभी उस रूप में।।
तूने जब से मुझको अपनी दुनिया से निकाला हैइक ग़म ही फ़कत चोटिल हो सीने ने संभाला हैतबस्सुम छोड़ के ऐ फूल देख तुझको क्या मिलाख़ुशबुएं लुट गई सारी और सूखी ये प्रेम माला हैशहर की आबो हवा भी अब ऐसी ज़हरीली हुईहर नज़र नीची है और जुबां पर लटका ताला हैमेरी बातों ने यहाँ कई अप
छुपाया बहुत खुद को नैन पर फिर भी मिल गएअसर ऐसा हुआ दिल पे फूल खुशियों के खिल गएखौफ ने इस कदर घोला है ज़हर फ़िज़ा में शहर कीलाख जज़्बात हैं दिल में मगर लब कब के सिल गए ज़लज़ला लाने वालों ने तो कमी कोई भी ना छोड़ीजड़े जिनकी गहरी थीं दरख़्त वो सब भी हिल गए फूल पाने की कोशिशें ना मेरी परवान चढ़ सकींफूल
तेरे बिन दिन नहीं कटते तुझे कैसे बताएं हमतू ही जब पास ना आए तुझे कैसे सताएं हम तेरा वो रूठ जाना और मनाना याद आता हैसमझ आए न अब कैसे करें सारी खताएं हमदेख कर तेरी मुस्कानें फूल बागों में खिलते थेतेरे बिन देखते हैं अब तो बस सूखी लताएं हमसभी लोगों ने अक्सर रूप मेरा सख्त देखा हैचोट अन्दर जो लगती है उसे