तेरी ज़ुल्फ़ों के लहराने से जब खुशबू निकलती है
तुझे अपना बना लूँ फिर तो हर धड़कन मचलती है
मिलन की आस हो मन में तो फिर दूरी है बेमानी
जलधि में ही समाने को तो हर नदिया उछलती है
मुहब्बत के प्यासे को पिला दो चाहे तुम कुछ भी
दीदार ए यार से ही फिर तो बस सेहत संभलती है
जतन कर लो मगर इसको बुझा पाना नही मुमकिन
अगन ये इश्क की दो सीनों में जब जब दहलती है
लाख कोशिश करी मधुकर उल्फ़त के बिना जी लें
बिना गुजरे इन गलियों से तबीयत ना बहलती है